Type Here to Get Search Results !

गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते का नाम भारतीय संगीत कला और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा

गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते का नाम भारतीय संगीत कला और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा

कला और संगीत से संबंधित विश्व का सबसे विशाल 37 किलो वजनी साहित्य लिखा है

इंगलैंड में इनके नाम पर फिल्म बन चुकी है पर भारत के फिल्मकारों को इनका इतिहास तक मालूम नहीं

गोंड महाराजा चक्रधर सिंह पोर्ते ने रायगढ़ कत्थक घराने की नींव रखी 

छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय। 

गोंड़ महाराजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था। नन्हें महाराज के नाम से सुपरिचित, आपको संगीत विरासत में मिला। उन दिनों रायगढ़ रियासत में देश के प्रख्यात संगीतज्ञों का नियमित आना-जाना होता था। पारखी संगीतज्ञों के सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत के प्रति आपकी अभिरुचि जागी। राजकुमार कॉलेज, रायपुर में अध्ययन के दौरान आपके बड़े भाई के देहावसान के बाद रायगढ़ रियासत का भार आकस्मिक रुप से आपके कंधों पर आ गया। वर्ष 1924 में राज्याभिषेक के बाद अपनी परोपकारी नीति एवं मृदुभाषिता से रायगढ़ रियासत में शीघ्र अत्यन्त लोकप्रिय हो गए। कला-पारखी के साथ विभिन्न भाषाओं में भी आपकी अच्छी पकड़ थी। कत्थक के लिए आपको खास तौर पर जाना गया और आपने रायगढ़ कत्थक घराना की नींव रखी। 

रायगढ़ जिले का निर्माण 1 जनवरी 1947 को पांच रियासतों को मिलाकर किया गया था

छत्तीसगढ़ के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य की सीमा से लगा जनजाति बाहुल्य जिला मुख्यालय रायगढ़ स्थित है। दक्षिण पूर्वी रेल लाइन पर बिलासपुर संभागीय मुख्यालय से 133 कि. मी. और राजधानी रायपुर से 253 कि. मी. की दूरी पर स्थित यह नगर उड़ीसा और बिहार प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, नदी-नाले, पर्वत श्रृंखला और पुरातात्विक सम्पदाएं पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। रायगढ़ जिले का निर्माण 1 जनवरी 1947 को ईस्टर्न स्टेट्स एजेन्सी के पूर्व पांच रियासतों क्रमश: रायगढ़, सारंगढ़, जशपुर, उदयपुर और सक्ती को मिलाकर किया गया था। बाद में सक्ती रियासत को बिलासपुर जिले में सम्मिलित किया गया। केलो, ईब और मांड इस जिले की प्रमुख नदियां है। इन पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल के भित्ति चित्र सुरक्षित हैं। 

अपना जीवन संगीत, नृत्यकला और साहित्य को समर्पित कर दिया

आजादी और सत्ता हस्तांतरण के बाद बहुत सी रियासतें इतिहास के पन्नों में कैद होकर गुमनामी के अंधेरे में खो गये लेकिन रायगढ़ रियासत के गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते का नाम भारतीय संगीत कला और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। राजसी ऐश्वर्य, भोग विलास और झूठी प्रतिष्ठा की लालसा से दूर उन्होंने अपना जीवन संगीत, नृत्यकला और साहित्य को समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्हें कोर्ट आॅफ वार्ड्स के अधीन रहना पड़ा। लेकिन 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में रायगढ़ दरबार की ख्याति पूरे भारत में फैल गयी। यहां के निष्णात् कलाकार अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पुरस्कृत होते रहे। इससे पूरे देश में गोंड महाराजा चक्रधर सिंह पोर्ते की ख्याति फैल गयी।

उन्होंने संगीत और साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें लिखीं 

ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो अनेक राजघरानों के उत्थान और पतन का प्रभाव कला, संगीत और कलाकार के जीवन में दृष्टिगोचर होता है। संपूर्ण संगीत जगत जिस पर गौरव कर सके ऐसे महान कलाकार, संगीत प्रेमी, गुणग्राही राजाओं से छत्तीसगढ़ की धरती समृद्ध है लेकिन रायगढ़ के गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते ने जयपुर, बनारस और लखनऊ कत्थक घराना की तर्ज में रायगढ़ कत्थक घराना बनाकर कत्थक नृत्य की एक नई शैली विकसित कर संगीत सम्राट की उपाधि से विभूषित होकर रायगढ़ रियासत व छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किये। संगीतानुरागी और कला पारखी तो वे थे ही, एक अच्छे तबला वादक और सितार वादक व विलक्षण तांडव नृत्य में भी निपुण थे। उन्होंने संगीत और साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें लिखीं हैं।

विश्व संगीत सम्राट की उपाधि प्राप्त है 

इन्होने कला और संगीत से संबंधित विश्व का सबसे विशाल 37 किलो वजनी साहित्य लिखा है। इन्हें संगीत सम्राट नहीं विश्व संगीत सम्राट की उपाधि प्राप्त है। इंगलैंड मेँ इनके नाम पर फिल्म बन चुकी है पर भारत के फिल्मकारों को इनका इतिहास तक मालूम नहीं है। इनके पूर्वज महाराजा भूपदेव को 19 वी सदी में अंग्रेजो ने वीर बहादुर के उपाधि से नवाजा है। इन्होने अपने नाम पर एक गाँव भूपदेवपुर भी बसाया जो रायगढ़-कोरबा मार्ग पर स्थित है। 

षडयंत्र के चलते उन्हे नोबेल पुरुष्कार नहीं दिया गया

गोंड महाराजा चक्रधर पोर्ते को ताल तोय निधि के लिए नोबेल पुरस्कार मिलना तय था उनका यह विशाल ग्रंथ अंग्रेजों के संग्रहालय में था, पर षडयंत्र के तहत व ब्रिटिशयों की राजनीतिक मंशा के चलते उन्हे नोबेल पुरुष्कार नही दिया गया। 7 अक्टूबर 1947 को रायगढ़ में आपका देहावसान हुआ । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में कला एवं संगीत के लिए राजा चक्रधर सम्मान स्थापित किया है । गोंडवाना के महान महाराज चक्रधर सिंह पोर्ते जैसे विलक्षण प्रतिभा के धनी को इतिहास के पन्नो में दफन नही होने देंगे। 

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.