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आज की युवा पीढ़ी लोगों की कुबार्नी को भूलते जा रही है और उन्हे तो आजादी का मायने भी नहीं मालूम

आज की युवा पीढ़ी लोगों की कुबार्नी को भूलते जा रही है और उन्हे तो आजादी का मायने भी नहीं मालूम 

भारत कोई जमीन का तुकड़ा नहीं है बल्कि इसका कंण-कंण को लोग माता के रूप में मानते है

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हायर सेकेण्डरी स्कूल में आयोजित हुई संगोष्ठी


सिवनी। गोंडवाना समय।

देश को आजादी खैरात में नही मिली बल्कि इसके लिए देश के लाखों लोगों ने अपनी जान कुर्बान की है आज की युवा पीढ़ी लोगों की कुबार्नी को भूलते जा रही है और उन्हे तो आजादी का मायने भी नहीं मालूम इसी बात को केन्द्र एवं राज्य सरकार के निर्देश पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हायर सेकेण्डरी शाला में आयोजित संगोष्ठी के दौरान प्राचार्य श्री पी.एन. वारेश्वा ने व्यक्त किये। कार्यक्रम में विद्यालय के नन्दकिशोर राहगंडाले ने कहा हमारे बीच सेनानियों की वीर गाथाओं को याद करने का दिन है। इसी जिले में वीरांगना अवंती बाई का जन्म हुआ और महारानी लक्ष्मी बाई के योगदान को पूरा देश जानता है। श्रीमती रश्मि पांडे ने कहा सन 1923 के झंडा सत्यागृह की शुरूआत भी सिवनी से हुई जिसमें सिवनी के किराना व्यापारी हीरालाल सोनी भी नागपुर जेल में बंद रहे।

अपनी कुबार्नी तो दी मगर लोग उन्हें भुल गये है


श्रीमती समीना खान ने कहा की 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा प्रारंभ हुई थी जिसमें 358 किमी. में 47 गांव के 78 लोगों के साथ 78 सेकेण्ड में सैकड़ा हजार में हजार दस हजार में तब्दील होते गये। श्रीमती माया गढ़ेवाल ने कहा देश में अनेक स्वतंत्रता सेनानी हुये जिन्होने उग्र एवं उदारवादी नीति पर चलते हुए देश को आजाद कराया। श्रीमती राजेश्वरी धुर्वे ने कहा की 1857 से 1947 तक के बीच 75 वर्षो में अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुये जिन्होनें अपनी कुबार्नी तो दी मगर लोग उन्हें भुल गये है उनकी स्मृति जन-जन तक पहुंचाने के यह अमृत महोत्सव आयोजित किया गया है।

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महिलाओं के योगदान को भुलाया नही जा सकता

साबिर खान ने कहा की देश को आजादी 1857 में मिल जाती लेकिन आपसी समन्वय के अभाव में नही मिल पायी। इसके पश्चात 75 वर्षो के बीच नरम एवं गरम दल द्वारा सतत् प्रयास के फल स्वरूप हमें आजादी प्राप्त हुई। श्रीमती अकीला खान ने कहा आजादी के पहले हम अंग्रेजो के गुलाम थे हमें किसी भी कार्य के लिये अंग्रेजो से अनुमति लेनी पड़ती थी जो हमें गुलामी की ओर इशारा करती थी लेकिन आजादी के बाद हमें स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हुआ। अनिल पलवार ने कहा भारत कोई जमीन का तुकड़ा नही है बल्कि इसका कंण-कंण को लोग माता के रूप में मानते है। इसलिए यहां पर रहने वाला हर व्यक्ति को गुलामी मंजूर नही थी और सन 1947 में वह दिन आया जब अंग्रेजों ने इस देश को छोड़कर पलायन कर गये। विजय शुक्ला ने कहा कि देश में 1857 में अगर लक्ष्मीबाई का नाम लिया जाता है तो तत्याटोपे जैसे सेनानी को भी भुलाया नही जा सकता। शिखा कार्तिकेय ने कहा स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महिलाओं के योगदान को भुलाया नही जा सकता। वीरांगना झलकारी बाई रानी चेन्नम्मा सहित अनेक नाम है जिनका योगदान रहा।

उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करना चाहिए


डॉ शफी खान कहा कि जिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को स्वतंत्र कराकर एक सजीव आकार प्रदान किया है, उसे हमें निरंतर साकार रूप प्रदान करना है। हमें अपने स्थानीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जानकारी जुटाकर उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करना चाहिए। आयोजन के दौरान सुधीर सिंह ठाकुर,अभिलाष मिश्रा, सचेन्द्र मिश्रा, विद्यावाला राजोरिया, अंजना राय, विजयलक्ष्मी विसेन, पूजा पांडेय, टी.व्ही. शिव, सुनिता तिवारी, शंकर सनोडि?ा, शाहीना परवीन,  राजकिशोर दुबे, राजेश श्रीवास्तव, सादिक रूम्बी, पी.एस. ठाकुर, राजकुमार डहेरिया, सुदीक्षा डोगरें, मीना गौर, शशि लखेरा , अंजुलता धुर्वे वहाब खान सहित समस्त शिक्षक शिक्षिकाओं ने अपने विचार व्यक्त किये एवं देश भक्ति गीतों से ओत प्रोत किया । कार्यक्रम का सफ लता पूर्वक संचालन शिखा कार्तिकेय एवं साबिर खान के द्वारा किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार रमेश श्रीवास्तव एवं राष्ट्रपति पुरूस्कार शिक्षक जवाहरलाल राय सहित मीडिया कर्मी उपस्थित थे। कार्यक्रम नियाज अली का विशेष योगदान रहा।

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