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दोषपूर्ण प्रवेश/परीक्षा प्रक्रिया से सरकार सिर्फ डिग्री देकर, डिग्रीधारी बेरोजगार तैयार कर रही है

दोषपूर्ण प्रवेश/परीक्षा प्रक्रिया से सरकार सिर्फ डिग्री देकर, डिग्रीधारी बेरोजगार तैयार कर रही है

यूजी.सी/शासन के नियमो का पालन, ना ही सीट वृद्धि की प्रक्रिया नियमानुसार अपनाई जा रही  


सिवनी। गोंडवाना समय।

म.प्र. शासन उच्च शिक्षा विभाग की भेदभावपूर्वक प्रवेश प्रक्रिया में केवल शासकीय महाविद्यालयों की सीट वृद्धि करने के विरोध में अशासकीय शैक्षणिक संगठन द्वारा ज्ञापन प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, म.प्र. शासन भोपाल, महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री, आयुक्त, उच्च शिक्षा म.प्र. शासन, कुलपति, समस्त विश्वविद्यालय म.प्र. के नाम सौँपा गया है। अशासकीय शैक्षणिक संगठन अशासकीय महाविद्यालयों की कई मूलभूत मांगों को लेकर सतत प्रयास करता रहा है परन्तु शासन की प्रवेश/परीक्षा प्रक्रिया केवल शासकीय महाविद्यालयों का संरक्षण करने एवं अशासकीय संस्थाओं के प्रति दोहरे मापदण्ड गत 10 वर्षो से कर रही है । इस दोषपूर्ण प्रवेश/परीक्षा प्रक्रिया से सरकार सिर्फ डिग्री देकर, डिग्रीधारी बेरोजगार तैयार कर रही है। इस पर अशासकीय शैक्षणिक संगठन द्वारा महत्वपूर्ण बिन्दुओं के माध्यम से सरकार, शासन प्रशासन को अवलोकनार्थ चिंतन हेतु प्रस्तुत किया गया है। 

चिंता का विषय के साथ शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ बेहूदा मजाक

अशासकीय शैक्षणिक संगठन द्वारा सौँपे गये ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि शासकीय महाविद्यालयों की प्रवेश प्रक्रिया एकदम अजूबा एवं संदेहहास्पद होती जा रही है। जिसमें प्रवेश के समय प्राचार्य मनमर्जी से स्नातक स्तर पर बी.ए. में 600 से 1500-2000 तक, बी. एससी. में 260 से 900 तक एवं एम.एससी. (गणित/रसायन/ बॉटनी/जूलॉजी) को मजाक बनाकर 30 से 300 तक सीट वृद्धि कर अलादीन के चिराग की भांति कैसे तत्काल विश्वविद्यालय से सीट वृद्धि की सहमति, शासन की अनुमति लेकर कर रहे हैं, यह चिंता का विषय तो है ही परन्तु शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ बेहूदा मजाक है। जिसमे ना ही 30: 1 के यूजी.सी/शासन के नियमो का पालन हो रहा है, ना ही सीट वृद्धि की प्रक्रिया नियमानुसार अपनाई जा रही है। 

निर्धारित सीट से अधिक प्रवेश निरस्त किए जाएं

इस संबंध में अशासकीय शैक्षणिक संगठन ने ज्ञापन के माध्यम से अनुरोध किया है कि इस प्रक्रिया की व्यापक जांच हो एवं निर्धारित सीट से अधिक प्रवेश निरस्त किए जाएं। अन्यथा अशासकीय संस्थाओं के निरीक्षण मान्यता/संबंद्धता का क्या औचित्य है। आपको अंकसूची बांटने की उच्च शिक्षा देना है, तो फिर भेदभाव क्यों ? क्यों अशासकीय महाविद्यालयों की सीट वृद्धि नही की जाती ? संगठन का मानना है कि गतवर्षो से चल रहे, शासकीय महाविद्यालय में ड्रामे को बंद कर शिक्षा का स्तर सुधारने कड़े फैसले लेकर निर्धारित सीट से अधिक प्रवेशित छात्रों को प्रायवेट किया जाये एवं नामांकन प्रक्रिया से रोका जाये ।

परीक्षा केन्द्र बनाने से गुरेज किया जाता है

अशासकीय महाविद्यालय पूरे प्रदेश में परीक्षा परिणाम बनाने का काम तो करते है परन्तु उन्हें परीक्षा केन्द्र बनाने से गुरेज किया जाता है। जबकि उनकी नियुक्ति हेतु कोड 28 की प्रक्रिया के तहत समस्त आवश्यक मापदण्ड पूर्ण कर कराई जाती है। फिर भी अच्छे शैक्षणिक परिणाम देने वाली संस्थाएँ जो 10-15 वर्षो तक परीक्षा केन्द्र रहे रहे थे, उनके परीक्षा केन्द्र अचानक समाप्त किया जाना कहां की न्यायिक व्यवस्था है ? जबकि ऐसा नही है कि शासकीय महाविद्यालय में परीक्षा केन्द्रों में गुणवत्ता की कमी है ? प्राध्यापकों की कमी से जूझ रहे शासकीय महाविद्यालय किस आधार पर किन मापदण्डों के तहत 10-10 हजार बच्चों की परीक्षा कराते हैं, समझ से परे तो है, ही चिंता का विषय है कि परीक्षक कौन होते हैं, इसकी जॉच कराई जाए कि कौन-कौन परीक्षक कब-कब रहे। क्या वह शासन की गाइड लाईन के अनुरूप है ? अथवा शिक्षित बेरोजगार/ बाबू/टेक्नीशियनों/चपरासियों से परीक्षा कराने से बेहतर है, अशासकीय महाविद्यालयों को परीक्षा केन्द्र बनाया जाये एवं कोड 28 से नियुक्त योग्य प्राध्यापकों को भी महत्व दिया जाकर उनका सम्मान किया जाये । 

प्रवेश के समय सत्यापन में योग्यता में भेदभाव 

प्रवेश के समय सत्यापन का कार्य केवल शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापक करते है, यह दोहरा मापदण्ड क्यों है ? सभी अशासकीय महाविद्यालयों में पी.एच.डी., डी. लिट, डी. एस.सी तक के उपाधि धारी है फिर भी उन्हें सत्यापन का अधिकार क्यों नही ? यह कैसी शैक्षिक/शैक्षणिक व्यवस्था है कि अतिथि विद्वान सत्यापन करे तो सही, कोड 28 से नियुक्त प्राध्यापक करे तो गलत? यह पूर्णत: अनुचित है। कोरोना काल में छात्र शुल्क नही दे रहे है, शासन से अशासकीय महाविद्यालयों को कोई फंड/अनुदान किसी तरह की सहायता राशि, नहीं दिया जा रहा, इस आधार पर इस सत्र में जबकि ना ही क्रीड़ा प्रतियोगिताएें हुई है ना ही चुनाव आदि, तो छात्रों से लिया जाने वाला शुल्क माफ किया जाये। संबंद्धता/निरंतरता शुल्क जमा करने की तिथि वृद्धि की जाये। आगामी सत्रो की संबंद्वता/निरंतरता शुल्क हेतु जून/जुलाई तक करने हेतु अभिस्वीकृति दी जाये ।  

अनशन पर बैठने बाध्य होगा 

अशासकीय संगठन सिवनी द्वारा सौंप ज्ञापन के उपरोक्त 5 सूत्रीय मांगो पर विचार कर, न्यायसंगत निर्णय लेने की अपेक्षा व्यक्त की गई है, एकतरफा शासन की प्रवेश नीति जिससे कवल शासकीय महाविद्यालय सीटवृद्धि कर सिर्फ प्रवेश/परीक्षा तक की औपचारिकता मात्र कर रहे। अध्ययन/अध्यापन/प्रोजेक्ट/परीक्षा परिणाम शून्य है। ऐसे में इन महाविद्यालयों की प्रवेश में सीट वृद्धि पर अंकुश तुरंत लगाया जाये। अन्यथा संगठन आगामी 2 दिवसों के पश्चात अनशन पर बैठने बाध्य होगा । 


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