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पेंच परियोजना में घटिया निर्माण के साथ करोड़ों के भ्रष्टाचार की भी हो जांच

पेंच परियोजना में घटिया निर्माण के साथ करोड़ों के भ्रष्टाचार की भी हो जांच 

सांसद समर्थक-संरक्षक बनकर रहे चुप अब सिवनी विधायक ने उठाया मुद्दा 


विवेक डेहरिया संपादक 
सिवनी। गोंडवाना समय। 

कांग्रेस की सरकार में शुरू हुई पेंच परियोजना का कार्य में भाजपा के राज में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता गया। पेंच परियोजना वर्ष 1987-88 में प्रारंभ की गई थी। जिसमें लागत अप्रैल 1988 में 91.60 करोड़ का बजट सितंबर 2016 तक 2,544.57 करोड़ रूपये तक पहुंच गया जिसमें वर्ष 2017 तक कार्य पूर्णत: का लक्ष्य रखा गया था। योजना अयोग, भारत सरकार ने परियोजना को वित्तीय वर्ष 2011-12 तक पूर्ण किये जाने के लिये राज्य आयोजना केअंतर्गत 583.40 करोड़ रूपये के निवेश को अप्रैल 2006 में अनुमोदित किया था वहीं इसमें 25 प्रतिशत केंद्रांश तथा 75 प्रतिशत राज्यांश वित्तपोषण के लिये शामिल था।
            योजना में सितंबर 2017 तक परियोजना पर 1978.24 करोड़ रूपये का व्यय किया गया था, जिसमें बांध पर 1,256 करोड़ रूपये और नहर प्रणाली पर 721.87 करोड़ रूपये व्यय शामिल थ वहीं भारत सरकार ने फास्ट ट्रेक प्रोफार्मा क्लीयरेंस के अंतर्गत  2,544.57 करोड़ रूपये की लागत पर पेंच परियोजना को 2019-20 में पूर्ण किये जाने के लिये स्वीकृत किया गया था लेकिन वर्ष 2021 के शुरूआत में भी अधूरी और किसानों की बर्बादी की कगार पर ही खड़ी दिखाई दे रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिसमें छिंदवाड़ा व सिवनी जिले के किसानों की खेती को 85, 000 हजार हैक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाना था।
             इसके साथ ही घरेलू जल आपूर्ति के लिये भी 7.40 एम.सी.एम पानी उपलब्ध करवाना था लेकिन न किसानों के खेतों के तक योजना अनुसार पानी नहीं पहुंचा है और न ही नागरिकों के घर तक पीने का पानी पहुंच पा रहा है। कुल मिलाकर क्षेत्रिय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी,  अधिकारी की मनमानी और ठेकेदार से सांठगांठ कर भ्रष्टाचार की पराकाष्टा को पार करते हुये जल संसाधान विभाग के सिवनी, छिंदवाड़ा और भोपाल तक अधिकारियों ने अपनी तिजोरी भरकर किसानों को सिंचाई सुविधा पहुंचाने के नाम पर मालामाल हो गये कुछ अधिकारी लखपति तो कुछ करोड़पति बन गये किसान आज भी घटिया निर्माण का रोना रोने को मजबूर है।
        नहर एवं वितरण नेटवर्क के निर्माण का ठेका हाइड्रॉलिक टनल का निर्माण, सिवनी शाखा नहर का निर्माण, बखारी शाखा नहर का निर्माण, नांदना एवं हरदुआ वितरिका का निर्माण, धमनिया एवं ठेल वितरिका का निर्माण, बाई तट नहर एवं दाई तह नहर का निर्माण में सभी की कार्यपूर्णता की तिथि लगभग वर्ष 2015 दी गई थी जिसमें हाइड्रॉलिक टनल का निर्माण अक्टूबर 2016 तक पूर्ण हो गया था बाकी अन्य कार्य पूर्ण नहीं हो पाये थे। 

इन जिम्मेदारों ने घटिया निर्माण, भ्रष्टाचार और ठेकेदार को दिया बढ़ावा

परियोजना के दोनो चरणों में कैग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश शासन द्वार 31 मार्च 2017 तक की स्थिति में कुछ किये गये व्यय के लिये केंद्रीय सहायता की प्रतिपूर्ति पर स्पष्टता की कमी रही। वहीं हम आपको बता दे कि पेंच परियोजना को मध्य प्रदेश शासन के जल संसाधन विभाग (डब्ल्यू.आर.डी) द्वारा कार्यान्वित किया गया है। जिसमें प्रमुख सचिव डब्ल्यू.आर.डी शासन स्तर पर प्रमुखहै और प्रमुख अभियंता ई.एन.सी. विभाग के प्रशासनिक प्रमुख है।
        मैदानी स्तर पर मुख्य अभियंता सी ई वैनगंगा कछार, सिवनी परियोजना के कार्यन्वयन के लिये जिम्मेदार है। सीई की सहायता अधीक्षण यंत्री एस ई छिंदवाड़ा, कार्यपालन यंत्री ई ई बांध संभाग, चौरई, छिंदवाड़ा और ई ई नहर संभाग सिवनी, छिंदवाड़ा के साथ सहयोगी यंत्रियों कर्मचारियों द्वारा की जाती है।
        सिवनी शाखा नहर निर्माण के विलंब के दौरान भूमि अधिकरण प्रक्रिया में प्रस्ताव एवं सरंचनाओं के आरेखन, जिसे ठेकेदार को 2014 तक प्रस्तुत करना थ वह मार्च 2017 तक भी पूर्ण मं प्रस्तुत नहीं किये गये । जिसमें ई ई ने समुचित परीक्षण नहीं किया और विलंब का ठीकरा ठेकेदार के सर पर रख दिया। 

एस ई ने पहुंचाया ठेकेदार को 14.55 करोड़ रूपये का अदेय लाभ   

कैग ने सिवनी नहर के मामले में यह पाया कि माह जनवरी 2017 से सितंबर 2017 तक कोई कार्य ठेकेदार ने निष्पादित नहीं किया। ई ई ने ठेके को विखंडित करने का प्रस्ताव एस ई को अनुबंध खंड 115.3 के अंतर्गत (जिसमें प्रावधान है कि ठेकेदार पर आरोपणीय कारणों से कुल बिलंब 100 दिवस से धिक होने पर ठेका विखंडित हो जायेगा एवं समस्त सुरक्षा निधियां और निष्पादन प्रतिभूतियां राजसात की जाएंगी) सिंतबर 2017 में अग्रेषित किया। हालांकि ठेके को विखंडित नहीं किया गया और न ही ठेकेदार पर कोई शास्ति अधिरोपित की गई जिससे ठेकेदार को 14.55 करोड़ रूपये का अदेय लाभ हुआ। 
        बखारी शाखा नहर और इसके वितरण नेटवर्क निर्माण का कार्य जनवरी 2015 तक पूर्ण किये जाने हेतु नियत था लेकिन चार बार समय वृद्धियां जून 2018 तक के लिये ठेकेदार को प्रदान की गई। नांदना हरदुआ वितरिका का निर्माण में फरवरी 2014 में प्रथम माइलस्टोन की समाप्ति तक नांदना और हरदुआ वितरिका के निर्माण में कोई प्रगति नहीं थी जबकि ठेकेदार की अनुबंध पूर्णत: अवधि फरवरी 2015 तक तो कोई माइलस्टोन प्राप्त नहीं कर सका था। 

ई ई, एस ई और सी ई ने पहुंचाया ठेकेदार को 12.65 करोड का अनुचित लाभ 

कार्यों में धीमी प्रगति के कारण सी ई द्वार फरवरी 2015 में ठेके को विखंडित कर दिय गया तथापि ई ई ने विखंडन को लागू नहीं किया और उसी ठेकेदार ने नहर कार्यों का निर्माण कार्य जारी रखा, फिर बाद में सीई द्वारा मई 2017 तक ठेकेदार को समय वृद्धि प्रदान की गई लेकिन इनके कारणों को न सी ई ने और न ही ई ई द्वारा अभिलेखित किया गया।
         इसके बाद अंतत: अगस्त 2017 में ठेके को विखंडित किया गया लेकिन ठेकेदार पर न तो ई ई, एस ई द्वारा शास्ति प्रस्तावित की गई और नही सी ई द्वारा अधिरोपित किया गया। जबकि फरवरी 2014 से ही लागू किया जाना था । शास्ति अधिरोपित न किये जाने के फलस्वरूप ठेकेदार को 12.65 करोड़ का अनुचित लाभ हुआ। अब इसमें अधिकारियों को फायदा हुआ होगा यह तो वे ही जानते है। 

7.65 करोड़ का ठेकेदार को लाभ पहुंचाने में एस ई व ई ई समान रूप से थे दोषी

धमनिया और टेल वितरिका का निर्माण में भी भूमि अधिग्रहण हेतु संसोधित मुआवजे की मांग पर हुये व्यवहान के कारण कार्य पूर्णता तिथि मार्च 2015 से बढ़ाकर मई 2016 की गई और फिर भी ठेकेदार कार्य पूर्ण नहीं कर पाया । इसके बाद विलंब का कारण ठेकेदार था लेकिन इसके बाद ई ई एवं सी ई ने शास्ति अधिरोपित नहीं किये जिससे ठेकेदार को 7.65 करोड़ रूपये का अदेय लाभ हुआ।
        वहीं ठेका विखंडित कर दिया गया लेकिन ठेकेदार के निवेदन पर 23 दिसंबर 2017 के पश्चात ठेके को पुनजीर्वित भी 4 जनवरी 2018 को कर दिया गया । जबकि ठेका अनुबंध में विख्ांडन आदेश को पुर्नजीवित करने का कोई प्रावधान नहीं था । पुर्नजीवित करने के अनियमित निर्णय के लिये समान रूप से एस ई व ई ई समान रूप से दोषी थे और 7.65 करोड़ की शास्ति अधिरोपित करने के लिये दोनो पर उच्चाधिकारियों ने भी कोई कार्यवाही नहीं किया। इसमें सभी अधिकारियों को कितना लाभ हुआ ये संबंधित अधिकारी ही जानते है। 

ई ई, एस ई एवं सी ई ने ठेकेदार को पहुंचाया 6.50 करोड़ का अदेय लाभ 

एल. बी. सी एवं आर बी सी का निर्माण कार्य का ठेका अप्रैल 2015 तक पूर्ण करने हेतु सौंपा गया था इसे भी दिसंबर 2015 तक समय वृद्धि प्रदान की गई। इसमें अधिकारियों ने ठेकेदार को बचाने के लिये किसानों को फंसाकर भूमि अधिग्रहण को लेकर मुआवजा की मांग को कारण ठहराया थ जबकि कार्य सौंपने के पूर्व ही नहर के भूमि अधिग्रहण का कार्य पूर्ण चुका था जबकि मुख्य कारण जिसे अधिकारियों ने छिपाया थ वह ठेकेदार द्वारा पर्याप्त मशीनरी एवं श्रम शक्ति नहीं लगाना कारण था। इस कार्य में ठेकेदार को 6.50 करोड़ रूपये का अदेय लाभ हुआ जिसके लिये ई ई, एस ई एवं सी ई उत्तरदायी थी। अब इसमें से इनकी तिजोरी में कितना रूपया गया होगा यह भी ये ही जानते है। 

ठेकेदारों को स्वस्थार्थ के लिये संरक्षण देने पर हो रहा विलंब

कार्यों की धीमी गति को दृष्टिगत रखते हुये प्रमुख अभियंता ने सी ई को नांदना वितरिका नहर एवं धमनिया वितरिका नहर के ठेके के अंतर्गत ठेकेदारों के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही करने हेतु नवंबर 2016 में निर्देशित किया था लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस प्रकार ये स्पष्ट है कि मैदानी स्तर के अधिकारियों में सी ई, एस ई एवं ई ई ने ठेकेदारों के प्रति लचीला दृष्टिकोण अपना जो कि नहर के कार्यों के क्रियान्वयन में विलंब सहायक हुआ। 

डब्लू आर डी ने भी बरती लापवाही 

डब्लू आर डी को ठेकेदारों की जवाबदेही करने के लिये नहरों के निर्माण में विलंब के सभी प्रकरणों को समीक्षा करना चाहिये थ एवं अनुबंधों के प्रावधानों के अनुसार शस्ति अधिरोपित की जानी चाहिये थी। डब्ल्यू आर डीइ को उचित विभागीय कार्यवाही हेतु विभागीय अधिकारियों द्वारा शस्ति अधिरोपित करने में निष्क्रियता/विफलता के समस्त दृष्टांतों की भी समीक्षा करना चाहिये थी। डब्ल्यू आर डी को धमनिया एवं टेल वितरिका के निर्माण के विखंडन ओदश के अनियमित रूप से पुर्नजीवित किये जाने की समीक्ष भी सर्तकता विजिलेंस दृष्टिकोण से करना चाहिये था और ठेकेदारों का अनुचित पक्ष लेने के लिये जिम्मेदार अधिकारियों पर उचित विभागीय कार्यवाही करना चाहिये थी लेकिन उन्होेंने भी ऐसा नहीं किया।

17, 100 हेक्टेयर ही हो पाई थी उपलब्धी 

1 मार्च 2017 तक की रिपोर्ट की बात करें तो यह ज्ञात होता है कि अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से नहर कार्यों में धीमी प्रगति के कारण वितरण नेटवर्क के निर्माण को कम प्राथमिकता देने के कारण मार्च 2017 तक 85000 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता की उपलब्ध मात्र 17, 100 हेक्टेयर ही रही। 

बिना मूल्यांकन के ठेकेदारों को भुगतान

मध्य प्रदेश कार्य विभाग एम पी डब्ल्यू डी नियमावली, माप पुस्तिका एम बी को प्रांरभिक दस्तावेज के रूप में प्रावधानित करता है, जिन पर लेखे आधारित होते है। माप पुस्तिका में कार्यों के विवरण आसान पहचान एवं जांच सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त रूप से स्पष्ट होनो चाहिये। समस्त मापों में अधिकारी के दिनांकित हस्ताक्षर होने चाहिये, जिनके द्वारा उन्हें दर्ज किय जाता है एवं समय, माप के समस्त पृष्ठों को काटां जाना चाहिये। वहीं इसी आधार पर ठेकेदार को भुगतान करने से पहले समस्त माप को सौ प्रतिशत जांचना अनिवार्य होता है। जबकि टर्नकी ठेकेदारों में से किसी ने भी विस्तृत अनुमानों आधार पर बो ओ क्यू एवं संयोजित पत्रक प्रस्तुत नहीं किये।             यहां तक कार्यों के निष्पादन योग्य घटको और उनकी देय अनुबंध की दरे डब्ल्यू आर डी में उपलब्ध नहीं थी। माप पुस्तिका में क्रियान्वित कार्य की विस्तृत माप दर्ज किये बिना किलोमीटर के आधार पर ठेकेदार को भुगतान किया गये। यहां तक अनुबंध के अंतर्गत अलग-अलग मदों जैसे कि मिट्टी कार्य के वाटरिंग एवं कॉपेक्शन, चिपकने न फूलने वाली मिट्टी का क्रियान्वयन, कम घनत्व वाले पॉलिथीन फिल्म का उपयोग आदि के क्रियान्वयन सत्यापित करने के लिये संभाग कार्यालय में कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं थे।
         जबकि इसके प्रमुख अभियंता ने समस्त मुख्य अभियंताआें को परिपत्र दोहराते हुये मार्च 2015 में जारी किया था कि टर्नकी अनुबंध में ऐसी कोई शर्त नहीं है और नही मध्य प्रदेश कार्य विभाग विभाग नियमावली में कोई कंडिका नहीं है जो टर्नकी ठेकों में मापों को दर्ज करने से छूट देती है ।
        इसके बाद भी प्रमुख अभियंता के आदेश को अंगूठा दिखाकर धज्जियां उड़ाते हुये टर्नकी ठेकों में घटकवार कार्यों को नहीं मापने की प्रक्रिया जारी रही। जबकि इसके लिये ई ई नहर संभाग,एसडीओ एवं उपयंत्री मापों को दर्ज करने में अनियमितता के लिये उत्तरदायी थी। यहां तक सँभागीय लेखापाल भी माप पुस्तिका की जांच करने जैसा कि मध्य प्रदेश कार्य विभाग नियमावली के अंतर्गत आवश्यक है वे भी असफल रहे। 

सी ई ने 13.41 करोड़ का मिट्टी के घटक कार्य का प्रतिशत बढ़ाकर ठेकेदार को पहुंचाया लाभ 

सी ई ने बिना प्राधिकार के और अनुबंध की शर्तों के विपरित ठेकेदार के अनुरोध पर मिट्टी कार्य के घटक का प्रतिशत बढ़ाकर संशोधित कर दिया। जिससे 13.41 करोड़ का ठेकेदार को अनियमित भुगतान हुआ। जिसमें सिवनी शाखा नहर में 2.49 करोड़, बखारी शाखा नहर में 6.96 करोड़, धमनिया वितरका में 3.96 करोड़ का अनियमित भुगतान सी ई ने ठेकेदार को किया। 

लीड से अधिक लागत व हॉर्ड रॉक में भी ठेकेदार को पहुंचाया लाभ 

सामग्रियों की अस्वीकार्य लीड से अधिक लागत में भी शासन को लगभग 2 करोड़ की चपत शासन को लगाया है। दिसंबर 2016 में वहीं दो ठेकेदारों के द्वारा खोदी गई 98,952.25 घन मीटर हार्ड रॉक जारी की थी लेकिन ई ई ने ठेकेदारों को किये एक अंतिम भुगतान में जनवरी 2017 एवं फरवरी 2017 में हार्ड रॉक की लॉगत में 1.85 करोड़ की वूसली नहीं की और इसका कोई कारण भी अभिलेखित नहीं किया। 

नहरों में पी वी सी स्ट्रिप्स का निर्माण नहीं किया और अधिकारियों  ने ठेकेदार को 3.22 करोड़ का अदेय लाभ पहुंचाया 

हम आपको बता दे कि टर्नकी अनुबंध के अंतर्गत ई ई कार्य निष्पादन के लिये जिम्मेदार होते है। वहीं मध्य प्रदेश कार्य विभाग नियमावली निर्धारित करती है अधीनस्थों द्वारा लिए गये मापों भुगतान से पहले अनुविभागीय अधिकारी द्वारा जांचे जाऐंगे और ई ई, एसडीओ उनके द्वाराअभिलेखित/जांचे गये मापों के लिये जिम्मेदार होंगे।             सिवनी शाखा नहर के टर्नकी अनुबंध के प्राक्लनों में सीमेंट कॉंक्रीट लाइनिंग में पैनल जोड़ों में पी बी सी स्ट्रिप्स को लगाने के प्रावधान है। डब्ल्यू आर डी द्वारा जारी सिंचाई विशिष्ट के अनुसार कांक्रीट दृढ् होने से पहले पी वी सी स्ट्रिप्स को कांक्रीट लाइनिंग में डाला जायेगा लेकिन सिवनी शाखा नहर का लेखापरीक्षा ने स्थल भ्रमण किया तो पाया कि ठेकेदार ने सीमेंट कांक्रीट लाईनिंग में पी वी सी स्ट्रिप्स नहीं डाली जिसे ई ई और एस डी सुनिश्चित करने में असफल रहे।
            जिसका प्रमाण सिवनी शाखा में 0 किलोमीटर एवं 1.925 किलोमीटर के मध्य पी वी सी स्ट्रिप्स के बिना सी सी लाईनिंग को फोटाग्राफस सहित प्रमाणीकरण किया है। जिससे ठेकेदार को 3.22 करोड़ का अदेय लाभ हुआ। इस मामले में डब्ल्यू आर डी भी ठेकेदार को भुगतान को लेकर बचाव करता हुआ नजर आया। 

चौड़ाई कम करके ठेकेदार को पहुंचाया 7.09 करोड़ का अदेय लाभ 

सिवनी शाखा नहर में सर्विस तट और नॉन सर्विस तट की चौड़ाई को बिना किसी कारण के ही सी ई ने चोड़ाई को 6 मीटर व  1.5 मीटर घटा दिय जिससे टर्नकी ठेकेदार को 7.09 करोड़ रूपये का अदेय लाभ हुआ। इसमें भी अधिकारियों व डब्ल्यू डी आर ने ठेकेदार को बचाने के लिये किसानों फंसाने का बहाना बनाया था जो कि भविष्य में तटों के स्थयित्व को प्रभवित करेगी और किसानों के लिये दु:खदायी होगी। 

गोंडवाना समय खोलेगा पोल 

किसानों को सिंचाई सुविधा दिलाने के नाम पर किस तरह से क्षेत्रिय जनप्रतिनिधियों की अनेदखी-समर्थन-संरक्षण, अधिकारियों ने ठेकेदार के साथ मिलकर भ्रष्टाचार कर सरकार को चपत लगाया है। वहीं किसानों को आजीवन घटिया निर्माण कर भ्रष्टाचार की बलि चढ़ाते हुये हमेशा के लिये परेशान होने के लिये छोड़ दिया है इसका खुलासा दैनिक गोंडवाना समय द्वारा विस्तृत विवरण के साथ किया जायेगा। 

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