अब क्या एसडीएम और विधायक भी रेत ठेकेदार के एजेंट बन गए है?
क्या एसडीएम और विधायक ने सिर्फ जाम हटवाने के लिए जनता से झूठा वादा किया?
रेत माफिया के तेज रफ्तार डंफर ने ली थी यशवंत राव सोनी की जान
उगली। गोंडवाना समय।
रेत माफिया के बेलगाम डंपर ने एक निर्दोष पुरुष की जान ले ली और इस मौत ने न सिर्फ अवैध रेत खनन की सच्चाई उजागर की, बल्कि प्रशासनिक भूमिका और जनप्रतिनिधियों की नियत पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना 23 जून 2025 सोमवार रात करीब 10:30 बजे दुरेंदा निवासी यशवंत राव पिता आवा सोनी, साइकिल से घर लौट रहे थे।
बागडोंगरी धनई नदी मार्ग पर तेज रफ्तार डंपर ने उन्हें टक्कर मार दी थी। टक्कर इतनी भीषण थी कि मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी। रात में शव घर लाया गया, लेकिन सुबह तक खबर पूरे उगली और केवलारी क्षेत्र में फैल चुकी थी। गुस्साए ग्रामीणों ने उगली-कंजई मार्ग पर चक्का जाम कर दिया था और मृतक का शव फ्रीजर में रखकर हजारों की भीड़ धरना स्थल पर बैठ गए थे।
प्रशासन का एक्शन और दिखावा
प्रदर्शन को देखते हुए उगली, केवलारी और अन्य थानों से भारी पुलिस बल बुलाया गया। मौके पर एसडीएम महेश अग्रवाल, एसडीओपी आशीष भराड़े, तहसीलदार, थाना प्रभारी, और बाद में विधायक रजनीश सिंह ठाकुर भी पहुंचे। विधायक ने बड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया और प्रशासन ने 14 डंपरों और 6-7 पोकलैंड मशीनों को जप्त कर पंचनामा तैयार किया। इनमें से अधिकांश डंपर बिना रॉयल्टी के रेत लादे मिले।
2 दिन में देंगे 3 लाख एसडीएम का वादा झूठा निकला ?
घटना स्थल पर सैकड़ों ग्रामीणों और मृतक के परिजनों के सामने एसडीएम ने कहा था कि 2 दिन बाद 3 लाख रुपए ठेकेदार से दिलवाऊंगा लेकिन अब 7 दिन बीत चुके हैं, पीड़ित परिवार को आज तक यह राशि नहीं मिली है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या एसडीएम और विधायक रजनीश सिंह ठाकुर ने सिर्फ जाम हटवाने के लिए जनता से झूठा वादा किया था ? क्या दोनों ठेकेदार के एजेंट की तरह काम कर रहे थे ? क्या यह परिवार के साथ धोखा नहीं है ? रिश्तों की पड़ताल जरूरी है।
किस नियम के तहत एसडीएम ने ठेकेदार से सीधे पैसे दिलवाने की बात कही थी
तेज रफतार दौड़ रहे रेत के डंफर की वजह से दुर्घटना घटि एक इंसान की जान चली गई, किसी के घर का चिराग कहें या मुखिया चला गया। इसके बाद प्रदर्शन हुआ और प्रशासन व विधायक के हस्तक्षेप के बाद ठेकेदार से त्वरित सहायता के रूप में 2 लाख की सहायता दिलाई गई और 3 लाख रूपये और दिये जाने का वायदा जनता के सामने किया गया था।
अब क्षेत्र की जनता पूछ रही है कि क्या विधायक और एसडीएम का ठेकेदार से कोई निजी रिश्ता है ? आखिर किस अधिकार या नियम के तहत एक प्रशासन के अधिकारी एसडीएम ने रेत ठेकेदार से सीधे पैसे दिलवाने की बात कहें थे? आखिर क्यों रेत ठेकेदार से 5 लाख रूपये दिलाने की बात की गई यही चर्चा का विषय बन गया है।
2 लाख की सहायता कहां से आई ?
प्रशासन ने तत्काल 2 लाख की राशि पीड़ित परिवार को दी लेकिन यह पैसा कहां से आया ? क्या यह सरकारी फंड से था? या यह भी ठेकेदार की ओर से मौन मुआवजा था? जब रेत खदान पहले ही नियमों के विरुद्ध मानसून में चल रही थी, तब जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है। क्या यह सब ऊपर तक मिलीभगत का नतीजा है?
खदान संचालक पर अब तक आपराधिक प्रकरण क्यों नहीं दर्ज हुआ ?
यशवंत की मौत के लिए जिम्मेदार डंपर की अब तक पहचान क्यों नहीं हुई? खदान संचालक पर अब तक आपराधिक प्रकरण क्यों नहीं दर्ज हुआ? क्या जनता के आक्रोश को सिर्फ ठंडा करने के लिए एसडीएम और विधायक ने झूठे वादे किए? मानसून में रेत खनन चल रहा था, तो इसके पीछे किन अधिकारियों की मिलीभगत है? क्या यह प्रशासनिक अपराध नहीं कि मुआवजा ठेकेदार से दिलवाने की बात कही गई? यशवंत की मौत एक रेत से भरे डंपर से नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुस्ती, राजनीतिक गठजोड़ और खनन माफिया की ताकत से हुई है। यदि अब भी न्याय नहीं मिला, तो सवाल उठेगा क्या अगली बारी हमारे घर की होगी?