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गोंडवाना के अनमोल रतन दादा हीरा सिंह मरकाम जी अमर है....अमर रहेंगे

 गोंडवाना के अनमोल रतन दादा हीरा सिंह मरकाम जी अमर है....अमर रहेंगे

दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना सेवा न्यास अमूरकोट अमरकंटक की स्थापना कर-सम्पूर्ण सृष्टि को आदिम सद्ज्ञान प्रकाश पूंज से आलोकित करते दिव्य जोत प्रज्वलित किया

  


दादा हीरा सिंह मरकाम जी के पुनरूथान दिवस पर विशेष संपादकीय
तिरु कृष्णा नेताम जी,
गोंडी साहित्यकार,
अखिल गोंडवाना गोंडी साहित्य परिषद्


स्मृति अनमोन रतन की, सेवा सद्भाव जतन की, बिखेर कर धरा पर दिव्य बीज आदिम दर्शन के गोंडवाना के अनमोल रतन हीरा अनंत में विलीन हो गए, ये साक्षात जीवंत धरा पर अब आती है दिव्य रोशनी गगन से धरा तक, तारो सितारो के मध्य आकाश गंगा में सितारे नवीन हो गए, आते हैं ख्यालों-ख्यालों में कभी-कभी, चिंतन को महा प्रवाह लेकर डूब जाता हूं, मैं उबूक चुबूक चले जाते है वो अपना स्नेह सिक्त स्पर्श देकर, होती है अनुगूंज अम्बर से धरा तक.....वो गोंडवाना वालों ....कहो नहीं करके दिखलाओ, अंधकार है, अंधकार है,
        


क्या होगा कहते रहने से, अंधकार यदि दूर भगाना, अच्छा हो एक दीप जला दो, अपनी कथनी और करनी पर अमल किया, गोंडवाना का मान सम्मान स्वाभिमान बढ़ाया, नर्मदा की मन भावन पावन धारी में, गोंडवाना सेवा न्यास अमूरकोट अमरकंटक पेनठाना की भव्य एवं दिव्य रोशनी से  संपूर्ण भूभाग सयुंग खंडा ना गोंडवाना भुई आलोकित हुआ। गुंज उठा जय कारा बुलंद हुआ जय सेवा, जय फड़ापेन का नारा, प्रकृति परिवर्तन दिवस चौदह जनवरी को किन्तु आज तो अट्ठाइस अक्टूबर है....जन जन गमगीन है......अंतस की पीड़ा आंसू बनकर झर रहा है। 

दादा हीरासिंह मरकाम जी दबंग दादा के दहाड़ से बड़बोलो की सिटी पिटी गुम हो जाती थी


मूक वाणी अश्रु पूरित नयन सब कुछ बयां....दुनिया के महान विभूति-गोंडवाना के रतन दादा हीरासिंह मरकाम नहीं रहे....आंखों से आंखे बतिया रही है, मन अशांत हृदय तड़प रहा है पर दिल है कि मानता नहीं....आज भी हमें उनकी पदचाप सुनाई देती है, उनकी मधुरवाणी वायुमंडल में तरंगित हो रही है। हार मत मानो संघर्ष करो....लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती बिना कुछ किये किसी की जय जयकार नहीं होती।
            दादा हीरासिंह मरकाम अमर रहें....अमर रहें-अमर रहें.....गोंडवाना के अनमोल रतन दादा हीरा सिंह मरकाम अमर है.. अमर रहेंगे....सदा माटी तत्व माटी में मिल गया....वायु तत्व वायु में विलीन हो गया....प्राण वायु का कभी विनाश नहीं होता...उचित वक्त और उचित पात्र के माध्यम से दादा मरकाम से बातचीत हो पाना संभव है, यह ज्ञान विज्ञान से ऊपर परा विज्ञान का विषय है..... इंतजार कीजिए....हमारे पथ प्रदर्शक आयेंगे और हमारा मार्ग दर्शन करेंगे...एक दिन...यह नैसर्गिक सत्य है। विचारों की कभी मृत्यु नहीं होती-काया मरती है, सद्विचारों का अनुगमन होता है, आप और हम सब अनुगामी है-गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी के.....स्मृति के झरोखे से....जन जन के सुरता में समागे दादा...बीता भर छाती सूपा भर करेजा, कहां ले में हर लानंव गा कइसे तोला भुलावंव गा दादा हीरासिंह मरकाम जी दबंग दादा के दहाड़ से बड़बोलो की सिटी पिटी गुम हो जाती थी। 

दादा मरकाम प्रेरणा के परम प्रकाश पूंज थे

प्रेरक व्यक्तित्व की झलक उनके ओजस्वी उद्बोधन से प्रगट होता था....सम्भाषण सुनने मात्र से-संघर्ष और सृजन हेतु संकल्पित जन उमड़ पड़ते थे....जैसे पवन के झंकारों से उमड़ते घुमड़ते मेघ दादा के सुविचारों की अनुभूति-पवन और रिमझिम पानी के फौवारों का प्रतीक था, लोगों को भीगने में आनंद की अनुभूति होती थी, दादा मरकाम प्रेरणा के परम प्रकाश पूंज थे....उन्हें निसर्ग से प्रेम था प्रकृति पर आस्था समर्पित करते थे....पुरातात्विक स्थलों का दर्शन अध्ययन-आदिम गढ़ किलों देव देवालयों गढ़िया मढ़िहा पेनठाना आदि का दर्शन दादा के गतिविधियों का ही एक भाग था....गति ही प्रगति है-दादा के दिल और दिमाग में गोंडवाना बस गया था....गोंडवाना एक शब्द मात्र नहीं विराट जीवन दर्शन है जो आज कहीं खो गया है विलुप्त है। 

लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया....दादा ने पूछा क्यों क्या कारण था

गढ़ किला देव देवालय ठाना बाना रिस्ते नातों का सुखद संसार गोंडवाना उसी की तलाश में गतिमान रहे निरंतर....गोंडवाना समग्र विकास क्रान्ति आंदोलन लेकर....बात उन्नीस सौ छियानबे की है....महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ सीमा-पानाबरस वनांचल में है, प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत टीपानगढ़ अवसर मिला तो दादा के साथ जाना हुआ....वहां पहाड़ी शिखर पर पानी से लबालब जलाशय का आकर्षण....उसी पहाड़ी पर है एक शिला खंड कहते हैं लोहे के टुकड़े से उस पर कलात्मक वार करने से संगीत की ध्वनि वातावरण में बिखरने लगती है मनोहारी वातावरण में उसी के निकट दूसरे शिलाखंड में हम लोग बैठ गए-आसपास के कुछ वरिष्ठजन भी साथ में थे....पानाबरस अंचल हो और श्याम शाह महाराज पर चर्चा न हो ऐसी तो नहीं हो सकती....चर्चा चल पड़ी-आजादी के बाद श्याम शाह महाराज ने चन्द्रपुर से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते फिर बाद में लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया....दादा ने पूछा क्यों क्या कारण था...भाषावार राज्यों का बंटवारा श्याम शाह महाराज ने लोकसभा में प्रस्ताव रखा कि गोंडी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर पृथक गोंडवाना राज्य का निर्माण हो, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा बकवास प्रस्ताव-न जाने गोंडवाना शब्द से कांग्रेस को इतनी नफरत क्यों था और है बस फिर क्या था-श्याम शाह महाराज ने कहा कि जिस लोकसभा में मूलनिवासियों की नहीं सुनी जाती वहां मेरा क्या काम-त्याग पत्र थमा दिया...दादा जी इस बात से पहले ही अवगत थे-फिर भी लोगों की भावनाओं को सम्मान दिया और सुना कांग्रेस सजग हो गई गोंडी भाषी अंचल को टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त कर अलग अलग राज्यों में बांट दिया। 

जंगल बचाओ आंदोलन प्रारंभ किया

जिसका परिणाम है मध्यप्रदेश श्याम शाह महाराज अपने क्षेत्र में आ गए चौकी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़े और जीते..यहां की सरकार की नियत भी साफ नहीं थी, राजनांदगांव बालोद और कांकेर वनांचल से श्याम शाह महाराज के पास शिकायत आई कि जंगल माफिया किसानों के जमीन की लकड़ी कौड़ी के मोल खरीदकर उसी बहाने जंगलों की साफ सफाई कर रहे जंगल उजाड़ रहे हैं-श्याम शाह महाराज ने विधानसभा में बात रखी सरकार ने नहीं सुनी तब मजबूर होकर श्याम शाह महाराज महाराज ने त्याग पत्र दे दिया विधानसभा से....और जंगल बचाओ आंदोलन प्रारंभ किया..जंगल माफिया और सरकार में बंदरबाट चल रहा था-दादा मरकाम ने अंत में कहा कि राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है। 

नाचत हे देश अऊ परदेश मा टूरा अऊ टूरी, तेकर कमई का खावत हे कोन देवार

हम सांझ होते होते मानपुर आ गए, मैंने अनुभव किया दादा के दिल में उथल- पुथल मची हुई थी, रात मानपुर में फगनु पुरामे के यहां बिताए...प्रात: हम बस स्टैंड आये तो पहली बस निकल चुकी थी, तब बसें कम चलती थी-हम इंतजार में थे थोड़ी दूर पर कुछ भीड़ नजर आई लोग घेरा बनाकर खड़े थे-दादा ने कहा चलो चलकर देखते हैं-वहां गये-वहां एक देवार और देवारिन बंदर नचा रहे थे-देवार-देवारिन का कला कौशल मन को लुभा रहा था, बंदर नृत्य नाटिका के मंजे हुए कलाकार की तरह अभिनय कर रहा था-देवार के शब्दों का जादू और देवारिन का इशारा निर्देशन पर बंदर का नौटंकी खूब भा रहा था तभी बस आ गई हम बस में बैठ गए, पर मन अभी भी देवार देवारिन और बंदर के पास था-दादा ने कहा क्या अद्भुत कला कौशल है-क्या तुम इस विषय पर अपना कलम चला सकते हो....मैं असमंजस में पड़ गया-क्या कहूं और क्या करूं-मैंने धीरे से कहा-कोशिश करके देखता हूं, बस चल पड़ी पर मैं देवार पर अटक कर रह गया, गाड़ी मानपुर से निकली हम खड़गांव पहुंच गए....अपने घर संध्या भोजन के बाद दादा आराम करने लगे और मैं कागज और कलम लेकर बैठ गया दादा जी का नाक बजने लगा पर मेरे कानों में देवार के डमरू का स्वर गुंजने लगा.... मैंने डमरू के सुर में कलम से समा बांधने का प्रयास किया.... ठाकुर पारा मंझरेटा में लगे राहय मजमा, रतन झूल देवार संग राहय देवारिन पद्मा बेंदरा नचाय बर जोरे राहय हाना डमरू ला बजावत गावत राहय गाना......येदे हो हो हां, ये वो वो वा......हां हा हां जी, ...रमला के बूढ़ी दाई कमला के मउसी, झुमर झुमर नाच बने पइसा मिलही गउकी, रमला के बूढ़ी दाई कमला के मउसी,ऊही मेर राहय एक झन बयचकहा, देवार के गीत ला सुन पारिस अरझकहा, तीर में जाके सूर मिलाके कथे, पइसा मिलही, चऊर मिलही, अऊ मिलही दार, झुमर झुमर नाच बेंदरा खाही देवार, ओतके ला सुनके देवारिन पद्मा जइछार होगे, भिरे कछोरा मंझरेट्टा में ठाड़ होगे, अरे जाना रे कनवा लिखा दे रपोट, कोन मार के देय हावस हमला हजार के नोट, बइठे हे साहेब सिपइहा लगे हे दरबार, जा बता दे नाच ही बेंदरा तब खाही देवार, नाचत हे देश अऊ परदेश मा टूरा अऊ टूरी, तेकर कमई का खावत हे कोन देवार, मनखे नचईया ला पद्मसिरी बांटत हे, बेंदरा नचईया भीख मांगत हे........देवार कथे ले रहन दे पद्मा, नई सुधरय गोंड जात, बिसरगे पुरखा के कहानी, बात लागय न बानी, अपन सत्ता ला खूंटी मा टांग के राम सत्ता गावत हे नाचत हे, नेता मन के अगवानी.....पर के परघवनी, मांदरी बांधे नाचत हे धिगिड़-धिगिड़, हांसत हे गिजिर-गिजिर, तइहा के ला बइहा लेगे, गोंड रिहिन राजा मंद-मंऊहा मा बूड़े हे, उतरगे मूड़ के पागा, अपन बिरान के नइहे चिन्हारी, कोन कोयली कोन कागा, तीरीथ जावत हे, बरत करत हे, पर के भोमस मा मरत हे, अपन धरम छोड़के माने आन देवता, दाई ददा भुखन मरे आन खाय नेवता, पा लागी देवता, सबेरा हुआ प्रात: कालीन क्रिया से निवृत्त, आपस में बैठे-पहला आदेश मिला, रात का कागज दिखाओ-क्या लिखा, मैंने झिझकते हुए रात का कागज थमा दिया, गौर से अवलोकन फिर सवाल छत्तीसगढ़ी में....मैंने कहा हां, फिर पूछा हिन्दी में क्यों नहीं, मैंने कहा-देवार के हाव-भाव को हिन्दी में व्यक्त करना कठिन था....फिर दादा गंभीरता से पढ़ने में लीन हो गए, मैं जान बूझकर दूर चला गया....जब वापस आया तब दादाजी का हाव-भाव का अंदाज ही अलग महसूस हुआ, मैं चुप बैठ गया। 

अखिल गोंडवाना गोंडी धरम संस्कृति एक साहित्य सम्मेलन का विराट आयोजन पर सहमति बनी

दादा ने कहा देवार के कला कौतुहल से वो बंदर नाचा औरों ने आनंद लिया तुम्हारे कलम के जादू से न जाने कितने नाचेंगे और कितनों को पीड़ा होगी.....इसे तुम अपने हाव-भाव से मंच में जरूर प्रस्तुत करना ये मेरे लिए प्रेरणा का अमूर्त रूप था..। सुबह 10 बजे हम नागपुर के लिए निकल पड़े...रात डा मोती रावेन कंगाली जी के आवास पर बहुत ही गंभीर चर्चा हुई, पुनेम साहित्य और समाज-समाज कई भागों में विभक्त है-इसे एकजूट कैसे किया जाए-रहनी खानी बानी विलग-विलग पहाड़ी माड़ वनांचलीय गोंडी भाषा भाषी-मैदानी भाग की भाषा भिन्न भिन्न समाज को जोड़ने का प्रयास आजादी के पूर्व भी हुआ है, समाज के विघटित संघीय ढांचे को एकजूट करने हेतु अखिल गोंडवाना महासंघ का गठन एवं कोया पुनेम गोंडी धरम को आधार मानकर अभियान चलाना, अखिल गोंडवाना गोंडी धरम संस्कृति एक साहित्य सम्मेलन का विराट आयोजन पर सहमति बनी। 

लोकसभा और विधानसभा में अपनी बात रखना जरूरी है, इसलिए राजनीति मजबूरी है

सुबह की गाड़ी से हम भिलाई आ गये, औद्योगिक नगरी भिलाई में आयोजन की भूमिका तय हुई, इस पर विस्तार में जानने की आवश्यकता नहीं हैं। दादा मरकाम के दिलों दिमाग में राजनीति को लेकर उथल- पुथल हो रहा था उन्हीं दिनों छत्तीसगढ़ के जाने-माने गोंड नेता एवं मध्य प्रदेश कद्दावर नेता दिलीप सिंह भुरिया और अरविंद नेताम कांग्रेस से अलग हो गए, ये दादा मरकाम एक सपना संजोए-हम उन दिनों साहित्य सम्मेलन की रूपरेखा प्रचार प्रसार में व्यस्त थे....दादा ने कहा मुझसे कि एक अवसर हमारा इंतजार कर रहा है, मैंने पूछा कैसा अवसर....दादा ने कहा कि अरविंद नेताम और दिलीप सिंह भुरिया गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का नेतृत्व करना स्वीकार कर लेते हैं तो मैं अपने आप को राजनीति से अलग कर लूंगा किन्तु यह संभव नहीं हो सका.....अखिल गोंडवाना गोंडी साहित्य परिषद के सम्मेलन में नारा दिया गया....मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कैसा हो अरविंद नेताम जैसा हो....मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कैसा हो दिलीप सिंह भुरिया जैसा हो....पता चला कि दिलीप सिंह भुरिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया, अरविंद नेताम मायावती के यहां शरणागत हो गए...अब क्या करते.....दादाजी ने कहा.....लोकसभा और विधानसभा में अपनी बात रखना जरूरी है, इसलिए राजनीति मजबूरी है। 

जब दादा हीरा सिंह मरकाम जी गोंडवाना राज मांगिस, भाजपा गोंडवाना के मुंडन कर दिस, कांग्रेस हा अंग-भंग कर दिस

यथार्थ में दादा हीरा सिंह मरकाम जी राजनैतिक नहीं थे, एक दार्शनिक चिंतक थे....उन्होंने अपना अभियान जारी रखा, वे हार मानने वालों में नहीं थे....हार को एक कदम आगे बढ़ना मानते थे...उनकी दृष्टि में पृथक गोंडवाना राज्य की संभावना अभी बाकी था...महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, गोंदिया, यूं पी सोनभद्र दुधी-मध्यप्रदेश के मण्डला, बालाघाट, डिंडोरी और सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को मिलाकर पृथक गोंडवाना राज्य को लेकर आंदोलन तेज हुआ, दादा हीरा सिंह मरकाम जी के नेतृत्व में हजारों लोगों ने दिल्ली में धरना दिया, परिणाम-भाजपा कांग्रेस की मिलीभगत हुई, छत्तीसगढ़ और झारखंड अस्तित्व में आ गया, केन्द्र में बीजेपी की सरकार थी, राज्य का बंदरबांट हुआ, झारखंड मेरा, छत्तीसगढ़ तेरा, कर्मवीर लाल श्याम शाह ने गोंडवाना राज्य की मांग उठाई तो मध्यप्रदेश बन गया....गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम ने गोंडवाना राज्य मांगा तो छत्तीसगढ़ बन गया....रायपुर में छत्तीसगढ़ निर्माण पर गोंडवाना की समीक्षा बैठक हुई....भाजपा कांग्रेस के लोग खुशियां मना रहे थे....झूम रहे थे-थिरक रहे थे....गोंडवाना के आंखों में आंसू था...समीक्षा बैठक में कर्मठ कार्यकतार्ओं ने अपनी पीड़ा का इजहार किया...दादा हीरा सिंह मरकाम जी मेरी ओर इशारा करके कहा, अब तुम अपनी भावनाओं को व्यक्त करो, छत्तीसगढ़ राज्य को किस रुप में देखते हो...मैं माइक के सामने गया...कहा कि...छत्तीसगढ़ राज बनगे...कब बनिस-कइसे बनिस...जब दादा हीरा सिंह मरकाम जी गोंडवाना राज मांगिस, भाजपा गोंडवाना के मुंडन कर दिस, कांग्रेस हा अंग-भंग कर दिस..एक झन नाऊ बनगे - एक झन धोबी...अटल के अटका सोनिया के झटका, राजा बर पिछौरी जोगी बर पटका, का नाऊ पिराइस का धोबी के चिराइस, छत्तीसगढ़ बनगे.....बात परे बात निकलगे....जीभ ताय फिसलगे...भाजपा कांग्रेस माफ करें...फेर मूलनिवासी संग इंसाफ करें... सोनिया के खुशी के ठिकाना नहीं, सोनिया कथे आ राजा खाले, जोगी ला बलाले, अटल कथे का संघे हंस सोनिया, दिग्गी बर सोहारी जोगी बर चिला...का खाबे जोगी...छप्पन विधायक सोला ठन जिला, भाजपा-कांग्रेस के दार गलगे, बात परे बात निकलगे, जीभ ताय फिसलगे,छत्तीसगढ़ राज बनगे। 

उन्हें पता है गोंडवाना राज्य के बनते ही आदिमकाल का अभ्युदय होगा

अब बारी दादा मरकाम के रिहिस, वे बेहद पीड़ित और भावुक थे...वो गोंडवाना के लोगों, सतर्क और सजग हो जाओ-आदिम जनजीवन पर अस्तित्व संकट की स्थिति निर्मित हो रही है...छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण कर....गोंडवाना राज्य की मांग पर अंत में कील ठोक दिया है... संभावना पर विराम लगा दिया है... उन्हें पता है गोंडवाना राज्य के बनते ही आदिमकाल का अभ्युदय होगा गोंडवाना कालीन इतिहास धरातल पर उतर आएगा....हमारी जबान गूंगी हो जाएगी अब तक हम सत्य पर परदा डालते आये हैं...हमारी कलम थम जाएगी, यदि उन्होंने कलम उठा लिया......बीज बोया है उन्होंने, गोंडवाना भू-भाग पर विनाश का कर दिया है सत्यानाश जालिमों ने, आदिम इतिहास का...सत्ता उनकी संविधान उनका, शासन उनका प्रशासन उनका, न्याय की कुर्सी पर भी है विराजमान, क्या पुरा होगा कभी हमारा अरमान....अरमान अर्थ सपना है-यथार्थ के धरातल पर उतरना है...उन्हें पता है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-गोंडवाना भू-भाग का अस्तित्व-वैश्विक पटल पर अंकित है, मेरा मकसद इतिहास पढ़ाना नहीं है, आदिम जनजीवन की अस्तित्व बचाना है.....भाजपा-कांग्रेस का लक्ष्य-आदिम संस्कृति का विनाश करना-ठाना बाना गढ़ किला देव देवालय का अस्तित्व मिटाना और पुरातात्त्विक स्थलों पर कब्जा करना झूठी इतिहास गढ़ना संविधान हमारी रक्षा करने में असमर्थ होगा यदि हमारी पहचान मिटाने में अतिक्रमणकारी सफल हो गए....हमारी संस्कृति ही हमारी रक्षा करने में सक्षम है..... हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी हमें....हिन्दू और इसाई बनाने की मुहिम चल रही है.....हमारा धर्म परिवर्तन कर, हमसे मूलनिवासी का दर्जा छीन लेंगे....तब आप क्या करेंगे। 

आओ आज हम संकल्प ले...बेटी रोटी संस्कृति बचाये....पर्यावरण प्रकृति बचाये

अनुसूचित क्षेत्रों में कस्बाओं को नगर पंचायत का दर्जा देकर आरक्षण समाप्त करने की साजिÞश चल रही है....खनिज सम्पदा के बहाने जंगल का विनाश हो रहा है-शुद्ध हवा, शुद्ध जल कहां से पायेंगे....दूसरी तरफ आदिम पुरातात्विक स्थलों दर्शनीय नैसर्गिक सौन्दर्य से ओतप्रोत पहाड़ों, नदी, झरना, झीलों आदिम गुफाओं को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के बहाने अन्य धर्मों के मठ-मंदिरों की स्थापना कर आदिम पुरातात्विक स्थल पर अतिक्रमण हो रहा है....अब आप अपनी रक्षा कैसे कर पायेंगे, बेटी रोटी संस्कृति खतरे में है, आओ आज हम संकल्प ले...बेटी रोटी संस्कृति बचाये....पर्यावरण प्रकृति बचाये....दादा ने कहा.....बेटी रोटी संस्कृति की रक्षा कौन करेगा, भीड़ से आवाज आई हम करेंगे...हम करेंगे। 

आज गोंडवाना का विशाल फौज दादा के इर्द-गिर्द खड़ा है

जन भावना उमड़ पड़ी आंखों से आंसू झर रहा है, लोग खुसुर फुसुर कर रहे थे....अब बात चौदह जनवरी की कर लेते हैं, अमूरकोट अमरकंटक में तीन दिवसीय कार्यशाला था, ठाना में अखंड जोत जल रहा था.... दूसरी तरफ मंच के निकट ही गोंडी धरम ध्वज लहरा रहा था....गोंडवाना गणतंत्र पार्टी स्थापना दिवस का उत्साह था, इसका जिक्र इसलिए कि आज गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष दादा हीरा सिंह मरकाम का जन्मदिन है....लाखों दुआयें दादा को स्पर्श कर रही थी, गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन के न जाने और कितने घटक है आदिम जीवन दर्शन के केन्द्र बिन्दू अमूरकोट अमरकंटक है दादा मरकाम ने गोंडवाना सेवा न्यास अमूरकोट अमरकंटक की स्थापना कर-सम्पूर्ण सृष्टि को आदिम सद्ज्ञान प्रकाश पूंज से आलोकित करते दिव्य जोत प्रज्वलित किया। जगमग जगमग जग जोत चौदह जनवरी को इस आत्मा ने धरातल का स्पर्श किया और आज गोंडवाना के विराट मंच पर दादा का जय जयकार हो रहा है। अज्ञानता के अंधकार में सोये हुए जनों को जगाया, आज गोंडवाना का विशाल फौज दादा के इर्द-गिर्द खड़ा है-उसी फौज के मध्य अमूरकोट के विशाल मंच से अपने ही जन्म दिवस पर मुझे तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया-आदिम कला संस्कृति प्रभाग का मुखिया घोषित कर मैं कोई अकेला व्यक्ति नहीं हूं...जिसे दादा ने सम्मानित किया। हजारों कार्यकर्ता हैं जिन्हे अलग अलग मंचों पर विलग-विलग जिम्मेदारी देकर गौरवान्वित किया। 

हमारी जिम्मेदारी है कि हम गोंडवाना सेवा न्यास अमुरकोट अमरकंटक के दिव्य जोत में निरंतर तेल डालते रहें

क्या अब हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि हम दादा मरकाम द्वारा प्रज्वलित गोंडवाना सेवा न्यास अमुरकोट अमरकंटक के दिव्य जोत में निरंतर तेल डालते रहें, तन- मन-  धन से गोंडवाना सेवा न्यास के सेवक पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ाएं...जगमग-जगमग जग जोत दिव्य प्रकाश पूंज बिखरता रहें, देश के कोने -कोने तक दादा हीरा सिंह मरकाम जी-मुंद सुल सर्री के अनुगामी थे मन बुद्धि और विवेक सदैव जागृत रहता था, खड़नार खड़गांव में परमाह सूर बूम गोटूल के नाम पर कोलांग महोत्सव का आयोजन था-दादा हीरा सिंह मरकाम जी की सहभागिता थी....सफल आयोजन का अनुभव...दादा के मन और बुद्धि में गोटूल प्रवेश कर गया।

बस फिर क्या था-गोंडवाना गोटूल की आधारशिला रख दी गई

दादा हीरा सिंह मरकाम जी चिंतन में निमग्न हो गये गोंडवाना एक शब्द मात्र नहीं है, एक विराट दर्शन है....गोंडवाना के दर्शन का सूत्र है गोटूल गोंडवाना गोटूल के बिना अपूर्ण है....यह अमूर्त है....इसे मूर्त रुप प्रदान करने के लिए आदिम गोटूल का पुनर्जागरण अनिवार्य है, बस फिर क्या था-गोंडवाना गोटूल की आधारशिला रख दी गई, कोयली कचारगढ़ दलदलकुही में-गोंडवाना यूथ क्लब डोंगरगढ़ के निगरानी में....एक दिन चेम सिंह मरकाम डोंगरगढ़ से हमारे यहां खड़गांव आये-बताया कि दादा मरकाम ने भेजा है पांच नग नारियल मुझे सौंप कर कहा कि परमाह सूर गोटूल के नाम पर आपको देने कहा है.....मैं तो धन्य हो गया....गोंडवाना गणतंत्र गोटूल का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ, दादा ने लोकार्पण का समय निर्धारित कर दिया.....दिया में बाती और तेल भर दिया और स्वयं दुनिया से विदा लेकर चले गये...शहीद हो गए.... गोंडवाना पर मर मिटे...अब उस दिया में प्राण फूंककर जीवंत बनाये रखने की जिम्मेदारी किसकी है। 

दादा हीरा सिंह जी मरकाम गोंडवाना के लिए संघर्ष करते-लड़ते-लड़ते शहीद हो गये

हमें अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर गतिमान रहने प्रेरणा दादा ने दिया है....उसे निभाने का आत्मबल की परीक्षा अब प्रारंभ होता है.....बीता भर छाती, सूपा भर करेजा, कहां ले में हर लानव गा कइसे तोला भुलावंव गा, दादा हीरासिंह मरकाम....सुरता मा संजो के राखेंव...बिसरे झन ये गीत हे, चंदा सुरुज हावे जगत में, तइसे अमर शहीद हे...दादा हीरा सिंह जी मरकाम गोंडवाना के लिए संघर्ष करते-लड़ते-लड़ते शहीद हो गये...आजाद भारत में तीन महान सपूतों ने सांस्कृतिक युद्ध में अपनी आहुति दी...प्रवीर श्याम हीरा, कर्मवीर रणधीरा। 

बस्तर-बस्तर, कण-कण में गोंडवाना की संस्कृति बसती है

दादा मरकाम कहा करते थे, हमारी असफलता का प्रमुख कारण है बस्तर-बस्तर, कण-कण में गोंडवाना की संस्कृति बसती है...आदिम संस्कृति के सुरक्षा कवच के रूप में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव अडिग खड़े थे, बस्तर में प्रवेश कर पाना तत्कालीन सरकार के लिए संभव नहीं था....बस्तर में सांस्कृतिक अतिक्रमण बस्तर की वन सम्पदा और खनिज सम्पदा का दोहन कैसे हो, प्रवीर चंद्र भंजदेव का अंत ही एक मात्र विकल्प शेष था....केन्द्र और राज्य सरकार राजमहल पर आक्रमण की साजिÞश रची...सरकार की सेना ने राजमहल को घेर लिया, हजारों तीर धनुष धारी बस्तरिहा जनों ने प्रतिरोध किया पर सरकार के गोला बारूद के आगे विवश हो गए, कत्लेआम से बस्तर की माटी खून से रंग गया, इन्द्रावती का पानी लाल हो गया, बस्तर में एक सौ चवालीस धारा लगा दी गई, कौन विरोध करता-महाराजा शहीद हो गए, पानाबरस से महाराजा श्याम शाह ने हौसला दिखाया अपने सहयोगियों के साथ आकर बस्तर में प्रदर्शन किया, एक सौ चवालीस धारा तोड़ा, सरकारी कहर से बस्तर सहम गया, अत्याचार करते रहे...विरोध का स्वर मंद पड़ गया....बस्तर सांस्कृतिक-धार्मिक अतिक्रमण का शिकार हो रहा है, निरन्तर राजनैतिक दलों ने पैर पसारा, शोषण दमन और उत्पीड़न से त्रस्त आम जनजीवन विचलित है, बेहाल है, बदहाल है, राजनीति के इच्छाधारी नागों के कहर से सामाजिक संगठन टूटकर बिखर रहा है। 

गिद्धों की नजर गड़ी हुई, जंगल की खुशहाली पर,

कब तक रोते बैठोगे तुम अपनी ही बदहाली पर,

कर पलटवार अब देर न कर, देना जवाब करारा है,

हम भारत के मूलनिवासी, यह पावन देश हमारा है,

गुलामी की जंजीर तोड़ी, दी हमने कुबार्नी है,

आजाद देश में हुए गुलाम, ये कैसी नादानी है,

मूलनिवासी अब तो जागो, गद्दारों ने ललकारा है,

हम भारत के मूलनिवासी, यह पावन देश हमारा है,

यह पावन देश हमारा है, गोंडवाना के अमर शहीदों तुम्हें नमन


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