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सूदखोरों का अनुसूचित क्षेत्रों में आतंक, अन्याय, शोषण जारी, आखिर प्रशासन की है क्या लाचारी ?

सूदखोरों का अनुसूचित क्षेत्रों में आतंक, अन्याय, शोषण जारी, आखिर प्रशासन की है क्या लाचारी ?

सूदखोरों की प्रताड़ना से एक शिक्षक की मृत्यू पर परिजनों ने लगाये गंभीर आरोप 


काशीराम बरकड़े, संवाददाता
नारायणगज। गोंडवाना समय। 

जनजाति बाहुल्य क्षेत्र व अनुसूचित क्षेत्रों में सूदखोरों का आतंक व सितम थम नहीं रहा है। इनके चुंगल में सिर्फ किसान, मजदूर या निर्धन वर्ग ही नहीं वरन शासकीय सेवक नौकरी पेशा वाले भी बुरी तरह फंसे हुये है।


सूदखोर की प्रताड़ना का सिलसिला निरंतर बरकरार है अब एक ओर शासकीय सेवक शिक्षक शोषण का शिकार हो गये है। वहीं सूदखोरों को लेकर बुजुर्गों ने एक कहावत भी बनाया है कि जिसमें कहा जाता है कि ''न खाता न बही, सूदखोर जो कहें वही सही'' है। 

सूदखोरो का ब्याज पटाये या तो अपनी जान गंवाएं या घर-द्वार बेचे


अंगे्रज भी लगान वसूली करते थे लेकिन आजाद भारत में नागरिकगण मामूली सी रकम लेकर मूलधन से भी कई गुना लौटाने के बाद भी सूदखोरों के ब्याज के जाल में फंसकर अपने आप को छुटाने वाले बहुत ही कम कहीं सुनने को मिलता है। अधिकांशतय: सूदखोरों से रूपये लेने के बाद निरीह नागरिकों का हश्र यही होता है कि वे या तो अपनी जान गंवाएं या घर-द्वार बेचे। खुलेआम मनी लांड्रिंग एक्ट का उल्लंघन हो रहा है। बिना रजिस्ट्रेशन के सूदखोरी का कारोबार चल रहा है। जिले से कुछ चंद लोगो ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है वे भी नियमों का पालन नहीं कर रहे। क्या लाइसेंस की समय अवधि खत्म हो जाने के बाद भी वर्तमान में कितने लाइसेंस संचालित हैं, इसे पारदर्शिता के साथ प्रशासन जनता के समक्ष रखने में कंजूसी दिखाता है। 

नारायणगंज से लेकर मण्डला जिले भर में फैला है सूदखोरो को मकड़जाल 


सूदखोरी का मकड़जाल समूचे नारायणगज से लेकर मंडला जिले भर में फैला हुआ है। पूर्व में ही सूदखोरी से तंग आकर यहां कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं। पूर्व में भी दैनिक गोंडवाना समय ने सूदखोरों के आतंक, शोषण के खिलाफ लगातार शासन प्रशासन तक पीड़ितों की पहुंचा रही है चूंकि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के जनजाति वर्ग हो रहे है। वहीं अनुसूचित क्षेत्रों में भी आदिवासी गिरवी प्रथा से प्रताड़ित है। जिसका फायदा एक पान ठेला को संचालित करने वाले व्यापारियों से लेकर एक आलीशान दुकान खोल कर सोना चांदी का व्यापार करने वाले भी उठा रहे है। यदि ईमानदारी से प्रशासन इसकी सूची तैयार कर मुहिम चलाये तो प्रताड़ना के शिकार सैकड़ों परिवार और आदिवासी युवकों की लंबी सूची मिलेगी। वहीं कुछ लोग तो इन्हीं से तंग आकर आत्महत्या भी कर चुके हैं इसकी जानकारी भी सामने आ सकती है। 

गिरवी प्रथा अनुसूचित क्षेत्र में बंद है फिर भी धड़ल्ले से चल रहा गिरवी का धंधा 


पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में जहां पेसा एक्ट भी लागू है, संविधान के प्रावधान के अनुसार सूदखोरी का धंधा अर्थात ब्याज में पैसे लेने का धंधा नहीं किया जा सकता। इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश शासन और जिला प्रशासन की ओर से समस्त ब्याज खोर लाइसेंस रद्द किए गए हैं, अधिकांश लोगों के लाइसेस रिनुअल भी नहीं है। ऐसी ही प्रताड़ना के आरोप एक शिक्षक की मृत्यू के बाद उनके परिवारजनों ने लगाए हैं। ब्याज खोरी के चलते और सूदखोर की प्रताड़ना के कारण जहर खाने से मृत्यू गई है। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर किसके संरक्षण पर यह ब्याज का धंधा चल रहा है। वहीं सूदखोरों ने ऐसे कितने लोग हैं और भोले-भाले ग्रामीणजन आदिवासी है जिन्हें आज भी ब्याज के जाल में उलझा कर रखे हुए हैं।

तात्कालीन कलेक्टर के कार्यकाल में लगा सूचना पटल भी गायब  

कभी किसी समय ग्राम पंचायत खैरी और पडरिया के मध्य से दो सूचना पटल गांव के मुख्य बाजारों में लगाए गए थे, उस वक्त तत्कालीन कलेक्टर के के खरे के निर्देश पर लगाए गये थे। नगर के व्यापारियों द्वारा लोगों को जागरूकता के अभाव से उस सूचना पटल को ही गायब कर दिया गया है। आज वह सूचना पटल नगर के चारों और घूमने के बाद भी नहीं मिल रहा है, आखिर वह सूचना पटल भी कहां है जिस पर स्पष्ट उल्लेख था कि यदि किसी व्यक्ति के द्वारा ब्याज का धंधा किया जाता है तो पीड़ित व्यक्ति अनुभाग अधिकारी राजस्व के पास आवेदन कर सकता है और संबंधित व्यक्ति को बिना ब्याज के उसका धन वापस दिलाया जाएगा।

सबसे ज्यादा आदिवासीयो के जेवर गिरवी

मण्डला जिला पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, यहां पर निवास करने वाले सभी वर्गों में से सबसे अधिक आदिवासी वर्ग ही निवास करते है, अधितर लोग गांव कस्बो में ही निवास करते है। छोटी छोटी बीमारी व अस्वस्थता के साथ अन्य आवश्यकताओं के लिये मजबूरी में ब्याज पर पैसा लेते जहां उन्हें पैसा के बदले जेवर गिरवी रखवाया जाता है। वह भी मन चाहे ब्याज दर पर लिया जाता है ना देने की स्थिति पर उन्हें डराया धमकाया जाता है, जिसके कारण कई परिवार पलायन कर चुके हैं तो कुछ परिवार ऐसे है जिनके मुखिया ने आत्महत्या करने जैसा मार्ग अपना चुके है। 

महामारी काल में सूदखोरों के जाल में फंस रहे लोग

शहर के साथ ही गाँवों में महामारी की तरह फैली साहूकारी व्यवस्था और किसानों के दर्द को उकेरती कहानी है। ''सवा सेर गेहूँ'' मुंशी प्रेमचंद ने इस कहानी में साहूकारी व्यवस्था के बोझ तले लगातार दबाए जा रहे और पीड़ित किए जा रहे किसानों के दर्द को उकेरा और सवाल उठाया था कि आखिर कब तक किसान साहूकारों द्वारा कुचला जाता रहेगा। इसी कहानी के किरदार शंकर की तरह ही कई पीड़ित आपको आज भी असल जिंदगी में देखने को मिल जाएंगे। जी हां, महामारी काल में बीमारी ही नहीं सूदखोरों के जाल में भी फंसते चले गए। शहर से लेकर देहात तक सूदखोरों का नेटवर्क फैला हुआ है। हाल यह है कि गांव किसान फसल बेचकर कर्च चुका रहे हैं पर सूदखोरों की ब्याज खत्म नहीं हो पा रहा है। नगर में भी इस तरह के एक नहीं कई मामले हैं।

पूर्व में कलेक्टर को किये थे शिकायत व मांगे थे सूची 

वहीं इस मामले में नारायणगंज ब्लॉक के निवासी धन्नी परस्ते समाजसेवी कहते है कि यह एक पूरे जिले मे बड़ी समस्या है, उन्होंने मांग किया है कि ऐसे मामलों में जिला प्रशसन को जल्द सज्ञान में लेना चाहिये वहीं जितने भी नगर में लाइसेंस सब की जांच होना चाहिये नहीं तो हम बड़ा आंदोलन करेंगे। वहीं इस संबंध में रतन वरकड़े, जयस जिला अध्यक्ष मंडला का कहना है कि पूर्व की घटनाओं को देखते हुए हमने जिला कलेक्टर को लिखित में सूचित कर चुके थे और जिसकी हमने सूची भी मांगी थी परंतु आज दिनांक तक जिला कलेक्टर ने हमें किसी प्रकार से सूचित नहीं किया है यह एक गंभीर लापरवाही है।


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