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कार्यकर्ताओं की पार्टी, चुनाव में टिकिट, आखिर क्यों नेताओं, ठेकेदारों और कांग्रेस से शामिल होने वालों को देती है भाजपा ?

कार्यकर्ताओं की पार्टी, चुनाव में टिकिट, आखिर क्यों नेताओं,  ठेकेदारों और कांग्रेस से शामिल होने वालों को देती है भाजपा ?

नगरीय निकाय चुनाव में अभी से उपेक्षित महसूस कर रहे भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता




सिवनी। गोंडवाना समय।

विपरीत परिस्थिति में चुनाव के समय जब भाजपा को प्रचार करने के लिये गैरू से दीवारों पर नारे लिखने वाले जमीनी कार्यकर्ता, मतदान केंदों्र के बाहर धूप-ठण्ड, बरसात में बिना पंडाल के घर से कुर्सी टेबल लाकर मतदाता सूची लेकर बैठने वाले व मतदान केंद्र के अंदर व बाहर कांग्रेस के एजेंटों को सर्वसुविधायुक्त व्यवस्था के साथ मिलने वाला शाही नाश्ता-भोजन करते हुये भूखे बैठकर दिन भर ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी और भाजपा के प्रति वफादारी निभाने वालों के दम पर आज भाजपा केंद्र में भी सत्ता संभाल रही है। 

चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार बनने, मुंह ताक रहे जमीनी कार्यकर्ता 

रीति-नीति सिद्धांतों की बात कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण व कार्यक्रमों के दौरान संगठन के कार्यक्रमों में सत्ता सुख भोगने वाले भाजपा के जनप्रतिनिधियों का भाषण अक्सर यही होता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है। ये बात अब पुरानी हो चुकी है कहा जाये तो गलत नहीं होगा वरन भाजपा अब चाटूकार नेताओं, ठेकेदारों से घिरी हुई सबसे अहम बात कि कांग्रेस व दूसरे दलों से भाजपा में शामिल होने वालों को तव्वजों देने वाली पार्टी के रूप में अपनी पहचान भाजपा बनाती हुई दिखाई दे रही है।
        यानि की जिन्होंने भाजपा रूपी जिस पौधे की देखभाल करते हुये ख्ून पसीने बहाकर मेहनत से सींचकर जब फल देने लायक सुरक्षित स्थिति में लाकर मजबूत स्थिति में खड़ा कर दिया है तो फल का स्वाद चखने वालों में जमीनी कार्यकर्ताओं को उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। चुनाव मैदान में भाजपा की जीरों से शुरूआत करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं अब टिकिट के लिये मुंह ताकना पड़ रहा है क्योंकि अब भाजपा कार्यकर्ताओं को कम टिकिट और चाटूकार नेताओं, ठेकेदारों, और कांग्रेस व अन्य दलों से प्रवेश करने वालों को ज्यादा चुनाव में उम्मीदवार बनाकर भाजपा की टिकिट दे रही है।  

संगठन, सोशल मीडिया सहित समाचार पत्रों में भी गुमनाम नजर आ रहे है जमीनी कार्यकर्ता 

फिलहाल अभी मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर बिगुल बज चुका है, तारिख तय नहीं है लेकिन चुनावी सरगर्मी तेज हो चुकी है। नगरीय निकाय में वार्ड व अध्यक्षों का आरक्षण भी तय हो चुका है। इसके बाद यदि सत्ताधारी दल की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी में सबसे ज्यादा खींचतान व रस्साकस्सी अध्यक्ष व पार्षद का उम्मीदवार बनने के लिये प्रतियोगिता दिखाई दे रही है।
        संगठन को सर्वोपरी मानने वाली पार्टी भाजपा में सत्ता के गलियारों में पहुंच रखने वाले नेता उम्मीदवारी की लाईन में सबसे आगे अपना चेहरा चमकाते हुये नजर आ रहे है, उनका नाम, सोशल मीडिया से लेकर समाचारों में भी सुर्खियां बटोर रहा है। वहीं जमीनी कार्यकर्ताओं का नाम लेवा भी संगठन से लेकर सोशल मीडिया और न ही समाचार पत्रों में नजर नहीं आ रहा है और न ही राजनीतिक गलियारों में कहीं नजर आ रहे है, आखिर ऐसा क्यों ? 

विद्यार्थी जीवन व जवानी का समय देने वाले भी उम्मीदवारी से कोसो दूर 

भाजपा का मातृ संगठन और मजबूती प्रदान करने वाला संगठन आरएसएस में पूर्णकालिक समय बिताकर कई वर्षों तक अपना घर-बार छोड़कर, गांव-गांव, गली-गली में मेहतन करके भाजपा की दिशा व दशा को मजबूत करने वाले कार्यकर्ता जिन्होंने विद्याथी्र जीवन, जवानी का समय दिया हो, भले ही संगठन में उन्हें भाजपा ने महत्वपूर्ण पदों पर स्थान दिया हो लेकिन यदि चुनावी मैदान में विपरीत परिस्थिति के समय की बात करें तो उस समय जरूर भाजपा जमीनी कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार बनाती थी लेकिन जब से सत्ता में पहुंची है उसके बाद से चुनाव में उम्मीदवार बनाने के सिद्धांत कहें या गाईडलॉईन में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई दे रहा है। यह पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की जुबान से ही बाहर निकलकर दबी आवाज में सामने आ रहा है क्योंकि पार्टी का अनुशासन का पालन भी जिम्मेदारी के साथ करने की जमीनी कार्यकर्ताओं को सिखाई जाती है। 

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