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31 मार्च 1961 को लोहंडीगुड़ा में हजारों आदिवासियों पर चलाई गई थी गोली, शहादत स्थल पर दी श्रद्धांजलि

31 मार्च 1961 को लोहंडीगुड़ा में हजारों आदिवासियों पर चलाई गई थी गोली, शहादत स्थल पर दी श्रद्धांजलि 


विशेष रिपोर्ट-
पूरन सिंह कश्यप, सचिव
आदिवासी युवा छात्र संगठन जिला-बस्तर, छत्तीसगढ़

जगदलपुर। गोंडवाना समय। 

बस्तर का खूनी इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आंदोलन हुये हैं। वहां-वहां आदिवासियों की शहादत हुई हैं।


चाहे वह  1876 के मुरिया विद्रोह हो या 1910 की भूमकाल की बात करें। वहां-वहां मूल निवासियों का कुबार्नी हुई है लेकिन हमारे देश के आजादी के 13 वर्ष बाद बस्तर के लोहंडीगुड़ा में गोलीकांड 31 मार्च 1961 में हुआ। गोली कांड में सेकड़ो आदिवासियों  शहीद हुए लेकिन इतिहास में 12 लोगों को ही पहचान कर उनका नाम दर्ज किया गया है।

लोहंडीगुड़ा गोली कांड में शहीद आदिवासियों को सर्व आदिवासी समाज ने दी श्रद्धांजलि 


सर्व आदिवासी समाज बस्तर जिला के द्वारा 31 मार्च 1961 को लोहंडीगुड़ा गोलीकांड में निर्दोष आदिवासियों को गोली चलाकर मार दिया गया था। गोली कांड में 12 आदिवासियों शहीद हुए थे और 59 निर्दोष आदिवासियों पर मुकदमा दर्ज किया गया था। इस शहादत दिवस के अवसर पर युवा प्रकोष्ठ अध्यक्ष संतु मौर्य ने बताया कि 31 मार्च दिन शुक्रवार को निर्दोष आदिवासियों को गोली मारकर हत्या कर दी।
             

इस दिन को हमारे हजारों शहादत हुए आदिवासियों को याद कर रहे हैं। इस गोली कांड में शहादत को बेकार जाने नहीं देना चाहिए। इसी तरह हमारे आदिवासियों ने जल, जंगल, जमीन के लिए पहले से ही लड़ते आ रहे हैं। इस दौरान प्रदेश संयुक्त सचिव जगदीश चंद्र मौर्य, युवा प्रभाग प्रदेश उपाध्यक्ष मौसु पोयाम, युवा प्रकोष्ठ जिला अध्यक्ष संतू मौर्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष महेश कश्यप, इंदर मांझी, हिड़मो मड़ावी, रामू कश्यप,  टकेस्वर भारद्वाज, भरत कश्यप, युवा प्रकोष्ठ ब्लॉक अध्यक्ष बसंत कश्यप, आदिवासी युवा छात्र संगठन ब्लॉक अध्यक्ष प्रशांत कश्यप, डमरू मंडावी, कमल नाग, लक्ष्मण बघेल, दुलारु बघेल, बंसी मौर्य, भवँर लाल मौर्य, पुष्पेंद्र मौर्य, अनिल बघेल आदि उपस्थित थे।

गोली कांड के कारण 


मध्य प्रदेश सरकार ने 11 फरवरी 1961 को पहले उन्हें राज्य विरोधी होने के नाम पर गिरफ्तार किया फिर प्रवीण चंद्र भंजदेव की बस्तर के भूतपूर्व शासक होने की मान्यता भी समाप्त कर दी गयी। इसके साथ ही छोटे भाई विजय चंद्र भंजदेव को भूतपूर्व शासक होने के अधिकार तत्कालीन म.प्र.सरकार ने दे दिये थे।
            जब सरकार के पदस्थ कुछ अधिकारियों ने तस्करो के साथ मिलकर साथ-गांठ कर  प्रवीण चंद्र भंजदेव को षडयंत्र पूर्वक उन्हें पद से हटा दिया। वहीं 13 फरवरी को प्रवीण चंद्र भंजदेव को नरसिंगगढ़ म. प्र.के जेल में बंद कर दिया गया। तब यहाँ के आदिवासियों को पता चला कि प्रवीण चंद्र भंजदेव राजा के पद से हटा कर उनके जगह छोटे भाई विजय चंद्र भंजदेव (लाल) को राजा बनाया गया है, यह बात बस्तर के आदिवासियों को कबूल नहीं हुई। विजय चंद्र भंजदेव को राजा मानने से साफ मना कर दिये।
            आदिवासी क्षेत्रों में जगह-जगह मीटिंग बुलाई बुलाई गई, सुनने वाले कोई नही मिले, गांवो के हाट-बाजारो में बताया कि हमारे राजा को जेल में बंद कर दिया गया है, उसके जगह विजय चंद्र भंजदेव को राजा बनाया गया है बोल कर बहुत प्रचार-प्रसार किया गया, तब  ग्रामीण क्षेत्रों से अपने राजा प्रवीण चंद्र भंजदेव को देखने के लिए गये, परिसर में चारों तरफ पुलिस बलों को तैनात किया गया था। प्रवेश करने नही दिया गया, आदिवासियों को पता चला कि राजा के बैठने के स्थान पर उसके छोटे भाई विजयी चंद्र भंजदेव (लाल) बैठे हैं। अपने राजा को  मिलने के लिए 30-35 दिनों तक इंतजार कर रहे थे लेकिन आदिवासियों को पता नहीं चला कि हमारा राजा कहां हैं। आदिवासियों के साथ विश्वास घात हो चुका था, हंगामा करें तो कहा करें लेकिन विजय चंद्र भंजदेव का विरोध हो रहा था। 

30 मार्च का रणनीति का केंद्र रहा सिरिसगुड़ा व बडांजी

30 मार्च की रण नीति का केंद् सिरिसगुड़ा और बडांजी में बड़ी आम सभा हुई। सिरिसगुड़ा की बैठक में यह तय कर लिए कि कल किसी भी हालत में लोहंडीगुड़ा थाना का घेराव करना है। सिरिसगुड़ा में बहुत कुछ रण नीतिया बनाई गई। इस बैठक में जगदलपुर, तोकापाल, लोहंडीगुड़ा, बस्तर,  दरभा ब्लॉक के आदिवासी समुदाय के उपस्थित होकर हुँकार भरी। 
            शाम को बडांजी  में गुप्त बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि बेलियापाल में सभी लोग उपस्थित कल होना है । सभी को सूचित किया गया था कि अपने-अपने अनुसार तीर धनुष, भाला, टंगिया, फरसा और अन्य औजार लेकर बेलिया पाल पहुचना हैं। बाजार के मार्ग को बदल दिया गया आदिवासी गुप्त सूचना देने वाले बडांजी होते हुए सीधा बेलियापाल जाने का तय हुआ। वहीं जितने भी लकड़ी के पुल को भी तोड़ने का रण नीति बनाई गई। सिरिसगुड़ा व बडांजी के गुप्त सूचना को आदिवासी (सोनू मांझी)के द्वारा पुलिस-प्रशासन को बताया गया।

31 मार्च लोहंडीगुड़ा गोलीकांड


31 मार्च के रणनीति के केंद्र रहा बेलियापाल में सुबह से ही एकत्रित होने लगे और दिन के चढ़ते तक देखते ही देखते दस हजार से पंद्रह हजार के करीब आदिवासियों हाथों में तीर-धनुष,  फरसा, टंगिया, आदि हथियार लेकर बेलियापाल के बनवाड़ी में उपस्थित हुए। लगभग हजारों सुरक्षा बल को गुप्त रूप से लोहंडीगुड़ा के छोटे जंगलों में तैनात किया गया था। इधर आदिवासी प्रर्दशन कारियो को पता भी नही चल सका।
             बेलियापाल में थाना को घेरने के लिए 3-4 घण्टे तक रणनीति बनाई गई। दोपहर के बाद जुलूस के रूप में लोहंडीगुड़ा थाना की ओर रवाना हुए। इधर नव घोषित पूर्व शासक विजय चंद्र भंजदेव  के अधिकारियों व जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भीड़ को समझा-बुझकर शांत कराने का प्रयास किया था लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकाल सके। देखते ही देखते भीड़ और बढ़ने लगी।
        भीड़ को रोकने का बहुत प्रयास किया गया लेकिन यहाँ के जन समुदाय नही माने। नारे लगाते हुये अपनी मांगों के समर्थन में विरोध कर रहे थे।  हजारों सुरक्षा बल पुलिसकमियों ने उग्र भीड़ को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश किया किंतु भीड़ जो काफी उग्र हो चुकी थी भीड़ को आगे बढ़ने से बार-बार रोकने की कोशिश की गई लेकिन पुलिस कर्मि असफल रहे। आंदोलनों कारियो ने धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की  बढ़ती ही गयी और पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को जन सैलाब ने पीछे ढकेल दिया।
         इधर पुलिस अधिकारीयो ने माईक में समझाने के कोशिश कर रहे थे। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कई तरह से आंसू के गोले छोड़े  गये लेकिन भीड़ हिंसक बन गयी इसके बाद पुलिस कर्मियों के द्वारा पीटा जाने लगा तब आदिवासियों ने भी तीर चलाना शुरू कर दिया था।
        इसके परिणाम स्वरूप पुलिसकर्मियों को भी चोटे आयी थी। भीड़ ने थाना परिसर में तोड़-फोड़ कर दिये और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए व पुलिस कर्मियों अपने बचाव करने के लिये गोली चलना शुरू कर 40 चक्र (राउंड) फायरिंग भीड़ में चलाई गई। उसके बाद फिर 5 राउंड फायरिंग किया गया। इसमें कई आदिवासी समुदाय के सैकड़ो आदिवासी शहादत हुये लेकिन इनमें से 12 व्यक्ति को ही पहचान सके। 


 क्र. नाम    पिता        पता

1. जोगा          चिंता        पारापुर

2. भगतु          सहदेव      कम्हली

3. आयता      पायका      आंजर

4. सोंनधर              रतेगा

5. आयता      कमलू      चितरकोट

6. टागरु          कुमा      चितरकोट

7. अंतु             लच्छिधर    चितरकोट

8. चरण           प्रसादी        चितरकोट

9. टूरलू              कोली मांझी         बड़े धारउर

10. सुखदेव         सोमारू          चितरकोट

11. रयतु              चुका          चितरकोट 

12. लगु राम        साडरा


59 आदिवासियों पर दर्ज हुआ था मुकदमा 

आदिवासियों के खिलाफ 31 मार्च 1961 को हुए लोहंडीगुड़ा गोलीकांड के परिप्रेक्ष्य में पुलिस थाना लोहंडीगुड़ा ने क्षेत्र के 59 ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज कर सत्र न्यायालय जगदलपुर में पेश किया था  पुलिसिया आतंक झेलते कोर्ट कचहरी का चक्कर काटने वाले ग्रामीण जिनमें 1. अजांबर पिता महादेव धाकड़ कुम्हली, 2. लक्ष्मण पिता कोसा  कुम्हली, 3. मंगलू सिंह पिता लेखन विधायक गांव कुम्हली, 4. बोदा पिता देवा गांव बेलर, 5.गुड्डी पिता देवा गांव धाराउर, 6. सोमारू पिता काकर माड़िया, 7. मासो पिता मोरिया उसरीबेड़ा, 8. लक्ष्मीनाथ पिता सुखदेव गांव उसरीबेड़ा, 9. गडरु पिता साधु उसरीबेड़ा, 10.  जय सिंह पिता धवल गांव रायचूर, 11. बोदा पिता मंगलू कुम्हली, 12. कानू पिता धोई रायचूर, 13. भकतु पिता हरि सिंह मुंडीगुड़ा, 14. सुखालू पिता महादेव मुंडीगुड़ा, 15. बन सिंह पिता फागू मांदर, 16. जबरू पिताजी झितरु मांदर, 17. मुंडो पिता हिरमा तारा गांव, 18. दीनबंधु पिता रामेसर सुंडी गढ़िया, 19. कमल पिता हरि मुरिया मांदर, 20. लछीनधर पिता जानी चित्तरकोट, 21. रतिराम पिता महादेव कलार गड़िया, 22. कोंडा पिता बसमुरिया गांव भानपुरी, 23. चंदरु पिता चमरू तरागांव, 24. बलराम पिता सुखदेव मुरिया बड़ेपरोदा, 25. रामचंद्र  पिता  लखमु धाकड़ कुमली, 26. बोगा पिता कोला माड़िया एरण्डवाल, 27. बेंजा पिता तोंडा एरण्डवाल, 28. बोगा बूटू पिता चैतू एरण्डवाल, 29. मनी पिता बुद्धू कुरूषपाल, 30. रघुनाथ पिता सोमनाथ धाकड़ चित्रकोट, 31. चरन सिंह पिता हरिराम धाराउर, 32. बलदेव पिता मांडरु मुरिया धाराउर, 33. बोंडा पिता मोंडका कुम्हली, 34. रहमनु पिता अर्जुन चंदनपुर, 35. बैसाखू पिता बेदवा एरण्डवाल, 36. बण्डी पिता भादूमाडीया एरण्डवाल, 37. भोगिया पिता मासा धुरागांव, 38. दसमु पिता गोन्दू गुनापाल, 39. भोंदू पिता हड्डमा बेलर, 40. दशरथ गुरु ध्रुवा छिंदबहार, 41. टोटी पिता परजा उसरीबेड़ा, 42. सचिदा पिता झिटू उसरीबेड़ा, 43. भोगल पिता सुखदेव कतिया घोटिया, 44. सुंदर पिता छिदा माड़िया नेगानार, 45. सुखदेव पिता वैशाखु धुरवा नोनिरा, 46. अर्किट पिता लक्ष्मण रावत बड़ाजी, 47. रामया पिता बुद्धू मुरमा, 48. पाकलू पिता लखमा माड़िया मुरमा, 49. लखमा पिता महादेव घसिया सीरीसगुड़ा, 50. लक्ष्मण पिता मुका ध्रुवा बुरर्जी, 51. सुखदेव पिता थड़का मुरिया नारायणपाल, 52. पोधिया पिता दम्मी माड़िया आजर, 53. आयतु पिता धरु इरपा, 54. शुकुलधर पिता छेरकु चितर कोट, 55. हिरमा मडेया माड़ीया आंजर, 56. रामाधार पिता गंगा कुम्हली,  57. सुखदेव पिता सोमारू बड़े करबा, 58. सुबास पिता बासो बड़े करबा, 59. सोमारू पिता आयतु बड़े करबा शामिल है। इन 59 ग्रामीणों आदिवासियों का नाम लोहंडीगुड़ा गोली कांड प्रकाशक आदिवासी विकास परिषद जिला-बस्तर से लिया गया है। इस तरह से 59 आदिवासियों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

आर्थिक राशि व शहीद का दर्जा दिये जाने की मांग  

वहीं गोलीकाण्ड में शहादत देकर मृत्यु को प्राप्त करने वाले परिवार को शासन से सहयोग नही मिला ना ही शहीद का दर्जा दिया गया है। इस संबंध में आदिववासी जागरूक युवाओं का कहना है कि लोहंडीगुड़ा गोली कांड के लगभग 60 वर्ष बाद में जिला प्रशासन व राज्य सरकार के द्वारा मृतक परिवार को सहयोग और मृतक को शहीद का दर्जा नहीं दिये जाने से उन्होंने शहीद का दर्जा दिये जाने की मांग किया है। उनका कहना है कि आदिवासी समाज में ऐसी कई घटनाएं घटित हुई है लेकिन उनके परिवारजनों को आज तक न तो कोई सहयोग राशि दिया गया है न ही उन्हें शहीद  घोषित किया गया है।

विशेष रिपोर्ट-
पूरन सिंह कश्यप, सचिव
आदिवासी युवा छात्र संगठन जिला-बस्तर, छत्तीसगढ़

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