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पांचवीं और छठी अनुसूची में राज्यपालों की रिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाये-उपराष्ट्रपति

पांचवीं और छठी अनुसूची में राज्यपालों की रिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाये-उपराष्ट्रपति 

और संसदीय समितियों द्वारा अध्ययन किया जाय

विश्व में जनजातिय समुदाय प्रकृति को पूजता है

जनजातीय समुदायों से सीखे पर्यावरण सम्मत विकास

नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के स्थापना दिवस पर व्याख्यान देते हुए उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि हमें जनजातियों को पिछड़ा मान लेने की भ्रांति को त्यागना होगा। जनजातीय समुदायों की जीवंत और समृद्ध परंपराएं हैं जिनका आदर करना होगा। उन्होंने कहा ऐसा करना न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है।
श्री वैंकया नायडू ने कहा कि आज जब हम प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहे हैं, ये समुदाय हमें पर्यावरण सम्मत विकास के कई गुर सिखा सकते हैं। उन्होंने कहा कि विश्व भर में हर जनजातीय समुदाय प्रकृति को उसके विभिन्न रूपों में पूजता है, पूजा पद्धतियां अलग हो सकती है पर प्रकृति के प्रति उनकी आस्था एक है। विविधता में एकता का इस से बड़ा उदाहरण संभव नहीं।

जनजातिय कल्याण मंत्रालय व जनजातिय आयोग बनाया गया 

उपराष्ट्रपति श्री वैंकया नायडू ने आगाह किया कि संरक्षण के नाम पर इन समुदायों को राष्ट्र के विकास की मूल धारा से अलग थलग नहीं किया जाना चाहिए। युवाओं की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को अभिव्यक्ति और अवसर मिलने चाहिए तभी सबका साथ सबका विकास का संवैधानिक संकल्प पूरा होगा। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने सरकार द्वारा चलाए गए जनधन, मुद्रा जैसे वित्तीय समावेशन के कार्यक्रमों का जिक्र भी किया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई को याद किया जिन्होंने जनजातियों को देश की मूलधारा में शामिल करने हेतु उनके मुद्दों को सुलझाने के लिए अलग जनजातीय कल्याण मंत्रालय की स्थापना की थी और एक पृथक राष्ट्र जनजातीय आयोग गठन किया था।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अटल जी के विराट व्यक्तित्व मे शांति और शक्ति का अद्भुत सुयोग था। वे देश मे संपर्क क्रांति के सूत्रधार भी थे और पोखरन के आपरेशन शक्ति के भी। उपराष्ट्रपति से सुझाव दिया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों के राज्यपालों की रिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाय और संसदीय समितियों द्वारा अध्ययन किया जाय।

आप जनजातिय लोगों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते है

उपराष्ट्रपति ने अपने व्याखान में कहा कि अंग्रेज शासक जनजाति या आदिम जाति जैसे शब्दों का प्रयोग, मुख्यधारा से अलग निर्वासित लोगों के समूह के लिए करते थे। इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग भारत के प्राचीन समुदायों के प्रति अंग्रेजों के तिरस्कार को व्यक्त करता था।वही भारतीय संविधान निमार्ताओं ने राष्ट्रीय मूलधारा में उनके समावेश के प्रावधान किये। संविधान सभा में जनजातीय समुदाय से 06 सदस्य थे। फिर भी वे अपने विचारों को सामने रखने में प्रतिभाशाली और मुखर थे। 19 दिसम्बर, 1946 को बिहार से श्री जयपाल सिंह ने संविधान के Aims and Objectives Resolution पर अपने विचार रखे, जो जनजातीय समाज की भावनाओं और अपेक्षाओं को व्यक्त करते है। उन्होंने जो कहा, उसे मैं यहां उद्धृत करता हूं- महोदय, मेरे लिये जंगली होना गर्व की बात है, यह वही नाम है जिसके द्वारा हम देश के अपने हिस्से में जाने जाते हैं। इन समुदायों की लंबी लोकतांत्रिक जीवन शैली के बारे में उन्होंने कहा आप जनजातीय लोगों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते हैं, आपको तो उन लोगों से लोकतांत्रिक तौर तरीकों को सीखना है। वे धरती पर सबसे पुराने लोकतांत्रिक लोग हैं। उन्होंने नये भारत से अपेक्षा की कि अब हम एक नया अध्याय शुरू करने जा रहे हैं, स्वतंत्र भारत का एक नया अध्याय जहां अवसर की समानता होगी, जहां किसी की भी उपेक्षा नहीं होगी। मेरे समाज में जाति पर कोई सवाल नहीं होगा। हम सब बराबर होंगे। यह विचारणीय है कि क्या हम श्री जयपाल सिंह जी की आशाओं पर खरे उतरे हैं। तत्पश्चात संविधान सभा ने दो उप समितियों का गठन किया जिसमें से एक असम के उत्तर पूर्व सीमांत के आदिवासी क्षेत्रों के लिये थी, जिसकी अध्यक्षता, श्री गोपीनाथ बारदोलोई ने की तथा दूसरी उप समिति असम के अलावा अन्य जनजातीय और आंशिक रूप से जनजातीय क्षेत्रों के लिये थी जिसकी अध्यक्षता श्री ए. वी. ठक्कर ने की। दोनों उप समितियों ने संविधान सभा में एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट द्वारा भारत के संविधान में पांचवी और छठी अनुसूची के क्षेत्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया गया। हमारे संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य के राज्यपाल, उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। राज्यपाल द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन का ब्यौरा दिया जाता है। ये रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। ये रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के सभा पटल पर रखी जानी चाहिये। मैं सलाह दूंगा कि इन रिपोर्टों का संसदीय समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए।

जनजातिय आयोग वंचित वर्गों के लिये आशा की किरण

उपराष्ट्रपति श्री वैंकैया नायडू ने अपने व्याखान में आगे कहा कि पंद्रह वर्षों के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने देश की अनुसूचित जनजातियों के हितों के रक्षोपायों के लिये काफी कार्य किया है। वंचित वर्गों के लिये यह आशा की किरण है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमें स्थानीय जनजातीय समुदायों के प्रति अपनी अवधारणा को बदलना होगा। ये जीवंत समाज है ये आकांक्षी समाज है। इसकी जीवित परंपराऐं हैं। जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। पिछले सप्ताह मुझे प्रयाग कुंभ के अवसर पर किवा कुंभ में सम्मिलित होने का अवसर मिला। विश्व के लगभग 50 देशों के जनजातीय समुदाय के नेताओं से पर्यावरण, प्रकृति सम्मत विकास पद्धति पर विमर्श करने का अवसर मिला।
मुझे ज्ञात हुआ कि किस प्रकार से विश्व भर के जनजातीय समुदाय, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए तत्पर हैं। किस प्रकार हमारे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर आधारित आर्थिक चिंतन के विकल्प के रूप में उनके पारंपरिक विकास की पद्धति, उनकी पारंपरिक तकनीकें, प्रकृति सम्मत हैं। यदि ध्यान से देखें तो प्रकृति और उसके रुपों के प्रति आदर का संस्कार हर स्थानीय समाज में पाया जाता है -पूजा पद्धति भिन्न हो सकती है परंतु प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आदर का भाव हर जनजातीय समुदाय में समान है। विभिन्नताओं में एकता का इससे उत्कृष्ट उदाहरण नहीं मिलेगा। आज जब हम पर्यावरण सम्मत विकास प्रणाली को खोज रहे हैं अपने पर्यावरण के प्रदूषण से चिंतित हैं जंगलों और जल स्रोतों के नष्ट होने से चिंतित हैं, पर्यावरण-संरक्षण की जनजातीय तकनीकें, प्रकृति के प्रति उनके संस्कार, हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं।

इससे छुटकारा हमारी समृद्ध जनजातीय परंपराऐं दिला सकती हैं

उपराष्ट्रपति श्री वैंकया नायडू ने अपने व्याखान देते हुये कहा कि हमें यह घमंड छोड़ना होगा कि जनजातियां पिछड़ी ही होती हैं। जनजातियों की समृद्ध परंपरा है उसका आदर करना होगा। ये न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है। जैसा कि दीन दयाल जी कहते थे हमने आर्थिक प्रगति के नाम पर सामाजिक और पर्यावरणीय विकृति को मोल ले लिया है। इससे छुटकारा हमारी समृद्ध जनजातीय परंपराऐं दिला सकती हैं। जब हम अपने शांति मंत्रों में, पृथ्वी, अंतरिक्ष, अग्नि, जल, औषधियों और वनस्पति की शांति की कामना करते हैं तो हमे हमारे स्थानीय समुदायों की जीवन शैली से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारत तेजी से बदल रहा है। आज हम विश्व की सबसे तेज अर्थव्यवस्था हैं, विश्व बैंक, आई एम एफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाऐं भारत की प्रगति में विश्व की उन्नति देख रही हैं। “Reform, Perform, Transform” हमारा मंत्र हैं। सबका साथ सबका विकास हमारी राष्ट्रीय नीति है। ऐसे में देश की एक बड़ी जनजातीय जनसंख्या की आकांक्षाओं को कैसे नजरंदाज किया जा सकता है? आज इन वर्गों के युवा, नव कौशलों में प्रशिक्षण ले रहे हैं, इन वर्गों के युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दे कर प्रशासन की मूल धारा में लाया जा रहा है। जनधन, मुद्रा, स्टैंड अप इंडिया, जैसी योजनाओं से इन युवाओं को अपने पारंपरिक व्यवसायों को उद्यमों में परिवर्तित करने के अवसर दिये जा रहे हैं। सरकार ने हाल ही में कई वित्तीय समावेशन पहलों की शुरूआत की है। NCST को इन पहलों की समीक्षा करनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को देश की वित्तीय समावेशन व्यवस्था के दायरे में लाने के लिए अपेक्षित उपायों पर सुझाव दे सके। यह जनजातियों को सशक्त बनाने की ओर योगदान होगा। हमें यह संतुलन बनाना होगा कि जनजातियों को संरक्षण देने के नाम पर हम कहीं उन्हें विकास की मूलधारा से अलग ही न कर दें। उनकी नव आकांक्षाओं को संरक्षण के संकीर्ण दायरे में न बांध दे। आवश्यकता है कि वृहत्तर सामाजिक परिवेश इन युवाओं की आकांक्षाओं, संस्कारों, और संस्कृति को सहर्ष स्वीकार करें। इनकी परंपराओं और आकांक्षाओं को अपनी स्वस्पर्शी विकास नीति में स्थान दें तभी सबका साथ सबका विकास का संवैधानिक संकल्प पूरा होगा।

इन्हें किया गया राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित

हम आपको बता दे कि भारत देश में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातिय आयोग (एनसीएसटी) की स्थापना 19 फरवरी 2004 को संविधान (89वां संशोधन) अधिनिम के माध्यम से की गई थी। यह आयोग 19 फरवरी 2019 को 15 वां स्थापना दिवस मनाएगा। आयोग ने 31 दिसंबर 2018 को आयोजित अपनी 109 वीं बैठक में इस दिवस को उत्साह पूर्वक मनाने का निर्णय लिया था। इस अवसर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय आयोग ने भी एक एनसीएसटी नेतृत्व पुरस्कार नामक एक राष्ट्रीय पुरस्कार का गठन करने का फैसला किया है ।
जिसे देश में अनुसूचित जनजातियों की दिशा में उल्लेखनीय एवं अनुकरणीय सेवा के लिए प्रदान किया जाएगा। यह पुरस्कार तीन श्रेणी में दिए जाएंगे अर्थात (1) शैक्षणिक संस्थान/विश्वविद्यालय (2) सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम/बैंक और (3) किसी व्यक्ति विशेष, एनजीओ या सिविल सोसायटी द्वारा प्रदान की जाने वाली सार्वजनिक सेवा। इस वर्ष पहला पुरस्कार निम्नलिखित को प्रदान किया जाएगा।
कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्थान, भुवनेश्वर-किंडर गार्डेन से स्नातोकोत्तर स्तर तक ओडिशा एवं समीपवर्ती राज्यों के जनजातीय बच्चों की शिक्षा की दिशा में उनके उल्लेखनीय योगदान के सम्मान में, सेंट्रल कोल्डफील्ड्स लिमिटेड, रांची- झारखण्ड में अनुसूचित जनजातीय बच्चों के बीच खेल को बढ़ावा देने के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के सम्मान में,डा. प्रोणोब कुमार सिरकार, अंडमान आदिम जनजातिय समिति (एएजेवीएस) में जनजातीय कल्याण अधिकारी-अंडमान एवं निकोबार द्वीव समूह में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह में अर्थातओंगेस, शोमपेन्स, अंडमानी और जारवास की दिशा में उनके उल्लेखनीय योगदान के सम्मान में, ये पुरस्कार उपराष्ट्रपति द्वारा जनजाति आयोग के स्थापना दिवस समारोह में एक उत्तरीय के साथ एक प्रशस्ति पत्र, एक पदक के रूप में प्रदान किया गया ।

जनजाति वीरों की शहादत, वीरगाथाओं की पुस्तक का हुआ विमोचन 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अपनी स्थापना के 15 वर्ष के अवसर पर आयोग ने हिन्दी में जनजातीय स्वाधीनता संग्राम नामक एक पुस्तक निकाली है। राष्ट्रपति द्वारा विमोचन की जाने वाली यह पुस्तक देश में जनजातीय लोगों के स्वाधीनता संग्राम के छोटे अज्ञात पहलुओं को सामने लाती है। यह पुस्तक स्वाधीनता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी विद्रोह के योगदान पर प्रकाश डालती है। इसमें शहीद वीर बुद्धू भगत, भगवान बिरसा मुंडा, तिल्का माझी, सिद्धू कान्हू, भुमकल गुण्डाधुर, क्रांतिवीर सुरेंद्र साई, कुंवर रघुनाथ साह, तात्या भील, अमर शहीद वीर नारायण सिंह, परम बलिदानी गोविन्द गुरु एवं जनजाति वीरांगना महारानी दुर्गावती पर लेख शामिल हैं। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नेतृत्व के अमूल्य योगदान और बहादुरी को सामने लाने का आयोग का एक प्रयास है।

                                                                                                               आयोग के माध्यम से मिलेगा न्याय और अधिकार

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के स्थापना दिवस के अवसर पर जनजाति आयोग की उपाध्यक्षा सुश्री अनुसुईया उइके ने अपने उदबोधन में आशा और विश्वास व्यक्त किया कि देश के समस्त अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों को संविधान में निहित भावना के अनुरूप आयोग के माध्यम से न्याय और अधिकार प्राप्त होगा। उन्होंने देश के सभी अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्योंं, आयोग से जुडे अधिकारियों कर्मचारियों और जनजाति कल्याण के लिए कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता, संस्था, संगठन को उन्होंने हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई दी।


स्थापना दिवस पर ये रहे उपस्थित 

जनजाति आयोग भारत सरकार के स्थापना दिवस समारोह में जनजातीय मामले के मंत्री जुएल ओराम, आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय, उपाध्यक्ष सुश्री अनुसुईया उइके, आयोग के सदस्य गणों में श्रीमती माया चिंतामन इनवाते, हरिकृष्ण डामोर, हर्षद भाई वसावा, सहित जनजाति कार्य मंत्रालय के सचिव, अन्य वरिष्ठ अधिकारी गण, विभिन्न संगठन और संस्था के प्रतिनिधि, अन्य महत्वपूर्ण और जनजाति क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य कर रहे जनजाति वर्ग के व्यक्ति उपस्थित रहे।

विशेष रिपोर्ट-संपादक विवेक डेहरिया 
मोबाईल नंबर-09303842292
कार्यालय का नंबर-07692-223750

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