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डीपीसी, बीआरसी, एसी कार्यालय के भ्रष्ट गिरोह की प्रताड़ना का शिकार आदिवासी शिक्षक का हुआ निधन

डीपीसी, बीआरसी, एसी कार्यालय के भ्रष्ट गिरोह की प्रताड़ना का शिकार आदिवासी शिक्षक का हुआ निधन 

विभागीय भ्रष्टाचारियों की भूख ने आर्थिक समस्या, मानसिक तनाव देकर छीन लिया परिवार का मुखिया  

29 अक्टूबर 2019 को किया निलंबित, न किया बहाल और न ही दिया जीवन निर्वाह भत्ता 


सिवनी। गोंडवाना समय। 

बी.आर.सी. कार्यालय छपारा की प्रताड़ना, डीपीसी व एसी कार्यालय में बैठे कर्मचारियों की सांठगांठ के चलते आर्थिक परेशानी से जूझते शिक्षक स्व श्री राजकुमार धुर्वे जो कि शासकीय प्राथमिक शाला बरबसपुर, छपारा का निधन हो गया।


स्व श्री राजकुमार धुर्वे शिक्षक को निलंबित किया गया था लेकिन विभाग बहाल करना भूल गया। संबंधित विभागों में भूखे बैठे कर्मचारियों की इच्छापूर्ति नही हो पाई थी। भ्रष्ट मानसिकता में डूबे इस तरह के गिरोह के कारण एक आदिवासी परिवार का सहारा छीन लिया गया। यदि उस परिवार के मुखिया को आर्थिक रूप से परेशान न किया जाता तो शायद वह बेहतर इलाज करवा सकता था। 

जीवन निर्वाह भत्ता का संवैधानिक अधिकार भी छीन लिया


कार्यालय जनपद शिक्षा छपारा से प्राप्त पत्र के अनुसार शिक्षक राजकुमार धुर्वे प्राथमिक शिक्षक, शासकीय प्राथमिक शाला बरबसपुर विकासखंड को 29 अक्टूबर 2019 को निलंबित किया गया था। वहीं निलंबित के बाद धनौरा में नियुक्त किया गया था, जहां पर उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता की पात्रता नियमानुसार देय होगी यह निलंबन आदेश में लिखा था लेकिन उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता भी नहीं दिया गया जो कि उनका अधिकार था। अब सवाल उठता है कि आखिर उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता क्यों नहीं गया। 

मृतक शिक्षक  की पत्नि ने आर्थिक मदद की गुहार


स्व श्री राजकुमार धुर्वे की पत्नि 30 अगस्त 2020 को जनपद पंचायत छपारा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के नाम पर लिखते हुये प्राचार्य हाईस्कूल देवगांव के माध्यम से पत्र लिखकर आर्थिक मदद की गुहार लगाई है। अपने आवेदन ने उन्होंने उल्लेख किया है कि मेरे पति राजकुमार धुर्वे प्राथमिक शाला बरबसपुर में पदस्थ थे, विगत वर्ष उन्हें जनपद शिक्षा केंद्र छपारा के द्वारा निलंबित कर और धनौरा में अटैच किया गया था। वे कई दिनोंं से मानसिक तनाव होने के कारण दिनांक 28 अगस्त 2020 को उनका निधन हो गया । उन्हें निलंबन अवधि में जीवन निर्वाह भत्ता भी नहीं दिया गया। ऐसी स्थिति में शासन द्वारा जो सहायता एवं निर्वाहन भत्ता शीघ्र भुगतान करने की की मांग किया है। 

सर्व शिक्षा अभियान बनाम जुगाड़ की दुकान, भ्रष्टाचारियों का अड्डा, शिक्षकों का प्रताड़ना केंद्र 

सर्व शिक्षा अभियान की शुरआत सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिये किया था लेकिन कार्यालय खुलते ही और पोस्टिंग व कुर्सी की व्यवस्था होने के बाद सर्व शिक्षा अभियान जुगाड़ से बैठे कर्मचारियों का जमावड़ा के साथ शिक्षकों का प्रताड़ना केंद्र बनता गया। बीआरसी, डीपीसी में बैठे अधिकांश कर्मचारी जुगाड़ व सहूलियत की राजनीति से पद, पोस्टिंग पाकर कुर्सी में चिपककर बैठे हुये रहते है। जबकि वे अपना वेतन किसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के नाम पर ले रहे हैं। इसका मतलब की शासन इनको वेतन किसी गॉव की शाला में बच्चों को पढ़ाने का दिया जा रहा है लेकिन यह स्वयं सुविधाओ का भोग करने के लिये अधिकारी बनकर घूमते है। इसकी जांच भी सरकार स्वयं नहीं करवाना चाहती है। 

हम आपको बता दे कि शासकीय हाई स्कूल अजनिया छपारा से पिछले 2 वर्षों से दो ऐसे शिक्षक गायब है। जिनको वेतन अजनिया स्कूल में पढ़ाने के बदले दी जा रही हैं। अजनिया स्कूल के बच्चों व अभिभावकों यह पता ही नहीं है। वहीं हाई स्कूल उडेÞपानी की भी यह शिक्षक गायब हैं। कुछ स्कूल से गायब शिक्षक पूरे जिले में पिछले 10 वर्षों से भ्रष्टाचार व सांठगांठ का प्रतीक बने हुये है। राजनैतिक पहुंच, सत्ता की चाकरी कर, दबंगता से नौकरी करने वाले कुछ सैटिंगबाज कर्मचारियों का डीपीसी कार्यालय, एसी कार्यालय, डीईओ कार्यालय सभी में इनकी तगड़ी सेटिंग रहती है। इन शिक्षको का वेतन कैसे वहां के प्राचार्य लगातार निकाल रहे हैं। जबकि कुछ स्कूलों से गायब है किस नियम में यह लिखा है कि शिक्षक को लगातार अनुपस्थित रहते हुए उन्हें लगातार वेतन दी जाए।

आखिर अत्याचार कब तक सहेंगे 

अब कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा, पिछले दिनों ही बीआरसी कार्यालय, एससी कार्यालय, डीपीसी कार्यालय में बैठे की भारी लापरवाही का मामला सामने आया था। जिसमें छपारा के एक शिक्षक को एक ही घटना के लिये दूसरी बार निलंबित करने का कार्य किया जा रहा था आखिर अधिनस्त कर्मचारियों द्वारा बार-बार किया जा रहा इस प्रकार का घालमेल क्या अधिकारियों के संज्ञान में नहीं आता है। आखिर कब तक सामान्य शिक्षक इनकी भ्रष्ट मानसिकता का शिकार होता रहेगा और शिक्षक कब तक सहेंगे इस प्रकार के अत्याचार को कब सहते रहेंगे। 

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