Type Here to Get Search Results !

गोंडियन स्त्री अपने-आप में एक संवेदना, धैर्य, संयम, ममता, त्याग, जननी और जीवन है

गोंडियन स्त्री अपने-आप में एक संवेदना, धैर्य, संयम, ममता, त्याग, जननी और जीवन है

गोंडियन समाज एवं परिवार के लिए धरनी, अम्बर, प्रकृति है, सृष्टि है

लैंगिक भेद नही है, लड़की के जन्म लेने पर खुशियां मनाई जाती हैं

गोंडियन स्त्री की सोच उच्चतम एवं चरित्र सर्वोत्तम होती है 

गोंडवंशीय स्त्री, (संक्षिप्त सांस्कृतिक जानकारी)       


लेखक-विचारक
के. एल. उइके,
सिवनी, मप्र   
मो.नं.-9425839203                                     

गोंडियन समाज में स्त्री सदैव वंदनीय और पूज्यनीय रही है। स्त्री परिवार तथा समाज की आत्मा है, बिना स्त्री यह संसार निरर्थक है। गोंडियन स्त्री अपने-आप में एक संवेदना है, धैर्य है, संयम है, ममता है, त्याग है, जननी है, जीवन है, वह गोंडियन समाज एवं परिवार के लिए धरनी है, अम्बर है, प्रकृति है, सृष्टि है। 

गोंडियन पुरूषों से एक कदम आगे बढ़कर सब काम करती हैं

जब हम अपने सम्पूर्ण जीवन में एक गोंडियन स्त्री की बात करते हैं तो पाते हैं कि वह परिवार और समाज में पुरूषों का कंधा से कंधा मिलाकर हर काम करती हैं। यही नहीं बल्कि गोंडियन पुरूषों से एक कदम आगे बढ़कर सब काम करती हैं तथा एक साथ एक ही समय में अलग-अलग भूमिका का निर्वाहन भी करती है, चाहे वह बच्चों का लालन-पालन हो, खेत-खलिहान या जंगल-पहाड़ का काम हो वह सभी जगह पुरूषों से पीछे नही रहती है। इसलिए गोंडियन परिवार और समाज में देवी अर्थात शक्ति का स्वरूप मानी जाती है। 

अलग-अलग भूमिका मे सदैव देवीदाई और माता का स्वरूप होती है

गोंडियन स्त्री अपने-आप में धार्मिक और परम सात्विक होती है। वह नहा-धोकर अपनी रसोई में चूल्हे को चूना अथवा छूही से लीप-पोत नहीं लेती तब तक वह खाना नही बनाती, जब वह अपने घर में झाड़ू लगाती है तब वह ध्यान रखती है कि परिवार मे किसी को झाडू न लगे, वह इसे अपसगुन मानती है तथा इससे अनिष्ट न हो जाये ऐसा सोचती है क्योंकि उस समय वह गोंडियन बाहरी-बटोरन माता होती है जो कालरा जैसी भयानक बीमारी को भगाने वाली देवी मानी जाती है, इस प्रकार जब वह मवेशियों के रहने के स्थान सार में झाडू लगाती है तब वह बरकत की देवी मानी जाती है, जब वह स्नेह और प्रेम से अपने परिवार को भोजन परोसती है तब वह अन्न की देवी माता अन्नकौरी हो जाती है, जब वह रात मे अपने घर की दीया जलाती है तब वह माता दीयामोती हो जाती है, जब वह अपने बच्चे को स्तन-पान कराती है, दूध पिलाती है तब वह माता चावरमोती हो जाती है, अपने परिवार पर जुल्म और अत्त्याचार पर वह अंगारमोती हो जाती है तथा रात मे अपने पूरे परिवार की सुरक्षा के लिए वह माता रातमाई हो जाती है, अपने परिवार के संकट के समय वह बूढ़ी माई हो जाती है, वह माता अपने परिवार के दुख और सुख में देवी दाई हो जाती है, जब वह घड़ा लेकर कुआं पानी लेने जाती है उस समय  किसी गोंडी पुरूष का किसी कार्य हेतु जाते समय उसका सामना उस स्त्री से हो जाता है तो अपशगुन मानकर वह आदमी  घर लौट जाता है क्योकि उस वक्त वह माता खप्परधारी होती है लेकिन वही स्त्री पानी से भरा घड़ा लेकर लौटती है  तब वह माता कलसाहिन हो जाती है उस समय कोई आदमी शुभ कार्य के लिए जाते हुए उसका सामना होता है तो वह कार्य की सफलता का द्योतक माना जाता है, इस प्रकार गोंडियन स्त्री अपने परिवार और समाज के लिए अलग-अलग भूमिका मे सदैव देवीदाई और माता का स्वरूप होती है लेकिन इसके बावजूद वह खुद को समाज की एक साधारण स्त्री मानती है। इसके बाद पत्नी, माता और दादी-नानी बनकर स्त्रीधर्म का पालन करती है। 

गोंडियन स्त्री अपने माता-पिता की सम्पत्ति में दावा नही करती है

गोंडियन स्त्री पण्डे/पण्डिन के रूप मे समाजसेवा भी करती हैं, गोंडियन स्त्री अपने माता-पिता की सम्पत्ति में दावा नही करती है लेकिन माता-पिता खुशी से सम्पत्ति में कुछ हिस्सा देना चाहें तो ले लेती है। गोंडियन कुल में स्त्री कुछ बंदिश एवं वर्जनाओं का सहर्ष पालन भी करती हैं जैसे ऋतुचक्र के दौरान रसोई मे नही जाती, कुआं से पानी नही लाती, दीया नही लगाती, घर मे झाडू नही लगाती, मवेशियों के सार मे नही जाती,  जंगल तथा बाहर जाना भी वर्जित होता है, इस बात के लिए घर के बुजुर्ग तथा सभी सदस्यों का नैतिक समर्थन होता है क्योकि इस दौरान स्त्री के साथ कई समस्याऐं उत्पन्न होती है इसलिए बुजुर्गो की मान्यता होती है कि वह इस दौरान अधिक से अधिक आराम करे। बुजुर्गों की सोच होती है कि ऐसा सहयोग करके कुछ हद तक उसकी परेशानी को कम किया जा सकता है। 

उसका परिवार एवं समाज में ऊंचा स्थान एवं मान-सम्मान होता है

गोंडियन स्त्री अपने परिवार एवं समाज मे स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होती है, उसका परिवार एवं समाज में ऊंचा स्थान एवं मान-सम्मान होता है, उस पर अकारण बंदिश नहीं रहता। गोंडियन समाज में स्त्री पर अत्याचार तथा जुल्म करना, जिंदा जलाना या पर्दे मे रखना जैसी कुरीति नही होती है।  स्त्री अपने पति के प्रति अटूट श्रध्दा एवं विश्वास रखती है इसलिए गोंडयन पुरूष सदैव अपनी स्त्री के नैतिक गुणों एवं उसके सतीत्व की प्रशंसा करते हुए पाये जाते हैं। गोंडियन स्त्री की सोच उच्चतम एवं चरित्र सर्वोत्तम होती है। 

वह पुत्रवधु न होकर कुलवधु मानी जाती है

वह माता के रूप मे स्नेहमयी, पत्नी रूप मे समर्पण और असीम हृदयवाली होती है। एक स्त्री के बिना पुरूष का जीवन निर्रथक एवं अधूरा है। हम भाग्यशाली हैं जो गोंडियन समाज में जन्म लिए हैं जहां स्त्री का मान-सम्मान सर्वोपरि है, लैंगिक भेद नही है, लड़की के जन्म लेने पर खुशियां मनाई जाती हैं, उसे दहेज लोभियों के द्वारा जिंदा नही जलाया जाता, वह पुत्रवधु न होकर कुलवधु मानी जाती है, वह  देवी तुल्य साक्षात् शक्ति का स्वारूप मानी जाती है तथा उसे गोंडियन समाज में उच्च स्थान प्राप्त है, वह सबकी पूजनीय है।  


लेखक-विचारक
के. एल. उइके,
सिवनी, मप्र   
मो.नं.-9425839203    

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.