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ग्राम सभा को दिया गया है लघु वनोपज का स्वामित्व

ग्राम सभा को दिया गया है लघु वनोपज का स्वामित्व

भोपाल। गोंंडवाना समय।
विधानसभा सदन में पहली बार पहुंचने वाले मनावर विधानसभा क्षेत्र से युवा विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने विधानसभा सत्र के दौरान वन मंत्री से सवालात करते हुये पूछा कि जैव विविधता एवं लघु वनोपज के संबंध में भारतीय वन अधिनियम 1927, मध्य प्रदेश वनोपज व्यापार विनियमन 1969, संविधान की 11 वी अनुसूचित, पेसा कानून 1996 एवं वन अधिकार कानून 2006 की किस धारा में क्या-क्या प्रावधान दिये है तो वन मंत्री उमंग सिंघार ने जवाब देते हुये बताया कि भारतयी वन अधिनियम 1927 की धारा 76 (घ) में प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुये राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश वन उपज जैव विविधता का संरक्षण एवं पोषणीय कटाई नियम 2005 बनाये गये है, जिसके नियम 3 में राज्य शासन को सरकारी वनों से वन उपज के पोषणीय संग्रहरण या निष्कर्षण को सुनिश्चित करने हेतु ऐसे कदम उठाने की शक्ति प्राप्त है, जो जैव विविधता के संरक्षण एवं वनोपज की पोषणीय कटाई को सुनिश्चित कर सकें। मध्य प्रदेश वनोपज (व्यापार विनियम) अधिनियम 1969 की धारा 5 से 11 तक में अधिसूचित क्षेत्र में विनिर्दिष्ट लघु वनोपज के संग्रहण एवं व्यापार के विनियिमन का प्रावधान किया गया है ।
पंचायत उपलब्ध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा कानून) के अंतर्गत धारा 4 (ड.) (2) के
अधीन लघु वनोपज का स्वामित्व ग्राम सभा को दिया गया है। अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 की धारा 3 (1) (ग) में गौण वन उत्पादों के जिनके गांव की सीमा के भीतर याद बाहर पारंपरिक रूप से संग्रह किया जाता रहा है । स्वामित्व संग्रह करने के लिये पहुंच और व्ययन करने का वन अधिकार दिया गया है ।

जैव विविधता का संरक्षण एवं पोषणीय कटाई पर ये दिया जवाब 

इसी तरह आगे विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने हर्रा, बेहड़ा, आंवला सागौन, बीज एवं धावड़ा, गोंद के संग्रहण, विपरण, भंडारण एवं परिवहन पर प्रतिबंध लगाये जाने के क्या-क्या प्रावधान के संबंध में एवं किस किस कानून की किस किस धारा में वन मंडलाधिकारी को प्रदान किये गये है तो वन मंत्री उमंग सिंघार ने जवाब देते हुये बताया कि मध्य प्रदेश वन उपज (जैव विविधता का संरक्षण एवं पोषणीय कटाई) नियम 2005 नियमों के नियम 4 में निषिद्ध मौसम घोषित करने की शक्ति, नियम 5 में निषिद्ध क्षेत्र घोषित करने की शक्ति, नियम 6 में पोषणीय कटाई सीमा विहित करने की शक्ति, नियम 7 में पोषणीय कटाई पद्धति विहित करने की शक्ति राज्य सरकार या प्राधिकृत अधिकारी को दी गई है, जिसके लिये उक्त नियम के नियम 2 (ख) में प्रदत्त शक्तियों को उपयोग
कर राज्य सरकार ने वन मण्डलाधिकारियों ने अधिकृत किया है ।

लघु वनोपजों के संरक्षण एवं वनोपज की पोषणीय कटाई को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लगा सकते है प्रतिबंध

इसके साथ ही आगे विधायक अलावा के प्रश्न हर्रा, बेहड़ा, आंवला, सागौन, बीज, धावड़ा गोंद को लघु वनोपज के स्थान पर जैव विविधता माने जाने का प्रावधान किस कानून की किस धारा में दिया गया ? उस कानून में प्रतिबंध लगाने के अधिकार वनमंडलाधिकारी को किस किस धारा में दिये गये है तो वन मंत्री उमंग सिंघार ने जवाब देते हुये बताया कि प्रश्नाधीन वनोत्पादन जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा 2 (ख) एवं (ग) में क्रमश: जैव विविधता व जैव संसाधन के रूप में परिभाषित है । जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा 7, 23 (बी) 24 (2) एवं मध्य प्रदेश जैव विविधता नियम, 2004 के नियम 17, 18 एवं 19 के अंतर्गत जैव संसाधनों का व्यापारिक उपयोग हेतु भारतीय मूल के व्यक्ति और संस्थाओं को रेगूलेट करने का अधिकार मध्य प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड को है। मध्य प्रदेश वन उपज (जैव विविधता का संरक्षण एवं पोषणीय कटाई) नियम 2005 के तहत वन मंडलाधिकारी विभिनन लघु वनोपजों के संरक्षण एवं वनोपज की पोषणीय कटाई को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रतिबंध लगा सकते है । 

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