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अंधविश्वास और काल्पनिकता से स्वयं को दूर रखें आज के युवा, सामाजिक विचारों का अध्ययन करें

अंधविश्वास और काल्पनिकता से स्वयं को दूर रखें आज के युवा, सामाजिक विचारों का अध्ययन करें 

युवा खुद के साथ अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र को एक नई दिशा प्रदान कर सकता हैं

प्रकृति के रक्षक प्रकृति के उपयोग से वंचित क्यों ?


लेखक-विचारक
दीनू उइके गोंड
जीएसयू बालाघाट मध्य प्रदेश

सारी दुनिया जानती है कि जनजाति समुदाय का और प्रकृति का परस्पर संबंध दुनिया के निर्माण के साथ रहे हैं। जब हमारे पूर्वजों ने इस माटी में जन्म लिया और हमेशा वे इस माटी के गोद में खेले और इस प्रकृति की रक्षा में अपना समय दिया, साथ ही प्रकृति से ही अपने जीवन यापन की सामग्री उपलब्ध करते रहें और इस प्रकृति की रक्षा करते हुए प्रकृति में विलीन हो गए लेकिन अब हमारे पास ना अच्छे से प्रकृति है और ना ही जल, जंगल, जमीन और कहीं कहीं है भी तो आज का युवा अपने पूर्वजों की तरह प्रकृति को अपने पास संजोए हुए रखने में सक्षम दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि कहीं ना कहीं प्रकृति और जनजाति समाज के बीच फासला बढ़ता नजर आ रहा है और इसका मुख्य कारण युवाओं का प्रकृति के प्रति उदासीनता, युवाओं में दिखाई दे रही है।

युवा अपने मूल सिद्धांतों से पूरी तरह से भटक गए 

आज के समय में जनजाति समाज के अधिकांश युवा अपने मूल सिद्धांतों से पूरी तरह से भटक गए हैं और समुदाय की ये अधिकांश युवा पीढ़ी को कुछ लोगों के द्वारा अपने स्वार्थ और फायदे के लिए गुमराह भी किया जाता रहा है लेकिन अब जनजाति समाज के युवा साथियों को अपने अधिकारों के लिए जल, जंगल, जमीन के लिए प्रकृति के संरक्षण के लिए अपने पुरखों के सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। वहीं कुछ समय के लिए युवाओं को अपने निजी स्वार्थ को छोड़कर अपने समाज के लिए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए जिम्मेदारी व जवाबदारी के साथ कार्य करना पड़ेगा। 

युवाओं को मार्गदर्शन की सख्त आवश्यकता 

किसी भी कार्य को को सफलता की मंजिल तक पहुंचाने में युवा पीढ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। इसके लिये युवाओं को सामाजिक कार्यों को करने के लिए अनुभवी लोगों का मार्गदर्शन भी अनिवार्य है जो कि युवा शक्ति को अपनी सकारात्मक उर्जा समाज हित में लगाने के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान परिस्थितियों में अगर नजर घूमाए तो पता चलता है कि आज जनजाति समाज के युवाओं को बेहतर सामाजिक चिंतन मनन की आवश्यकता महसूस होती है। जब तक सही एवं सटीक जानकारियों का अभाव जनजाति युवा में रहेगा तब तक कोई भी काम को करना युवाओं के लिए आसान नहीं होगा। हम देखते आ रहे हैं कि आज का युवा बदलते परिवेश के साथ अपने विचारों को बदलने में सक्षम जरूर हैं लेकिन सही मार्गदर्शन के अभाव में कई बार ऐसा भी होता है कि अपने विचारों को सामाजिक विचारों से परिवर्तन करने के बजाय अपने मन में असामाजिक विचारों को स्वीकार करने की दिशा में चला जाता है जो जनजाति समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं, ऐसी परिस्िथतियों में युवाओं में सामाजिक विचारों का समावेश जरूरी है जिससे समाज को नई दिशा मिल सकें।

समाज के प्रति उसका दायित्व क्या ?

जनजाति समुदाय में वर्तमान समय में देखा जाए तो कुछ जिम्मेदार युवाओं को छोड़कर आज का मॉडर्न युवा सोचता है कि अभी तो हमारे खेलने खाने के दिन हैं। अभी हम जाति समुदाय जैसे गंभीर विषय पर सोचना भी नहीं चाहते वह बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहता कि वह अपनी खुद की आने वाली पीढ़ी को कैसा वातावरण देना चाहता है। वह यह  सोचना भी नहीं चाहता है कि जिस जाति प्रणाम पत्र को दिखाकर वह शिक्षित हो रहा है या नौकरी करना हो, या फिर वह उसी समाज में विवाह बंधन में बनने वाला है, उस समाज के प्रति उसका दायित्व क्या है ? उसकी जिम्मेदारियां क्या है ? अगर आप अपने आसपास नजर घुमाएंगे तो पाएंगे कि ऐसे नकारात्मक सोच वाले युवा आपको हर जगह मिल जाएंगे, जितना नुकसान हमारे दुश्मनों ने हमारे समाज का किया है, उतना ही नुकसान इस तरह की नकारात्मक सोच वाले युवाओं के कारण जनजातीय समाज का भी हो रहा है। ये नहीं जानते और ना जानना चाहते हैं कि जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ते हुए बलिदान होने वाले पूर्वज बूढ़े ही नहीं बल्कि युवा भी थे। जनजातीय समाज को गर्व है उन युवाओं पर जो दिन-रात समाज हित में कार्य कर रहे हैं, जिनकी मेहनत से जनजाति समाज में जागृति का फर्क देखा जा रहा है। ऐसे नि:स्वार्थ  सामाजिक सोच वाले युवाओं की मेहनत का परिणाम होगा कि जनजाति समाज की आने वाली पीढ़ी एक बेहतर सामाजिक वातावरण में जन्म लेगी। 

तब वह समाज के विकास और प्रगति के लिए अपना योगदान देगा

हम देखते आ रहे हैं कि हर पीढ़ी की अपनी अलग सोच और विचार होते हैं। जो जनजाति समाज के विकास की दिशा में योगदान देते हैं, आज का युवा सीखने और नई चीजों को तलाशने के लिए उत्सुक है। ऐसे समय पर हम युवाओं को अपने समाज के बड़े वह अनुभवी लोगों से सलाह लेने की आवश्यकता होती है और जब जनजाति समाज का युवा अपने कौशल और क्षमता का पूरी तरह उपयोग करेगा तो निश्चित ही समाज विकास और उन्नति करेगा। इससे समाज और देश भर में जनजातीय समाज को एक नहीं पहचान मिलेगी। अगर हमारे समाज में युवाओं की मानसिकता सही है। उन्हें सामाजिक विचारों से प्रेरित किया गया तो वह निश्चित रूप से समाज के लिए अच्छा काम करेंगे और जब समाज का युवा व्यक्तिगत रूप से खुद को विकसित करेगा। जब वह आर्थिक रूप से सक्षम बनेगा, तब वह समाज के विकास और प्रगति के लिए अपना योगदान देगा। आज युवाओं में सामाजिक जागरूकता बहुत जरूरी हैं, जिससे वह खुद जागरुक होकर पूरे समाज को जागरूक करने का काम कर सकें।

युवा पीढ़ी अपने दिमागी तर्क शक्ति का उपयोग करने में असमर्थ

युवाओं को काल्पनिक और अंधविश्वास से बचने की जरुरत से आशय यह है कि युवाओं को वास्तविक रहना चाहिए ना कि भ्रामक कल्पना करने वाला और ना अंधविश्वासी रहना चाहिए। जिस वस्तु का कोई अस्तित्व ना हो ऐसी वस्तु पर विश्वास करना ही अंधविश्वास कहलाता है क्योंकि आज हमारे पूरे जनजाति समाज की बात करें तो कहीं ना कहीं अधिकांश युवा पीढ़ी अपने दिमागी तर्क शक्ति का उपयोग करने में असमर्थ है। यही वजह है कि वह पूरी तरह अंधविश्वास की जड़ों से जकड़ा हुआ है। वह वास्तविक जीवन से ज्यादा काल्पनिक जीवन जीना पसंद कर रहे हैं।

ऐसे में वास्तविक कल्पना और विश्वास के साथ तार्किक शक्ति हीं युवाओ के लिए वह शस्त्र है, जिनका प्रयोग कर युवा खुद के साथ अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र को एक नई दिशा प्रदान कर सकता हैं। इसके साथ ही अपने समाज में मौजूद अनेक आंतरिक समस्याएँ, जैसे अंधविश्वास, अशिक्षा, महिला उत्पीड़न, बाल तस्करी, गैर जातियों के द्वारा यौन शोषण, विस्थापन, छुआछूत में भेद-भाव यहां तक कि शासकीय कार्यालयों में भी असंवैधानिक निर्णय, राजनीतिक हक को छीनना, गलत परंपराएं आदि इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए जरूरी है कि जनजाति समाज का युवा अंधविश्वासों और काल्पनिकता से खुद को दूर रखें!

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