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अविकसित आदिवासी गांव से पढ़कर बिना कोचिंग के सुरेश जगत बने आईएएस

अविकसित आदिवासी गांव से पढ़कर बिना कोचिंग के सुरेश जगत बने आईएएस

साधन संसाधन का रोना रोने वालों के लिये प्रमाण तो युवाओं के लिये बने प्रेरणा

छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय। 
भारत एक ग्रामीण देश है ऐसे में कई हिस्से आज भी अति पिछड़े हैं। इस वजह से गांवों में लोग सुविधाओं की कमी में जीवन गुजारने को मजबूर है। खासतौर पर आदिवासी और अति पिछड़े इलाकों में युवाओं को शिक्षा और सुविधाओं को लेकर बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे ही  छत्तीसगढ़ राज्य जिसे नक्सल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है यहां के अधिकांश आदिवासी वनांचल क्षेत्र में निवास करते है। 
सरकर के लाख वायदों और घोषणाओं के बावजूद इन क्षेत्रों में शैक्षणिक संस्थानों के साथ साथ मूलभूत सुविधाओं की अत्याधिक कमी आज भी है। इसके बाद भी इन क्षेत्रों से आईएएस अफसर बनकर उन युवाओं के लिये प्रेरणा बन रहे है जो साधन व संसाधन का हमेशा रोना रोते है और ऐसे युवा माता-पिता-परिवार-रिश्तेदार, समाज, क्षेत्र प्रदेश व देश का नाम रोशन करने में अपनी मेहनत व लगन से अपनी जवाबदारी निभा रहे है उन्हीं में से है सुरेश जगत जो कि आदिवासी समुदाय के साथ साथ अन्य समाज के युवा वर्गों के लिये प्रमाण बन गये है जिन्होंने बिना कोचिंग के यूपीएससी की परीक्षा पास कर इतिहास बना दिया है।

सुरेश जगत का जन्म कोरबा जिले के परसदा गांव में हुआ

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के परसदा गांव के सुरेश जगत ने एक जनता स्कूल से पढ़ाई करके भी 90 फीसदी अंक हासिल किए थे। इसका मतलब है कि वे शुरूआत से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे। इसी गांव के बीच से एक युवा ने निकल यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस बन कर दिखा दिया। सुरेश जगत राज्य गठन के 18 वर्षों के बाद पहले आदिवासी हैं, जो आईएएस बने हैं। सुरेश जगत का जन्म कोरबा जिले के परसदा गांव में हुआ है। यह एक अति पिछड़ा आदिवासी बाहुल्य गांव है। सुरेश जगत की शुरू से ही पढ़ने-लिखने में रूची ज्यादा थी। शुरूआती पढ़ाई यही हुई पर अधिकारी बनने के सपने को पूरा करने के लिए वे अपने जिले से बाहर निकल आए। यहीं से उन्होंने यूपीएससी जैसी परीक्षा की तैयारी की।

दसवीं में सुरेश ने 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किया

सुरेश जगत ने हाई स्कूल तक की पढ़ाई काफी मुश्किलों से किया। कुछ कक्षाओं में एक भी शिक्षक नहीं थे। उनकी पढ़ाई गांव के जनभागीदारी स्कूल से हुई। ये स्कूल गांव की जनता चलाती है जिसमें कभी टीचर होते हैं कभी कोई नहीं होता, कोई सिस्टम नहीं होता। यहां कोई हाई-फाई प्राइवेट स्कूल नहीं थे। अंग्रेजी पढ़ाने वालों को भारी कमी थी। किसी तरह से सुरेश जगत ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की। दसवीं में सुरेश ने 90 फीसदी अंक पाए। इससे उन्हें आगे बढ़ने का हौसला मिला। आगे की पढ़ाई के लिए उनके भाइयों ने काफी मदद की और बिलासपुर के भारत माता हिंदी माध्यम स्कूल में प्रवेश लिया । 

12 वी में टॉपर में आये थे 5 वे स्थान पर 

सुरेश जगत को 12 वीं में टॉपर बच्चों में राज्य में 5 वां स्थान मिला था। उसके बाद उन्हें आगे कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास मिला। गांव के बच्चों में विश्वास की कमी होती है। अंग्रेजी और गणित के विषय में कमजोर होना भी एक समस्या है। इसलिए सुरेश जगत ने इन दोनों विषयों पर खास ध्यान दिया। इसके बाद उनके मन में कही से सुनकर आईएएस अधिकारी बनने की इच्छा जागी। सुरेश जगत ने एआईईईई पास करके एनआईटी रायपुर में प्रवेश मिला और वहां भी अपनी मेहनत से 81% के साथ मैकेनिकल की डिग्री हासिल किया। 

नौकरी करते हुये परीक्षा की तैयारी

सुरेश जगत गरीब किसान परिवार से हैं ऐसे में उन्हें परिवार को पालने के लिए नौकरी करनी पड़ी। परिवार उनकी कोचिंग और पढ़ाई का पूरा खर्च नहीं उठा सकता था। ऐसे में आर्थिक रूप से सक्षम होने के लिए सुरेश ने ओएनजीसी में कैंपस सेलेक्शन में मिली नौकरी को ज्वाइन कर लिया। गेट की परीक्षा से सुरेश जगत का एनटीपीसी में सेलेक्शन हो गया तो उन्होंने जॉइन कर लिया। इस फुल टाइम नौकरी को करते-करते सुरेश जगत ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया। एनटीपीसी में 3 साल काम करके सुरेश जगत ने सोचा अब सिविल सेवा की परीक्षा देनी चाहिए। इसके बाद सुरेश ने भारतीय इंजीनियरिंग सेवा की परीक्षा पास की जिसके बाद उन्हें केंद्रीय जल आयोग भुवनेश्वर में पोस्टिंग मिल गई। हालांकि सुरेश का दिल्ली जाकर तैयारी करने का सपना अधूरा रह गया। परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी उन पर थी इसलिए वे फुल टाइम नौकरी करते रहे।

किसी भी चरण में कोचिंग का सहारा नहीं लिया

नौकरी करते-करते सुरेश ने दो प्रयास में हिंदी माध्यम से एग्जाम दिए। उसके बाद उन्हें लगा कि अब अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देनी चाहिए। अंग्रेजी से पढ़ाई करना सुरेश जगत के लिये एक चुनौती ही थी हालांकि सुरेश जगत ने एक बार यूपीएससी क्लियर कर लिया था लेकिन वे आईएएस ही बनना चाहते थे। सुरेश जगत को वर्ष 2016 की परीक्षा में सफलता मिली और आईआरटीएस मिला लेकि आईएएस की चाह में चौथे प्रयास में मुझे आईएएस मिला। ये सारे प्रयास फुलटाइम नौकरी करते हुए दिए और किसी भी चरण में कोचिंग का सहारा नहीं लिया।

दादा जी के कोर्ट कचहरी के चक्कर काटना बनी प्रेरणा

गांव का एक गरीब लड़का होने की वजह से सुरेश जगत गांव की समस्याओं को अच्छे से जानते थे। जब भी अफसर जो सुरेश जगत के गांव में आते थे, उन्हें देखकर मन में सवाल उठते थे। घर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति ठीक नहीं होना भी एक कारण था। सुरेश जगत की के दादाजी उनके प्रेरणा स्रोत रहे हैं, उनकी मेहनत और कोर्ट-कचहरी के चक्कर ने मुझे इस दिशा में प्रयास करने के लिए विवश कर दिया।

हिन्दी साहित्य विषय से देते परीक्षा तो पहले मिल जाती सफलता

सुरेश जगत ने अपने सफलता के लिये संघर्ष में अपनी गलतियों को भी बताया कि कैसे हिंदी माध्यम से तैयारी की पूरी कोशिश नहीं की। अगर हिंदी साहित्य विषय से परीक्षा देता तो सफलता पहले ही मिल गई होती, नोट्स नहीं बनाना दूसरी गलती थी। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके से आने वाले सुरेश जगत के चार प्रयास में आईएएस अफसर बनने की संघर्ष की कहानी सभी विद्यार्थियों के लिये प्रेरणा ही नहीं प्रमाण है। आज सुरेश जगत पश्चिम बंगाल में कलेक्टर के पद पर पदस्थ हैं।

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