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आज आदिवासी समाज में शिक्षित वर्ग की महिलाएं भी राजनीति में प्रमुखता से सामने आने में कतराती हैं

आज आदिवासी समाज में शिक्षित वर्ग की महिलाएं भी राजनीति में प्रमुखता से सामने आने में कतराती हैं

राजनीति और आदिवासी महिला नेतृत्व


लेखिका-विचारक
अर्चना मार्कों
जयस जिला मीडिया प्रभारी डिंडोरी

वर्तमान राजनीति में आदिवासी महिलाओं की भागीदारी बेहद सूक्ष्म है, यह महिला सशक्तिकरण के दावों को धराशायी करता प्रतीत होता है। समाज और राष्ट्र के बेहतरी में महिलाओं का योगदान प्रमुख होता है। अगर हम किसी समाज के बेहतर होने की कल्पना करते हैं तो हमें उस समाज के महिलाओं कि भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा यदि हम इसमें असफल होते हैं तो यह बेहद चिंतनीय और विचार योग्य है।आखिर स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हमारा आदिवासी समाज राजनीति और उसके समझ व राजनीति सूझ बूझ से परे क्यों है ? अगर इस पर दृष्टि डाला जाए तो आदिवासी समाज का शिक्षा और आर्थिक स्तर मुख्य बाधक सामने आता है। जो आदिवासी समाज के राजनीति में मजबूत पकड़ बनाने में एक बाध्य दीवार का काम करता है।
        समाज के बुद्धिजीवियों और चिंतकों को इस बात पर अमल करना चाहिए कि आदिवासी समाज को जो सीधापन और भोलापन का उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका परिणाम आदिवासी समाज ने भुगता है, हमारे मूलभूल अधिकारों की लड़ाई बेहद जरूरी है लेकिन बेहतर शिक्षा की लड़ाई बेहद कमजोर दिखता है। शिक्षा के महत्व को समाज के उन वर्गों तक पहुंचाना जरूरी है जो एक ऐसी मानसिकता में निर्भर हैं, जो समझते हैं कि शिक्षा सिर्फ आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए है लेकिन इसके बीच का अंतर उन्हें ज्ञात नहीं कि आर्थिक विकास किसी और पर निर्भर करती है। 

आखिर हमारा समाज छला क्यूं जाता है

आज हम राजनीति के दृष्टि से इतने पीछे क्यूं हैं, आखिर हमारा समाज छला क्यूं जाता है। इसका मुख्य कारण है राजनीति के लाभ और राजनीति में पकड़ कितना जरूरी है किसी समाज के बेहतरी के लिए। महिलाओं की भागीदरी हमें बढ़ाना होगा, अपने समाज के इस मानसिकता से लड़ना होगा जो महिलाओं को राजनीति सामाजिक से परे रखना अपना अभिमान समझते हैं, यह बेहद हानिप्रद है।
        आज के नए पीढ़ी को जो युवा और किशोर हैं महिला या पुरुष दोनों को इस बात की समझ देना जरूरी है कि राजनीति समझ और सूझ बूझ अपने अधिकारों को बचाए रखने में कितना महत्वपूर्ण है। आज आदिवासी समाज में शिक्षित वर्ग की महिलाएं भी राजनीति में प्रमुखता से सामने आने में कतराती हैं, इसका मुख्य कारण है कि हम तमाम तरह की शिक्षा तो उनको मुहैया करा रहे हैं लेकिन राजनीतिक परख उन तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। 

तो उन्हें भी यही संघर्ष करना पड़ेगा जो आज हम कर रहे हैं

मैंने अपने उम्र के कई युवतियों से राजनीति और सामाजिक विषय पर चर्चा की लेकिन उनके नजरिए से यह बेहद घटिया और बेहद निम्न स्तर का कार्य लगता है, उनके मानसिकता पर समाज के पितृसत्तात्मक रवैए का इतना असर पड़ा है कि इस पर वह बात ही नहीं करना चाहती और इसे वह नफरत भरी निगाहों से देखते हैं, और जो महिला इस पर बात करना चाहती हैं। समाज के बंदिशों में उसे जकड़ कर चुप करा दिया जाता है।
        आज हमें यह देखना चाहिए कि आखिर हम नई पीढ़ी को इसके बारे में कितना बता रहे हैं, मेरे विचार से तो यह शून्य है, सिर्फ हम उन्हें पाठ्यक्रम के सिवाय और कुछ नहीं बता रहे हैं, ऐसे में क्या वह आगे इस संघर्ष को जारी रख सकते हैं, अगर जारी रख सकते हैं तो कितना और किस तरह प्रभावशाली रह सकता है। हम आदिवासी सरकार और आदिवासी नेतृत्व कायम करने की लाख बात कर लें लेकिन अगर नई पीढ़ी को यह नहीं सिखा सकते कि राजनीति और इसके लाभ क्या हैं तो उन्हें भी यही संघर्ष करना पड़ेगा जो आज हम कर रहे हैं, उन्हें संघर्षों के दिनों में सीखना पड़ेगा जो आज हम कर रहे हैं।

आदिवासी क्षेत्रों की राजनीति स्थिति को देखें तो आदिवासी महिलाओं की भागीदारी शून्य ही लगती है

आज तमाम आदिवासी क्षेत्रों की राजनीति स्थिति को देखें तो आदिवासी महिलाओं की भागीदारी शून्य ही लगती है, यह आखिर किसकी गलती है, क्या हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं, उन्हें आखिर खुले तौर पर सामने आने से रोका क्यूं जा रहा है, हम आदिवासी समाज में महिलाओं को शक्ति के रूप में पेश कर तो रहे हैं लेकिन वास्तविक रूप से आज के राजनीति में उनके स्थान को कहां पर पाते हैं, तमाम संगठन अपने महिला सशक्तिकरण की बात कहे लेकिन परिपूर्णता कहीं नजर नहीं आती है। आज भी सभी पुरुषसत्तात्मक रूप से काबिज हैं, यह पुरुषों की अलग मानसिकता है कि वह स्वयं को महिलाओं से आगे रखना चाहते हैं और अपना एक ओहदे को संरक्षित रखना चाहते हैं।

महिलाओं की भूमिका मुख्य रूप से होना चाहिए

आप तमाम तरह के निष्कर्ष लीजिए, शोध कीजिए कि आखिर एक समाज को नेतृत्व करने के क्या करें। इस पर आपका एक परिणाम यह निकलेगा कि नारियों, महिलाओं की भूमिका मुख्य रूप से होना चाहिए। अगर आपको एक ऐसा समाज गढ़ना चाहते हैं जो नेतृत्व करें जिसे राजनीति परिदृश्य से मजबूत और सशक्त करना चाहते हैं आपको बराबरी से महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करना ही होगा, आपको तमाम संगठनात्मक रूप से जिम्मेवारी स्वतंत्र रूप से महिलाओं के लिए निश्चित करना होगा, आपको युवा नारियों को इस संकल्पना से तैयार करना होगा कि राजनीति और सामाजिक रूप से यह नेतृत्व करें, आदिवासी समाज के तमाम बुद्धिजीवियों और नेतृत्वकतार्ओं को इस पर अमल करना होगा।


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