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गांव की आत्मनिर्भरता ही देश की ताकत होगी और यही ताकत विश्व की संपूर्ण व्यवस्था को एक नई दिशा देगी

गांव की आत्मनिर्भरता ही देश की ताकत होगी और यही ताकत विश्व की संपूर्ण व्यवस्था को एक नई दिशा देगी 

सिंगापुर के जाने-माने अर्थशास्त्री  श्रीमान ए सलवा दोराई हालमैन के साथ चर्चा के कुछ अंश

विश्व भर में फैले  कोरोना महामारी से उपजे वर्तमान हालात तथा मजदूरों, किसानों तथा सरकार के बीच संबंधों को लेकर श्रीमान ए सलवा दोराई हालमैन सिंगापुर के जाने-माने अर्थशास्त्री ने अपने विचार व्यक्त  किए हैं। आप भारत के प्रख्यात संविधान विशेषज्ञ डॉक्टर लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के सहयोगी भी रहे हैं। जिन्होंने भारतीय संविधान में लोकपाल, लोकायुक्त  एवं पंथनिरपेक्ष जैसे शब्दों को दिया है। जिस पर अन्ना हजारे एवं अरविंद केजरीवाल का संयुक्त जन लोकपाल आंदोलन खड़ा हुआ था। आप 10 वर्षों तक गुजरात के एक स्टील रोलिंग मिल के चेयरमैन भी रह चुके हैं। आप अभी-अभी भारत आए थे और आपने  भारत की वर्तमान दशा और दिशा पर विख्यात पर्यावरणविद प्रभु नारायण के माध्यम से एक साक्षात्कार आर.एन ध्रुव को दिए है। 

साक्षात्कार के दौरान प्रश्न पूछने पर ये दिया उत्तर 

प्रश्न-कोरोना नामक महामारी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था पर एक भयंकर प्रभाव  दिख रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा मजदूरों, किसानों को समस्या प्रतीत होता दिख रहा है, इसके निराकरण की क्या उपाए बताएंगे ? 
उत्तर-बिल्कुल आप सही कह रहे हैं कोरोना नामक वायरस ने पूरी दुनिया में सामान्य लोगों के बीच एक गरीबी का वायरस भी फैला दिया है, वह ऐसा है की बहुत सारे कल कारखाने बंद हो गए हैं, थोड़े समय के लिए होटल उद्योग बंद हो गया है, अंतर्राष्ट्रीय आवागमन भी कम हो गए हैं, जिससे भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव भी पड़ता 
दिखता ही है लेकिन हमें कहना है कि आप सभी गांव में अपनी जल, जंगल एवं जमीन की सुरक्षा कर और अपने ही गांव में स्व-शासन को मजबूत कर देश को आत्मनिर्भर बना सकते हैं और आपकी आत्मनिर्भरता ही भारत की बुनियाद है।
             मुझे मालूम है कि कोरोना के बाद जो कुछ भी शुरूआत होगी, वह केंद्र शासन के बजाय ग्राम  के स्वशासन पर ध्यान देने तथा आत्म-निर्भर बनाने की ओर होगा, जिसका स्वप्न हमारे वरिष्ठ डॉक्टर लक्ष्मी मल्ल सिंघवी जिन्होंने पंचायती राज संशोधन अधिनियम के अध्यक्ष रहते गांव को स्वशासन की लक्ष्य की प्राप्ति हेतु बहुत सारे अधिकार उपलब्ध कराए थे। हम उनका तहे-दिल से नमन करते हैं। 
गांव का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, जल ,जंगल, जमीन, अन्न बैंक, पुस्तकालय, स्वजल एवं ऊर्जा ही भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है। गांव में अपना स्वयं का बैंक भी होना चाहिए जो गांव वाले ही संचालित करें और कम ब्याज दर पर लोन का आदान-प्रदान करें और एक दूसरे के बीच मदद होता रहे, जिससे गांव के लोगों को दुनिया के सामने समर्पण ना करना पड़े।
              यही गांव की ताकत व देश की ताकत होगी और यही ताकत विश्व की संपूर्ण व्यवस्था को एक नई दिशा देगी और वह दिशा अपने लिए जो कुछ भी संचित करना है, उससे कहीं ज्यादा लोग अन्य लोगों की मदद के लिए ढूंढेंगे, यही हमारी आकांक्षा है, यही हमारा विजन है और यही विजन डॉक्टर लक्ष्मी मल सिंघवी जी एवं अन्य व्यक्तियों का है, जो भारत को पूर्णतया अपने पैर पर खड़े होते  देखना चाहते हैं।
प्रश्न-क्या इस विश्व महामारी का प्रभाव सिंगापुर की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है ? 
उत्तर-बिल्कुल पड़ा है साहब वहां भी निम्न तबके के लोग रहते हैं और सबसे ज्यादा गरीब ही वहां ग्रसित है, उन्हें ही सबसे ज्यादा कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा है लेकिन सिंगापुर की सरकार बहुत अच्छा कार्य कर रही है और हम उससे निपटने की कोशिश में भी है और भारत भी इस समस्या से निकलेगा।
प्रश्न-श्रीलंका, सिंगापुर और भारत में आप क्या विभिन्नता देखते हैं ? 
उत्तर-मैं विभिन्नता कम देखता हूं, एक रिश्ता ज्यादा देखता हूं, सिंगापुर की जो जनता है, कभी भारत से ही जाकर वहां बसी थी और उसका पुराना नाम भारत के नाम  जैसा ही है। श्रीलंका भी भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत रहा है। हम सबकी साझा संस्कृति है और इस भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति का रूप देना चाहते हैं।                    इन तमाम परिस्थिती के बावजूद भारत, श्रीलंका एवं सिंगापुर की सांस्कृतिक विरासत, अपने मूल्य प्रकृति, पर्यावरण, लोक संस्कृति ही इन तीनों देशों की जान है। इसे बचाए रखना हमारा फर्ज है। प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है लेकिन उसकी उचित व्यवस्था में हम सभी साझेदार बन पाए, जिससे हम बड़ी से बड़ी समस्या का जापान के लोगों की भांित निराकरण करने में सक्षम हो सकते हैं। आप अभी-अभी द सेंटर फॉर साइंस एंड इंडियन फिलासफी के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बनाए गए हैं।
प्रश्न-भारतीय संस्कृति ज्ञान-विज्ञान के उन्नयन में आपकी क्या भूमिका होगी ? 
उत्तर-जैसा कि मैंने पूर्व में कहा है भारतीय संस्कृति, श्रीलंका की संस्कृति और सिंगापुर की संस्कृति एक ही है और हम सभी को मिलकर इसे बचाना है और इस संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने में, मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों के बीच भारतीय विचारों आधारों को रखना चाहूंगा कि हमारे देश में हजारों वर्ष से कैसे आज भी मूल्यवान ज्ञान- विज्ञान गांव में, जंगलों में बिखरा पड़ा है और जिसके सहारे आज भी लोग ठीक हैं, सुंदर और विचार-शील लोग दिखते हैं। यही भारत की असली ताकत है जिसे हमें दुनिया के समक्ष रखना होगा ताकि बाहर वाले भी  जिनका ध्यान हमारे तरफ हैं, वह हमारे भारत के आयुर्वेद ज्ञान एवं अन्य अन्य विज्ञान को अपने लिए अपना सके। 
                  जैसा कि उन्होंने पूर्व में योग को अपनाया है उसी प्रकार हमारे जो जन-जातीय भाई बैठे हैं, उनके जो ज्ञान विज्ञान है, वह उसका लाभ उन्हें मिल सके और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मान्यता मिले। हम चाहेंगे कि आने वाले समय में विश्व जनजातीय दिवस भी मनाया जाए और उसे दुनिया भर में जहां भी वहां पुरातन संस्कृति से सरोकार रखने वाले लोग हैं, उनकी यादगार में कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सके ताकि लोग अपनी पुरातन विरासत को समझ कर एवं उसकी सादगी को समझकर उस  तरफ लौट सकें और एक विश्व में लोलुपता एवं अहंकार का जो वातावरण है, उसका निराकरण हो और उदारीकरण सही मायने में दिखे।
केंद्र सरकार के विषय में आपका क्या विचार है ? 
बहुत सारे कार्य बहुत ही प्रशंसनीय हैं चाहे कोई भी सरकार हो सरकार आती है, जाती है और कुछ ना कुछ अच्छा कार्य करती है लेकिन मूल कार्य तो हम सभी मिलकर भारतीय जनता ही कर सकते हैं। देश जो जनता से ही चलती है, इसलिए विचार है कि भारत के सामान्य लोगों के उत्थान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैं क्या कर सकता हूं इस पर आजकल चिंतनशील हूं, विज्ञान एवं भारतीय दर्शन केंद्र के साथ जुड़कर हमें लगता है कि भारत के मूल्यों परंपराओं इत्यादि पर अंतरराष्ट्रीय मंच एवं आप लोगों के बीच विचारों का साझा किया जा सकता है तथा  मूल्यवान गुणों को बचाया जा सके, अपने जीवनचर्या में शामिल कर आगे बढ़ सकते हैं। यही  मेरा विश्व कल्याण हेतु विचार है।
आप अभी हाल में जेआरडी टाटा से भी मिले हैं मिलने का उद्देश्य क्या था ? 
जे आर डी टाटा से मिलने का मूल उद्देश्य था कि स्वामी विवेकानंद के सपनों का जो भारत है जो मूल्य आधारित, संस्कृति आधारित, आत्मनिर्भरता उसे कैसे साकार किया जा सके, उनका भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रचार में क्या भूमिका हो और हम सब मिलकर भारत को विश्व पटल पर एक महान सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में पेश कर सके। इन्हीं तमाम  उद्देश्य के साथ उनके साथ मेरी मुलाकात थी। उन्होंने इसमें हर प्रकार के सहयोग की बात भी की है हम और भी आगे मिलेंगे।
गोंडवाना समय अखबार के लिये विशेष रिपोर्ट 
आर एन धु्रव द्वारा लिये गया साक्षात्कार

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