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चिड़िया चिपककर स्कूल से घर तक कैसे पहुंची, सब देखकर हो रहे आश्चर्यचकित

चिड़िया चिपककर स्कूल से घर तक कैसे पहुंची, सब देखकर हो रहे आश्चर्यचकित 

उड़ेपानी से सिवनी तक आॅटो के सफर में भी चिड़िया ने श्रीमती लता परते का नहीं छोड़ी साथ  


सिवनी। गोंडवाना समय। 

चीं-चीं करते हुये अक्सर चिड़िया को आपने अपने घरों में एक जगह से दूसरी जगह पर फुदकते हुए जरूर देखा होगा। भारत और दुनिया के अलग-अलग जगहों पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
        


इसे सिंधी में झिरकी, पंजाब में चिरी, जम्मू और कश्मीर में चेर, उर्दू में चिरैया, गुजरात में चकली, महाराष्ट्र में चिमनी, तेलुगू में पिछुका, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी, उड़ीसा में घराछतिया, कन्नड़ में गुबाच्ची, तमिलनाडु और केरल में कुरूवी के नाम से जाना जाता है। वहीं दुनिया भर में इन पक्षियों के लगभग 140 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
                जिनमें से घरों या इमारतों में पाई जाने वाली गौरैया सबसे अधिक संख्या में पाई जाती है. इस समूह की अन्य प्रजातियों में आजकल पिछले कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या में बहुत तेजी से कमी आई है जिसके अनेकों कारण हैं। 

चिड़िया को रास्ते भर प्यार दुलार के साथ अपने घर लाई श्रीमती लता परते 


हम आपको सिवनी में निवासरत श्रीमती लता परते के संग चिड़िया के प्राकृतिक प्रेम की हकीकत से अवगत कराते है। शुक्रवार दिनांक 21 अक्टूबर 2022 को सिवनी तहसील के उडेÞपानी स्कूल से अपना कर्तव्य निभाकर वह जब अपने घर वापस लौट रही थी तो उड़ेपानी स्कूल से ही एक चिड़िया श्रीमती लता परते के कंधे पर आकर बैठ गई, उसके बाद वह उड़कर नहीं गई।
            

प्रकृति के अनुपम उपहार के रूप में धरती में मौजूद चिड़िया की चीं-चीं करती मधुर आवाज भले ही हमें अब कम सुनाई देती है लेकिन श्रीमती लता परते के पास में चिपककर चिड़िया ने प्राकृतिक प्रेम का एहसास कराने के साथ मानव को यह संदेश देने की भी कोशिश किया है, मुझे धरती में इंसान के सहयोग से बचाया जा सकता है। उड़ेपानी से श्रीमती लता परते के साथ साथ चिपककर आई चिड़िया घर तक पहुंची तो आसपड़ोस के नागरिकगण आश्चर्यचकित हो गये कि कैसे ये चिड़िया इतनी दूर से साथ में आ गई और उड़ भी नहीं रही है।
                

श्रीमती लता परते अपने साथ आई चिड़िया को जहां वे रास्ते भर प्यार दुलार के साथ अपने घर लाई अब परिवार के सदस्य भी चिड़िया का घर पर चिड़िया का ख्याल रख रहे है उन्होंने उसे घर पर खुला छोड़ दिया है। 

वर्तमान समय में गौरैया चिड़िया अब हमारे बीच कम ही दिखती है


गौरैया का वैज्ञानिक वर्गीकरण, उसके रहन-सहन और खाने-पीने की आदतों के साथ गौरैया के प्रजनन की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। गौरैया चिड़िया एक छोटी और सुन्दर पक्षी है, गौरैया उन कुछ पक्षियों में से एक है जो जंगलों से ज्यादा इंसानों के करीब शहरों और गाँवों में उनके बीच रहना पसंद करती है। हालांकि इंसानों ने इस चिड़िया का इतना ज्यादा ध्यान नहीं रखा है। अति-शहरीकरण और औधोगीकरण की वजह से वर्तमान समय में गौरैया चिड़िया अब हमारे बीच कम ही दिखती है। 

गौरैया चिड़िया को अपने घरों के आस-पास गुनगुनाते और चहकते हुए देख सकते हैं


गौरैया चिड़िया के शरीर का आकार बहुत ही छोटा होता है, इसकी औसतन लम्बाई लगभग 6 इंच के आस-पास होती है और औसतन वजन लगभग 80 ग्राम से 150 ग्राम के बीच होता है। ज्यादातर गौरैया चिड़िया भूरे या स्लेटी रंग की होती हैं। गौरैया चिड़िया को उसके गोल घुमावदार सिर और मुलायम पंखों से पहचाना जा सकता है। गौरैया के छोटे दिखने वाले पैर उसके जमीन के नीचे से खाना ढूँढ़ने में मददगार होते हैं। इन चिड़ियों की आवाज बहुत ही मनमोहक होती है। आप गौरैया चिड़िया को अपने घरों के आस-पास गुनगुनाते और चहकते हुए देख सकते हैं। 

छोटे कीड़े, फसलों और फलों के दाने, बीज इत्यादि का सेवन करती हैं चिड़िया


गौरैया चिड़िया का भोजन, रहन-सहन और प्रजनन विशेषताएं की यदि हम बात करें तो गौरैया ज्यादातर छोटे कीड़े, फसलों और फलों के दाने, बीज इत्यादि का सेवन करती हैं। गौरैया चिड़िया अपने बच्चों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें कीड़े खिलाती हैं। गौरैया चिड़िया ज्यादातर मानव बस्तियों के अन्दर ही अपना घोंसला बनाती हैं। गौरैया घास-फूस, तिनके और अन्य छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर घरों, कोटरों या झोंपड़ियों के अंदर अपने घोंसले बनाती हैं। गौरैया ज्यादातर समूहों में उड़ती और खाना खोजती हैं। एक गौरैया एक बार में  4 से 5 अंडे देती हैं, गौरैया के अण्डों से बच्चे निकलने में लगभग 2 सप्ताह का समय लगता है। बच्चे सामान्यतया अण्डों से निकलने के 15 दिनों के अन्दर उड़ना शुरू कर देते है। 

प्रति वर्ष 20 मार्च को अंतराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है


वहीं नर और मादा गौरैया को उनके रंगों के आधार पर पहचाना जा सकता है। मादा गौरैया पूरी तरह गहरे भूरे रंग की होती हैं वहीं नर गौरैया के गर्दन और पंखों पर काले रंग की पट्टी होती है। प्रति वर्ष 20 मार्च को अंतराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है इस दिन गौरैया चिड़िया की घटती जनसंख्या को लेकर उन्हें बचाने का अभियान चलाया जाता है। गौरैया चिड़िया इंसानों के नजदीक रहने के कारण इनके खाने में फल, बीज, दाने आदि का भोजन शौक से करती है। गौरैया की तेजी से घटती संख्या को चिंताजनक मानकर इसे पक्षियों की खत्म होने के खतरे की स्थिति श्रेणी में डाल दिया है।

वैज्ञानिकों की एक रिसर्च टीम ने गौरैया को 20 हजार फीट की ऊंचाई पर भी उड़ाकर देखा है


गौरैया चिड़िया सामान्यतया 24-25 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ती हैं लेकिन खतरे की स्थिति में इनके उड़ने की गति 31 मील प्रति घंटा तक हो सकती है। गौरैया चिड़िया को ज्यादातर साँपों, लोमड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों इत्यादि से खतरा रहता है। इन सभी जानवरों के पास इस चिड़िया को आसानी से नुक्सान पहुँचाने की क्षमता होती है। वहीं गौरैया का जीवनकाल औसतन 4-5 साल के बीच होता है। कुछ गौरैया के 12 साल और उससे भी अधिक समय तक जीवित रहने की पुष्टि हुई है।
        एक समय में चीन की सरकार ने गौरैया से फसलों को बचाने के लिए लाखों चिड़ियाओं को एक साथ मारने का अभियान चलाया था। 1950 के समय में चलाये गए इस अभियान से चाइना सरकार को नुक्सान ही झेलना पड़ा और जिन कीड़ों को गौरैया खा जाती थी उन्ही कीड़ों ने फसल को बर्बाद कर दिया। गौरैया चिड़िया ज्यादातर सीधा चलने वजाय एक जगह से दूसरी जगह कूद-कूद कर चलती है। गौरैया सामान्यतया उड़ते हुए 10 से 12 हजार फीट की ऊंचाई तक चली जाती हैं। वैज्ञानिकों की एक रिसर्च टीम ने गौरैया को 20 हजार फीट की ऊंचाई पर भी उड़ाकर देखा है। 


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