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समय ने दिखा दिया, समाज, परिवार और सरकार का असली चेहरा

समय ने दिखा दिया, समाज, परिवार और सरकार का असली चेहरा 

खुद जनता के नौकर है तो क्यों कहते है मेहनत करने वालों को मजदूर 
संयुक्त परिवार की आवश्यकता और सरकारी विकास में स्वरोजगार का दिखावा

समाजिक सरोकार लेख
शालिनी डेहरिया 
सिवनी मध्य प्रदेश 
लगभग 40 से दिनों से अधिक होने को आये है, इस दौरान जिस संकट और कठिन दौर से पूरा देश गुजर रहा है। उसने परिवार, समाज और सरकार का बदला हुआ असली चेहरा भी सामने लाकर सच दिखा दिया है। यदि नि:स्वार्थ भावना से मानव सेवा करने वालों, मानवीयता को समझ कर, दूसरों के दु:ख-दर्द को देखकर तकलीफ में आने वाले समाज सेवकों ने ही भारत देश की इज्जत को बचा कर रखा हुआ है नहीं तो सरकार के भरोसे संकट व दु:खट स्थिति से निपटा ही नहीं जा सकता था क्योंकि सरकार खुद असहाय, संकट से ग्रसित दिखाई दे रही है। 

क्योंकि वे अपनी ऐशोआराम भरी जिंदगी में खुश रहते है

         इस संकट के दौरान ऐसे भी चेहरे उजागर हुये है जिनमें सिर्फ मैं की भावना भरी हूं हम की भावना की कमी भी सामने आई है। शासकीय बड़े सेवक नौकरीपेशा, बड़े व्यापारी, उद्योगपति, पूंजीपति, सेठ-साहूकार, जनता के नौकरों का सच्चाई समय ने सामने लाकर रख दिया है। इसके बाद भी सम्मान का हक इन्हीं चेहरों को अधिकारपूर्वक ससम्मान मिल जाता है।
       जबकि देखा जाये तो सभी समाज के अधिकांश लोग निम्न स्तर पर जीवन व्यतीत करने को मजबूर है पर समाज के ठेकेदारों का ध्यान कभी इनके तरफ नहीं जाता है क्यों ? क्योंकि वे अपनी ऐशोआराम भरी जिंदगी में ही खुश रहते है, उन्हें अपने ही देश व समाज के निम्न स्तर के लोगों से कोई वास्ता या लगाव नहीं होता है। 

परिवार का अर्थ व महत्व बदल गया 

         
        अब तो ये स्थिति है कि बुर्जुग मां-पिता स्वयं भोजन बनाकर खा रहे है और यदि ज्यादा ही परेशान हुये तो इनके लिये सरकार ने भी वृद्ध आश्रम खोलकर रख दिया है। जबकि वृद्धआश्रम सरकार को प्रारंभ नहीं करना था वरन ऐसी स्थिति ही बने इस पर कड़क निर्णय लिया जाना था।
        सोचिये कितनी तकलीफ होती होंगी उन माता-पिता को जिन्हें अपने वंश को बढ़ाने के लिये पुत्र का सहारा नहीं मिल पाता है। संयुक्त परिवार का सुख, रिश्ते-नाते समाप्त होते जा रहे है। हालांकि वर्तमान समय व संकट के दौर में संयुक्त परिवार की आवश्यकता भी सामने आई है।  
बीते कुछ वर्षो में परिवार में भी परिवार का अर्थ बदल ही गया है। पहले परिवारों में एक साथ दादी-दादा, माता-पिता, चाचा-चाची सहित सभी घर के लोग एक साथ संयुक्त परिवार के रूप में साथ रहते थे और एक दूसरे का ध्यान-ख्याल भी रखते थे।

आखिर ये परिवार व समाज किस दिशा में जा रहा है

             परिवार की तो ये स्थिति है कि एक ही छत में ऊपर-नीचे, आजू-बाजू रह रहे है लेकिन एक दूसरे का दु:ख, दर्द का एहसास तक नहीं कर रहे है। आज भाई-भाई पड़ोस में भी रहते है पर उसके पास क्या है, क्या नहीं है, इसको  देखने समझने की जरूरत भी नहीं समझते है।
             माता-पिता के बुजुर्ग होने पर बचपन में ऊंगली पकड़कर, गोद में बैठालकर सेवा करते हुये पाल-पोस कर बड़ा करने वाले बेटा उन्हें दो वक्त की रोटी बनाकर भी नहीं खिला पा रहे है। आखिर ये परिवार, समाज किस दिशा में जा रहा है, इस पर विचार करने की बहुत ही जरूरत है। 

मेहनत करने वालों को मजदूर कहने वालों तुम भी तो नौकर ही हो 

           
            जिन्हें मीडिया, सरकार, हर कोई मजदूर, मजूदर और मजदूर कहकर संबोधित कर रहा है परंतु क्या उन्हें मजदूर कहना सही है? जिनकी मेहनत के कारण घर के काम, फैक्ट्री के काम संभव हो पा रहे है। इन्हीं की मेहनत का परिणाम है कि करोड़पति अरबपति होता जा रहा है, उद्योगपति पूंजीपति बनते जा रहे है।
             ऐसे मेहनत करने वालों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों ? अधिकारी, कर्मचारी, नेता, सांसद-विधायक से मंत्री तक पद पाने वाले भी जतना के नौकर है यानि मजदूर ही है। 
देश के अधिकांश गांव-शहर से लाखों-करोड़ की संख्या में पेट व परिवार पालने के लिये दूसरे स्थानों, बड़े शहरों पर जाकर काम करने गये लोगों की हालत, वास्तविकता को भी समय ने सामने लाकर खड़ा कर दिया है। मेहनत करने वाले इन लोगों को हालत-दुख-दर्द हम, आप, सब देख रहे है।

मेहनत करने वालो के प्रति समाज व सरकार करती है दिखावा 

इसके बाद भी मेहनत करने वालों को सम्मान देने में फर्क क्यों किया जाता है जबकि मेहनत करने वालों के बिना तो एक कदम चल पाना भी मुश्किल है। सुख-सुविधायें मेहनत करने वालों के कारण ही पाते है। अपने घरों से, आफिसों में बैठकर भाषण देना आसान है लेकिन नंगे पैर कड़कड़ती धूप में चलकर देखे, एक टाईम ही बिना भोजन-नाश्ता-चाय के रहकर बता दे तो हजारों किलोमीटर पैदल चलने वाले छोटे-छोटे मासूम बच्चों का दर्द-दु:ख-तकलीफ समझ आयेगी।
            मेहनत करने वाले, श्रम कर अपना पेट और परिवार का पालन-पोषण करने वालों के लिये समाज व सरकार में कितना दर्द है, कितना उन्हें मेहनत करने वालों से लगाव है। इसकी हकीकत समय ने सामने लाकर रख दिया है कि ये कितना अति से ज्यादा दिखावा करते है। 

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2 Comments
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  1. Bahut badhiya lekh hai.....

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  2. जासु राज भय प्रजा दुखारी।
    होई सो नृप नरक अधिकारी।।
    -राम चरित मानस

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