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भारत का मूल निवासी आदिवासी ही है, जनजातिय संस्कृति को कायम रखना हमारा कर्तव्य-उपराष्ट्रपति

भारत का मूल निवासी आदिवासी ही है, जनजातिय संस्कृति को कायम रखना हमारा कर्तव्य-उपराष्ट्रपति

जनजातीय वर्ग ही समाज का वह वर्ग है जो प्रकृति को माता के रूप में पूजता है
विगत 50 वर्षों  में भारत में लगभग 250 भाषाएं और बोलियां विलुप्त हो गई है
गौंड राजाओं का यह ऐतिहासिक क्षेत्र, पर्यटन का केन्द्र बनेगा

उपराष्ट्रपति श्री एम वैंकेया नायडु ने मंडला में आदिवासी महोत्सव का शुभारंभ करते हुये कहा कि जनजातीय समुदायों की पर्यावरणीय नैतिकता आज के सभ्य समाज के लिए अनुकरणीय, जनजातीय समुदायों का पीढ़ियों का अनुभव स्थाई, समावेशी, प्रकृति सम्मत विकास सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने आगे कहा कि आवश्यक है कि जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और शिल्प को सुरक्षित रख कर भी राष्ट्रीय जीवन में बराबरी के अवसर उपलब्ध कराए जाएं। उपराष्ट्रपति ने कहा जनजातीय समुदायों का विकास समावेशी विकास के दर्शन की शर्त ही नहीं बल्कि हमारा संवैधानिक दायित्व है। उपराष्ट्रपति ने आदिवासी महोत्सव का उद्घाटन किया और गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, रानी अवंती बाई सहित स्थानीय शासकों और नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित किया। उपराष्ट्रपति ने एकलव्य विद्यालय, वन बंधु, तथा वन उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी राजकीय योजनाओं के लाभ जनजातीय समुदायों को पहुंचाने का आग्रह किया। माओवादी हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं, विकास के लिए शांति आवश्यक शर्त उपराष्ट्रपति ने सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों को चेक और कुंजियां आबंटित की तथा जनजातीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लोक नृत्य को भी देखा।

मंडला। गोंडवाना समय।
भारत का मूल निवासी आदिवासी ही है। आदिवासी संस्कृति को कायम रखना और जनजातियों का विकास करना हमारा कर्तव्य है और यह हमारा संवैधानिक दायित्व भी है। आदिवासियों से हमें प्रकृति के साथ जीवनयापन करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। यह उदगार कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को जिले के ऐतिहासिक स्थल रामनगर में दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा। 

उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू का मंडला में हुआ भव्य स्वागत

उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू का शनिवार को मंडला आगमन पर मध्य प्रदेश शासन के आदिम जाति कल्याण मंत्री श्री ओमकार मरकाम व केंद्रीय मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने भव्य स्वागत किया गया।
उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू प्रात: 10.30 बजे वायुसेना के हेलीकॉप्टर द्वारा केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री रेणुका सिंह के साथ हेलीपेड पहुँचे। आदिवासी महोत्सव में भाग लेने के बाद उनके भावभीनी विदाई भी दी गई।

गोंडवाना साम्राज्य की ऐतिहासिक धरोहर में आना सौभाग्य की बात

उपराष्ट्रपति श्री नायडू ने कहा कि गोंडवाना साम्राज्य की ऐतिहासिक धरोहर रामनगर में आना उनके लिए सौभाग्य की बात है। आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने और उससे युवाओं को परिचित कराने के लिए आदिवासी महोत्सव का आयोजन प्रारंभ किया गया है। यह एक अच्छा प्रयास है इसके माध्यम से आदिवासी शिल्प, संगीत, कला व संस्कृति आदि का प्रदर्शन किया जाता है। 

जनजातीय परंपरा हम सभी के लिए अनुकरणीय और है प्रेरणास्पद 

आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफी नहीं है बल्कि इसमें समाज का भी योगदान होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने जीवन में, जन्म देने वाली माँ, जन्मभूमि, मातृभाषा और देश को कभी नहीं भूलना चाहिए। जनजातीय वर्ग ही समाज का वह वर्ग है जो प्रकृति को माता के रूप में पूजता है। यह जनजातीय परंपरा हम सभी के लिए अनुकरणीय और प्रेरणास्पद है। आधुनिक होते समाज में अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही आदिवासियों को शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष ध्यान देना चाहिए। शिक्षा से ही समाज में जागृति व उन्नति आती है। 

गौंडवाना साम्राज्य के शहीद राजाओं को पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि दी

उपराष्ट्रपति श्री नायडू ने कहा कि विकास के लिए शांति आवश्यक है। शांति के बिना विकास नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि गौंड़ साम्राज्य की यह ऐतिहासिक धरती जनजातियों की भाषा, संस्कृति और जीवन पद्धति को संजोकर रखने एवं उनके आर्थिक विकास में भागीदार बनेगी। कार्यक्रम के पूर्व उन्होंने गौंडवाना साम्राज्य के शहीद राजाओं को पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि दी। अपने उद्बोधन के बाद उन्होंने जनजातीय नृतक दल व उपस्थित जनसमुदाय से मिलकर अभिवादन किया। कार्यक्रम के अंत में उपराष्ट्रपति श्री नायडू द्वारा स्वरोजगार और आपदा राहत के हितग्राहियों को प्रतीकात्मक रूप से हितलाभ का वितरण किया।

जो आज के तथाकथित सभ्य समाज के लिए भी अनुकरणीय है

उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने शनिवार को मण्डला के रामनगर में आयोजित वार्षिक आदिवासी महोत्सव के अवसर पर कहा कि प्राकृतिक आपदाओं, प्रदूषित पर्यावरण से त्रस्त विश्व, जब प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहा है, हमारे जनजातीय समुदायों के पास, पीढ़ियों के अनुभव से प्राप्त वह ज्ञान और विद्या है जो भविष्य के लिए स्थाई, समावेशी और प्रकृति सम्मत विकास सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इन समुदायों ने पीढ़ियों से एक पर्यावरणीय नैतिकता,  विकसित की है, जो आज के तथाकथित सभ्य समाज के लिए भी अनुकरणीय है। 

संविधान में जनजातीय क्षेत्रों और समुदायों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं

उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह आवश्यक है कि जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और शिल्प को संरक्षित रखते हुए भी उन्हें राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा में बराबर के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाएं। जनजातीय समुदाय के विकास की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि आवश्यक है कि प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच निरंतर रचनात्मक संवाद हो जिसमें विकास तथा परम्परा के बीच संवेदना और संतुलन की आवश्यकता होगी। श्री नायडू ने कहा कि हमारे जनजातीय समुदायों का विकास न केवल हमारे समावेशी विकास के दर्शन की आवश्यक शर्त है बल्कि हमारा संवैधानिक दायित्व भी है जिसके लिए हमारे संविधान में जनजातीय क्षेत्रों और समुदायों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

400 एकलव्य विद्यालयों के निर्माण की घोषणा 

आज आदिवासी महोत्सव के अवसर पर  उन्होंने उसे हमारे देश के मूल संस्कारों का उत्सव बताया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने वीरांगना रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई की पुण्य भूमि गोंडवाना के लोकप्रिय शासकों और नायकों के पुण्य स्मृति को  विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। उपराष्ट्रपति ने अपेक्षा व्यक्त की कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से जनजातीय समुदाय को ही नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन को भी परिचित कराया जाये। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति ने इस वर्ष के अपने अभिभाषण में इस वर्ष 400 एकलव्य विद्यालयों के निर्माण की घोषणा की है। 

अन्यथा ये समृद्ध परंपरा लुप्त हो जाएगी

जनजातीय समुदायों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा वन उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना की घोषणा की गई है। उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि जनजातीय शिल्प, वस्त्रों, वन उत्पादों और युवाओं की उद्यमिता को आवश्यक बाजार उपलब्ध कराने के लिए,  खादी ग्रामोद्योग के विस्तृत नेटवर्क ट्राइफेड से को जोड़ना चाहिए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ई कॉमर्स के आने से बाजार को और भी विस्तृत किया जा सकता है। इस अवसर पर श्री नायडू ने कहा कि  हमारे अकादमिक और बौद्धिक विमर्श में जनजातीय पारंपरिक ज्ञान परम्परा पर शोध किया जाना जरूरी है अन्यथा ये समृद्ध परंपरा लुप्त हो जाएगी।  

जनजातीय बोलियां व भाषाओं को लेकर जताई चिंता 

विगत 50 वर्षों  में भारत में लगभग 250 भाषाएं और बोलियां विलुप्त हो गई है और इनमें से अधिकांश बोलियां जनजातीय समुदायों की हैं। उन्होंने कहा कि एक भाषा के लोप के साथ ही एक सभ्यता, एक संस्कृति की सृजनात्मक परम्परा का अवसान होता है। उन्होंने  विश्वविद्यालयों से अपेक्षा की कि वे स्थानीय जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और शोध का केंद्र बने। उन्होंने कहा कि ' हम सभी भारत की प्राचीन सभ्यता, उसके इतिहास के उत्तराधिकारी है, लेकिन हमारे जनजातीय समुदाय वास्तव में  उन प्राचीन संस्कारों को अपने जीवन में जीते हैं। प्रकृति को माता के रूप में देखना उसकी असीम शक्तियों में ममता को देखना, उसे आदरपूर्वक पूजना-ये संस्कार हमें स्थानीय जनजातीय समुदायों से ही प्राप्त हुए हैं।' 

रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में स्थानीय समुदायों की वीर परम्परा का मिलता है उल्लेख 

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में जन जातीय समुदाय के महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि आदिकाल से ही  हमारे जनजातीय समुदायों भारतीय सभ्यता के अभिन्न अंग रहे हैं। 'रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में स्थानीय समुदायों की वीर परम्परा का उल्लेख मिलता है। यदि इन ग्रंथों का सामाजिक और एंथ्रोपॉलॉजिकल दृष्टि से अध्ययन करें तो पाते हैं कि ये ग्रंथ देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानीय वनवासी, जनजातीय समुदायों के बीच परस्पर संबंधों के विकास की जटिल प्रक्रिया का इतिहास हैं। आस्थाओं और मान्यताओं में संवाद की यह प्रक्रिया पीढ़ियों तक चली होगी। इसी प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति को सहिष्णु और समावेशी बनाया है। इसी विविधता को हमारे संविधान में स्वीकार भी किया गया है और संरक्षित भी।

जिन्होंने  ब्रिटिश साम्राज्य के शोषणकारी, क्रूर चरित्र को उजागर किया

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि वस्तुत:  हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत भी, अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ 19 वीं सदी के स्थानीय जनजातीय आंदोलनों से ही हुई जिन्होंने  ब्रिटिश साम्राज्य के शोषणकारी, क्रूर चरित्र को उजागर किया। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में रानी अवंतीबाई की वीरता को हर पीढ़ी के लिए वंदनीय बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन आंदोलनों को हमारे इतिहास में स्थान मिलना चाहिए, तभी हमारा इतिहास सम्पूर्ण और समावेशी होगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति जी ने इस वर्ष अपने अभिभाषण में जनजातियों के वीर योद्धाओं के बलिदान से देशवासियों को परिचित कराने के लिए, संग्रहालय की स्थापना करने की घोषणा की है।

असम में हाल के बोडो समझौते को एक सराहनीय कदम बताया

विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सरकार ने ऐसी समर्पित कर्मठ विभूतियों को पद्म सम्मान से सम्मानित किया है जिन्होंने जनजातीय संस्कृति, शिल्प, संगीत और कला तथा जनजातीय ज्ञान परम्परा के संरक्षण और संवर्धन में मूर्धन्य योगदान दिया है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस सम्मान से, हमने अपनी सभ्यता में अपनी ज्ञान परंपरा में, अपनी सांस्कृतिक विकास में और भावी प्रगति में, जनजातीय समुदायों के योगदान को आदरपूर्वक स्वीकार किया है। हाल के दशकों में वामपंथी अतिवादी समूहों द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में हिंसा और आतंक फैला कर, वहां विकास  रोकने पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि माओवादी हिंसा किसी समस्या जा समाधान नहीं है।  विकास के लिए शांति आवश्यक है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में सरकारें वामपंथी हिंसा को रोकने में सफल हो रही है तथा स्थानीय समुदाय से बातचीत कर उनकी अपेक्षाओं का यथा संभव समाधान निकाल रही है। इस संदर्भ में उन्होंने असम में हाल के बोडो समझौते को एक सराहनीय कदम बताया।

उपराष्ट्रपति मंच से उतर कर उपस्थित जन समुदाय से मिले

उपराष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि आदिवासी महोत्सव के आयोजन से प्राचीन सतपुड़ा पहाड़ों की तलहटी में नर्मदा के समीप बसा, गौंड राजाओं का यह ऐतिहासिक क्षेत्र, पर्यटन का केन्द्र बनेगा, जिससे न केवल इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का  विकास होगा, बल्कि अन्य क्षेत्र के देशवासियों को यहां की समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के विषय में जानकारी मिलेगी। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने शासकीय नीतियों और कार्यक्रमों से लाभान्वित हुए नागरिकों को प्रमाणपत्र वितरित किए। उपराष्ट्रपति ने जनजातीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नृत्य को भी देखा। कार्यक्रम के बाद उपराष्ट्रपति मंच से उतर कर उपस्थित जन समुदाय से मिले।

आदिवासी संस्कृति, धरोहर व उनके विकास के साथ शिक्षा व उन्नति पर दिया जोर

आदिवासी महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटैल ने आदिवासी संस्कृति, धरोहर व उनके विकास के साथ शिक्षा व उन्नति पर जोर दिया। महोत्सव में केन्द्रीय जनजातीय राज्य मंत्री श्रीमति रेणुका सिंह, राज्यसभा सदस्य श्रीमति संपतिया उईके, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सरस्वति मरावी, विधायक श्री देवसिंह सैयाम, कलेक्टर डॉ. जगदीश चन्द्र जटिया, एसपी दीपक कुमार शुक्ला, आईजी श्री के.पी. वेंकटेश्वर राव, डीआईजी श्री आर.एस. डेहरिया सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी, गणमान्य नागरिक एवं बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित थे।






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