अमर शहीद वीर नारायण सिंह का ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का दमन चक्र के विरूद्ध संघर्ष व ऐतिहासिक शहादत
छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह 10 दिसम्बर 1857 की क्रांति कारी की ब्रिटिश काल में जन आंदोलन एवं अग्रेंजों का दमन चक्र मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में भारत
सारांश-
भारतीय इतिहास में छत्तीसगढ़ देश का एक गौरवशाली भूभाग रहा है। यहाँ पर सर्वधर्म समभाव की भावना विद्यामान है। विशेष महापुरूषों, गोंड राजाओं, साधु संत, महन्तों (महात्माओं) एवं वीर योद्धाओं ने छत्तीसगढ़ अंचल का नाम देश में रोशन किया। यह क्षेत्र राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इस अंचल में अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया तथा यहां कि माटी को गौरान्वित किया।
महानदी की घाटी के महान सपूत सोनाखान राज्य के जमींदार वीर नारायण सिंह-राजा का जन्म 1795 ई. में हुआ था। 1818-19 में अंग्रेजों एक भोसला राजा के विरूद्ध कर दिया था। नागपुर से आकर कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह कर दिया था। नागपुर राज्य के गाँवों की संख्या 3000 से घटाकर 2000 तक सीमित हो गयी। इसके बाद भी रामराय के जमाने मे दबदबा समाप्त नहीं हुआ और माटीपुत्रों के तलवार का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा। 1830 ई. रामराय की मृत्यु के पष्चात् नारायण सिंह 35 वर्ष की अवस्था में राजा बने।
जेल में बंद वीर नारायण के ह्रदय में राष्ट्र प्रेम हिलारे मारने लगा था
नारायण सिंह बाल्यकाल से ही तीर धनुष सीख चुके थे। परोपकारी प्रवृत्ति के कारण वे जन संपर्क में विष्वास रखते थे। अपने कबरे घोड़े पर सवार होकर गांव गांव भ्रमण कर जन समस्याएं सुनते थे। उन्होंने तालाब खुदवाना, वृक्ष लगवाना एवं पंचायतों के माध्यम से जन समस्याओं का समाधन करना, जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते थे। ठीक इस संमय पूरे देष में 1857 की क्रान्ति का बिगुल बज चुका था। समूचा देश भारत को स्वतंत्र कराने के लिए तथा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने को तैयार था।
जेल में बंद वीर नारायण के ह्रदय में राष्ट्र प्रेम हिलारे मारने लगा। क्रांति के इस दीवाने के मन को पत्थर की ऊंची दीवारे और लोहे के सख्त सीकचे अधिक समय तक जेल के भीतर नहीं रख सके और वही के देष प्रेमी सिपाहियों की मदद से 27 अगस्त 1857 को सुरंग के जरिये वे जेल से बाहर हो गये। उनके जेल के बाहर होते ही अंग्रेज कमिश्नर ने उन्हें पकड़ने वाले को एक हजार रुपए इनाम देने की घोषणा कर दी और उन्हें पकड़कर फॉसी की सजा सुनाने को कहा स्वयं वीर नारायण सिंह जानते थे कि उनके पास समय कम है वे सीधे सोनगांव पहुंचे। वहां उन्होंने परिणामों की तनिक भी परवाह किये बिना आदिवासियों के सहयोग से पांच सौं से अधिक हथियार बंद सैनिकों का दल गठित किया। सोनाखान की ओर आने वाले हर रास्ते पर नाकाबंदी करवाकर मजबूत दीवारे खड़ी करवा दी। निकट के गांवों से रसद, शस्त्र, गोला बारूद, आदि इकट्ठा किया और साहस के साथ मोर्चा संभाला और अंग्रेजों के विरूद्ध खुली बगावत का ऐलान कर दिया। उनकी गिरफ्तारी अब बिट्रिष कमिष्नर क लिए प्रतिष्ठा का प्रष्न बन चुकी थी तो उनके स्वत: के लिए आत्म सम्मान और देष की सुरक्षा व आजादी की आन बन गई थी।
जहाँ उन्हे गिरफ्तार करके 5 दिसम्बर 1857 को रायपुर में ईलियट के सुपुर्द कर दिया गया
इसी समय लेफ्टीनेंट स्मिथ के नेतृत्व में अंगे्रज सेना वीर नारायण सिंह को पकड़ने के लिए भेजी गई रायपुर से निकल कर इस सेना ने खरौंदा में डेरा डाला। इसी समय स्मिथ को नारायण सिंह का एक पत्र मिला जिसमें उनके देष प्रेम और स्वाभिमान की भावना झलकती है।
स्मिथ ने कई प्रकार से आक्रमण की योजना बनाई परंतु वीर नारायण सिंह की चतुराई रणकुशलता के सामने सब बेकार हो गई कई मुसीबतों को झेलता और कई दिनों तक कई रास्तों पर चक्कर लगता अपनी सेना को संगठित करता हुआ अतत: लेफ्टीनेंट स्मिथ सोनाखान के समीप पहुँचा गया परंतु वीर नारायण सिंह की सैनिक टुकड़ियों द्वारा गोलियों की बौछार कर देने के कारण उसे सफलता नही मिल पाई। इधर नारायण सिंह ने सोनाखान गांव खाली कर पहाड़ों पर जाकर मोर्चे की तैयारी कर ली, स्मिथ के सैनिको पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी गई परंतु स्मिथ गांव को आग लगाकर भागने में सफल हुआ।
इसके पश्चात नारायण सिंह ने सोनाखान से 7 मील दूर पर ही तोपों सहित अंग्रेजी सेना पर आक्रमण की योजना बनाई परंतु देवरी के जमींदार महाराज साय द्वारा स्मिथ से मिल जाने के कारण यह योजना क्रियान्वित नहीं की जा सकी तथा उनकी तोपे और सेना पहाड़ों पर यत्र तत्र बिखर कर रह गई। अपनी बची हुई जनता के रक्षा के लिए उन्होंने संघर्ष को आगे बढ़ाना उचित नही समझा और स्वयं ही स्मिथ के समीप उपस्थित हो गये, जहाँ उन्हे गिरफ्तार करके 5 दिसम्बर 1857 को रायपुर में ईलियट के सुपुर्द कर दिया गया।
अंग्रेजों की गुलामी से बचाने के लिये शहीद हो गये एवं इतिहास में अमर हो गये
ईलियट की अदालत में जो मुकादमा उसमें नारायण सिंह जैसे क्रान्तिकारी को मौत की सजा सुनाई गई। 10 दिसम्बर 1857 को नारायण सिंह को रायपुर के एक प्रमुख चैराहे पर तोपर के गोले से उड़ा दिया गया और छत्तीसगढ की भूमि पर अपने ही आदिवासियों की रक्षा हेतु क्रान्तिकारी वीर नारायण सिंह की संघर्ष में देश भक्ति भावना एवं धरती माटी को अंग्रेजों की गुलामी से बचाने के लिये शहीद हो गये एवं इतिहास में अमर हो गये।
अंगें्रजो ने उनके और उनके परिवारो के साथ कठोर कार्यवाही की। यद्यपि वीर नारायण सिंह का सषस्त्र संघर्ष और उनके सर्मथकों, अनुयाईयों का बलिदान कई पूर्ववर्ती ओर समकालीन बलिदानों की भांति व्यर्थ गया और इससे ब्रिटिष ताज की आन-बान खंडित नही हुई तथा भारत पर अंग्रेजो का शिकंजा और मजबूत हो गया परंतु इसके साथ ही यह भी उतना ही सत्य है कि ह्लउनका नेतृत्व अनिवार्यता परंपरागत था, जिसमें उसके आस-पास की बदली हुई दुनिया की चेतना।
बिल्कुल थी ही नही। कभी-कभी उन विद्रोहो को दबाने के लिए अंग्रेजो को बड़ी सेनाओं को इस्तेमान करना पड़ा लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बिट्रिश शासन के सामने कोई वास्तविक चुनौती नहीं रखी। उन विद्रोहों की बड़ी देन यह है कि उन्होंने विदेशी शासन के विरूद्ध संघर्ष करने की मूल्यवान स्थानीय परम्पराये स्थापित की एवं वीर नारायण सिंह का बलिदान व्यर्थ नही गया उन्होंने ऐसी मूल्यवान परम्परा को जन्म दिया जिस पर आगे चल कर भारतीयों ने अंग्रेजोें के छक्के छुडा दियें और उन्हें देष से बाहर निकलने पर विवष किया उनके बलिदान पर हम आज भी गर्व महसूस कर सकते है, एवं गौरान्विक समाज गोण्डवाना साम्राज्य को गुलाम बनने तथा जमीदारी प्रथा का अन्त जमीन भूमी भूभाग की रक्षा के लिये प्राण नौच्छावर एवं देश स्वतंत्रता मात्रभूमि की रक्षा के लिये प्रण समर्पण।
निष्कर्ष
अंग्रेज व्यापर करने के उददेष्य से भारत आये थे परंतु भारत की राजनैतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर यहां के शासक बन बैठे। प्रारंभ मे भारतवासी कंपनी की नीतियों को भलीभांति नही समझते थे, लेकिन उस पर जैसे-जैसे कंपनी की नीतियों का विस्तार भारत में होने लगा भारतीयों की समझ में शीघ्र ही ये बात आ गई कि अंगे्रज हमारे समृद्ध भारत के हर कोने को अपने व्यापर और आर्थिक लाभ के उददेष्य से उपयोग करना चाहते है और भारत का व्यापार तथा वाणिज्य अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी।
ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों के कारण गांव-गांव में फैले कुटीर उद्योग बंद हो रहे थे हुनर मंद दस्तकारों के हाथ बैकार हो रहे थे। कंपनी सरकार की कृषि नीति के कारण पड़ रहा था। नमक पर भी कर लगाया जा चुका था। छत्तीसगढ में भी भु-राजस्व में बढोत्तरी के आंकेडे चैकाने वाले थे छत्तीसगढ धान उत्पादक क्षेत्र था। हथकरझाा पर बने मोट कपडो के आलवा कांसे के कीमती कपडों, कांसे और पीतल के बर्तनों आदि के लिए विख्यात था, पर कंपनी सरकार की शोषण की नीति के फलस्वरूप समूचे भारत के समाज छत्तीसगढ में भी बैचेनी और बदहाली का वातावरण निर्मित हो रहा था।
हजारों ग्रामीणों के सामने रोजी और रोटी का संकट विकराल होता जा रहा था। और अपने देष की आजादी की चिंता उनके मन में झंझावत उपजाने लगी थी। इन्ही लोगो ने उन्नत: स्वराज और स्वधर्म की भावना से प्रेरित होकर सन् 1857 में क्रांति के आव्हान का उत्तर सोनाखान के आदिवासी जमीदार वीर नारायण सिंह के नेतृत्व मे अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हथियार बंद संघर्ष के जरिये किया।
छत्तीसगढ अंचल के रायपुर जिले के बलोद बाजार तहसील का गांव सोनाखान क्रांति की आग में सारे गांव ने तपकर और स्वयं वीर नारायण सिंह ने बहादुरी के साथ तोप के सामने खडे होकर आत्मोत्सर्ग कर अपने अंचल के नाम को सार्थक कर दिया था।
विशेष
1857 की अमर वीर गाथा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी छत्तीसगढ का प्रथम शहीद क्रांतिकारी ह्लवीर नारायण सिंहह्ल 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के एक चैराहे पर तोप के गोले से उडा दिया गया और छत्तीसगढ की भूमि पर अपने ही आदिवासियों की ह्लगोण्डवाना साम्राज्यह्ल की रक्षा के लिए इस क्रांतिकारी ने सहर्ष इस मौत को स्वीकार किया।
उन्होंने एक ऐसी मूल्यवान पम्परा को जन्म दिया जिस पर आगे चल कर भारतीयों ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दियें। और उन्हें देष से बाहर निकलने पर विवष किया किया (मजबूर किया) उनके बलिदान वीर सपूत गोंडवाना की धरती पर आज भी समूचे गोण्डवाना लैण्ड का इतिहास में वीर बहादुर की कठिन संघर्ष एवं साहस याद करेगा। इतिहास। जन्नी जन्मभूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जन्नी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढकर श्रेष्ठ है। जय वीर नारायण सिंह-अमर रहे-अमर रहे, सादर-शत शत कोटिष-नमन-नमन-नमन सादर सेवा-जोहार-जय प्रकृति (जय भारत)