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गोंडी भाषा को संरक्षित करने आॅनलॉइन के साथ गांव-गांव जाकर पढ़ा रही वैशाली धुर्वे

गोंडी भाषा को संरक्षित करने आॅनलॉइन के साथ गांव-गांव जाकर पढ़ा रही वैशाली धुर्वे 





कमलेश गोंड, राष्ट्रीय संवाददाता
बालाघाट। गोंडवाना समय।

मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले की छोटे से गांव में निवासरत वैशाली धुर्वे गोंडी भाषा से वंचित गोंडियन समुदाय तक पहुंचाने के लिये गोंडी आॅनलाइन क्लासेस की सार्थक पहल के बीच भाषा को संरक्षण करने का प्रयास जारी है। विगत एक वर्ष से गोंडी भाषा को सीखने सिखाने के लिये लगातार इस ओर प्रयासरत हैं।


जैसा कि भारत में गोंडी भाषा को समझने और बोलने वालों की संख्या करीब 2 करोड़ है। 

गोंडी भाषा विश्व संस्कृति की जननी हैं 


मूलत: मध्य गोंडवाना में आज भी गोंडवाना के लोग इसे बोलते, जानते-समझते हैं लेकिन वर्तमान पीढ़ी अपनी गोंडी भाषा से कोसों दूर हैं। भाषाविदों के लिहाज से गोंडी भाषा विश्व संस्कृति की जननी हैं तथा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है, जो सिंधु घाटी सभ्यता से संबंध रखती हैं। जिसका सबूत हमें आसानी से सिंधु घाटी सभ्यता के शिलालेखो से मिलता है। फिलहाल  गोंडी भाषा को बोलने मे या लिखने के लिए कोई साधन नही था परन्तु गोंडी भाषा के जानकारों ने लिपि को सहेज कर साबित कर दिया हैं कि गोंडी भाषा में समृद्ध साहित्य और सांस्कृतिक इतिहास हैं, जिसकी खास वजह से आॅनलाइन पढ़ाने का मूल मकसद हैं। 

भाषा का लुप्त होना किसी बड़ी त्रासदी से कम नहीं है

भाषा के लुप्त होने के साथ न सिर्फ उस भाषा के बोलने वाले खत्म हो जाते हैं बल्कि उनका गौरवपूर्ण इतिहास भी खत्म हो जाता है। विद्वानों का मानना है कि जिस समाज की संस्कृति खत्म करनी हो या समाज को खत्म करना हो तो उसकी भाषा को खत्म कर दो, उनकी संस्कृति स्वत: खत्म हो जायेगी। आज भारत में कोयतुरों की भाषा को खत्म की कगार में रखा जा रहा हैं लेकिन यही भाषा उनकी अस्मिता से जुड़ी हुई है। 

बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा के माध्यम से दी जाये

भाषा को बचाने का एकमात्र तरीका यही है कि वर्तमान पीढ़ी के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा के माध्यम से दी जाये तथा घरेलु स्तर में दैनिक बोलचाल में लाया जाये। वर्तमान समय में, गोंडी आॅनलाइन क्लासेस के माध्यम से गोंडी भाषा सीखने के अच्छे लाभ प्राप्त करेंगे। जिसके लिए उन्हें गोंडी भाषा की लिपि के बारे में जानने वाले उन शिक्षकों से मदद मिलेगी जो लिपि के सिद्धांतों को हर सगा तक पहुंचाने की मदद करेंगे । जिससे लुप्त हो रहीं भाषा को संरक्षित किया जा सकेगा।

पिछले एक वर्ष से जूम एप के माध्यम से पढ़ाया जा रहा हैं गोंडी भाषा

गोंडी आॅनलाइन क्लासेस एक आदर्श के साथ अपना कार्य उत्कृष्टता से कर रही हैं। गोंडी सीखने के लिये आॅनलाइन जुड़ रहे लोगो को सीखने की प्रक्रिया तीव्र हो रही है। वही गोंडी बोलने और समझने की प्रक्रिया शिथिल हैं जो यह एक संवेदनशील मुद्दा है जिसे समय रहते संभालने की जरूरत है। वहीं इस दिशा में गोंडी क्लासेस की संचालिका रायताड़ वैशाली धुर्वे अपनी भूमिका और दायित्व का जिम्मेदारी के साथ निभा रहीं हैं। पिछले 1 अक्टूबर 2021 से शुरूआत गोंडी आॅनलाइन क्लासेस जूम एप के माध्यम से निशुल्क पढ़ाया जा रहा हैं और बीते 1 अक्टूबर को पुरे एक वर्ष पूर्ण हो गया हैं। इस लम्बे सफर में आॅनलाइन क्लासेस को जारी रखने के लिये गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन हर संभव रूप में मददगार की भूमिका में रहा हैं। 

सर्वप्रथम पहाँदी पारी कुपार लिंगो ने गोंडी भाषा को विस्तारित किया

गोंडियन समुदाय के लिये गोंडी भाषा सीखने सिखाने के लिये अनमोल उपहार हैं। गोंडी भाषा गोंड कोयतुरों की भाषा है, कहा जाता है कि जब पृथ्वी की उत्पती हुई और इस पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ तब यह भाषा का भी जन्म हुआ। सर्वप्रथम पहाँदी पारी कुपार लिंगो ने गोंडी भाषा को और भी विस्तारित किया। तत्पश्चात अनेक भाषाविद महापुरूषो ने भाषा का रूपातंरण किया है।

गोंडी भाषा को सीखने सिखाने की पहल में प्रयासरत वैशाली धुर्वे का ऐतिहासिक कदम


सफलता पूर्वक एक वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 1 अक्टूृबर 2021 दिन शुक्रवार को गोंडी सिखा रहीं वैशाली धुर्वे ने एक स्कूल में पहुंचकर बच्चों को गोंडी भाषा के जानकारी दी। वही कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने से बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए हैं क्योंकि महामारी के दौरान सभी ग्रामीण बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी। जिससे शिक्षा में अस्थायी तौर पर व्यवधान भर नहीं, बल्कि अचानक से इसका अंत सा हो गया हैं जो कि बच्चों को शिक्षा से वंचित होने के कारण हैं लेकिन इसे पुन: स्थापित करने के लिये जागरूक युवाओं को आगे आना होगा एवं गरीबी में रहने वाले या उसकी दहलीज पर खड़े बच्चों  के हितों के बलिदान की भरपाई के लिए, जिम्मेदार युवाओं को अंतत: इस चुनौती के लिए कमर कसना होगा। इसके साथ ही जिस प्रयास से गोंडी भाषा को सीखने सिखाने की पहल में प्रयासरत वैशाली धुर्वे के ऐतिहासिक कदम में सहयोग करना होगा। गोंडी भाषा के सूत्रीकरण के लिये ये आॅनलाइन सेवायें एवं कार्यशालाएं देश भर में आयोजित करना चाहिए जिससे कोइतुर समुदाय के लोगों के लिए सामाजिक और भाषा संवाद की और कोइतुर संस्कृति को बढ़ावा मिलेगी।

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