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कोरोना ने भारत में गरीबी नाम की लाईलाज बीमारी के अंधेरे पर डाला प्रकाश

कोरोना ने भारत में गरीबी नाम की लाईलाज बीमारी के अंधेरे पर डाला प्रकाश 

दारू के लिये मदिरा नाम है, नशा के लिये मादक पदार्थ है पर गरीब के लिये क्या विकल्प है ?

कड़वी कलम
विवेक डेहरिया
संपादक गोंडवाना समय
जिस देश के महामहिम राष्ट्रपति जी को यह बोलना पड़ रहा है कि लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा न रह पाये, इससे अंदाजा लगा सकते है कि भारत की जमीनी हकीकत क्या है। जनता की चुनी हुई सरकार समाज और समाज सेवकों का सहारा लेने को मजबूर है। यदि भारत में मानवता जिंदा नहीं होती थी सरकार के भरोसे जरूरतमंद भूखे रहने पर मजबूर हो सकता था। भूखे को निवाला खिलाना या भोजन की व्यवस्था करना और सत्ता की कुर्सी में बैठकर अनाज भण्डारों का द्वार खोलने की घोषणा करने में जमीन आसमान का अंतर है। भारत के लाखों हजारों दानवीरों की मानवता का परिणाम है कि भारत का जरूरतमंद नागरिक को भोजन के लिये तड़पना और तरसना नहीं पड़ रहा है। 
यदि मान लो कि भारत की मिट्टी में जन्मे लाल निर्दयी और अमानवीयता का रूप का धारण कर लेते तो इस वैश्विक महामारी के संकट में भारत के उन जरूरतमंदों निर्धनों का क्या हाल होता । सरकार के तो लॉकडाउन की घोषणा के बाद हाथ पॉव फूल गये थे जब सड़कों पर कई किलोमीटर पैदल चल रहे श्रमवीरों की भीड़ उतर आई थी। वो तो भला हो भारत के उन सपूतों का जिन्होंने हृद्य से मानवतीयता का परिचय दिया और भूख को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। 

विकसित राष्ट्रों ने भी घुटने टेक दिये है

वर्तमान में कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर दुनिया में कोहराम मचा हुआ है। कोरोना वायरस संक्रमण के आगे विकसित राष्ट्रों ने भी घुटने टेक दिये है। दुनिया के अधिकांश देश जिस तरह से आज जरूरत पड़ने पर अस्पताल पार्क सहित ऐसे स्थानों पर बना रहे है जो मानव के मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। कोरोना वायरस संक्रमण ने दुनिया के अधिकांश देशों की स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत भी सामने ला दिया है कि मानव स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के देशों की सरकार कितनी गंभीर है। स्वास्थ्य के प्रति अस्पतालों व डॉक्टरों व चिकित्सा स्टाफ की पर्याप्त सुविधायें जनसंख्या के हिसाब कहां पर कैसी है यह सामने आ ही चुका है। दुनिया के मानचित्र में यदि में हम भारत की बात करें तो भारत में आजादी के बाद से ही स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं रहा है। गांव तो छोड़ों में शहरों में भी स्वास्थ्य सुविधायें पर्याप्त नहीं है। फिर भी भारत देश के स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सा अमला और अधिकारी कर्मचारी अपनी जान जोखिम डालकर विपरीत परिस्थिति में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिये सार्थक प्रयास करने में जुटा हुआ है। वहीं सुरक्षा व शांति व्यवस्था में देश के रक्षक पुलिस व सेना के जवान रात दिन एक रहे है और साथ में सफाईकर्मी भी अपनी भूमिका निभाने में आगे है। 

कि कोई भी गरीब भूखा न रहने पाये

वहीं कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये भारत सरकार के द्वारा लॉकडाउन की घोषणा 21 दिनों के लिये किया गया है। इस दौरान मजदूरों की मजबूरी, पलायन का सच भी सरकार के सामने आ ही चुका है। सबसे चिंतन और मंथन करने के लिये प्रत्येक देशवासियों के लिये सामने आया है और वह पेट की भूख, दो वक्त की रोटी, भोजन की व्यवस्था जिस तरह से सरकार और समाजिक संगठन मानव धर्म निभाते हुये दिखाई दे रहे वह तस्वीरें साफ-साफ दिखाई दे रही है और एक ही शब्द भारत की चारों दिशाओं में गंूज रहा है कि कोई भी गरीब भूखा न रहने पाये। भारत भूमि में सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर जिम्मेदार नागरिक अपनी भूमिका अपने हिसाब से निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है अर्थात मानव धर्म व राष्ट्र धर्म पूरी वफादारी के साथ निभा रहा है। 

भारत में क्यों नहीं बदल रहा गरीब का नाम और क्यों छाया है इनके जिंदगी में अंधेरा 

भारत में आजादी के बाद गरीब नाम का शब्द हट ही नहीं पा रहा है, हा लेकिन गरीबी रेखा के राशन कार्ड से अति गरीबी रेखा का राशन कार्ड जरूर बदला गया है वहीं दीनदयाल अंत्योदय के तहत भी लाभ जरूर मिला है लेकिन गरीब का नाम का शब्द अभी भी सरकार के मुंह पर ही चिपका हुआ है आखिर क्यों ? भारत में गरीबी तो सरकार हटा नहीं पा रही है कम से कम से गरीब शब्द तो हटाने का काम कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। लॉकडाउन के बाद पूरे देश में सरकार सत्ता शासन चलाने वाले गरीबी को लेकर अत्याधिक चिंतित दिखाई दे रहे है। इसके लिये वे समाजसेवक और समाजिक संगठनों को साथ देने का आहवान कर रहे है आखिर ऐसा क्यों ? जनता के चुने प्रतिनिधि बनकर सरकार, शासन, सत्ता, राजपाठ चलाने वाले अपने आप को क्यों असहाय महसूस कर रहे है ? कोरोना वायरस संक्रमण के बाद भारत में गरीबी की नाम की जिंदगियों में किस तरह से अंधेरा छाया हुआ है, उनका जीवन कितने अंधकार में डूबा हुआ है, इसे वैश्विक महामारी के संकट ने उजाले की तरह साफ करकर रख दिया है। विकास की चकाचौंध के बाद भी आखिर भारत में अंधकारयुक्त गरीबी क्यों नहीं हट पा रही है ?

दारू के लिये मदिरा और नशा के लिये मादक पदार्थ तो गरीब का नाम क्यों नहीं बदलती सरकार

हम आपको बता दे कि भारत में गरीब नाम का शब्द बदलने पर सरकार भी संभवतय: विचार करने को तैयार नहीं है। वहीं यदि हम देखें तो दारू के लिये जरूर मदिरा और नशा के लिये मादक पदार्थ नाम बदला हुआ है आखिर क्यों ? भारत में गरीब नाम का अंधकार तो हटाये जाने की योजना तो सरकार के पास नहीं है लेकिन कम से कम सरकार गरीब का नाम तो बदल सकती है। सरकार अब अलग अलग राजनैितक दलों की बदलती है तो वे अपने अपने राजनैतिक दलों के महापुरूषों के नाम पर योजनाओं का नाम बदल लेते है लेकिन गरीब का नाम बदलने का विकल्प इन सरकारों के पास नहीं होता है। आजादी के बाद से ही भारत में गरीब के जिंदगी में छाया अंधकार निरंतर बढ़ता गया परंतु इनके जीवन में फैले अंधकार को दूर के करने के लिये किसी ने प्रकाश फैलाने का प्रयास सार्थक रूप से नहीं किया है। 

दरिद्र नारायण मानकर उनके भोजन की समुचित व्यवस्था की जाए

वहीं हम आपको बता दे कि बकायदा गरीब शब्द का नाम सरकार की अधिकृत समाचार एजेंसियों के द्वारा जारी किये जाते है हम आपको बता दे कि भारत के एक राज्य में राज्यपाल भोजन की व्यवस्था कर रहे है तो उनका समाचार राज्यपाल ने चखा गरीबों का भोजन की हैडिंग से जारी हो रहा है, तो वही मुख्यमंत्री भी कह रहे है कि समाज के गरीब तबके को दरिद्र नारायण मानकर उनके भोजन और रहने की समुचित व्यवस्था की जाए। ऐसे अनेक जनता के चुने हुये जनप्रतिनिधि और सरकार के संवैधानिक पदों के जवाबदार लॉकडाउन के बाद गरीब नाम का उल्लेख कर बार-बार उनके मददगार बनने की बात दोहरा रहे है। भारत में कोरोना का संकट तो गहराया हुआ है लेकिन गरीब नाम का संबोधन करने वाले उन लाखो करोड़ों परिवारों की जिंदगी में अंधकार छाया हुआ है। इस अधंकार को दूर करने के लिये प्रकाश फैलाने के साथ ही रोशन की किरणे दिखाने की सख्त आवश्यकता है। 

कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने में निभाये भूमिका

दैनिक गोंडवाना समय सभी से अपील करता है कि कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने में स्वास्थ्य विभाग द्वारा दी गई सलाह को हम सभी भारतवासी कर्तव्य समझकर पालन करें, शारीरिक दूरी बनाये रखे, लॉकडाउन का पालन करें, अपने घरों पर रहे सरकार, शासन-प्रशासन द्वारा समय समय पर जारी किये जा रहे दिशा निर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से करें। इसके साथ ही जरूरतमंद, निर्धन वर्ग का सहयोग करने में अपनी भूमिका निभाये यह मानव धर्म, राष्ट्र धर्म और सच्ची देश भक्ति है। 
कड़वी कलम 
विवेक डेहरिया संपादक
दैनिक गोंडवाना समय

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