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तब जरुरी हो जाता है अनुच्छेद-13 (3) एवं अनुच्छेद -244 में संदर्भित पांचवी अनुसूची को लागू करना

तब जरुरी हो जाता है अनुच्छेद-13 (3) एवं अनुच्छेद -244 में संदर्भित पांचवी अनुसूची को लागू करना

मैंने अपनी आँखों से देखा है, गरीबी, भुखमरी, लाचारी के आँगन में मानवता को दम तोड़ते हुये

भारतीय जेलों सबसे ज्यादा 70% प्रतिशत विचाराधीन हासिये पर मौजूद अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़ा वर्ग के लोग है

मि टेकेश्वर परस्ते सटीक व तथ्यात्मक दलील पेश कर विभाग को फाइनल रोलर ट्राफी दिलाने में रहे सफल 

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) फाइनल  डिबेट-2023 चाणक्यपुरी न्यू दिल्ली में संपन्न हुआ


नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
 

राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन भारत सरकार के द्वारा आयोजित 28 वां आॅल सेन्ट्रल आर्म्स पुलिस फोर्स डिबेट कॉम्पटीशन-2023 का फाइनल मुकाबला चाणक्य पूरी न्यू दिल्ली में किया गया। जिसमें सेन्ट्रल आर्म्स पुलिस फोर्स बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एआर, आरपीएफ, एनएसजी, एसएसबी, के बीच फाइनल में बहुत ही कड़ा मुकाबला हुआ।
                


इस महामुकाबला में मुख्य रूप से मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं पूर्व माननीय सर्वोच्य न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरुण कुमार मिश्रा, जनरल सेकेट्रीज (पीएमओ) सहित दर्जनों सीनियर आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, एवं सीनियर न्यायाधीश, एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट ) मौजूद रहे। फाइनल में कई प्रतिभागियों ने अपने अपने तरीके से बातो को साझा किया किसी ने इजराइल तो किसी ने एनसीआरबी की रिपर्टो के आधार पर बहस किया। 

आदिवासी के मुँह में पेशाब कर पूरी मानव जाति को शर्मसार किया गया 


वही मि. टेकेश्वर सिंह परस्ते ने इतना बड़ा राष्ट्रीय मंच जहां खुद मानव अधिकार मंचासीन हो उनके समक्ष हासिये पर मौजूद आदिवासियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हुये कहा महोदय मैं स्वयं आदिवासी, दलित परिवार से आता हू।
            मैंने अपनी आँखों से देखा है, गरीबी, भुखमरी, लाचारी के आँगन में मानवता को दम तोड़ते हुये, मैंने देखा एक बेटे को बीमार माँ को पीठ में लाद कर घुटनों तक कीचड़ में चलते हुये, मैंने देखा है गरीबी के दंश झेल रहे परिवार के जच्चा ओर बच्चा को तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ते हुये।
             हम सबने देखा है मध्यप्रदेश के सीधी का पेशाब काण्ड जिसमे दबंगो के द्वारा आदिवासी के मुँह में पेशाब कर पूरी मानव जाति को शर्मसार किया गया और मानवीयता को तार-तार किया गया है। 

आदिवासियों के मौलिक अधिकारों को कुचल कर जबरन विस्थापन कर दिया जाता है 


जैसे बातो को जबरस्त तरीके से पटल पर रखा है। मि. टेकेश्वर सिंह परस्ते ने धारा प्रवाह बोलते हुये कहा माननीय वन अधिकार अधिनियम 2006 एवं पेसा को ताक में रख कर कभी वन प्राणी संरक्षण के नाम पर तो कभी विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन की पूजा करने वाले पुजारी आदिवासियों के मौलिक अधिकारों को कुचल कर जबरन विस्थापन कर दिया जाता है। जिससे आजीवका के साथ-साथ संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव है। 

जनजातियों को न अधिकार पता होता है न कर्त्तव्य पता होता है 


मि टेकेश्वर सिंह परस्ते ने जोर देते हुये मानव अधिकार के सामने कहा की देश के कई हिस्सों से विलुप्त होती हुई जनजातियों को न अधिकार पता होता है न कर्त्तव्य पता होता है उन्हेें तो सिर्फ दो वक्त की रोटी ओर जीवन जीने की लालसा, तब जरुरी हो जाता है अनुच्छेद-13 (3)एवं अनुच्छेद -244 में संदर्भित पांचवी अनुसूची को लागू करना। 

 जमानत का पैसा वकील का फीस कहा से दे 


मि टेकेश्वर सिंह परस्ते ने एनसीआरबी की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुये बोला की भारतीय जेलों सबसे ज्यादा 70% प्रतिशत विचाराधीन हासिये पर मौजूद अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़ा वर्ग के लोग है, जिसमे कई कैदियों को ये भी नहीं पता की किस अपराध में बंद है, क्युंकी उसके परिवार के लोगों को दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करते करते शाम हो जाती है। जमानत का पैसा वकील का फीस कहा से दे।

सफाई कर्मचारी काल के गाल में समां जाते है 

मि टेकेश्वर सिंह परस्ते ने एक दलील में कहा स्वच्छता के सिपाही कहे जाने वाले सफाई कर्मचारी अपने बच्जो को दो वक्त की रोटी दे सके ऐसी जिम्मेदारी निभाते निभाते हर साल सैकड़ो सफाई कर्मचारी सीवर ओर गटर साफ करते करते काल के गाल में समां जाते उनके अधिकारों की कोई बात कौन करेगा। 

आज जरुरत है शिक्षा पद्धति को सरल बनाने और सबका साथ सबका विकास की 

मि टेकेश्वर परस्ते ने सुझाव स्वरूप निष्कर्ष में कहा समाज के भटके हुये लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए समाज के बीच सामंजस्यता स्थापित करने के लिए सिर्फ अधिकार ही नहीं बल्कि मौलिक कर्तव्यों का होना भी जरुरी है।
        आज जरुरत है शिक्षा पद्धति को सरल बनाने की, आज जरुरत है सबका साथ सबका विकास की, आज जरुरत है मम-भाव ओर संम-भाव की, आज जरूरत है मानव अधिकार जैसे समितियों को जनपद स्तर एवं पंचायत तक ले जाने की ताकि चौथी पंक्ति तक मानव अधिकार की आवाज पहुंच सके। मि टेकेश्वर परस्ते ने एक से बढ़कर एक सटीक व तथ्यात्मक दलील पेश कर विभाग को फाइनल रोलर ट्राफी दिलाने में सफल रहे। 

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