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शिवराज सरकार द्वारा लागू किया पेसा कानून हमें मंजूर नहीं, संवैधानिक अधिकारों की मांग को लेकर आदिवासियों ने निकाली पदयात्रा

शिवराज सरकार द्वारा लागू किया पेसा कानून हमें मंजूर नहीं, संवैधानिक अधिकारों की मांग को लेकर आदिवासियों ने निकाली पदयात्रा 

5 वी अनुसूचि का उचित क्रियान्वयन, अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद का नियमानुसार गठन की मांग 

केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के गृहजिले में मवई से मण्डला तक पैदल पहुंचेंगे आदिवासी 


मण्डला। गोंडवाना समय।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में संवैधानिक अधिकारों की मांग को लेकर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के गृह जिला आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले के मवाई से जिला मुख्यालय मण्डला तक पैदल यात्रा आदिवासी ग्रामीणों ने 4 से दिसंबर से प्रारंभ कर दिया है जो कि 7 दिसंबर 2021 को मण्डला जिला मुख्यालय पहुंचेगी।
        


वर्तमान में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है लेकिन उसके बाद भी मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में अपने संवैधानिक अधिकारों को लेकर आदिवासियों को पदयात्रा निकालना पड़ रहा है।
          

वहीं केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते जो स्वयं आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते है उनके अपने गृह जिले में ही आदिवासियों को अपने संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिये पदयात्रा निकालने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। 

पेसा अधिनियम की आत्मा को खत्म करने का प्रयास किया गया-हीरा उद्दे


पदयात्रा लेकर निकले हीरा उद्दे ने दूरभाष पर गोंडवाना समय से चर्चा करते हुये बताया कि 4 दिसंबर 2021 को मवई फड़ाफेन ठाना से प्रारंभ हुई संवैधानिक अधिकार पद यात्रा अपने हक अधिकारों की मांग को बैनर, तख्ती में लेकर कड़ाके की ठण्ड में ही निकल पड़े है।

यह पदयात्रा इसलिये निकाली जा रही है क्योंकि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार लगभग 24-25 वर्षों बाद अनुसूचित क्षेत्र के लिये पेसा नियम 2021 लेकर आई जो कि केंद्रीय पेसा कानून की मंशा के बिल्कुल विपरीत है, उस नये नियम में पेसा कानून की आत्मा और उसमें आदिवासी क्षेत्रों के लिये जो परिकल्पना थी उसे खत्म करने का कार्य किया गया है। वहीं आदिवासी में सबसे ज्यादा विस्थापन वर्षों षडयंत्रपूर्वक होते आ रहा है और निरंतर विस्थापन जारी है। 

वन अधिकार के तहत भी ऐतिहासिक अन्याय हुआ 


वर्ष 2006 में वन अधिकार मान्यता कानून आया जिसके तहत आदिवासी क्षेत्रों में वर्षों से हो रहे अन्याय को रोकने का एक छोटा प्रयास हुआ और माना गया कि औपनिवेशिक काल के दौरान तथा स्वतंत्रभारत में राज्य वनों को समेकित करते समय उनकी भूमि पर वनाधिकारों और उनके निवास को पर्याप्त रूप से मान्यता नहीं दी गई थी जिसके परिणामस्वरूप वन भूमि में निवासी करने वाली उन अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के प्रति ऐतिहासिक अन्याय हुआ है जबकि वन पारिस्थितिकी प्रणाली को बचाने और बनाये रखने के लिये अभिन्न अंग है आदिवासी समाज ही मुख्य भूमिका निभा रहा है। 

इसके साथ पदयात्रा में विशेष मांग यह भी रखी गई है कि अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद का गठन एवं कार्यप्रणाली संवैधानिक नियमानुसार किया जावे, वहीं 5 वी अनुसूचि का उचित क्रियान्वयन किया जाये, वहीं पेसा कानून 1996 के स्थान पर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित 2021 में संसोधन को लेकरआदिवासी में नाराजगी व्याप्त है। 

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