गोंडवाना भू-भाग के सम्मान और सर्वांगीण विकास हेतु गोंगपा की जीत जरूरी-ति. गायत्री मरकाम
जिसका अतीत जितना शानदार होगा उसका भविष्य उतना ही सुरक्षित रहेगा
अतीत की ईंट और वर्तमान मे किए गाढ़े-चूने से ही भविष्य रूपी किले-महल निर्मित होती है। जिसका अतीत जितना शानदार होगा उसका भविष्य उतना ही सुरक्षित रहेगा। अतीत से सबक लेकर ही हम वर्तमान को सजाते,और भविष्य को संवारते हैं। मैकाले के अनुसार- किसी भू-भाग को गुलाम बनाना हो तो सबसे पहले उसके इतिहास को नष्ट कर दो ।
उपरोक्त कथनानुसार संपूर्ण गोंडवाना भू-भाग इसका भुक्तभोगी है। वैश्विक भूगोल,इतिहास और ब्रिटिशकालीन साहित्य के अध्ययन में भूविज्ञान की भाषा में पेंजिया के विखण्डन उपरांत दक्षिणीभाग-विशाल गोंडवाना लैंड का निर्माण का अपना ऐतिहासिक महत्व दशार्या गया है। गोंडवाना लैंड अर्थात-भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिणी अमेरिका, आफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मेडागास्कर, श्रीलंका, अंटार्कटिका का विशाल क्षेत्र। गोंडवाना जातिवाचक नही अपितु भूवाचक व प्रजावाचक है।
यह षड्यंत्रकारी स्थिति गोंडवाना भू-भाग के सर्वसमुदाय के लिए चिंताजनक है
संपूर्ण देश में गोंडवाना साम्राज्य का अपना एक अमिट व जीवंत इतिहास रहा है। आज भी ऐतिहासिक गोंडवाना साम्राज्य के शासकों के किले, महल, गढ़, गढी, बावली, ताल-तलैया, धरोहरों व विशाल स्मारकों का होना उनके जीवंत प्रमाण हैं। वर्तमान प्रायोजित राजनैतिक माहौल में हम अपने इतिहास को नजरअंदाज करने लगे हैं। आज गोंडवाना भू-भाग विश्व के आधे हिस्से को एक छोटा सा अंश बना दिया है।
जिससे गोंडवाना भू-भाग के सर्वसमुदाय को गोंडवाना के इतिहास से पूरा परिचय नहीं हो पाता। अपने राजा महाराजाओं, प्रशासकों, पूर्वजों, पुरखों की आन-बान-शान से उनके त्याग और बलिदान से, उनकी शूरता और वीरता से, उनके स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान से गोंडवाना के मूल मालिक परिचित नही हो पा रहे हैं। यह षड्यंत्रकारी स्थिति गोंडवाना भू-भाग के सर्वसमुदाय के लिए चिंताजनक है।
चिंतन मनन करना आवश्यक है
आज गोंडवाना भू-भाग की राजनीतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, दार्शनिक, आर्थिक, सामाजिक, भाषिक और व्यवहारिक दशाओं पर जानना समझना चिंतन मनन करना आवश्यक है। अत्याचार, शोषण, प्रताड़ना बर्दाश्त से बाहर हो गया तब जनजातीय समुदाय ने अपने सरदारों एवं मुखियाओं के नेतृत्व मे हथियार उठाने बाध्य हुए और सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर दिया, यहीं से वास्तविक आंदोलन की शुरूआत हुई।
आजादी के उपरांत गोंडवाना भू-भाग के सम्मान व सर्वांगीण विकास हेतु गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन के जनक, गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी द्वारा सर्वसमुदाय के हितार्थ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना की गयी। वर्तमान में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ही एक मात्र सवार्गीण विकास के लिए प्रतिबद्ध पार्टी है, जो हमेशा देश एवं भू-भाग के सम्मान व स्वाभिमान के लिए संविधान सम्मत व्यवस्था और समस्त कारकों के संरक्षण कायम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
75 वर्ष कम समय नही होता है बल्कि औसतन तीन-तीन पीढियां गुजरने वाला समय है
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आज इस बात पर मंथन करती है कि आजादी के 75 वर्षों मे विभिन्न राजनीतिक दलों ने देश व राज्य मे सत्तासीन रहे लेकिन 75 वर्षों में पूर्ण रूपेण मूलभूत आवश्यकताओं व सुविधाओं की पूर्ति नही कर पाये। जबकि 75 वर्ष कम समय नही होता है बल्कि औसतन तीन-तीन पीढियां गुजरने वाला समय है।
नागरिकों को लक्ष्य मे रखकर योजनायें तो बनायी गयी, जो सरकारों की जिम्मेदारी भी थी, आंशिक विकास हुआ, लेकिन सिर्फ और सिर्फ सत्तासीन नेताओं के। बहुतायत आम जनता आज भी रोटी कपड़ा और मकान के लिए तरस रहा है वहीं बिजली, पानी और सड़क के लिए गुहार लगाता फिर रहा है, जगह जगह आंदोलन कर रहा है। जबकि संविधान मे व्यवस्था है कि हम नागरिकों को लोक कल्याणकारी राज्य उपलब्ध करायेंगे। लोक कल्याणकारी राज्य का दायित्व था कि जनहित मे उपरोक्त सुविधायें जनता को उपलब्ध कराना ही था।
मानवीयता इतनी तार-तार हुई है कि यथार्थ लिखने मे रूह कांप जाती है
सरकारों की इस धन बटोरने की आपा-धापी में जरूरत मंद आभार जनता की हालत दिनों-दिन खराब हो रही है जबकि योजनायें बजट आदि ऐसे ही जरूरतमंदों को ध्यान मे रखकर बनाये जाते हैं। धन बटोरने की इस आपा-धापी मे विकास तो कोसों दूर, बल्कि आये दिन अत्याचार, शोषण, बलात्कार, हत्याकांड, प्रताड़ना और भी बढ़ता जा रहा है।
देश ऐसे उदाहरणो से भरा पड़ा है। जैसे साम्प्रदायिक दंगो से जलता मणिपुर राज्य, मध्यप्रदेश पेशाब कांड, नेमावर हत्याकांड, भोपाल पेशाब कांड, गोहत्या के नाम पर निर्दोषों की पीट-पीटकर हत्या सिवनी कांड, नाबालिग बच्चियों से बढते बलात्कार,आज धर्म की नगरी भी सुरक्षित नही है। मानवीयता इतनी तार-तार हुई है कि यथार्थ लिखने मे रूह कांप जाती है।
अपराधियों को संरक्षण आखिर कौन दे रहा है ?
इन घटनाओं से प्रदेश शर्मसार हुआ है। यह गंभीर चिंतनीय व विचार-विमर्श का विषय है कि अपराधियों को संरक्षण आखिर कौन दे रहा है ? अपराधियों के हौसले इतने बुलंद क्यों है ? या कानून का भय ही समाप्त हो गया है ? इस बात के अंदेशा से इंकार नही किया जा सकता कि कहीं न कहीं सत्तासीन संरक्षण पाकर ही ऐसे उपद्रव बढ़ रहे हों ? के बावजूद विकट दिक्कत यह है कि जिम्मेदार मानने को तैयार ही नही है कि उपरोक्त घटनाएं, समस्याओ के रूप मे हैं और सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हैं।
बल्कि सीधे-सीधे जनता के मन-मस्तिष्क को भटकाकर अपने नियत और नियति मे खोट को स्वयं उजागर कर रहे हैं। हद तो तब हो जाती है,जब ज्वलंत समस्याओं के भी फायदे गिनाए जाते हैं, प्रदेश व जनजातीय आबादी की शिक्षा का स्तर इतना उच्च नही है कि इन प्रायोजित वाक्यांशो व जुमलों को समझ सकें वे आसानी से गिरफ्त मे आ जाते हैं, एवं अपने लिए वास्तविक विकास के चयन से दूर हो जाते हैं।
सबसे ज्यादा दुर्दशा जनजातीय आबादी की ही है
लगातार उपरोक्त घटनाएं जनजातीय बाहुल्य प्रदेशों और जनजातीय क्षेत्रों मे हो रही हैं। सबसे ज्यादा दुर्दशा जनजातीय आबादी की ही है, क्योकि जनजातीय आबादी जो प्रकृति सम्मत व्यवहार के लिए जाने जाते हैं, आज वह अपने अस्तित्व अस्मिता मान सम्मान, स्वाभिमान के साथ-साथ भाषा, साहित्य , दर्शन ,सामाजिक राजनीतिक, आर्थिक, राजनीतिक अस्तित्व को पुन: प्राप्त करने के लिए संघर्षरत है।
मानव संसाधन का समुचित विकास व उपयोग करने मे सरकार वास्तविक रूप से विफल है । लेकिन नादतंत्र निष्पक्ष और हकीकत की नाद न करते हुए, इशारों मे नाद कर रही है। जिससे जनता वही सुने, वही जाने ,वही समझें, जो सत्ता की दृष्टिकोण से सही हो।
यह सब पैंतरे अब विफल होगी क्योंकि जब लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ, स्तंभ न रहकर सिर्फ स्तंभ होने का दम भरे तो यह समझना जरूरी है कि यह दंभ वास्तविक नही है। विकास के दावे बहुत हुए लेकिन धरातलीय हकीकत यह है कि सब दिखावटी साबित हुए।
संपूर्ण जनजातीय समुदाय का विकास भी नही हो पाया
प्रदेश मे जनजीवन उपयोजना और अलग से बजट प्रावधान के बाद भी, प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण जनजातीय समुदाय का विकास भी नही हो पाया। प्रदेश मे देशज समुदाय की विशेष पिछडी जनजातीय समूह मे बैगा भारिया और सहरिया है। बैगा, भारिया और सहरिया के विकास हेतु बैगा विकास प्राधिकरण, भारिया विकास प्राधिकरण और सहरिया विकास प्राधिकरण पूर्व सरकारों द्वारा बनायी गयी व करोड़ो का बजट प्रावधान रखे गये। लेकिन आज चिंतनीय विषय है कि क्या उपरोक्त समुदाय का सर्वांगीण विकास हो पाया ? नही हो पाया है, आज भी बैगा भारिया सहरिया समुदाय के गांव/मोहल्ले तक पहुंच मार्ग तक नही बन पाया।
अंतत: अरबो खर्च कर परिणाम क्या मिला ?
अंतत: अरबो खर्च कर परिणाम क्या मिला ? यह ज्वलंत प्रश्न का जवाब जनता जानना चाहती है। जबकि सरकार का उद्देश्य विकास होना था, पर विकास नही हुआ । इसका सीधा, सटीक व सारगर्भित आशय यही समझ मे आता है कि - जनजातीय समुदाय, राजनीतिक प्रयोगशाला का सैंपल मात्र है, जिसके नाम पर सैकड़ो योजनायें व करोड़ो खर्च की गयी पर वास्तविक रूप से विकास से दूर रखा गया।
पर अब प्रदेश की जनता समझ चुकी है इसलिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भविष्य मे कभी जनजातीय समुदाय को राजनैतिक प्रयोगशाला का सैंपल नही बनने देगी। इतने वर्षों से छलावे- झूठे वादों से त्रस्त जनजातीय आबादी और सभी नागरिको के सामने सिर्फ और सिर्फ गोंगपा ही एक मजबूत विकल्प है जिसकी प्राथमिकता यथा-संविधान का अक्षरश: क्रियान्वयन, कानून का शासन, अत्याचार शोषण और प्रताड़ना से मुक्ति, सबको मूलभूत अधिकार, युवाओं को रोजगार और सर्वसमुदाय का कल्याण है।
हम आज राजा-महाराजाओं के वंशज होकर भी रंक कैसे हो गये ?
सभी जागृत चेतनायुक्त मस्तिष्क में अब इस पर भी मंथन की आवश्यकता है कि गोंडवाना के वैभवशाली इतिहास और राजनीतिक प्रभुत्व को बनाए न रख पाने में, हमसे कहां- कहां चूक हुई ? कहां- कहां छलावा हुआ ?, किस-किस ने छलावा किया है ?, जिससे हम आज राजा-महाराजाओं के वंशज होकर भी रंक कैसे हो गये ? जिसका निरंतर खामियाजा आज भी संपूर्ण गोंडवाना उठा रहा है।
गोंडवाना के सभी रियासतें व कोयापुनेम दर्शन दांव मे लग गया । प्रकृति सम्मत गोंडी भाषा बली की बेदी चढ़ गयी फिर भी न गोंडी भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची मे स्थान मिला और न ही गोंडवाना भू-भाग के मूलनिवासियों को गोंडवाना प्रदेश नसीब नही हुआ। यह प्रत्यक्षत: गोंडवाना भू-भाग के सम्मान व सर्वांगीण विकास के साथ भेदभाव है,इसकी सुरक्षा व संरक्षण के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की जीत जरूरी है।