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राजेश पाठक रेत माफिया द्वारा नियम विरूद्ध उत्खनन करने से खतरे में पर्यावरण, जलीय जीवन और सड़कें

राजेश पाठक रेत माफिया द्वारा नियम विरूद्ध उत्खनन करने से खतरे में पर्यावरण, जलीय जीवन और सड़कें 

रेत माफिया राजेश पाठक सिवनी जिले में एनजीटी और ईसी नियमों की कर रहे अवहेलना

राजेश पाठक पर कार्रवाई हेतु ग्रामीणों ने कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन


सिवनी। गोंडवाना समय।

रेत माफिया राजेश पाठक द्वारा सिवनी जिले में अवैध रेत उत्खनन करते हुये एनजीटी व पर्यावरण नियमों की अवहेलना कर रहे है जिसके कारण जलीय जीवन, जीव-जंतु, पर्यावरण प्रभावित हो रहा है।
            


ऐसी अवैधानिक व नियम विरूद्ध कार्यप्रणाली को लेकर रेत माफिया राजेश पाठक पर कार्यवाही कराने के लिये उगली क्षेत्र के जनपद सदस्य, सरपंच, ग्रामीणजन सिवनी कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, जहां पर जिला पंचायत सदस्य श्री वीरेन्द्र राज पप्पू ठाकुर, कांग्रेस नेता आनंद भगत, श्रीमती मोतनबाई चौधरी, विजय निर्मलकर, रमेश प्रसाद, अशोक शांडिल्य, नंदकुमार पंचेश्वर, सुधीर सिंह सहित ग्राम पंचायत बनाथर, नसीपुर, भरवेली, कनारी, पांडियाछपारा, बागडोंगरी के सरपंच, जनपद पंचायत सदस्यगण सहित ग्रामीणजनों ने हस्ताक्षरयुक्त शिकायत पत्र कलेक्टर कार्यालय सिवनी में सौंपा है। 

जलीय जंतुओं को भारी क्षति एवं नुकसान हो रहा है 


ग्रामीणों व जनप्रतिनिधियों द्वारा दिये गये शिकायती पत्र में उल्लेख किया गया है कि राजेश पाठक जो कि बालाघाट के रहने वाले हैं और शराब व रेत के ठेकेदार भी हैं। ठेकदार राजेश पाठक द्वारा एनवायरमेंटल क्लियरेंस (ईसी) के नियमों की अवहेलना करते हुए नदी में बहते पानी से बड़ी-बड़ी पोकलैंड मशीनों के जरिए उत्खनन का कार्य किया जा रहा है। इसके कारण जलीय जंतुओं को भारी क्षति एवं नुकसान हो रहा है। 

पोकलैण्ड मशीन से उत्खनन के कारण 40 से 50 फीट गहरे गड्ढे हो जाते हैं 

वहीं जंगली जानवरों और ग्रामीण पशुओं के लिए पानी पीने का एकमात्र साधन नदी है, जो खतरे में पड़ गया है। पोकलैंड मशीनों से खुदाई के दौरान नदियों में 40 से 50 फीट गहरे गड्ढे हो जाते हैं, जिससे जलीय जंतु और जंगली जानवर उन गड्ढों में डूबकर मर जाते हैं।
                यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की शिकायत की गई है लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन इस तरह की अवैध गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए गंभीर है या नहीं।
                 यह मामला न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन और आजीविका को भी प्रभावित कर रहा है। इस मामले में तुरंत कार्यवाही की आवश्यकता है ताकि अवैध उत्खनन रोका जा सके और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

सड़के हो रही खराब, जंगली जानवर दुघर्टना के कारण हो रहे मृत 

नदी से मशीनों द्वारा डम्परों ने रेत भरी जाती है जिनकी पासिंग 18 टन व 25 टन होती है किन्तु इनमें ओवरलोड रेत भरकर 30 से 50 टन रेत लेकर डम्पर आवागमन करते है। जिसके कारण ग्राम में बनी हुई सड़के क्षतिग्रस्त हो गई है व आये दिन गांव में डम्परों से एक्सीडेंटों का सामना करना पड़ रहा है।
                इन एक्सीडेंटो में जंगली जानवर हिरण, सांभर चीतल का एक्सीडेंट होते रहता है जो सड़कों में मृत पड़े रहते है। इस ओर भी शासन प्रशासन का ग्रामीणों द्वारा ध्यानाकर्षण कराया गया किन्तु इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई है। 

5 मीटर छोड़कर नहीं नदी के किनारों से उत्खनन करने से किसानों को हो रहा नुकसान 

एनजीटी एवं ईसी के नियमों के अनुसार रेत का उत्खनन नदी के दोनों किनारों से पांच-पांच मीटर जगह छोड़कर उत्खनन करना है किन्तु ठेकेदार द्वारा नदी के किनारों से मशीनों द्वारा उत्खनन किया जा रहा है जिस कारण बारिस में बाढ़ की स्थिति में नदियों में भारी कटाव होता है।
                 जिससे ग्रामीण क्षेत्र में किनारों से लगी है इनका भी 3-4 एकड़ किसानों की भूमि का नदी के बहाव कटाव के कारण निजी भूमि नदी में समाहित हो गई है। इस संबंध में भी शिकायत पूर्व में शासन प्रशासन को ग्रामीणों द्वारा की गई है। जिस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई है और न ही किसानों को मुआवजा प्राप्त हुआ है। 

उग्र आंदोलन और अमरण अनशन के लिए बाध्य हो सकते हैं 

मशीनों द्वारा उत्खनन से नदी का जल स्तर 40-50 फीट गहराई तक चला जाता है, जिससे कृषि भूमि में सिंचाई हेतु जल की उपलब्धता नहीं हो पाती। ग्रामीणों द्वारा लिखित पत्र में सिवनी जिले में रेत माफिया राजेश पाठक द्वारा अवैध रेत उत्खनन किए जाने का मामला उठाया गया है। 
                ओवरलोड डम्परों से रेत का परिवहन, जिससे सड़कें क्षतिग्रस्त हो रही हैं और एक्सीडेंट हो रहे हैं। जंगली जानवरों की मौतें हो रही हैं। एनजीटी और ईसी के नियमों की अवहेलना, नदी के किनारों से मशीनों द्वारा उत्खनन किया जा रहा है।
                    बारिश में बाढ़ की स्थिति में नदियों में भारी कटाव होता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में किसानी की भूमि नदी में समाहित हो रही है। किसानों को मुआवजा नहीं मिला है। ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से कई बार शिकायत की है, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई है। अत: वे उग्र आंदोलन और अमरण अनशन के लिए बाध्य हो सकते हैं।

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