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जनजाति समुदाय धरती का ऋण चुकाने माटी त्यौहार के रूप में मनाते है नववर्ष

जनजाति समुदाय धरती का ऋण चुकाने माटी त्यौहार के रूप में मनाते है नववर्ष

बस्तर का जनजाति समुदाय माटी त्योहार के रूप में नववर्ष मनाता है 

लेखक-पूरनलाल कश्यप

पूरे बस्तर के जनजाति समुदाय के लोग माटी  त्यौहार के रूप में नववर्ष  बनाते है इसलिये बीते दिनों बस्तर ब्लॉक के ग्राम पंचायत बड़े चकवा के लोग माटी त्योहार के रूप में नववर्ष बनाएं। आपने सुना ही होगा कि पूरे देश में एक जनवरी को नववर्ष धूमधाम से बनाया जाता है लेकिन देश में एक ऐसा स्थान बस्तर में चैत्र माह में जनजाति नव वर्ष के रूप में पूरे धूमधाम के साथ धरती माता को प्रकट करते हुए बनाया जाता है उक्त जानकारी देते हुये आदिवासी युवा छात्र संगठन इकाई जगदलपुर के पूरन कश्यप ने बताया कि बस्तर के जनजाति समाज माटी तिहार धरती को भगवान मानकर धरती से मिलने वाली हर वस्तु चाहे वो आम, महुआ, चार, तेंदू एवं जो माटी से मिलता उसे सबसे पहले माटी को समर्पित की जाती है ।
         जनजाति समुदाय धरती के प्रति अपने ऋण चुकाने और माटी के सम्मान में एक उत्सव बनाया जाता है।  इस उत्सव को हम धरती दिवस भी कह सकते हैं क्योंकि धरती में खाद्य श्रृंखला को बनाने रखने के लिए या पर्यावरण को संतुलन बनाने रखने के लिए यहां के आदिवासी द्वारा उस तिहार का आयोजन किया जाता है ।

दुरूपयोग से विनाश की जा रही पृथ्वी



माटी त्यौहार मनाये जाने के पीछे महत्वपूर्ण कारण है। आज हम बढ़ती हुई जनसंख्या अंधाधुन वृक्षारोपण की कटाई, धरती से प्राप्त संसाधनों के दोहन करना, हमारी पृथ्वी की विनाश की ओर अग्रसर हो रही है , पृथ्वी दिवस या नववर्ष दिवस के रूप में मानकर पृथ्वी के विनाश से बचाने के लिए एक मुहिम चलाते हैं।
        यहां का जनजाति समुदाय चाहे जनजाति समुदाय की गोत्र व्यवस्था हो, विवाह संस्कार हो, संस्कृति -रीित रिवाज, नृत्य-गीत-संगीत के माध्यम से जनजाति समाज के द्वारा पृथ्वी दिवस के रूप में उत्सव मनाया जाता है। जनजाति समाज नववर्ष का पूरे एक महीने चैत्र माह तक चलता है। इससे जनजाति समाज अपने-अपने सुविधा के अनुसार उत्सव बनाते हैं। 

एक पक्षी, एक प्राणी, एक वनस्पति की रक्षा करके पर्यावरण का संतुलन बनाते है


जनजाति समुदाय पर्यावरण को संतुलन रखने के लिए गोत्र व्यवस्था का निर्माण करते हैं ।जिसमें पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए सिर्फ इसमें प्रत्येक गोत्र को एक प्राणी, एक पक्षी एवं एक वनस्पति को साक्षी मानकर उनकी रक्षा करके पर्यावरण का संतुलन बनाते हैं। प्राणी, पक्षी वनस्पति को भगवान मानकर उनकी सेवा अर्जी कर उन्हें बचाते हैं।
        जिस प्रकार देखा जाए की गोत्र बाघ वाले पशु को बचाते हैं, पक्षी बाज को और वनस्पति से बरगद पेड़ को बचाकर उनकी साक्षी मानकर उनकी रक्षा करते हैं। इस प्रकार अनेक गोत्र वाले सभी इसी तरह से बचाते हैं। अपना पर्यावरण को खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखते हैं।
   वनस्पित को साक्षी मानकर किया जाता है विवाह जनजाति समुदाय का विवाह संस्कार पर पेड़ को साक्षी मानकर अपने जनजाति संस्कृति, रीति-रिवाज व अपने परंपराओं से विवाह करते हैं क्योंकि जब कबिलाईगढ़ व्यवस्था का विकास हुआ तो जनजाति समाज के मुख्य भोजन के रूप पर महुआ का फूल, साल का बीज, छिद् का फल को खाकर अपना भोजन बनाते थे। इस कारण जनजाति समाज में विवाह संस्कार पर वनस्पति को साक्षी मानकर विवाह किया जाता है । 

प्रकृति से जल, जंगल, जमीन को बचाने का निवेदन किया जाता है


जनजाति समुदाय का प्रत्येक नृत्य, गान-गीत-संगीत पर प्रकृति से जल, जंगल, जमीन को बचाने का निवेदन किया जाता है। बस्तर का जनजाति समाज आज से हजारों साल से धरती को विनाश से बचाने के लिए माटी के प्रति अपने ऋण उतारने के लिए प्रति वर्ष माटी त्योहार के रूप में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
         माटी त्योहार दिन पूरे चैत्र महीने भर अलग-अलग  में अलग-अलग दिनों में बनाया जाता है । माटी त्यौहार पूरे देश के सभी त्यौहार को  सीख देने के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने का एक खाद्य श्रृंखला का काम करने का उपदेश देती है। 

और उसके पश्चात ही प्रवेश करने का अनुमति दी जाती है

बस्तर के जनजाति समुदाय के द्वारा आम, महुआ, प्याज, धान जैसे वन उपज को सबसे पहले माटी देव में अर्पित करने के पश्चात स्वयं के लिए उपयोग करते हैं। इस कारण इस सिस्टम को जनजाति समुदाय कस्टमरी ला या अनुवांशिक वाहक कहा जाता है।
        इस माटी तिहार उत्सव में धरती माता का आभार व्यक्त करने के लिए प्रत्येक गांव में उस गांव की सीमा में प्रवेश करने के पूर्व शुल्क लेते है। शुल्क के बदले चाहे वह फल, सब्जी या उनके पास जो भी चीज है, उनके द्वारा धरती माता के नाम पर दिया जाता है।
       जनजाति समुदाय नव वर्ष में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर सड़क पर रस्सी लगाकर उसे रोकने का कोशिश करते हैं। उनके द्वारा द्वारा इच्छा से कुछ रूपए लिया जाता है और उसके पश्चात ही प्रवेश करने का अनुमति दी जाती है। 

सियाड़ी रस्सी से  बांधकर पोटली (चिपटी) बना लेते हैं

बस्तर में अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग नाम पर माटी तिहार  के अलावा  मरका पडुम, बीज पडुम, माटी त्योहार के नाम पर जाना है। माटी तिहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, यह त्यौहार में किसी भी पर पारंपरिक ग्राम सभा के माध्यम से की जाती है। उसके पूरे गांव की तिहार के रूप में बनाते हैं।
           पूर्व संध्या पर गांव के सभी ग्रामीणों द्वारा धान के बीज, प्याज को सियाड़ी पत्ते के माध्यम लपेटकर  सियाड़ी रस्सी से  बांधकर पोटली (चिपटी) बना लेते हैं। माटी देव प्राण में दूसरे दिन पूरे गांव के लोग एकत्रित होते हैं और नव वर्ष माटी त्योहार के रूप में बनाते हैं। सभी ग्रामीणों के द्वारा माटी देव प्रांगण पर रख देते हैं। दूसरे दिन पूरे गांव के सभी लोग एकत्रित होकर अपने पुरखों को याद करते हैं।
           उस दिन याद में परंपरा के अनुसार अपने द्वारा लाए हुए फल, फूल के साथ मुर्गा, सुअर, कबूतर एवं राव, पाट, डाँड़ को  डाहा माटी, मस माटी, चुड़ी फुदड़ी, अंडा आदि को  माटी देव में अर्पित कर पूरे गांव वाले भोजन के रूप में अपनी अपनी सुविधा के अनुसार ग्रहण किया जाता है। 

गांव में किसी तरह हल जोतना, माटी खोदना पर पूरा प्रतिबंध होता है

शाम को भोजन करने के पश्चात सभी लोग देव गुड़ी प्रांगण में ही एक गड्ढा खोदकर उसमें पानी डालते हैं फिर उस उस उस में पानी डालकर कीचड़ युक्त गड्ढा बनाते हैं। जिसमें अपने-अपने की पोटली (चिपटी)को डाल देते हैं इस कीचड़ युक्त को खेला जाता है एक दूसरे के गले में कीचड़ को लिप किया जाता है इस रस्म को चिकल लौंडी के परंपरा के अनुसार बनाते हैं।
            इस दौरान समस्त गांव वालों को द्वारा माटी आया को गांव में अच्छी फसल होने की होने का अदा करते हैं। इस दिन समस्त गांव वाले द्वारा माटी त्यौहार को सेवा अधिकार उस दिन माटी का उपयोग नहीं करते हैं। गांव में किसी तरह हल जोतना, माटी खोदना पर पूरा प्रतिबंध होता है ।
          अगर कोई व्यक्ति गलती से करता है उसे दंडित करते हैं । माटी देव की देखरेख पूरा गांव के सियान सजन यह लोगों को यह द्वारा किया जाता है। सेवा अर्जी के पश्चात गांव वाले अपने अपने बीच चिपटी को धर कर घर में लाते हैं। इस चिपटी के धान के बीज बोने की पूर्व सेवा अर्जी विधि विधान के साथ धान बोया जाता है कि धान बोने के पश्चात खेत में बुवाई शुरू होती है।
लेखक-पूरन लाल कश्यप
बस्तर छत्तीसगढ़
72409 43488

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