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कोई भी तीज-तीहार कोयतूर जन जीवन मे दबे पाँव नही आता

कोई भी तीज-तीहार कोयतूर जन जीवन मे दबे पाँव नही आता

शिमगा-पड्डूम, सग्गुम-गोंगो, फागुन पाबुन


लेखक नसीब कुशरे(कोया-पुँगार)

कोयतोडियन सगा बिडार-गोंडियन,भिलियन, कोलारियन,द्रविडियन और सोमालियन, संयुगसूर्प-नाँग आयाल पालो कोरिल-मातृसत्तात्मक गण-गुडारिय, गणजीवों में आयातित कथित धर्मों के पूर्व से ही कोया-पुनेमी गणजीवों में गतिमान, शिमगा-पड्डूम सग्गुम-गोंगो  पादूमान अमाउस-से पांडामान अमाउस तक गतिमान पाबुन का बीजक महत्व रहा है । पादूमान अमाउस को शिमगा खापा दोहताना निवता नेंग पांडामान पूनो पड्डूम-पंडीना और पांडामान अमाउस-ऊंदोमान परिवा सग्गुम तिथि को पेंजियाँ आया अपनी वार्षिक गति, साँवरी फेरी पूरी करती है ।

सगाजनों, उपरांकित पैराग्राफ को और भी सुस्पष्ट समझ लें, पादूमान अमाउस, आनी माघ अमावस्या की तिथी को कोया-पुनेमी गणजीवों के गोंदोलाई नार-ग्राम व्यवस्था के मुखिया -मुकडदम पदवी धारक के संरक्षण में नार-ग्राम के सभी पागा-पगोटी-पदवी धारक, माँझी ,मुकवान, गायता, मुठवा-भुमका, बैगा-पुजारी , बैगिन-बेलोसा, अलोसा, नार-आया खेरो पंडा और ग्राम के प्रमुख पाँच सियानों के सानिध्य में नार के प्रत्येक घर-गोदा, परिवार का मुखिया सदस्य के उपस्थिति में  नार-ग्राम के नियत जगह जहाँ इस अनुष्ठान की रचना की जाती है ।
वहां एकत्रित होकर शिमगा खापा हेतु, वलेक मरहा, कटा साँवरी मरहा, सेमर पेड़ से सभी के सानिध्य में बैगा पुजारी के द्वारा विधिवत गोंगों गिरान, निवता देने के पश्चात, उस साँवरी पेड़ से एक डगालकर को काटकर लाया जाता है। उसी नियत स्थान पर जहाँ सदियों से उस कोया-नार को बसाने वाले गणजीव प्रमुखों ने  इस ग्राम में शिमगा खापा, गड़ाने की नींव डाली थी । जहाँ कोयतोड़ियन गणजीव प्रमुखों ने पहले नार व्यवस्था स्थापना हेतु शिमगा खीला गाड़ने कार्य अद्दिटिया पेन निमित्त अंगेठा जलाया था ! उसी स्थान को कोयाजन शिमगा खापा ठाना भी कहते थें और अभी भी कहते हैं । पांडामान-फाग पूनो को उसी शिमगा खापा ठाना में पण्डूम पंडिना नेंग संपन्न भी किया जाता है । यह हर्षोल्लास का पाबुन फाग अमावस्या तक गतिमान भी होता है । जहाँ पेंजियाँ आया अपनी वार्षिक गति का उसी चरम पल में बीते बरस की गति चक्र को संपन्न भी करती है और उसी चरम पल से नव पूनल साँवरी फेरी हेतु पुन: गतिमान भी होती है।

अपनी धरती दाई के चक्रीकरण के स्वागत हेतु आतुर है

कोया-जगत में पूनल साँवरी नव वर्षोत्सव का यह अद्भुत परिपाटी प्रकृति सम्मत नैसर्गिक मूल्यों पर आधारित है । स्वयं प्रकृति भी नव बरस नवा बछर के स्वागत में आतुर है । पतझड़ उपरांत, वन उपवनों के पेडों-मूर मरहा, परसा-टेशू-पलाश, इरुक-महुँआ, तेंदू-चार, चूरना, ऐन-मरहा, साजा, डूमर-गूलर, धव्वा गोंगों मरहा, लड़िया, असंख्य जाड़ी खंड, फूलों से अच्छादित नव बछर के स्वागत के लिए आतुर हैं ।
वहीं कोयतोड़ियन आदिम जन समुदाय भी अपनी धरती दाई के चक्रीकरण के स्वागत हेतु, नेंग आड़ा, ढोल, मंजीरा, मांदर टिमकी-तमाम वाद्ययंत्रों से सुसज्जित फो-दाय-फो पाटा गीत गम्मत नृत्य विभिन्न नृत्य शैलियों के साथ स्वागत हेतु आतुर है। कमका पितराही पराग-मूर मरहा-मूर-पुंगार, परसा-टेंशू-फूल रस से सराबोर कोया काया चैत बैशाख जेठ के तपीश से बचने का पूर्व प्रबंध भी कोयतोड़ियन टेक्नोलॉजी का विशिष्ट परीपाटी रही है। जिसका बीजक भाव रुप -रस-गंध स्वाभाविक होता है । आंतरिक भाव होता है, बीजक भाव होता है, पुरातात्विक भाव होता है, तांतरिक भाव होता है, ऐतिहासिक भाव होता है, वैज्ञानिक ज्ञान होता हैं । कोयतोडियन गणवेनों के जीवन शैली में तीज-तीहारों का विशिष्ट स्थान रहा है। कोई भी तीज-तीहार कोयतूर जन जीवन मे दबे पाँव नही आती बल्कि नव आगन्तुक अतिथि की भाँति कोयाजन उस पाहुना-पाबुन पर्व का भाव-भिनी स्वागत करते आ रहें हैं । नेंग-आडा मांदर, मृदंग, ढ़ोल-शहनाई, गीत-गायन -वारीना, एदीना नाचा-नृत्य के माध्यम से स्वागत करते आ रहें हैं और उसी क्रम  में विदाई भी, आडंबरीय धमा चौकड़ी से कोसो दूर माटी रज कोया-पुनेमी गणजीवों की अपनी विशिष्ट परीपाटी रही है।

क्या है फागुन-पाबुन  

आइए सिरडी-संयुगार, कोयटा गण खंडाक गणवाना मातृभूमि के अनन्य नेंगी कोयतोड़ियन सगा बिडार के गणजीवों के विशिष्ट, पण्डूम, शिमगा-पण्डूम, सग्गुम-गोंगों, फागुन-पाबुन के बारे में जानते हैं । पादूमान ऊनो नेटी, माघ-अमावस्या के दिन कोया-नार-गांव-लंका-टोला-पारा में नार मुकदम संयुग सियान नार-मुठवा, नार-भूमका -पाट चेला, शिमगा खापा अर्थात एक प्रकार के बीजक कील गड़ाने निमित्त मिजान नियत करते हैं। साँवरी विश्रांती-चलायमान साल की विदाई सेवामान हेतु, नव-बरस पूनल साँवरी आगमन-हेतु सेवा गोंगों, सेवा सार कोयतो-डियन सगा बिडार का तंदरी साधक तांत्रिक महापर्व भी है। इस दिन साँवरी-मान चलायमान साल के बार महीनों  का द्योतक कटा साँवरी, वलेक मरहा, सेंमर-रुखवा जिसके टहनियों के झुरमुट में, बारह पत्तों के गुच्छ साँवरी मानो (उंदोमान से-पाँडामान, चैत-से-फाग) तक का साक्षी भी है और प्रतिनिधि भी है ।

ये करते है आग्रह

वलेकनार, वलेक मरहा प्रतिनिधित्व भी करती है, कोया-पुनेम के संस्थापक लिंगो मुदिया, रुपोलंग पहाँदी पारी कुपाड का भी, वस्तुत: कोयाजन, वलेक मरहा, कटा सावरी-सेम्हर पेड़ के नीचे नियत की गई तिथि में नार-
मुकडदम-मुकवान, माँझी-गायता, पडिहार, नार संयुग सियान, नार मुठवा नार-भूमका, पुजारी, पाट-चेला, नार-कोया, मनवाल कोया पुनेम मूंद सूल सर्री का पालन करते हुए, सेवा मान गोंगो निवता सियाना नेंग विधिवत गोंगो गिरान, साँवरी मरहा से आगृह करते है,

मुठवा मंतेर
उंदी खाप-मर्सा ना कोला !
साँवरी मरहा ना डारा खोरा !!
ताना पर्रो पेन मेंदोला !!! 
सेवा सेवा!!!


यही विधान है कोया बिडार में सेवामान का, गुजारे बरस का सम्मान का है 

गुनगुनाते हुए, एक डारा शाखा ससम्मान नार खापा (जहाँ शिमगा-ठाना होता है) वहाँ लाते हैं। मुकडदम, मुकडदम आया द्वारा बनाई गई, बारह-गोबर से बने कंडो की सोली-हार बारह महीनों के प्रतिकात्मक शिमगाडार बाँस के पोर में पंडरी धजा गोंगो गिरान के साथ गडाया जाता हैं । यही विधान है कोया बिडार में सेवामान का, गुजारे बरस का सम्मान का है । तत्पश्चात पांडामान पूनो नेटी नार के गाँव के हर रोन-घर से रोन रजगा रोन आया द्वारा रोन रप्पो रच्चा क्रमश: कैसार-झाडू से झाड़कर बाहर रच्चा-आँगन में निकालती है। पुरानी बाँस से बनी टोकरी कैसारखरैटा व रोन-रजगा एकत्र करके रोन-पेन द्वार में रखती है। सांय-काल, पाँडामान पूनो के सग्गुम-बेरा में नार मुकडदम के सानिध्य में नार सियान नार मुठवा नार भुमका अपने पट शिष्यों के साथ हर रोन से एकत्रित करके नार मेडो  ले जाते हैं और तब शुरू होता है, कोया बिडार का तंदरी साधना । उल्टा ऐन मरहा के संसाधनो से निर्मित गाडा-गडली में पडरी-नत्तूर-करोस, (लाल-सफेद-काली) ध्वजा टोटमों से सुसज्जित बाना और परीमार्जित जीवा नत्तूर सत्व पडरी-नत्तूर करोस जोड़ा, चीवा रजगा निकासी हेतु गोंगो-गिरान-मि-जान और फिर विदाई विश्रांती भी, बिताए हुए मान का, जिसमें हमने क्या पाया, क्या खोया, यह मान और सम्मान का ज्ञान है, विज्ञान है, परा-विज्ञान है। कोयतोडियन सगा बिडार काविस्तृत व्यक्त करना उचित नही, चूंकी कोया-साधना-साधक, लिंगो-बैगा-बैगिन, मुठवा-भूमका, सोधा-सोधन, साधको -पद-धारी पद-चिन्हों का मान भी है और सम्मान भी है। कडक नरका, सग्गुम-बेरा-मध्य रात्री को मुकडदम द्वारा गोंगो-गिरान सामग्री, संयुग-सियान, मुठवा-भूमका, पाट-चेला, नार-मन्वाल, फगवा-पाटा-लयोर, एकत्रित होकर माँदर-मृदंग, नेंग-आडा, गोगा-गुदूम-गोटकी,सुलूड-जंगो-लिंगो,  घनचुट-कचटेहट्टोर वाद्ययंत्रो से सुसज्जित सुर-ताल फो-दाय-फो, फगुआ-फुहार गुजर रहे बरस निमित्त विदाई गीत पर्रांगमानों की व्याख्या करते हुये, करुण-रौद्र-मांत्रिक बारह महीनों में जो घटनाएं घटी उन घटनाओं का सेवामान पाटा-पाटालीर गाते है, सेवा मान देते है, ऐंदेंना मान देते हैं ।

सूर्य के रौद्र तपिश का प्रभाव कम पडता है और लू भी नही लगती 

मुकडदम द्वारा कीस मासीना नेंग, शिमगा मासीना नेंग, तब संपन्न भी  होता है। नरका पली-नत्तूर-बादूर वेरा तक पाटा वारिना-एंदिना, फगवा -पाटा वारिना-एंदिना, फल फले-अल सुबह-बड़े-सकारे नार-मुठवा-बैगा अपने पाट-चेलों को शिमगा-नीरा (राख-भभूती) अभी-मंत्रित करके देता है। नार बाँधने हेतु निमित्त मंतेर-

बोरे बुर्रे कलवल कुरीर्ना,
कन्क वल्ली आयल इदनार ते!
बोरे सोधे सोधन 
अल्ली आयल इदनार ते!

इस तरह नार साधना कोयतोड़ सगा-बिडारिय नार-गाँवों में अनवरत चली आ रही परिपाटी जीवंत और चलाय-मान है, गतिमान भी है । सरग नशेनी अचाट मुठवा पहाँदी पारी कुपार लिंगो, राय लिंगो, महारु-लिंगो, कोया लिंगो द्वारा बताए गए मूंदसूल-सर्री-मोद-वेरची कोया-जगत गणवाना में गतिमान है, विद्यमान है । धुरेडी-पोयपातु वेरा अल-सुबह मुकडदम के सानिध्य में शिमगा नीरा (राख-भभूती) ससम्मान नार मुठवा-बैगा द्वारा नार के प्रत्येक रोन सियान को फव्व नीरा सियाना नेंग संपन्न भी होता है और तब एक-दूसरे को फव्व-नीरा कव्वी-गाल, तल्ला-शिर्ष-शिखर में लगाया भी जाता आ रहा है और शुरू होता है । नव-आगन्तुक उन्दोमान सगा हेतु पन्द्रह दिनों तक चलने वाला पितराही पाबुन पराग-मूर-मरहा-परसा--टेंशु-पुँगार । रस-गँध-हुरीया-निर्मित, फगुआ-फुहार चैतीदाई, बैशाखू-दाऊ, जेठू-अन्ना, अषाडू-ऐना (चैत, बैशाख, जेठ, अषाड़) के पर्वा-दाऊ-सूरुजनराईन के तपिश से बचने का पूर्व प्रबंध भी, कोयतोड़ियन गण-गाथा-अनुसार मूर मरहा -पुँगार, परसा-टेशु-फूल के रस से नहाने से तीन महीनें तक सूर्य के रौद्र तपिश का प्रभाव कम पडता है और लू नही लगती है और त्वचा में तपिश का प्रभाव कम से कम होता है । आज भी कोयतोडियन बिडार में जीवंत प्रमाण है। जिसे
अनवरत सदियों से निभाते आ रहे हैं हमारेपूर्वज । पाबुन-पड्डूम-तीज-तीहार मनाते आ रहे हैं हमारे पूर्वज वर्तमान में तथाकथित आयातित धर्मों के बाजार वाद यायावर-घुमन्तुओं के द्वारा इसे हिरण्यकश्यप-होलीका प्रह्लाद से जोड़कर दूषित विवेचना करके होली -त्योहार में रुपान्तरित कर चुके है। गाँव -नगर-शहर प्रचार -प्रसार कर चुके हैं । इस कृत्य में  हम भी सह-भागी हैं ।सगा-पाड़ी और सोयरों, हमारे पुरखों द्वारा पेंजिया-आया, धरती-दाई के धुरी-आस-चक्र दैनिक-गति, वार्षिक-गति दोनों का अध्ययन निपुणता से किया गया है। नेट- नरका- पर्रांग- मान- मूंद- संयु- गार,  दिन-रात बारह-महीने, 365 (22/7)पाई सगा-बिडार। पेंजिया-पूर्वा-नलेंज, गुरुत्व-प्रभावों का अध्ययन करके प्रत्येक मानों में ऊनो-पूनो की विवेचना किए । पाक-पाबुन-पड्डूम की विवेचना दिए ।

शिमगा-पड्डूम, सग्गुम-गोंगो 

पडडूम बिताए बरस विदाई-विश्रांती का पड्डूम है । सग्गुम पांडामान-ऊंदोमान दोनो मानों का बीजक सग्गुम है । सग्गुम-गोंगो, खेरो-आया ना ठाना तल  ताकित़ा, पद नटी तल ताकिता, यही पूनल-साँवरी उत्सव भी है । महोत्सव भी है, नार-बैगिन-दाई-खेरो जतरा-जगराता भी है । पांडामान-ऊंदोमान सग्गुम नरका पेंजिया-आया अपनी वार्षिक गति पूर्ण करती है और गतिमान भी होती है । अपनी नव-गति के लिए कोया बिडार में ऊंदोमान परीवा नेटी नार बैगिन-खेरोदाई ठाना में जवाराल-जावा-आडा, दाई-बारी, घट स्थापित कर शुरूआत की जाती है । पूनल साँवरी महोत्सव की,  सेवा-मान-ऊंदोमान-भाव की, पद दीहा तल ताकिन, वाडे-पूनल-साँवरी-आया-आडा-रेला विस्तार की ।

आलेख के साथ सेवा-जोहार

पुरुंड प्रकृति के समस्त पुनेमी जीवा-जावॉ अन जाड़ी सुरुंग को समर्पित यह आलेख के मूल्य सूदुर अंचलों में निवास करने वाले पुनेमी सगा बिडारों में आज भी संचारित हैं उन्हें और भी बीजक मान देने की संभावनाएं पढ़े-सािथयों से है । इसी उम्मीद के साथ-पुखराल ता बुम वाना ता सेवामान पेंजियाँ आया ना सफाय आडाँग सूक्तिंग ना सेवामान । गोटूल,गोंगों-टुल-जोहार।

लेखक नसीब कुशरे(कोया-पुँगार)
पता-कोया-गोदाल 
131 सुरभि मोहिनी होम्स
अवधपुरी ,बरखेड़ा-पठानी भेल-भोपाल (म.प्र.)
डाकपिन कोड नं. 462022
मो.नं. 9425676885, 8770806157




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