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टी बी जानलेवा बीमारी जरूर लेकिन उसका उपचार भी है, इसके लिये जांच कराना सबसे ज्यादा अनिवार्य-डॉ स्वर्णा रामटेके

टी बी जानलेवा बीमारी जरूर लेकिन उसका उपचार भी है, इसके लिये जांच कराना सबसे ज्यादा अनिवार्य-डॉ स्वर्णा रामटेके 

टी बी हारेगा देश जीतेगा अंतर्गत जन आंदोलन अभियान के तहत जिला टी बी फोरम की बैठक संपन्न 

सिवनी जिला टी बी रोग के मामले में 41 वे नंबर है


सिवनी। गोंडवाना समय।

टी बी हारेगा देश जीतेगा अंतर्गत जन आंदोलन अभियान के तहत राष्ट्रीय क्षय टी बी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत 15 मार्च 2021 दिन सोमवार को समाजिक संगठनों के साथ जिला चिकित्सालय सभा कक्ष में दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत क्षय रोग से मुक्त होने हेतु जिला टी बी फोरम की एक दिवसीय बैठक आयोजन किया गया।


जिसमें प्रमुख रूप से मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ के सी मेश्राम, डॉ स्वर्णा रामटेके जबलपुर संभाग मार्गदर्शक अधिकारी, जिला क्षय अधिकारी डॉ जयज काकोड़िया, श्री सुनील धुर्वे जिला समन्वयक अधिकारी सहित जिला फोरम के सदस्यों व अन्य अधिकारी कर्मचारियों की उपस्थिति में टी बी रोग की रोकथाम में भूमिका निभाने हेतु बैठक संपन्न हुई। 

डायबिटिज के लक्ष्ण वालों को टी बी की जांच अवश्य कराना चाहिये


इस दौरान टी बी रोग की गंभीरता से समझने की बात रखते हुये जबलपुर से पहुंची डॉ स्वर्णा रामटेके ने बताया कि कोरोना से ज्यादा गंभीर संक्रामक बीमारी टी बी है। रिकार्ड के अनुसार 1 मिनिट में 1 मरीज की मृत्यू टी बी की बीमारी से हो रही है। टी बी जानलेवा बीमारी जरूर है लेकिन उसका उपचार भी है।
            वहीं उन्होंने बताया कि डायबिटिज के लक्ष्ण वालों को टी बी की जांच अवश्य कराना चाहिये। टी बी की रोकथाम के लिये स्वास्थ्य विभाग का ही कार्य नहीं है इसके लिये सामाजिक जिम्मेदारी निभाये जाने की समाज के लोगों की भी आवश्यकता है। वर्ष 2025 में भारत को टी वी मुक्त करना है। इसके लिये सरकार, शासन, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग एवं जिला क्षय विभाग के द्वारा अभियान चलाया जा रहा है। 

टी बी रोग का नाम आता है तो दुनिया के देश भारत की ओर देखते है


उन्होंने बताया कि टी बी रोग का वैक्टीरिया को आप दोष नहीं दे सकते है यह समाज में पनपता रहता है। इसके लिये हमें वैक्टीरिया के साथ मरीज का पता लगाना सबसे ज्यादा अनिवार्य है तभी इसका उपचार संभव है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच, उपचार, दवाई तो मुफ्त उपलब्ध करवा ही रही है इसके साथ में पोष्टिक आहार के लिये 500 रूपये प्रतिमाह आर्थिक सहायता भी दे रही है।
            भारत देश में वर्ष 2016 से 2020 तक टी बी रोग के सबसे मरीज बढ़े है। वहीं दुनिया में भारत की यह स्थिति है कि जब भी टी बी रोग का नाम आता है तो दुनिया के बाकी देश भारत की ओर ही देखते है यह सोचते है कि भारत में टी बी रोग को कैसे मुक्त किया जाये।
                इसके लिये हमें हमें सबसे पहले गांव को मुक्त बनाने की जिम्मेदारी लेनी होगी, इसके बाद शहर को टी बी मुक्त बनाने का कार्य करना होगा। मध्य प्रदेश में 6 जिलों को आने वाले समय में टी वी मुक्त के लिये अभियान चलाया जाना है। वहीं यदि सभी समन्वय बनाकर मिलकर जनजागरूकता के साथ कार्य करें तो सिवनी 6 जिलों में शामिल हो सकता है।

सिवनी जिले के 8 ब्लॉकों में जांच व दवाई देने की है सुविधा-डॉ के सी मेश्राम 

कार्यशाला में सीएमएचओ डॉ के सी मेश्राम ने बताया कि सिवनी जिले के 8 ब्लॉकों में टी बी रोग के जांच की सुविधा है। वहीं इसके लिये 40 कार्यकर्ता जांच का कार्य कर रहे है। सभी ब्लॉकों में दवाई दी जाती है। टी बी हारेगा देश जीतेगा अंतर्गत जन आंदोलन अभियान के तहत राष्ट्रीय क्षय टी बी उन्मूलन कार्यक्रम के अभियान चलाया जा रहा है। टी बी रोग की रोकथाम के लिये जनजागरूकता के लिये सभी के सहयोग की आवश्यकता है। 

टी बी रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने की जवाबदारी है


कार्यशाला में जानकारी देते हुये बताया कि सिवनी जिले में टी बी रोग का पता लगाने के लिये जिले भर में जांच केंद्र संचालित है। वहीं खंखार की जांच के लिये 101 केंद्र है। वहीं सूक्ष्मदर्शी से 14 स्थानों पर जांच होती है। वहीं टी बी रोग के मरीज का पता लगने पर कई बार उससे करीब व आसपड़ोस के लोग डरते है जिससे टी बी का मरीज अपने आपकों को उपेक्षित महसूस करता है। ऐसे समय में शासन के समस्त विभागों, सामाजिक संगठनों व अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रहे नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वे टी बी रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने की जवाबदारी है।
            टी बी रोग का उपचार संभव है इसलिये इसमें कोई घबराने की बात नहीं है। मध्य प्रदेश में सिवनी जिला टी बी रोग के मामले में 41 वे नंबर है। वहीं यदि टी बी रोग को लेकर यदि हम गंभीर नहीं हुये तो इसके लिये दवाई भी नहीं बचेंगी इसके लिये हम सभी जिम्मेदार है क्योंकि बिना जांच कराने के कारण टी बी रोग का मरीज के द्वारा इसे समाज में फैलाया जाता है क्योंकि लक्षण के आधार पर जांच नहीं कराई जाती है और जागरूकता का भी अभाव है। इसलिये स्वास्थ्य विभाग के साथ सभी को समन्वय बनाकर टी बी रोग की रोकथाम के लिये जांच अवश्य कराये इसके लिये जागरूकता अभियान चलाने की सख्त आवश्यकता है। 

सिर्फ खांसी ही नहीं है टी वी रोग के लक्ष्ण 

कार्यशाला में जानकारी देते हुये बताया गया कि सिर्फ खांसी ही टी वी रोग का लक्षण नहीं है। इसके अलावा जिसका वजन कम हो रहा है, जिसे 14 दिन से अधिक बुखार आ रहा है। सीने में दर्द, भूख नहीं लगना भी इसके महत्वपूर्ण लक्षण है। इसलिये ऐसे लक्षण वालों को तुरंत जांच कराया जाना आवश्यक है। वहीं उन्होंने बताया कि खंखार की जांच अवश्य कराया जाना चाहिये इसके लिये खंखार किस तरह निकालना है इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के प्रशिक्षित कार्यकर्ता व आशा कार्यकर्ताओं द्वारा जानकारी दी जाती है।
            वहीं यह भी जानकारी दी कि खंखार से नेगेटिव आने के बाद कई बार टी बी रोग के लक्ष्ण रहने पर उनका एक्स्रा से जांच अवश्य कराया जाना चाहिये क्योंकि खंखार की जांच में नेगेटिव आने के बाद भी उसमें टी बी रोग पनपता रहता है इसलिये एक्स्रा की जांच आवश्यक है।
            कार्यशाला में जानकारी दी गई कि एचर्आव्ही और टी बी दोनो हो जाये तो मरीज के 22 प्रतिशत संभावना मृत्यू की बढ़ जाती है। इसलिये टी बी की जांच के साथ साथ एचआईव्ही की जांच अनिवार्य है। हमको मृत्यू नहीं चाहिये यह लक्ष्य बनाना होगा इसके लिये टी बी रोग के लक्षण वाले व्यक्तियों की जांच अनिवार्य है। कार्यशाला में बताया गया कि माईक्रोस्कोप से 5 हजार से 7 हजार तक वैक्टिीरिया दिखाई देते है लेकिन सीबीनॉट मशीन से 50 वैक्टिीरिया पर ही जांच हो जाती है। 

6 वर्ष के बच्चों की जांच सबसे बड़ी चुनौती 

कार्यशाला में डॉ स्वर्णा रामटेके ने जानकारी देते हुये बताया कि जिन परिवारों टी वी रोग के मरीज पाये जाते है तो उनके परिवार के सदस्यों की जांच की जाती है। वहीं परिवार में यदि 6 वर्ष तक के बच्चे रहते है तो ऐसे बच्चों में टी बी रोग को ढूढ़ना यानि की जांच करना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है।
        वैसे भी बच्चों का वजन इस उम्र में कम ही होता है। ऐसी स्थिति में बच्चों में टी बी की जांच करना अत्याधिक कठिन होता है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बच्चों की जांच बहुत सावधानी पूर्वक की जाती है। वहीं यदि 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में जांच के बाद टी बी रोग पाया जाता है तो ऐसे बच्चों के लिये 6 माह तक की दवाई दी जाती है। 

प्रचार ईवेंट मैनेजमेंट न हो 

कार्यशाला के दौरान डॉ स्वर्णा रामटेके ने कहा कि टी बी रोग की रोकथाम, उपचार आदि के लिये प्रचार-प्रसार के माध्यम से जनजागरूकता लाने के लिये विभाग द्वारा यदि कार्य किया जाता है तो इस बात का विशेष ध्यान रखा जावे कि प्रचार ईवेंट मैनेजमेंट में न बदल जाये।
             हमें टी बी रोग को भारत के साथ साथ सिवनी जिले से मुक्त करने के लिये जागरूकता अभियान के तहत नागरिकों के दिमाग में बार-बार दिमाग में भरना होगा कि यदि टी बी रोग के लक्षण वाले मरीजों की जांच त्वरित कराये ताकि टी बी रोग पाये जाने पर मरीज को उपचार भी तुरंत मिल सके तभी कुछ हो सकता है। वहीं उन्होंने कहा कि समीक्षा बैठक 6 माह में होती है तो जो पूर्व में बैठक हुई है, अभियान चलाया जा रहा है या विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है उसकी परिणाम अच्छा निकलना चाहिये इसके लिये सभी अपने अपने क्षेत्र में प्रयास करे।  

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