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विश्व के आदिवासियों की एकता का प्रतीक है विश्व आदिवासी दिवस

विश्व के आदिवासियों की एकता का प्रतीक है विश्व आदिवासी दिवस


गोंडवाना समय अखबार
लेखक-विचारक 
डॉ. दिग्विजय सिंह मरावी
(जयस प्रदेश सचिव म.प्र.)

4000 आदिवासी भाषा, 90 देशों में फैले 476 मिलियन आदिवासी, विश्व के कोने-कोने में होकर भी जिनकी संस्कृति में एक आधारभूत समानता है, ऐसे आदिवासी समुदाय को विश्व आदिवासी दिवस की बधाई और जोहार। इसके साथ ही ग्वालियर चंबल संभाग में बाढ़ से पीड़ित, दुखित प्रभावित परिवारो के प्रति आदिवासी समुदाय की ओर से हम संवेदना व्यक्त करते हैं। 

            आदिवासियों की सांस्कृतिक विशेषताए प्रकृति के अनुरूप और अनुकूल होती है। जिसके कारण ही संयुक्त राष्ट्र संघ हो या भारत के संविधान हो उनमें अनेक विशेषाधिकार आदिवासियों के लिए अंकित है। विश्व स्तर की सबसे बड़ी संस्था जो मानवीय मूल्यों और विश्व के समस्त जीवों के कल्याण और अस्तित्व के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।
            उसी प्रयास के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के ध्यानाकर्षण में आया कि 21 वीं सदी में भी विश्व के अनेक देशों में निवासरत जनजातीय (आदिवासी, ट्राइबल) संयुक्त राष्ट्र संघ ने इंडीजीनस पीपुल्स कहा है, जो कि आज भी गरीबी अशिक्षा, स्वास्थ्य, सुविधाओं के अभाव एवं बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित हंै। इन समस्याओं के निराकरण के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा ने 1994 में प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया, तब से 9 अगस्त के दिन सम्पूर्ण विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। 

किसी को पीछे नहीं छोड़ने का आदिवासियों और समाज का एक आव्हान है

वास्तव में ये दिवस आदिवासी समुदाय को एक संदेश भी देता है कि अपने संस्कृति और विशेषताओं के संरक्षण के साथ-साथ अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संगठित होकर संघर्ष करें, एक संदेश है कि बिखरे पड़े समाज को संगठित करके अपनी समस्याओं से सामुहिक मुकाबला करें। विश्व आदिवासी दिवस 2021 का थीम है कि किसी को पीछे नहीं छोड़ने का आदिवासियों और समाज का एक आव्हान है।
        इस थीम को हम सभी समझे इसका समाज हित में आदर्श वाक्य की तरह उपयोग करें।हमें किसी भी परिस्थिति में समाज के किसी भी व्यक्ति को पीछे नहीं छोड़ना बल्कि हर उस इंसान के समस्या से सामुहिक लड़ाई लड़नी है जो समस्या ग्रस्त हैं।
            हर उस मकसद के खिलाफ आवाज बुलंद करना है जो मानवीय मूल्यों और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और इस लड़ाई में भी हमें सबकी सहभागिता सुनिश्चित करनी है जहां कोई भी छूट जाए। संघर्ष हो या खुशी के पल सबको मिलकर उन पलों को जीना है यही संदेश 2021का थीम हमें देता है।विश्व स्तर पर आदिवासियों को समाजिक एकता स्थापित करना हमारा उद्देश्य हो ताकि विभिन्न सभ्यताओं,संस्कृति के वाहक आदि समुदाय को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए विश्व पटल पर उठा सकें।

क्या चाहते हैं देश के आदिवासी ?

भारत के आदिवासियों की मांग और सरकार से निवेदन है कि उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं एवं भौगोलिक परिस्थितियों के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूलित संस्कृति के संरक्षण करते हुए आदिवासियों के विकास के प्रावधान जो संविधान में अंकित है उनका पूरी पारदर्शिता से पालन हो, संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा पत्र हो या भारत के संविधान में आदिवासी क्षेत्रों में बसे आदि समुदाय के लिए एक अलग और विशेष शासन प्रशासन और अधिकारों का प्रावधान है जैसे पांचवीं अनुसूची,छठवीं अनुसूची, वनाधिकार कानून, पेसा एक्ट आदि शामिल हैं।इन सभी संवैधानिक प्रावधानों को लागू कराने रोज आदिवासी समुदाय सरकारों से मांग कर रही है परंतु इनकी मांग पूर्ण रूप से पूरी नहीं हो पा रही है, या मांगों को आंशिक तौर पर ही पूरी की जाती रही है जो एक समता मूलक समाज निर्माण के उद्देश्य को हासिल करने के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है।पूरी निष्ठा और ईमानदारी से यदि संवैधानिक प्रावधानों को लागू कर अक्षरश: पालन यदि किया जाता है तो आदिवासियों का विकास तो होगा ही और साथ-साथ उनकी संस्कृति बची रहेगी।
        आदिवासी क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने के कारण अभयारण्य निर्माण, बांध निर्माण एवं खनन जैसे कार्य इन क्षेत्रो में कराए जाते हैं इन सभी कार्यों में आदिवासियों के साथ-साथ वहां निवास करने वाले अन्य समुदाय को भी विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है। कुछ परिवार तो ऐसे होते हैं जो आजादी के बाद अनेकों बार विस्थापन को झेलते आ रहें हैं। 
            आदिवासी विकास विरोधी नहीं हैं परंतु उनकी भी मान सम्मान और आत्मस्वाभिमान है चूंकि विस्थापन से आदिवासियों के प्रभावित क्षेत्र की संस्कृति,उनकी जमीन उनकी प्राकृतिक समझ और प्रकृति के जुड़ाव को बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है परिणामस्वरूप अक्सर देखा जाता है आदिवासियों में असंतोष पैदा होता है। 
            असंतोष ना फैले उसके लिए विस्थापितों के पुनर्वास की समुचित और गुणवत्ता पूर्ण व्ययस्था करने का संकल्प हो साथ ही जिन परियोजनाओ या उपक्रमों के लिए विस्थापितों ने जमीन दी है उनको उन परियोजनाओं में साझेदारी पीढीं दर पीढ़ी के लिए निर्धारित हो,इतना ही नहीं उस क्षैत्र में व्ययसाय के सभी साधनों और विकल्पों में विस्थापितों को प्राथमिकता देना सुनिश्चित हो ताकि विस्थापन के बाद भी विस्थापितों का अपने जमीन से जुडाव बचा रहे। आदिवासियों क्षेत्रों में गैर आदिवासी क्षेत्रों के तुलना में हमेशा मुवावजा कम दिया जाता है अत: इस विसंगति को भी दूर करना होगा ताकि इन क्षेत्रो में उत्पन्न हो रहे विस्थापितों के अंसतोष को कम किया जा सके।

आदिवासी समुदाय की क्या हो जिम्मेदारी ?

विश्व आदिवासी दिवस विश्व के आदिवासियों को एक मंच पर लाने का एक प्रतीक और संदेश भी देता है।इसलिए इस दिन आदिवासियों को संकल्प लेना चाहिए कि अपने अस्तित्व,संस्कृति पहचान और प्रकृति को बचाने पार्टी,संगठन या विचारधारा को त्यागकर केवल समाजहित में आगे बढ़ें,इतना ही नहीं आदिवासी समुदाय के लोगों को गैर आदिवासियों को यह विश्वास भी दिलाना होगा कि आदिवासियों को प्राप्त संवैधानिक अधिकार आदिवासियों के संस्कृति, प्राकृतिक समझ को बचाते हुए समृद्धि का एक रास्ता है जिससे किसी भी गैर आदिवासियों को प्रतिकूल प्रभाव या  अधिकारों का हनन नहीं होगा।

आदिवासी भाषा-बोली को अपने जीवन में आत्मसात करना होगा

आदि समुदाय और उस संस्कृति के वाहको को प्रकृति और उसके संरक्षण के लिए उनके परंपराओं को संरक्षित करना होगा साथ ही उन तमाम परंपराओं को त्यागना या सुधार करना होगा जिन्हे समय के साथ विकसित करने की जरूरत है।अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रहे आदिवासी भाषा-बोली को अपने जीवन में आत्मसात करना होगा । इन तमाम उद्देश्यों के लिए आदिवासी समुदाय को शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा एक ऐसी शिक्षा का जो व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें जो समुदाय में उत्कृष्ट राजनैतिक,समाजिक,लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक और व्ययसायिक चरित्र का निर्माण कर सके और ये केवल सरकार के प्रयासो संभव नहीं हो सकता इसके लिए सरकार के साथ-साथ समाज को भी प्रयास करने होगें।इसमे शिक्षित युवाओं की भूमिका परिणामी और प्रभावी हो सकती है।पुन: क्रांतिकारी उम्मीदों के साथ #विश्व आदिवासी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।


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