अंग्रेजों ने क्रांतिकारी शहीद वीरनारायण सिंह को सरेआम तोफ से उड़ाकर, 10 दिनों तक रायपुर जय स्तंभ चौक में लटकाये रखा था
छ.ग. स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह सोनाखान ने अंग्रेजों की किया था हालत खराब
भारत को इन्ही देशभक्तों के बलिदान के बदौलत मिली आजादी
आजादी के लिये शहादत देने वाले आदिवासी वीरनायकों को इतिहास में और न ही वर्तमान में मिल पा रहा सम्मान
अंग्रेजों से आजादी दिलाने में सबसे पहले विरोध का बिगुल फूंकने वाले सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही है भले ही उन्हें इतिहासकारों ने आजादी के आंदोलन में प्रमुख में स्थान नहीं दिया होगा लेकिन आदिवासियों का योगदान व प्रमाण आज भी प्रमाणित रूप से जिंदा है।
इतना ही नहीं देश में अंग्रेजों ने आजादी के आंदोलन में संघर्ष करने वालों को गोलियों से भूना और फांसी में भी लटकाया लेकिन जिस बर्बर तरीके से आदिवासी बीर योद्धाओं की अंग्रेजों ने लिया वह किसी ओर समाज की नहीं लिया है हम आपको बता दे कि यह प्रमाणित इतिहास है कि अंग्रेजों ने शहीद वीरनारायण सिंह को रायपुर में और राजा शंकरशाह व कुंवर रघुनाथ शाह को जबलपुर में तोफ से उड़ाकर उनकी दर्दनाक, दिल को दहलाने वालाी, रूह को कंपा देने वाली शहादत लिया था और यह भी सत्य है कि आदिवासी बलिदानियों की ऐसी शहादत ओर किसी की नहीं ली गई है, यह गोेंडवाना के शेर, गोंडवाना के सपूत आदिवासी समाज के गौरव पहले भी थे और आज भी है लेकिन यह भी सत्य है कि आजादी के दौरान आदिवासियों की शहादत को इितहासकारों ओर कलमकारों ने उन्हें शहादतों की सूची कहो या कहानियों, संदेशों में स्थान देने में जानबूझकर कंजूसी किया है,
इसलिये आजादी के आंदोलन में अंग्रेजी हुकुमत से संघर्ष कर शहादत देने वाले आदिवासी शहीदों को इतिहास में न तो पहले वह सम्मान मिला और न ही आजादी के बाद की सरकारों ने आदिवासी शहीदों को सम्मान देना उचित समझा है, इसके पीछे क्या कारण है यह तो आजादी के बाद शासन-सत्ता-सरकार चलाने वाले ही जानते है और इन शासन सत्ता में भागीदार आदिवासी समाज के अधिकांश जनप्रतिनिधि भी जानते ही होंगे आखिर क्यों आदिवासियों की शहादत को भारत में सम्मान नहीं मिला ?
अंग्रेजों ने निर्दयीता, बर्बरता और भयानक रूप से मृत्यू दण्ड सिर्फ आदिवासी वीरों को ही दिया
अंग्रेजो ने बड़ी ही निर्दयीता, बर्बरता और भयानक रूप से मृत्यू दण्ड देने की योजना के तहत वीर योद्धा शहीद वीरनारायण सिंह को सबके सामने भरे चौराहे पर सरेआम जय स्तम्भ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1856 को तोप से उड़ाकर उनके अंग-भंग शरीर को चौक मेंं 10 दिनों तक टांगकर रखा था और फिर 19 दिसम्बर 1856 को उसे उतारकर उनके परिजनों को सौंपा गया था।
रायपुर के भरे चौराहे में 10 दिनों तक शहीद वीर नारायण सिंह के क्षत-विक्षत शरीर को सिर्फ इसलिये लटकाकर रखा गया ताकि कोई और देशभक्त इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ सर ऊंचा न कर सके लेकिन उसका परिणाम यह हुआ कि इसे देखकर देश की जनता में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश और उग्र हो गया था और भारतीयों में आजादी पाने की ललक और अधिक बलवती हुई तो पूरे भारत में अंगे्रजों के खिलाफ 1875 की क्रांति की शुरूआत हुई और लगभग 100 साल बाद 1947 में भारत को इन्ही देशभक्तों के बलिदान के बदौलत आजादी मिली।
जय स्तंभ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1856 को अंग्रेजों ने तोप से उड़ाया था
शहीद वीरनारायण सिंह को आम जनता के बीच में भरे चौराहे में जय स्तंभ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1856 को अंग्रेजों ने तोप से उड़ाया था। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शहीद बलौदा बाजार जिला में सोनाखान रियासत के जमींदार शहीद वीरनारायण सिंह ने सन 1856 में अंग्रेजो के खिलाफ जनता, जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा हेतु क्रांन्ति का बिगुल फुक दिया था।
सोनाखान रियासत में घोर अकाल पड़ गया। वहां की प्रजा दाने-दाने को मोहताज हो गई। शहीद वीरनारायण सिंह ने अपने रियासत में जमा सभी गोदामों से अनाज को निकलवाकर आम जनता में बांट दिये। इसके बावजूद वहां अनाज की कमी से लोग भूख से बेहाल हो गए। माताओं के स्तन पर दूध सुखने लगे थे जिसके कारण छोटे-छोटे बच्चे भुख के कारण तड़फ-तड़फ कर मृत होने लगे ।
अंग्रेजों के खिलाफ छापेमार शैली में स्वतंत्रता संग्राम का फूंकते थे बिगुल
शहीद वीरनारायण सिंह जी जनता की यह दुर्दशा देखकर अत्यन्त दुखी हो गए। उन्होने आदेश दिया की जिन-जिन लोगो के पास अनाज जमा करके रखे हैं वे जरूरतमंद जनता में उधार स्वरूप दे दीजिए और जब नई फसल आयेगी तो ब्याज सहित उसे वापस कर दिया जावेगा।
सभी ने शहीद वीरनारायण सिंह के आदेश का पालन करते हुये जिनसे जितना बन पड़ा वहां की जनता की मदद किये लेकिन इतने अनाज से भी कुछ नहीं हुआ। उस समय कसडोल में अंग्रेज का पिट्ठु एक बड़ा व्यापारी जो मुनाफा कमाने के लिये सबसे ज्यादा अनाज जमा करके रखा हुआ था उन्होंने अनाज देने से साफ इंकार कर दिया।
शहीद वीरनारायण सिंह जी को जब पता चला कि इस व्यापारी के पास भारी तादाद में अनाज है तो उन्होने प्रजा की भूख मिटाने के लिये उनसे निवेदन करने गये और कहा कि आप इस अनाज को हमारी जनता को दे दीजिए जब भी नई फसल आयेगी तो उसे आप को ब्याज सहित वापस कर देंगे। व्यापारी ने अनाज देने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
बार-बार निवेदन का भी कोई असर उस व्यापारी पर नहीं पड़ा और इधर भूख से जनता त्राहि-त्राहि होने लगी तो मजबूर होकर जनता की जान बचाने के लिये उस व्यापारी के अनाज को प्रजा में बांट दिए। व्यापारी ने इसकी शिकायत रायपुर में अंग्रेजो को भेज दिया।
अंग्रेज पहले से ही नाराज तो थे ही क्योंकि लगातार अंग्रेजों के खिलाफ शहीद वीरनारायण सिंह छापेमार शैली में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फुंकते रहते थे। इस घटना के बाद आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई। अंग्रेजों ने लगातार सोनाखान क्षेत्र में कई आक्रमण किये लेकिन प्रत्येक आाक्रमण का शहीद वीरनारायण सिंह ने मुंहतोड़ जवाब दिया। शहीद वीरनारायण सिंह को हराना असंभव ही था क्योंकि उनके साथ उनकी जनता और मुट्ठी भर उनके सैनिक जी-जान से उनका साथ दे रहे थे।
अंग्रेजों को छत्तीसगढ़ से अपनी जमीन खिसकती हुई दिख रही थी
अंग्रेजों को छत्तीसगढ़ से अपनी जमीन खिसकती हुई दिख रही थी और जनता में स्वतंत्रता की आस दिख रही थी। अंग्रजों ने बाजी हाथ से निकलता देख कुटनीति का सहारा लिया और शहीद वीरनारायण सिंह के चचेरे भाई को प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा लिया। अंग्रेजों द्वारा सोनाखान क्षेत्र की जनता को भयंकर प्रताड़ना दी जाने लगी। कई बार तो उस क्षेत्र के घरों में आग लगा दिया गया।
परिणाम यह हुआ की सोनाखान के पहाड़ में चोरी-छिपे जाकर अंग्रेजो ने भीषण संघर्ष के बाद शहीद वीरनारायण सिंह को गिरफतार कर लिया और उन्हे सेन्ट्रल जेल रायपुर में लाकर बन्द कर दिया। अंग्रेजो के लिये यह बहुत बड़ी कामयाबी थी।
शहीद वीरनारायण सिंह को आम जनता के सामने भरे चौराहे पर सरेआम जय स्तम्भ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1856 को तोप से उड़ाकर उनके अंग-भंग शरीर को चौक मेंं 10 दिनों तक लटकाकर रखा था और 19 दिसम्बर 1856 को उसे उतारकर उनके परिजनों को सौंपा गया था।
रायपुर के भरे चौराहे में 10 दिनों तक उसे सिर्फ इसलिये लटकाकर रखा गया ताकि कोई और देशभक्त इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ सर ऊंचा न कर सके लेकिन उसका परिणाम यह हुआ कि इसे देखकर देश की जनता में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश और उग्र हो गया था और भारतीयों में अंग्रेजों से आजादी पाने की ललक भी बढ़ते गई परिणाम स्वरूप पूरे भारत में अंगे्रजों के खिलाफ 1857 की क्रांति की शुरूआत हुई और लगभग 100 साल बाद 1947 में भारत को इन्ही देशभक्तों के बलिदान के बदौलत आजादी मिली। आज 10 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह जी गोंडवाना समय परिवार शत-शत नमन, विनम्र देवांजलि अर्पित करता है ।
शौर्य भूमि सोनाखान में गूंजता है क्रांतिकारी वीर नारायण सिंह का नाम
छत्तीसगढ़ की राजधानी से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक ग्राम सोनाखान जिसके नाम से ही स्थान का परिचय हो जाता है सोनाखान सोने का भंडार धरती गर्भ में भरा पड़ा हो उस स्थान पर क्रांतिकारी वीर नारायण सिंह वीर सपूत का जन्म हुआ। वर्तमान में सोनाखान गांव अब जमीदार का महल नहीं है किंतु अवशेष के रूप में खंडहर है। उनके परिजन झोपड़ी नुमा घर में रहते हैं। गांव के पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी है जिसका नाम कुरू पाठ एक ऐसा स्थान है।
जहां साधारण रूप से तो कोई नहीं जा सकता, यहां छोटी सा झील है जहां सदैव पानी रहता है। उक्त स्थल बहुत ही मनमोहक, सौंदर्यीकरण का रूप लिये हुये मनोरम है। कुरू पाठ के उत्तरी छोर में बड़े तालाब है, राजा सागर तथा दक्षिण में एक तालाब मंद सागर सरोवर वीर नारायण सिंह द्वारा खुदवाये गए थे, वे उसी स्थान पर स्नान किया करते थे ।
आज की बस्ती नई है, पुरानी बस्ती तालाब से लगी हुई थी, माह दिसंबर 1857 में इन्हीं बस्तियों पर अंग्रेजों ने हमला कर अन्याय-अत्याचार किए थे। इतिहासकारों की माने तो अंग्रेजों जुल्म करने में मानवीयता की सीमा को पार करते हुये अंजाम दिया था बताया जाता है कि मासूम बच्चों को पकड़ कर धधकते आग में झोंक दिया गया था।
अंधाधुध गोलियां चलाकर सैकड़ों निर्दोश नर-नारियों को मौत के घाट उतार दिया था। आसपास की बस्तियों के लोग सेनापति के भय से घर छोड़ कर जंगल की ओर भाग गए थे। कुरु पाठ डूंगरी में युवराज वीर नारायण सिंह के वीरगाथा का जिंदा इतिहास दफन है जहां पुरातत्व विभाग द्वारा भी कुछ खुदाई की गई है। युवराज वीर नारायण सिंह के पास एक घोड़ा था जो स्वामी भक्त था। जिसका रंग कबरा था वह घोड़े पर सवार होकर सुबह के समय भ्रमण किया करते थे। प्रजा के सुख-दुख-दर्द को सुना करते थे।
तब से उनके नाम के आगे जुड़ गया था वीर
सोनाखान इलाके में एक नरभक्षी शेर का आतंक फैला था मनुष्यों एवं पालतू जानवरों को मारकर खा जाता था । प्रभावित क्षेत्र की प्रजा जमीदार वीर नारायण सिंह से सुरक्षा की मांग करने लगे तो बहादुर युवराज वीर नारायण सिंह 35 वर्ष के हष्ट पुष्ट बलिष्ठ नौजवान थे । उनमें अपूर्व उत्साह था प्रजा की सेवा करने हमेशा तत्पर रहा करते थे, उन्होंने खुंखार शेर को मार डालने की ठान ली और वे हमेशा बंदूक लेकर नरभक्षी शेर का जंगलों की बीहड़ो मैं खोजते रहे, बहुत दिनों तक शेर का पता नहीं चला अचानक एक दिन रायपुर के कस्बाई क्षेत्र में उत्पात मचाने लगा ।
युवराज वीर नारायण सिंह मुकाबले के लिए शेर के सामने लगभग निहत्थे खड़े हो गए, शेर ने युवराज पर आक्रमण कर दिया मुकाबला होने लगा तब म्यान से तलवार निकालकर शेर को मार डाला शेर तो आखिर शेर ही था लेकिन वह सवा सेर थे सचमुच में गोडवाना के शेर थे। इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार वीर की पदवी से सम्मानित किया तब से उनके नाम के आगे वीर जुड़ गया और वीर नारायण सिंह नाम से जाने जाते हैं ।