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गोंडवाना राज्य के लिए राज गोंडों का पहली बैठक 1917 में हरई जिला (छिंदवाड़ा ) में हुई थी

गोंडवाना राज्य के लिए राज गोंडों का पहली बैठक 1917 में हरई जिला (छिंदवाड़ा ) में हुई थी 

पृथक गोंडवाना राज्य की संघर्ष गाथा 

अब परिवर्तन की बारी हैं, चुप रहना लाचारी हैं


लेखक-रविकांत शाह पन्द्रे, गढ़ मण्डला 

सर्व प्रथम गोंडवाना राज्य के लिए राज गोंडों का पहली बैठक 1917 में हरई जिला (छिंदवाड़ा ) में बैठक हुई। वहीं 1927 और 1930 में भी बैठक हुई, 1933 में राजा जौहार सिंह नें इस माँग के लिए 11 हजार एक कोष की स्थापना की। वहीं नारायण सिंह उइके गोंडवाना आदिवासी सेवा मंडल के अध्यक्ष नारायण सिंह उइके नें 1955 में नागपुर विधान मंडल में गोंडवाना राज्य की माँग का सिफारिस की थी उस समय के आविभाजित छत्तीसगढ़ के विधान सभा के सदस्यों नें भी समर्थन किया था। 

अपना ताज अपना राज्य की घोषणा की थी                 

हरीसिंह देव कंगाली माँझी नें वर्ष 1959 से 1962 के बीच गोंड अंचल में विस्तृत यात्रा की थी, उन्होंने माँग रखी थी की गोंडवाना राज्य का निर्माण किया जायें, उन्होंने वर्ष 1959 में भारतीय गोंडवाना माँझी संघ मांझी सरकार के ओर से अपना ताज अपना राज्य की घोषणा की थी। 

देबर कमीशन के सामने गोंडवाना राज्य की माँग रखी थी    

मध्यप्रदेश के राज गोंडों नें वर्ष 1960 को रायपुर में आयोजित, देबर कमीशन के सामने गोंडवाना राज्य की माँग रखी थी की छत्तीसगढ़ को गोंडवाना राज्य का दर्जा दिये जाने से यहाँ के आदिम समुदायों का समुचित विकास होगा परंतु भोली भाली मूलवासियों को झूठ बोलकर 1 नवंबर 2000 को आनन फानन में गोंडवाना राज्य की बजायें 36 गढ़ राज्य बना दिया गया। देश के सभी आदिम समुदायों के साथ बहुत ही कुठाराघात किया गया हैं। 

राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष एक प्रतिवेदन दिया था

वहीं राजा नरेश सिंह जी द्वारा 9 मई 1969 को राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष एक प्रतिवेदन दिया था। जिसमे कहा गया था की आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य का निर्माण 36 गढ़ तथा रीवा राज्य को मिलाकर गोंडवाना राज्य बनाया जायें। 

27 अक्टुबर 1996 में लिंगों मैदान न्य ूरामदासपेठ नागपुर हुआ था आयोजन 

शीतल कवडू मरकाम जी द्वारा 1996 में गोंडवाना राज्य संग्राम की स्थापना की जिसमें संयोजक स्वयं शीतल मरकाम जी, मंशाराम कुम्हरे जी, राजा वासुदेव शाह टेकाम जी, बालकृष्ण मंडावी जी आदि थे। इस परिषद के द्वारा पृथक गोंडवाना राज्य, निर्माण हेतु दिनाँक 27 अक्टुबर 1996 में लिंगों मैदान न्य ूरामदासपेठ नागपुर में गोंडवाना परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद का उद्घघाटन गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी (विधायक ) मध्यप्रदेश नें किया था। वहीं अध्यक्षता रामाराव घोडाम जी आदिलाबाद (आन्ध्रप्रदेश) नें किया था। इस परिषद में गोंडवाना राज्य की माँग की गई तथा संपूर्ण भारत में 14 करोड़ से अधिक गोंड लोगों की जनसंख्या हैं जिनकी मातृभाषा गोंडी हैं इसे प्रमुखता से रखा गया था। गोंडवाना राज्य के लिए दीर्धकालीन संघर्ष होते रहें लेकिन परबुधियाओं के कारण गोंडवाना राज्य का सपना पूरा नही हुआ। 

मूलवासी के साथ घोर अन्याय हुआ           


आप सभी जानते हैं की भारत को आजाद हुऐ कई वर्ष बीत चुके परंतु जैसे ही भारत सन 1947 को आजाद हुआ और  स्वतंत्रता भारत वर्ष सन 1956 में भाषावार राज्यों का गठन किया गया। जैसे कि बंगालियों को बंगाल, तमिलों को तमिलनाडु, मद्रासियों को मद्रास, पंजाबियों को पंजाब, मराठियों को महाराष्ट्र, गुजरातियों को गुजरात, बिहारियों को बिहार, उड़िया को उड़ीसा लेकिन जब गोंडवाना राज्य की बात आई तो ये परबुधिया लोग आनन फानन में छत्तीसगढ़ियों को छत्तीसगढ़ और झारखंडियों को झारखंड दे दिया गया। गैरों के राजनैतिक के चलते आदिवासी बाहुल्य राज्य को (मध्यप्रदेश ) का नाम दिया गया जो की इस क्षेत्र में रहे रहें मूलवासी के साथ घोर अन्याय हुआ है। 

गोंगपा मण्डला ने 1 नंवबर को पुन: रखी मांग 


वहीं 1 नवंबर 2020 दिन रविवार को गोंडवाना गणतंत्र पार्टी गढ़ा मण्डला के द्वारा महामहिम राष्ट्रपति, राज्यपाल से 11 सूत्रीय मांगों को लेकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी द्वारा निषाद राज भवन के सामने ध्वनि यंत्र के साथ काली पट्टी बांधकर सांकेतिक रूप से ज्ञापन मण्डला कलेक्टर के द्वारा महामहिम राष्ट्रपति जी को सूचना प्रेषित  किया गया। आंदोलन में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सभी ब्लॉक के कार्यकर्त्ता एवं जिला अध्यक्ष तिरुमाल देवेंद्र सिंह मरावी जी एवं पार्टी के समस्त ब्लॉक अध्यक्ष एवं सदस्य उपस्थित हुए। इसके साथ ही गोंडवाना स्टूडेंट इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष तिरुमाल प्रताप सिंह कुलस्ते जी भी उपस्थित रहे। 

दादा के दर्शन और उनके जो सपना था वो जिम्मेदारी आप हम पर छोड़ दिये हैं      

फिर भी समाज में वैचारिक जागरूक आ रहा हैं अपने आपको पहचाननें लगे हैं, वह अपने रूढ़ि व्यवस्था भाषा संस्कृति अपने इतिहास को जानने समझने लगे हैं और स्वावलंबन मुक्त होकर अपने गढ़ किला को सँवारेंगे तो निश्चित ही समाज का उत्थान कर समाज को नई चैतना जरूर आयेगी तब ही ये सपना पूरा वा सच होगा तभी गोंडवाना राज्य का  स्थापना होगी। नव जागरण की इस प्रभात बेला में गोंडवाना की खोई हुई चेतना को पुन: प्राप्त करना हैं तो यही युग का संदेश हैं गोंडवाना राज्य स्थापना के लिए सोई हुई समाज को जगाने के लिए आखरी कड़ी में  गोंडवाना रत्न दादा हीर ासिंह जी मरकाम खुद पेंनवासी हो चुके हैं। दादा के दर्शन और उनके जो सपना था वो जिम्मेदारी आप हम पर छोड़ दिये हैं, उसे सकार करने में कर्तव्यनिष्ठा होकर समाजिक धार्मिक एवं राजनीति का परिचय दे। वहीं समाज के उत्थान कर पहले के गोंड राजाओं के द्वारा 1750 वर्ष तक राज्य सत्ता कायम किया, उसी प्रकार आज शपथ लेते हैं की समाज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर नई राज्य का ताना बाना बुनकर राज्य व्यवस्था कायम करें अब गैरों के ऊपर कभी विश्वास ना करें वोट हम देते हैं बनते हैं वो विधायक, सांसद, मंत्री लेकिन बाद में वोट देने वाला ही अपने हक अधिकार पाने के लिए रोड़ पर आन्दोलन करना पड़ता हैं यही गलत हैं। 

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