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आदिवासियों के लिये जनगणना के कॉलम में अलग धर्म कोड दिये जाने उठाई आवाज

आदिवासियों के लिये जनगणना के कॉलम में अलग धर्म कोड दिये जाने उठाई आवाज 

अंतराष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस पर धर्म, भाषा, संस्कृति व हक के लिये एकजुट हुये आदिवासी 

भुमक संघ, कोयतोड़ गोंडवाना महासभा ने सिवनी मुख्यालय में रैली निकालकर सौंपा ज्ञापन 

आदिवासी समाज भारत की आत्मा और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस (13 सितंबर) पर आदिवासी संगठनों द्वारा राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया

भोपाल/सिवनी। गोंडवाना समय। 

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस के अवसर पर देश भर के आदिवासी समुदायों एवं संगठनों ने एकजुट होकर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू एवं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नाम ज्ञापन प्रेषित किया। इस ज्ञापन के माध्यम से आदिवासी समाज ने अपने संवैधानिक अधिकारों, परंपरागत हक-हकूक तथा मौलिक समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस पहल की मांग रखी।
            


मध्यप्रदेश में कोयतोड़ गोंडवाना महासभा के आह्वान पर अखिल गोंडवाना कोया पुनेम भूमका संघ, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन सहित विभिन्न आदिवासी संगठन, ब्लॉक, जिला एवं प्रदेश स्तर पर भारी संख्या में एकत्रित हुए और अपने-अपने क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से यह ज्ञापन प्रेषित किया।

वन अधिकार कानून एवं पेसा कानून का क्रियान्वयन 


वन अधिकार कानून 2006 का पूर्ण पालन आदिवासी समुदायों को उनके परंपरागत वन भूमि अधिकारों की मान्यता एवं उन्हें कानूनी रूप से सुरक्षित करने की मांग। पेसा कानून 1996 का प्रभावी क्रियान्वयन ग्राम सभाओं को वास्तविक अधिकार देकर प्राकृतिक संसाधनों, जल-जंगल-जमीन पर आदिवासी समुदाय की प्राथमिकता सुनिश्चित करना।

शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की मांग 


शिक्षा एवं रोजगार में समान अवसर आदिवासी छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में विशेष सुविधाएँ, छात्रवृत्ति, तकनीकी शिक्षा एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में मार्गदर्शन की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार झ्र दूरस्थ आदिवासी इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना एवं आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन। आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार एवं उद्यमिता से जोड़ने की पहल ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो और पलायन पर अंकुश लगे।

सांस्कृतिक पहचान एवं स्वशासन की सुरक्षा 

गोंडी, भीली, कोरकू, कोल आदि आदिवासी भाषाओं को शिक्षा और प्रशासनिक स्तर पर बढ़ावा देना, साथ ही पारंपरिक रीति-रिवाजों को मान्यता देना।

खनन व विस्थापन से संरक्षण 

खनन परियोजनाओं एवं बड़े विकास कार्यों के कारण हो रहे आदिवासी विस्थापन पर रोक एवं पुनर्वास नीतियों में पारदर्शिता।

संवैधानिक अधिकारों और संसाधनों से वंचित रखा जा रहा है

इस अवसर पर संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि आदिवासी समाज भारत की आत्मा और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन आज भी उन्हें अपने संवैधानिक अधिकारों और संसाधनों से वंचित रखा जा रहा है। यदि समय रहते आदिवासी हितों की रक्षा के ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह असंतोष सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की राह में बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

कोया पुनेम दर्शन एवं भूमका व्यवस्था को वैधानिक मान्यता दी जाए 

गोंडवाना क्षेत्र से जुड़े संगठनों ने विशेष रूप से यह मांग रखी कि आदिवासी समाज की ऐतिहासिक और परंपरागत व्यवस्था कोया पुनेम दर्शन एवं भूमका व्यवस्था को वैधानिक मान्यता दी जाए और उसे प्रशासनिक ढांचे में शामिल किया जाए। इस ऐतिहासिक दिवस पर हुए ज्ञापन कार्यक्रमों में हजारों की संख्या में आदिवासी पुरुष, महिलाएँ, युवा और बुजुर्ग उत्साहपूर्वक शामिल हुए और अपनी एकता तथा अधिकारों के प्रति जागरूकता का परिचय दिया।

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