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करना संघर्ष पुन:

 करना संघर्ष पुन: 


अंकित जैतवार 
''निराश''


जब छाई हो चारो तरफ निराशा।
कोई किरण न दिखती हो, जिससे हो आशा।
सोच हार की, घर कर गई हो।
तब मन में भरना हर्ष पुन:।
फिर जीत ठान ले मन ही मन में,
फिर तू करना संघर्ष पुन:।
शांत भाव से करना विचार तू।
सोच, हो रही हार बार-बार क्यों।
भावों को रख अलग, दावों को कर परख तू ।
करना फिर तू, निष्कर्ष पुन:।
फिर जीत ठान ले मन ही मन में,
फिर तू करना संघर्ष पुन:।
मन में चाहे दर्द हो कितना, मुख पर हो मुस्कान सदा।
सारे दुख के पल भी है, पल भर को ।
यहां न रहता कोई सदा ।
मन में भर फिर से वो हौसला।
रखना हरदम उत्कर्ष पुन:।
फिर, जीत ठान ले मन ही मन में,
फिर तू करना संघर्ष पुन:।

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