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रोज पढ़िए खबर गोंडवाना समय में, सम्पूर्ण आदिवासी समाज को जुटाना है। भारत देश के सारे मूल निवासियों को, अब यहां पर एक ही मंच पर लाना है।।

रोज पढ़िए खबर गोंडवाना समय में, सम्पूर्ण आदिवासी समाज को जुटाना है। भारत देश के सारे मूल निवासियों को, अब यहां पर एक ही मंच पर लाना है।।

एक भी पत्रकारिता नहीं था समाज में, भटकते थे हमको भी खबर छपाना है। आप बीती एक सत्य घटना को लेकर, अपने अखबार गोंडवाना समय में लाना है।।


कवि-रचनाकार
संत राम सल्लाम
मूलनिवास-भैंसबोड़
जिला-बालोद (छत्तीसगढ़)


गोंडवाना समय समाचार पत्र की भूमिका को बयां करती इस रचना को रचने वाले कवि रचनाकार संत राम सल्लाम ने हकीकत को अपने शब्दों में संजोकर जागरूकता का लाने का प्रयास किया है। दैनिक गोंडवाना समय की पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यप्रणाली को बड़े गहन गंभीरता के साथ अध्ययन करने के बाद शायद इस रचना को लिखित रूप प्रदान किया है। जिसमें संतराम सल्लाम ने यह भी बताने का प्रयास किया है कि दैनिक गोंडवाना समय की आवाज को बुलंद किस तरह करना है। दैनिक गोंडवाना समय अखबार परिवार रचनाकार संतराम सल्लाम जी का और उनकी कलम का हार्दिक आभार सेवा जोहार करता है। 

गोंडवाना समय के काल चक्र को,
किस-किस ने सही में पहचाना है।
जिसने संभाला-समझा समय की चाल को
उसी ने पुरातन संस्कृति को जाना है।।
उल्टा-सीधा, दांया  और  बायां  की,
इस रहस्य को प्रकृति  से जाना है।
लग्न-फेरे में वाम दिशा में घूमाते जो, 
अपने समाज का नियम नहीं माना है।।
वृक्ष में लिपटते है अंजाना सा बेला,
कभी भी राह भटकना नहीं जाना है।
कैसे- कैसे चढ़ना है मुझे बुलंदी पर,
उस बेला ने ये अपने मन में ठाना है।।
गोंडवाना समय वृहद स्वतंत्र अखबार,
वास्तविकता की आवाज को उठाना है।
सत्य घटना सच्चाई की आवाज  को,
सारे आम जनता के बीच में लाना है।।
बुलंद आवाज से सच्चाई की ताकत को,
कलम की धार से लिखकर के दिखाना है।
अपने समाज सारे मूलनिवासी की गौरव,
एक भी हकीकत बातें नहीं छिपाना है।।
एक भी पत्रकारिता नहीं था समाज में,
भटकते थे हमको भी खबर छपाना है।
आप बीती एक सत्य घटना को लेकर, 
अपने अखबार गोंडवाना समय में लाना है।।
रोज पढ़िए खबर गोंडवाना समय में,
सम्पूर्ण आदिवासी समाज को जुटाना है।
भारत देश के सारे मूल निवासियों को,
अब यहां पर एक ही मंच पर लाना है।।
हमारी पत्रकारिता भी है एक पहचान,
गोंडवाना समय अखबार की निशान।
आत्म रक्षा की खातिर धनुष बाण धरते है,
लहलहाती फसल भी उपजाते किसान।।



कवि-रचनाकार
संत राम सल्लाम
मूलनिवास-भैंसबोड़
जिला-बालोद (छत्तीसगढ़)

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