सैंधवी लिपि नामक पुस्तक पेनवासी मोती रावेण कंगाली दादा के लिंगोवास दिवस पर होगा विमोचन
गोंडी भाषा व लिपि को पुन: जीवन्त कर देगा व प्रकृति वादी होने का एहसास कराता रहेगा
यह पुस्तक कोयतूर (गोंड) समुदाय के भाषा लिपि को सार्वजनिक करती है
भोपाल/मध्यप्रदेश। गोंडवाना समय।
अध्यक्ष, गोंडी भाषा लिपि संस्कृति संरक्षण संवर्धन राष्ट्रीय प्रकोष्ठ (भारत) भोपाल ने जानकारी देते हुये बताया कि केंद्रीय गण्ड व्यवस्था व यूनाइटेड ट्राइब गोंडवाना एसोसिएशन (आर्थिक मेघा प्लान) के संस्कृति व भाषा विभाग द्वारा स्थापित प्रकोष्ठ राष्ट्रीय गौडी भाषा लिपि संस्कृति संरक्षण संवर्धन प्रकोष्ठ (भारत) भोपाल के शोधी दल द्वारा अथक प्रयास के शोध के बाद एक अद्भुत पुस्तक कोयतुर पारसी लयकी (कोटटाना) गोंडी लिपि का शोध व संकलन किया है।
अथक शोध के बाद दाएं से बाएं पढ़ा गया
यह पुस्तक कोयतूर (गोंड) समुदाय के भाषा लिपि को सार्वजनिक करती है। इसके साथ में समुदाय के इतिहास व संस्कृति के प्रामाणिक स्रोतों को भी मजबूत करती है। यह पुस्तक कोयतूर लयकी (गोंडी) लिपि को उस प्राकृतिक स्वरूप में प्रस्तुत करता है जिस रूप में सिंधु घाटी सभ्यता के समय में लिपि थी।
जिसे आचार्य मोती रावण कंगाली दादाल द्वारा अथक शोध के बाद दाएं से बाएं पढ़ा गया और सैंधवी लिपि नामक पुस्तक पेनवासी मोती रावेण कंगाली दादा के लिंगोवास दिवस 30 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित किया जा रहा है, इस पुस्तक में सेंधवी लिपिक आधार लिया गया है।
यह पुस्तक गोंड सामुदाय के लिए मुख्य आधार बनेगी
आधुनिक युग में गौरवशाली इतिहास व संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करने में भाषा व लिपि का सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में यह पुस्तक गोंड सामुदाय के लिए मुख्य आधार बनेगी और आने वाली पीढ़ियों को गोंडी भाषा व लिपि को पुन: जीवन्त कर देगा व प्रकृति वादी होने का एहसास कराता रहेगा।