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प्रधानमंत्री के भगवानों को वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों ने बेरहमी से पीटा

प्रधानमंत्री के भगवानों को वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों ने बेरहमी से पीटा 

आदिवासियों को भगवान मध्यप्रदेश की धरती पर प्रधानमंत्री ने ही कहा था 

मैं उनकी पूजा करता हूं यह बात भी प्रधानमंत्री ने ही कहा था 


बालाघाट। गोंडवाना समय। 

लोकसभा चुनाव के चुनावी सभा के दौरान देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश की धरती पर कहा था कि मैं आदिवासियों को भगवान मानता हूं उनकी पूजा करता हूं।
                    


मंचीय भाषण के दौरान या मीटिंगों के दौरान आदिवासियों को लेकर प्रधानमंत्री ही नहीं देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति सहित अन्य संवैधानिक पदों पर विराजमान माननीयों के द्वारा हमेशा तारिफों, प्रशंसा के शब्दों के साथ बखान किया जाता है।
                    अब यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदिवासियों को भगवान मानकर पूजा करते है और उन्हीं भगवान की पूजा बेरहमी के साथ पिटाई करके हरा नीला करते तक मध्यप्रदेश के वन विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है तो इसे यही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के भगवानों के ऊपर अत्याचार, अन्याय किस तरह किया जा रहा है।
                 हालांकि आदिवासियों को पूर्व की सरकारों के समय ही आज भी जल, जंगल, जमीन के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। आदिवासियों को जान जीवन से हाथ तक धोना पड़ रहा है अत्याचारों, अन्याय और शोषण की कोई सीमा नहीं है। 

वन विभाग के कारनामा को देखने वालों की रूंह कांप उठे


प्रधानमंत्री के भगवान को वन विभाग बालाघाट क्षेत्र के अधिकारियों कर्मचारियों ने सुजाते फुलाते तक बेरहमी से मारा पीटा है। बालाघाट जिले में वन विभाग की हिटलरशाही के चलते बीते दिनों वनरक्षक परीक्षा के दौरान एक अनुसूचित जाति वर्ग के युवक की मृत्यू हो गई थी।
            अब ऐसा कारनामा वन विभाग के द्वारा किया गया है कि देखने वालों की रूंह कांप उठे। आदिवासियों को पूछताछ के नाम पर ले जाकर सुजाते फुलाते हुये बेरहमी से मारा पीटकर हरा नीला कर दिया है। हालांकि बालाघाट जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा आवाज उठाने पर प्रशासन हरकत में तो आया है लेकिन वन विभाग के जिम्मेदार एक दूसरे पर टालने का कार्य करते हुये अपने आपको बचाने का पूरा प्रयास कर रहे है। 

फॉरेस्ट विभाग के रेस्ट हाउस में ले जाकर बेरहमी से पिटाई किया 

आदिवासी विकास परिषद बालाघाट के युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शुभम उईके ने जानकारी देते हुये बताया कि वारासिवनी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत सुक्कू टोला नारवांजपार के आदिवासियो पर वन विभाग का अत्याचार, अन्याय खुलकर सामने आया है।
            वन विभाग के द्वारा आदिवासियों पर बेबुनियाद आरोप लगाकर शिकार के आरोप में ले जाकर मारपीट किया गया है। जबकि वे आदिवासी तो रोजगार हेतु नागपुर कमाने के लिए गए हुये थे। इसके बाद भी वन विभाग ने आदिवासियो पर शिकार का आरोप लगाकर फॉरेस्ट विभाग के रेस्ट हाउस में ले जाकर बेरहमी से पिटाई किया है। 

अधमरा होने पर आदिवासी युवकों को गांव के बाहर फैंक कर चले गये

प्राप्त जानकारी के अनुसार गत दिवस 29 मई 2024 को दिन के 11 बजे से रेस्ट हाउस ले जाकर रात के 10 बजे तक डंडे, बेल्ट और गर्म पानी डालकर शिकार का गुनाह कबुल करवाया जा रहा था। वहीं दो आदिवासियों की सेहत बिगड़ने पर गांव के बाहर रात के 12 बजे लाकर फेंक दिया गया।
             वहीं शिकार करने वाले आरोपी वन विभाग के द्वारा पकड़ नहीं पा रहा है तो वह जबरदस्ती आदिवासियों को बेरहमी से मारपीट करते हुये, टार्चर करते हुये फंसाने के लिये आरोप कबूल करवाने की कोशिश कर रहे है। शिकार के आरोपी पकड़ाए नहीं जा रहे तो वन विभाग आदिवासियों को पकड़ कर उन्हें मारपीट कर रहा है। इस दौरान कई बार यदि आदिवासी युवक अधमरे हो जाते है तो उन्हें गांव के बाहर फेक दिया जाता है। 

तीनों रेंजर एक दूसरे पर डाल रहे आरोप 

वहीं आदिवासियों के साथ मारपीट करने में वारासिवनी रेंज के तीनों रेंजर एक दूसरे पर आरोप डाल रहे है कि ये मारपीट मेरा नही किसी और का काम है। जिसमें वारसिवनी रेंजर जादौन, वन निगम रेंजर नागेश्वर और बालाघाट उड़नदस्ते के प्रभारी धर्मेंद्र बिसेन शामिल है।
                अब सच क्या है ये तो ये तीनों ही और बेरहमी से बिना कारण के ही पिटने वाले आदिवासी युवक ही अच्छे से जानते है। वहीं वन विभाग का अमला फिर अपने आप को बचाने में लगा हुआ है। वहीं प्रश्न यह उठता है कि यदि यह तीनों आरोपी थे तो गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया और अगर शक के आधार पर आप इन्हे बुरी तरह से मार रहे हो और वह आरोपी भी नहीं है तो इस मारपीट का गुनहगार कौन है। 

क्या वन विभाग कानून से बाहर है, क्या वन विभाग संविधान को नहीं मानता ?

आदिवासी विकास परिषद के युवा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष शुभम हीरासन उइके ने कहा कि क्या वन विभाग कानून से बाहर है, क्या वन विभाग संविधान को नहीं मानता, क्या वन विभाग मानवता इंसानियत को नहीं मानता, क्या वन विभाग ने आदिवासियों को शक के आधार पर जेल में डालने का ठेका ले लिया है तो अगर वन विभाग ने बेगुनाह आदिवासियों को जेल भेजने का ठेका ले लिया है उनको जान से मारने का ठेका ले लिया है तो मैं समस्त आदिवासी भाइयों से निवेदन करूंगा कि आप भी ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को सबक सिखाने का ठेका ले लीजिए।


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