अब हर घर आंतकियों का कब्रिस्तान होना चाहिये
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने शहीदों को दी श्रृद्धांजलि
सिवनी। गोंडवाना समय।म प्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति एवं सिवनी साहित्य मंच के तत्वाधान में बसंतोत्सव के पावस माह में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । इस गोष्ठी में जहां देशभक्ति से ओत प्रोत रचनाओं के माध्यम से कवियों ने सभी को सराबोर किया। वहीं दूसरी ओर गीत, गजल मुक्तत्व एवं कविताओं के माध्यम से देश की ज्वलंत समस्याओं पर प्रहार किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार रमेश श्रीवास्तव चातक ने कहा आम जनता के हद में शूल रहे है गांधी के अनुआयी फल फूल रहे है । इसी तरह आगे अपनी कविता में उन्होंने कहा शहीदों की शहादत का सम्मान होना चाहिये अब हर घर आंतकियों का कब्रिस्तान होना चाहिये। इसी कड़ी में साहित्यकार जगदीश तपिश ने कहा कि आप तो बेकार ही बदनाम करते है ना आंख बेचारी है ना दिल बेचारा है परदा हटा दो। हाल ही में पुलवामा कश्मीर में हुये सैनिकों पर हमले पर भारत के दर्द को व्यक्त करते हुये संजय जैन संजू ने कहा कि गम के बादल बरसते, बरसते रहे आंखे भर आंई और छलकने लगी देखी लाशें जवानों की बिखरी हुई, भुकुटी तन गई और दहकने लगी, हाथ की मेंहदी छूटी नहीं थी अभी नथ उतारी गई और विदाई हुई, वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार चतुवेर्दी ने कहा कि वतनखोर भाषण सुनाकर चले है असल जात अपनी दिखाकर चले है, इसी तरह विलास तिजारे ने जहां आध्यात्म को लेकर अपनी बात रखी और उसे प्रकृति से जोड़ते हुये देश भक्ति से जोड़ते हुये कहा हरा गेरूआ लाल बसंती, रंगे रंग में कितने लोग, एक रंग में रंग जाते तो मिट जाते यह सारे रोग, इसी तरह उन्होंने अखण्डता को लेकर कहा कि अगर मुस्लिम गीता को पढ़े और हिन्दु कुरान को बारीकी से पढ़े तो निश्चित ही मन के विवाद दूर हो जायेंगे। शिक्षक साहित्यकार घूर सिंह चिंरोजे ने देश के वीर जवानों का हौंसला बढ़ाते हुये कहा कि मेरे देश के वीर जवान इतना जरूर कर देना आग यौवन के धनी चीर के सीना रख देना। इसी कड़ी में फैय्याज एजाज ने कहा कि दुनिया का गम करे या मोहब्बत का गम करें कोई हमें बताये गम किसका कम करें । इसी तरह आगे अपने शेर में उन्होंने कहा मोहब्बत का कैसा असर हो रहा है मेरा यार मुझसे जुदा हो गया है। एडव्होकेट अखिलेश यादव ने गद्य रचना के माध्यम से शहीदों को श्रृद्धांजलि देते हुये कहा कि काश हर घर में एक शहीद की तस्वीर लगी होती तो आज मेरे देश की यह स्थिति नही होती । इस अवसर पर शैलेन्द्र गौर ने भी अपनी रचना रखी, कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना एवं अंत में शहीदों को मौन श्रृद्धांजलि दी गई।

