शिवराज सरकार में योग्यता को दरकिनार कर, अधिकांश चाटूकार, शराब-जमीन कारोबारी के साथ शासकीय सेवक भी बने अधिमान्य पत्रकार
मध्यप्रदेश में अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर बनाये जाने की घोषणा के बाद उठ रहे सवाल
सिवनी। गोंडवाना समय।
मध्य प्रदेश वैसे भी मुन्ना भाई एमबीएसएस जैसे डॉक्टर बनाने के मामले पूरे देश में प्रसिद्धी पा चुका है। इसके चक्कर में कई मौत के मुंह में समा चुके है सफेदफोश जेल की हवा खा चुके है। एम पी गजब है इसलिये कहा जाता है क्योंकि यहां लाभ देने के लिये योग्यताएं दरकिनार कर दी जाती है बस आपने चाटूकारिता के साथ सांठगांठ के गुण होने चाहिये।
मध्य प्रदेश में अधिमान्यता पत्रकार दिये जाने के मामले में ऐसा ही कुछ हुआ है कुछ ऐसे भी पत्रकार है जिनकी शैक्षणिक योग्यता पर तो सवाल उठता ही है उसके साथ में पत्रकारिता से कोई लेना देना भी है और पत्रकारिता के क्षेत्र में यदि हिन्दी में ही शुद्धलेख लिखवाने के लिये बैठाल दिया जाये और निष्पक्षता के साथ शुद्धलेख की जांच हो जाये तो समझ आ जायेगा कि मध्य प्रदेश में अधिमान्यता पत्रकार का स्तर क्या है ? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में बनाये अधिमान्य पत्रकारों में जो धरातल में कार्य कर रहे उनका बनना तो जायज व जरूरी भी है लेकिन जो योग्य नहीं है, जिनका पत्रकारिता से धरातल स्तर पर कोई वास्ता नहीं है उन्हें अधिमान्यता पत्रकार बनाकर लाभ दिया जाना सवालों के घेरे में रहा है। अब उन्हें मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कोरोना महामारी के दौर में फ्रंट लॉइन वर्कर की सौगात भी दे दिया है।
सांठ-गांठ से अधिामन्यता लेने वालों को भी मिलेगा लाभ
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर मानते हुए हर तरह की मदद देने का आश्वासन दिया जाने की घोषणा की गई है। इसके बाद मध्यप्रदेश में इस मामले को सवाल उठ रहे है। आखिर वास्तविकता में धरातल में काम करने वाले शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकार जो कि अधिमान्य नहीं है क्या उन्हें कोरोनावायरस से लड़ने वाले फ्रंटलाइन वर्कर नहीं माना जाएगा और यदि उन्हें कोरोना वायरस हो जाता है तो उन्हें शासन से किसी प्रकार की मदद नहीं मिलेगी यह बहस का मुद्दा बन गया है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ सहित प्रदेश सरकार के मंत्री, विधायकगणों ने भी गैर अधिमान्य पत्रकारों को भी फ्रंट लाइन वर्कर माना जाए इसके लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।
वहीं जब से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर माने जाने की बात कहा है तब से ही कई पत्रकार और पत्रकार संगठन भी सामने आ गए हैं और अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। शिवराज सरकार के कार्यकाल के दौरान अधिमान्य पत्रकारों की जांच हो तो उनमें से कुछ ऐसे है जिन्होंने उच्च स्तरीय सांठ गांठ कर जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर का कार्ड बनवा लिया है ऐसे में यदि सिर्फ अधिमान्य पत्रकारों को ही फ्रंट लाइन वर्कर माना जाता है तो यह उन पत्रकारों के साथ न्याय नहीं होगा तो बिना किसी भय के फील्ड में काम करते हुए जोखिम उठाते हैं।
शराब ठेकेदार के नाम जारी हो चुका अधिमान्य पत्रकार का कार्ड
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में मध्यप्रदेश में जो लोग वास्तविकता में पत्रकारिता करते हैं उन्हें अधिमान्य पत्रकार बनाने और मानने के लिए सरकार तैयार नहीं है और जो लोग फजीर्वाड़ा करते हैं उन्हें अधिमान्य पत्रकारिता का कार्ड आसानी से जारी कर दिया जाता है।
मध्य प्रदेश शासन के द्वारा उज्जैन के विवेक जायसवाल नामक एक शराब ठेकेदार के नाम से राज्य स्तरीय अधिमान्य कार्ड जारी कर दिया गया था। बताया जाता है कि विवेक जायसवाल पत्रकार नहीं बल्कि एक बड़े शराब ठेकेदार हैं जिन्हें सरकार के द्वारा अधिमान्य कार्ड जारी किया जा चुका है और वह अधिमान्य कार्ड के आधार पर बड़ा पत्रकार बनने का प्रयास भी करते रहे।
जमीनों के कारोबारी को भी जारी हो चुका है कार्ड
मध्यप्रदेश में सिर्फ शराब कारोबारियों को ही राज्य शासन के द्वारा अधिमान्य पत्रकारिता का कार्ड जारी किया गया हो ऐसा नहीं है बल्कि जमीन का कारोबार से जुड़े हुए लोगों को भी बकायदा उपकृत किया गया है। बताया जाता है कि विवादास्पद जमीनों के कारोबारी राजकुमार उर्फ राजू कुकरेजा को भी अधिमान्य पत्रकार की सूची में शामिल किया जा चुका है। इनके अलावा कुछ बिजनेसमैन और नेता व अफसरों को भी अधिमान्यता के कार्ड दिए जाने की खबर है।
बताया जाता है कि इंदौर नगर निगम के बेलदार मोहम्मद असलम खान के घर जब लोकायुक्त का छापा पड़ा था तब काला धन और बड़ी संख्या में सरकारी दस्तावेजों के अलावा एक अधिमान्यता का कार्ड भी जप्त किया गया था। कुल मिलाकर यदि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार वर्तमान परिस्थिति में सिर्फ अधिमान्य पत्रकारों को ही फ्रंटलाइन वर्कर मान रही है तो फिर उन्हें शराब ठेकेदारों और जमीन के कारोबारियों को भी फ्रंटलाइन वर्कर मानना पड़ेगा जिन्हें प्रदेश सरकार ने राज्य स्तरीय अधिमान्यता का कार्ड दिया हुआ है। जानकारों की मानें तो यदि सरकार जिन लोगों को अधिमान्यता का कार्ड देती है उसकी जांच करा ली जाए तो कई ऐसे बिजनेसमैन नेता अधिकारियों के रिश्तेदार अधिमान्य पत्रकार मिल जाएंगे जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है जबकि जो लोग अच्छी और सच्ची पत्रकारिता करते हैं उन्हें अधिमान्यता का कार्ड दिया ही नहीं जाता ऐसी परिस्थिति में यदि कोरोना वायरस जैसी महामारी के बीच में भी सिर्फ अधिमान्य पत्रकारों को ही फ्रंटलाइन वर्कर माना जाता है तो फिर यह उन पत्रकारों के साथ न्याय नहीं होगा जो बिना किसी भय लगातार काम कर रहे हैं और सच्चाई को उजागर कर रहे हैं।
100 करोड़ के आसामी शराब ठेकेदार को भी जारी हो चुका है अधिमान्य कार्ड
मध्यप्रदेश में सिर्फ उज्जैन के शराब ठेकेदार के नाम से राज्य स्तरीय अधिमान्यता का कार्ड जारी नहीं किया गया बल्कि ग्वालियर के शराब कारोबारी लल्ला उर्फ रामस्वरूप शिवहरे व लक्ष्मी नारायण शिवहरे के नाम से भी अधिमान्यता का कार्ड जारी किया जा चुका है जिसका खुलासा इनकम टैक्स अफसरों के द्वारा की गई छापामार कार्रवाई के बाद हुआ था जब शराब कारोबारियों के घर से गुमनाम संपत्तियों व टैक्स चोरी से संबंधित दस्तावेज के अलावा मध्यप्रदेश शासन के राज्य स्तरीय अधिमान्यता का कार्ड भी मिला था जो यह बताने के लिए काफी है कि मध्यप्रदेश में असली पत्रकार तो दरकिनार है लेकिन इस तरह के दबंग लोगों को अधिमान्य पत्रकार का कार्ड राज्य सरकार जारी करते रही है।