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छिंदवाड़ा में 52 वर्ष बाद रजिस्ट्री हुई शून्य तो सिवनी जिले में कब्जा के आधार पर हो गई थी गैर आदिवासी की रजिस्ट्री

छिंदवाड़ा में 52 वर्ष बाद रजिस्ट्री हुई शून्य तो सिवनी जिले में कब्जा के आधार पर हो गई थी गैर आदिवासी की रजिस्ट्री

आदिवासी की 26 एकड़ जमीन को गैर आदिवासी ने कब्जा के आधार पर कर लिया खरीद बिक्री 

आदिवासियों की जमीन बिक्री का सिवनी जिले में रिकार्ड बनाना निरंतर है जारी 

वर्षों से चल रहा आदिवासियों की जमीन का खेल

न आदिवासी जनप्रतिनिधि रोक पाये और न ही सामाजिक संगठन

अन्य जनप्रतिनिधियों से उम्मीद कर ही नहीं सकते 




सिवनी। गोंडवाना समय। 

आदिवासी बाहुल्य मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जमीनों को खरीदने-कब्जा करने, उत्खनन करने, क्रेशर प्लांट लगाने, व्यापार-व्यावसाय का करने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। आदिवासियों की जमीनों का खेल बड़े ही शातिरता, चतुराई, चालाकी से बिना किसी रोक-टोक के मध्य प्रदेश के अन्य जिलों के साथ साथ सिवनी जिले में भी किया जा रहा है। यहां तक कि इस खेल में राजनैतिक दलों के नेताओं से लेकर प्रशासनिक अधिकारी व भूमाफियाओं का बड़ा मजबूत गठबंधन है। इन सब ने मिलकर आदिवासियों को लुटने में और बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। दु:ख इस बात का है कि आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने और आदिवासी समाज के सामाजिक संगठनों ने और आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वालों ने भी शोषित पीड़ित आदिवासियों को न्याय दिलाने का प्रयास नहीं किया। ऐसी स्थिति में अन्य जनप्रतिनिधियों से उम्मीद तो कर ही नहीं सकते है। 

आदिवासियों की जमीन नक्शा से लेकर, खसरा किस्तबंदी में भी कम हो गई

प्रताड़ित आदिवासियों ने न्याय पाने के लिये संघर्ष करने की कोशिश भी किया है तो वह मजदूरी व उधार कर्जा लेकर हार ही गया है और यदि कहीं जीत भी गया है तो वह अपनी जमीन पर कब्जा नहीं ले सका है। फर्जीवाड़ा राजस्व के अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस तरह से अंजाम दिया है कि रिकार्ड सुधरवाने में ही एक पीढ़ी आदिवासियों की गुजर गई परंतु उनका रिकार्ड नहीं सुधर पाया है। आदिवासियों की जमीन का सीमाकंन से लेकर राजस्व रिकार्डों में इस तरह हेरफेर किया गया है उनकी जमीन नक्शा से लेकर, खसरा किस्तबंदी में भी कम हो गई है और दूसरे कि जमीन बढ़ती चली गई। 

 थक हार कर अपने हक अधिकार की लड़ाई हार जाते है

पुरानी पीढ़ी तो चली गई लेकिन अभी भी नई पीढ़ी भी माननीय न्यायालयों में अपनी चप्पल भी नहीं घिसवा पा रहे है क्योंकि अधिकांश तो बिना चप्पल जूते के ही पहुंचते है क्योंकि वे इतने सक्षम भी नहीं है कि न्याय पाने के लिये आने जाने में किराया ही जुटा सके तो माननीय न्यायालय का खर्च कैसे उठाते होंगे और वह थक हार कर अपने हक अधिकार की लड़ाई हार जाते है। यदि जीत भी गये तो आदेश के बाद भी अपनी जमीन को वापस नहीं ले पाते है। दैनिक गोंडवाना समय समाचार पत्र जनता की अदालत में कुछ ही प्रमाणिक उदाहरण सरकार, शासन-प्रशासन के समक्ष पूर्व में प्रस्तुत कर चुका है वहीं बीते दिनों छिंदवाड़ा में हुये निर्णय के बाद पुन: प्र्र्रस्तुत कर रहा है। जिसकी हकीकत ये सभी जानते है पर आज तक कोई इन्हें न्याय नहीं दिला पाया है आखिर क्यों यह बड़ा सवाल है इसके लिये कौन जिम्मेदार व जवाबदार है? 

कब्जा के आधार पर गैर आदिवासी ने कैसे बेच दिया था आदिवासी की जमीन ?

पुलिस थाना बण्डोल, राजस्व निरीक्षक मंडल बंडोल अंतर्गत मौजा ग्राम पटरा प.ह.नं. 29 तहसील सिवनी जिला-सिवनी में वर्तमान खसरा नंबर 154/1 रकबा 2.00, 154/3 रकबा 2.00, 154/4 रकबा 2.00, 154/5 रकबा 3.39 जमीन जो लगभग 26 एकड़ जमीन होती है। वह जमीन आदिवासी के नाम पर वर्ष 1917 से राजस्व रिकार्ड में अंग्रेजों की जमाने से दर्ज थी लेकिन आजादी मिलने के बाद आजाद भारत के राजस्व रिकार्ड को संभालने वाले कर्णधारों ने धीरे धीरे करके कूटरचित षडयंत्रपूर्वक रचना रचने का प्रयास किया लेकिन उसमें भी वह सफल नहीं हो पाये तो राजस्व रिकार्ड में कब्जा ही दर्ज कर दिया। कब्जा के आधार पर राजस्व विभाग के खिलाड़ियों ने ऐसा खेल खेला कि गैर आदिवासी ने कब्जा के आधार पर 26 एकड़ जमीन को बकायदा रजिस्ट्री करके 30-11-1991 को बेच दिया और नामांतरण भी राजस्व विभाग ने कर दिया । जबकि आदिवासियों के नाम पर ही उक्त जमीनों की त्रणपुस्तिका भी भाग-एक और भाग-दो भी बनाकर राजस्व विभाग ने दिया जिसमें राजस्व विभाग के पटवारी महोदय ने भाग-एक लेकर जो भागे है आज तक वापस नहीं आये है लेकिन भाग-2 आज भी गरीब आदिवासियों के पास मौजूद है। इस मामले में आदिवासी परिवार मजदूरी करके न्याय की भीख मांगता रहा परंतु उसे कहीं न्याय नहीं मिल पाया और संभवतय: आज भी भटक रहे है न्याय पाने के लिये वहीं इस मामले में जनजाति आयोग ने पहल जरूर किया था परंतु वहां भी कलेक्ट्रेट सिवनी द्वारा जो जांच रिपोर्ट बनाकर भेजी गई उसमें भी आदिवासियों को कहीं कोई न्याय की उम्मीद नजर नहीं आई थी। 

छिंदवाड़ा में रजिस्ट्री शून्य कर 52 साल बाद आदिवासी को वापस दिलाई जमीन

ब्याज के रूपये वसूलने के एवज में सूदखोर द्वारा आदिवासी किसान की लाखों रूपये की जमीन हड़प लिया गया था। सूदखोर ने लगभग 4 एकड़ जमीन महज 10 हजार रुपए में अपने नाम करवा लिया था। जमीन रजिस्ट्री के दौरान आदिवासी किसान की जाति राजपूत बताई गई। सुनारी मोहगांव के पीड़ित आदिवासी परिवार को एसडीएम न्यायालय से न्याय मिला। एसडीएम श्री अतुल सिंह ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए करीब 52 साल पहले कराई गई नियम विरुद्ध रजिस्ट्री को शून्य घोषित किया। तहसीलदार को जमीन वापस कराने का आदेश दिया है।

10 हजार रुपए देकर करीब 4 एकड़ जमीन अपने नाम करा ली गई

जिले के ग्राम बौहनाखैरी के निवासी श्री श्याम पुत्र श्री लखन लाल खड़िया ने एसडीएम न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था। श्री श्याम ने बताया था कि सुनारी मोहगांव में उसकी पैतृक जमीन है। वर्ष 1969 में सकलराम द्वारा धोखे से विक्रय पत्र बनवा लिया गया, तो वहीं 1975 में उक्त जमीन श्रीराम रघुवंशी और दयाराम रघुवंशी के नाम दर्ज कर दी गई थी। श्याम ने बताया कि उसके दादा दमड़ी ने श्रीराम रघुवंशी से कुछ पैसे ब्याज पर लिए थे। दयाराम और श्रीराम रघुवंशी ने छल करते हुए महज 10 हजार रुपए देकर करीब 4 एकड़ जमीन अपने नाम करा ली गई। नियमानुसार उक्त जमीन में उसका व उसके परिवार का नाम दर्ज होना चाहिए। एसडीएम श्री अतुल सिंह ने प्रकरण की जांच कराई। इसके साथ ही सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों को सुना व साक्ष्य देखे गए।

गैर आदिवासी के नाम जमीन का नामांतरण करना पाया गया

इसके आधार पर आदिवासी किसान की जमीन बिना कलेक्टर की अनुमति के विक्रय पत्र बनाना और गैर आदिवासी के नाम जमीन का नामांतरण करना पाया गया। ऐसे में एसडीएम न्यायालय द्वारा विक्रय पत्र रजिस्ट्री को शून्य करने आदेश जारी किया गया। साथ ही आदिवासी खड़िया परिवार के वारिसों के नाम भूमि में दर्ज करने आदेश जारी किया गया। एसडीएम न्यायालय द्वारा रजिस्ट्री शून्य करने के साथ तीखी और स्पष्ट टिप्पणी भी की गई है।

गैर आदिवासी व्यक्ति के नाम विक्रय पत्र और नामांतरण विधि विरुद्ध है

एसडीएम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पाया कि श्रीराम रघुवंशी और दयाराम रघुवंशी द्वारा आदिवासी व्यक्ति की जमीन का अपने नाम विक्रय पत्र बनवाया गया। कलेक्टर या फिर सक्षम न्यायालय की अनुमति के बिना आदिवासी व्यक्ति की जमीन का गैर आदिवासी व्यक्ति के नाम विक्रय पत्र और नामांतरण विधि विरुद्ध है, जो किसी भी स्थिति में मान्य नहीं किया जा सकता है। अनावेदकों ने भू राजस्व अधिनियम का दुरुपयोग किया है, जिसके बाद आदेश जारी किया गया। भू राजस्व संहिता की धारा 170 ख की उपधारा 3 की शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए रजिस्ट्री शून्य करने और जमीन आदिवासी परिवार का नाम दर्ज करने का आदेश दिया।

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