Type Here to Get Search Results !

अमर शहीदों की समाधि पर, फूल चढ़ाने आया हूं।

अमर शहीदों की समाधि पर, फूल चढ़ाने आया हूं।


देश की माटी के ललाट पर, जय तिलक लगाने आया हूं।
उत्तर प्रहरी अटल हिमालय, दुर्ग अभेद दीवार बना।
अथक असीम बांह फैलाये, अपराजित ताने सीना।
तिमिर हरण आतुर प्रभाकर, वारिद अंचल से निहार रहा।
शस्य श्यामला दिव्य धरा के, सागर चरण पखार रहा।

मातृभूमि की महिमा का-यशगान सुनाने आया हूं.....(1)
उर्वर अतुल बहुमोल संपदा, अदृश्य अतल तलों में।
वन जल अन्न धरोहर सारे, सौंप दिया है कर-कमलों में।
हरी-भरी जीवन बगिया में, विविध रंग प्रसून खिले।
समदर्शी, समरसता के कण, किसे कहां अन्यून मिले।

कुदरत निश्छल प्रेम सुधा-बरसाने आया हूं...(2)
वतन की महिमा वीर की गरिमा, बलिदान बखानी जाती है।
जाति लहू का रंग-भेद, मौत कहां चीन्ही जाती है।
सेवा त्याग समर्पण मन का,कसम तिरंगे की खाते हैं।
रणवांकुरे योद्धा के किस्से,घर-घर में सुनाये जाते हैं।

मरकर अमर देशरत्नों की- कथा सुनाने आया हूं...(3)
मृदुल मनोहर शीतल मारुत,सागर तट गंभीर है।
परम प्रेम का अद्भुत संकुल, दिग्दर्शन तस्वीर है।
शांति दया करुणा के कारण, विश्वदूत कहलाता है।
वसुधैवी जननीति पथ का,अग्रदुत माना जाता है।
परमार्थ शहादत की बातें-मै सबसे बताने आया हूं...(4)

(कवि-अलाल जी. देहाती)

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.