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भारतीय खेती व्यवस्था में फागुन पूने होरी और फाग, प्रत्येक भारतीय लोक पर्व खेती किसानों से जुड़े होते है

भारतीय खेती व्यवस्था में फागुन पूने होरी और फाग, प्रत्येक भारतीय लोक पर्व खेती किसानों से जुड़े होते है

इस पर्व पर किसानों को याद करें उनके योगदान को याद रखें और उनकी समस्याओं और उनके निदान पर चिंतन करें


लेखक-विचारक
सुरेश प्रसाद अहिरवार
रिसर्च स्कोलर,
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली 

फागुन पूने (पूर्णिमा) की होरी का पर्व किसानों को पूरे साल की अगवाई करता है। इस भारतीय माह का नाम ही फाग के आधार पर फागुन पड़ा है। भारतीय इतिहास लोक परम्पराओं में रचा बसा हुआ है और लोक परम्पराएँ आज भी भारतीय चरित्र में रची बसी हैं, मानव मन लोक परम्पराओं से आनंदित होता है।
                


यह लोक परम्पराएँ भारत में हजारों सालों से चली आ रही है। भारत भूमि में सभी आकर समा गए. बाहर से आयें हजारों सामाजिक समूहों ने भारत की लोक परम्पराओं की अपने अनुसार व्याख्या करने की कोशिश की है क्योकिं लोक परम्पराओं को बदलना किसी भी बस की बात नहीं होती है। बाहरी लोगों को लोक परम्पराओं की विकृत व्याख्या करके स्वंय को स्थापित करना सरल कार्य था। 

लोक परम्पराएँ को विकृत होने से बचाना चाहिए 

भारतीय सनातन संस्कृति ने प्रकृति को संवारा और विकसित किया है इसलिए इसके पर्व भी खेती व्यवस्था से ही जुड़े हुए होते हैं। होरी और फाग दो मिश्रित पर्व है जो हर्ष उल्लास के साथ सेवा, सत्य, करुणा, अहिंसा, भाईचारा और शीलों का सन्देश देते हैं. भारतीय परम्पराओं में इनके खिलाफ समर्थन में किसी भी प्रकार के साक्ष्य नहीं मिलते हैं. भारत में पहली बार लौकिक परंपराओं के खिलाफ और मानवीय गुणों के खिलाफ, अमानवीय गुणों को स्थापित करने के लिए परिकल्पित साहित्य का सहारा लिया गया।
                जिससे लोक परम्पराएँ दूषित हो गई हैं, उनमें से एक यह पर्व भी है। होरी और फाग की किसी भी प्रकार की धार्मिक व्याख्या इसके मूलभाव से भटकाने के अलावा और नहीं हैं। किसी लोक को बर्बाद करना हो तो उस लोक की परम्पराओं और पर्वों की विकृत धार्मिक व्याख्यायें कर दी जाती हैं जो उन्हें चोपट करने के लिए पर्याप्त होती है। अत: लोक परम्पराएँ को विकृत होने से बचाना चाहिए।
                विदेशी व्याख्याकार लोक परम्पराओं को विकृत व्याख्या कर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक षड़यंत्र करते आयें हैं। यह बहुत सोची समझी सांस्कृतिक चाल के तहत किया जाता है। प्रत्येक भारतीय लोक पर्व खेती से जुड़े होते हैं इसके अलावा इनकी व्याख्या, झूठ सांस्कृतिक षड़यंत्र के अलावा और कुछ नहीं है। 

होरी और फाग किसानों से जुडा पर्व है, जब किसान खुशहाल हो तो पूरा समाज खुशहाल होता है 

भारतीय संस्कृति कर्मवाद और नैतिकता के साथ मजबूती से खड़ी है। जहाँ लोग स्वेच्छिक कम्मा (कर्म) और धम्म (धर्म) में विश्वास करते आये हैं। कर्म-धर्म की अवधारणा ही सनातन भारतीय संस्कृति है। जहाँ धर्म-कर्म हो वहां उसकी झूठी व्याख्यायें कैसे हो सकती है? होरी और फाग किसानों से जुडा पर्व है।
                जब किसान खुशहाल हो तो पूरा समाज खुशहाल होता है। ऐसे समाज में किसी भी प्रकार की असमानता और दु:ख का कोई स्थान नही होता है बल्कि पूरा समाज खुशी से झूम जाता है। किसान परिवार विभिन्न फसलों (जैसे गेहूं,चना आदि)  को भूनकर या उनका होरा बनाते थे, होरी, होरा बनाने या भूनने की एक प्रक्रिया है। बुंदेलखंड में भूनने की क्रिया को आज भी होरी के नाम से ही जानते हैं। होरा बनने के बाद पूरा गाँव बैठकर सामूहिक होरा का भोज करते थे। इस भोज में भुने हुए चना, ज्वार, और गुड़ आदि को शामिल किया जाता है। 

गाँव में लोग खेत में खड़ी फसलों को देखकर फाग को गाते थे 

आम जन मानस बहुत खुश होता है. यह पर्व दो हिस्सों में पूरा होता है। होरी और फाग, होरी में विभिन्न फसलों को भूनकर होरा बनाया जाता है जो एक खाद्य पदार्थ है जबकि फाग यानी रंग का लगाने की प्रक्रिया है. फाग त्यौहार रंग का है। इस प्रकार होरी और फाग दो अलग अलग प्रक्रियां है। जिसे धार्मिक और सिनेमाई हुडदंग ने मिला दिया है, फाग पूरे सप्ताह चलने वाला उत्सव है।
                रंग पंचमी और रंग सप्तमी तक चलता है। बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि फाग को गाया और बजाया भी जाता है। गाँव में लोग खेत में खड़ी फसलों को देखकर फाग को गाते थे, जिसे फगवाये (फगबाया) कहा जाता है।  फाग उत्सव में पूरा गाँव शामिल होता है। 

 वे अपने पुरखों के सांकेतिक स्थानों पर फाग का आयोजन करते हैं 

गाँव में लोग अपने पुरखा धार्मिक मत को मानते है। वे अपने पुरखों के सांकेतिक स्थानों पर फाग का आयोजन करते हैं अर्थात होरी और फाग पुरखों के धर्म को मानने वालों से जुड़ता है जिसकी जड़े आजीवक मत में धसीं हैं जो किसी अलोकिक ईश्वर को नहीं मानते थे।
                बुंदेलखंड के गांवों में अभी मान्यता है कि यदि किसी के रिश्तेदार के यहं किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके यहाँ अनरे की फाग करने के लिए सभी रिश्तेदार जरुर जाते हैं यानी जिस परिवार में किसी की मृत्यु हो गई है वे पहले रंग नहीं लगाते हैं बल्कि अन्य रिश्तेदार उस परिवार हो रंग लगाकर फाग में शामिल करते है। मृत व्यक्ति की याद में फाग का रंग पहले उसे सांकेतिक तौर पर  लगाया/चढ़ाया  जाता है, उसके बाद किसी अन्य व्यक्तियों को फाग का रंग लगया जाता है। 

भारत में खेतिहर किसानों का उत्सव, भारतीय मूल लोगों का उत्सव है 

यह परम्परा भारत में आज भी जारी है, यह भारत में खेतिहर किसानों का उत्सव, भारतीय मूल लोगों का उत्सव है। यह पर्व भारतीय अर्थ व्यवस्था से जुड़ा है। विदेशी संस्कृति के लोगों के लिए यह सिर्फ रंग का पर्व है अश्लीलता प्रकट करने की खुशी के लिए है वे इस पर्व में शामिल होकर खुश हो रहे हैं।
            भारतीय सनातनी लोगों के लिए यह व्यापक शलील, समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक अंतर्सम्बंधता को परिभाषित करता है। यह भारतीय संस्कृति की खूबसूरती है, होरी की आग को घरों में लाकर चूल्हा जलाना इसलिए मंगलमय माना जाता है ताकि पूरे वर्ष भर हमारे खेत खलिहान फसलों से भरे रहें और रंग खुशहाली का प्रतीक है। 

क्योकि माँ का स्थान दाई नहीं ले सकती है 

होरी और फाग भारतीय गणव्यवस्था के प्रतीक पर्व है। यह गृहस्थों का पर्व है जो अवर्णनीय और अजातीय हैं. जहाँ सामाजिक समानता और भाईचारा ही केंद्र बिंदु में हैं जो इसके विपरीत धारा के लोग है। वे इसके मूलभाव को नहीं समझ सकते हैं क्योकि माँ का स्थान दाई नहीं ले सकती है, वे धार्मिक हुडदंग के हिस्सा मात्र हैं जो हुडदंगी धार्मिक साहित्य की लिखी वांच कर और रंग और गुलाल उड़ा रहे हैं।
                 वे सनातन संस्कृति के मर्म को नहीं समझ सकते हैं बल्कि वे इस भारतीय पर्व का उपहास यह कहकर कर उड़ा रहे हैं कि होरी जलाकर अपनी धार्मिक जीत का जश्न मना रहे हैं। यह पर्व किसानी/खेतीहर व्यवस्था  को समर्पित है। इस पर्व पर किसानों को याद करें उनके योगदान को याद रखें और उनकी समस्याओं और उनके निदान पर चिंतन करें। फागोत्सव को हार्दिक बधाइयाँ

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