दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने साधन, संसाधनों के अभाव में भी देश भर में पहुंचा दिया गोंडवाना आंदोलन
शोषित, पीड़ित, वंचित, किसान-श्रमवीरों की आवाज उठाने मंच व झण्डा का मार्ग प्रशस्त किया
गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के 14 जनवरी को जन्म दिवस पर विशेष रिपोर्ट
सिवनी। गोंडवाना समय।
गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन के महानायकयय, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना आंदोलन को पूरे देश में पहुंचाने के लिये पैदल चलकर, साधन सुविधा को ध्यान में रखते हुये आजीवन कार्य किया।
गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने पद के स्वार्थ को दरकिनार कर सबसे पहले शोषित, पीड़ित, वंचित समाज की मजबूत व सशक्त आवाज बनने में अपनी जिम्मेदारी निभाया। आदिवासी समाज के वोट सहारे सत्ता शासन तक पहुंचकर लाभ कमाने वाले राजनैतिक दलों ने अनेकों बार दादा हीरा सिंह मरकाम को लालबत्ती और संवैधानिक पदों पर विराजमान करने के लिये प्रयास किया लेकिन उन्होंने शोषणकारी राजनैतिक दलों के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
यदि दादा हीरा सिंह मरकाम भी चाहते तो शोषणकारी राजनैतिक दलों के हाथ मिलाकर संवैधानिक पदों व लालबत्ती जैसी अनेक सुविधायें का सुख भोग सकते थे लेकिन दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने ऐसा कभी नहीं किया वरन वे हमेशा शोषित, पीड़ित, वंचित समाज के साथ किसान-श्रमवीरों की आवाज को मजबूती के साथ शोषणकारी सत्ताधारियों के खिलाफ उठाते रहे।
देश के विकास के लिये वे गांव को स्मार्ट बनाने की सोच रखते थे, गांव समृद्धशाली होगा तो देश का उन्नति व प्रगतिशील होगा यह वे हमेशा कहते थे। इसलिये दादा हीरा सिंह मरकाम का नाम विरोधी दल भी उनके आजीवन काल तक सम्मान से लेते रहे है। दादा हीरा सिंह मरकाम जी का कहना था कि कहों नहीं करके दिखलाओं, इसका मतलब यही था जो कि मिशन व सिद्धांत को जमीन पर सच करके दिखाये। इसके लिये दादा हीरा सिंह मरकाम जी आजीवन संघर्ष करते रहे।
छोटे कार्यकर्ताओ व निर्धनों के यहां रूकते थे दादा हीरा सिंह मरकाम जी
गोंडवाना आंदोलन के लिये काम करने वाले पदाधिकारी और कार्यकर्ता अच्छे से जानते है कि दादा हीरा सिंह मरकाम ने गोंडवाना आंदोलन के लिये कभी साधन और संसाधन की रास्ता नहीं देखा। कई किलोमीटर तक पैदल, दोपहिया वाहन या जो भी साधन मिला उससे सफर करते हुये वे कार्यक्रम स्थलों तक पहुंचे है।
अपने जीवनकाल में दादा हीरा सिंह मरकाम जी कार्यक्रमों के दौरान छोटे कार्यकर्ताओं व निर्धनों के मकानों में रूकने को प्राथमिकता देते थे, धन्नासेठ या अवसरवादी पूंजीपति नेता उन्हें अपने आलीशान मकान, दुकानों में ड्रायफुड मिठाई की थालीयां सजाकर ले जाने का प्रयास करते थे लेकिन दादा हीरा सिंह मरकाम ने वहां बैठना तो छोड़ो बाथरूम तक का उपयोग नहीं किया है।
एकमात्र राजनीति के नेतृत्वकर्ता है जो चलाते थे नशामुक्ति अभियान
राजनैतिक क्षेत्र में दादा हीरा सिंह मरकाम जी ही एकलौते नेतृत्वकर्ता है जो नशामुक्ति आंदोलन खुले मंच से चलाते थे, जहां वे बच्चों से लेकर बड़ों तक को नशा मुक्त समाज बनाने का संकल्प दिलाते थे। हजारों की संख्या में उन्होंने युवती व युवकों को नशामुक्त रहने का संकल्प दिलाया है।
माता-पिता से भी आहवान करते थे कि अपने बेटियों के लिये दारूखोर या नशा करने वाला दामाद मत ढूढ़ना वे महिलाओं को उदाहरण देते थे कि जब आप मिट्टी का मटका ठोंक बजाकर खरीदती है तो दामाद को क्यों परखकर नहीं बनाती हो, उनका कहना था कि नशा शरीर, समाज, सम्मान सबको नुकसान पहुंचाता है। देश में अनेकों राजनैतिक दल राजनीति करने का काम कर रहे है लेकिन दादा हीरा सिंह मरकाम जी राजनैतिक मंच में समाजिक विकास की बात करते थे, यह उनकी अनोखी विशेषता थी।
जो व्यापार करेगा वो राज करेगा
दादा हीरा सिंह मरकाम जी हमेशा कहते थे कि जो व्यापार करेगा वो राज करेगा, दादा हीरा सिंह मरकाम का कहना था कि समाज स्वरोजगार की ओर बढ़े, आत्मनिर्भर बने, व्यापार-व्यवसाय करें जिससे आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके। इसके साथ ही उन्होंने कृषि के क्षेत्र में फसल के अलावा सब्जी लगाने को हमेशा प्रोत्साहित किया।
जिन्होंने दादा हीरा सिंह मरकाम जी की बातों को समझा आज भी भट्टा, मिर्ची, टमाटर में ही लाखों कमा रहे है। जिस मंच पर दादा हीरा सिंह मरकाम जी आर्थिक उत्थान का संदेश समाज को देते थे उस मंच पर बैठने वालों में कम ही लोगों ने आर्थिक उत्थान के विषय व गंभीरता को समझा है लेकिन दूर से सुनने व समझने वालों ने दादा हीरा सिंह मरकाम के आर्थिक उत्थान को समझकर उस पर अमल भी किया है।
वहीं दादा हीरा सिंह मरकाम में गांव-गांव में एक मुठ्ठी चावल से कैसे गांव का महाकल्याण किया जा सकता है इसे भी सफल करके बताया है। गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम के अनेक ऐसे विचार और सिद्धांत है जिन पर अमल वास्तविकता में कर लिया जाये तो देश का वास्तविक विकास हो सकता है।