मंडल कमीशन को लागू कराने में कांशीराम जी की महत्वपूर्ण भूमिका
इसलिए कांशीराम जी के आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी है मौजूद
धूमधाम से आदेगांव में मनाई गई कांशीराम जी की जयंती
आदेगांव। गोंडवाना समय।
बामसेफ डीएस 4, बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी की जयंती मनाई आंदेगांव में धूमधाम से मनाई गई। जयंति कार्यक्रम के अवसर पर विजेन्द्र अहिरवार, अजय राठौर, नीलेश गुन्हेरिया, बाबूलाल सिंघोरे, वीरेंद्र चौधरी ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि समाज के विकास के लिए मान्यवर कांशीराम जी ने अ
त्याधिक संघर्ष किया है। उन्होंने बहुजन के नायक के रूप में मान्यवर काशीराम जी ने शोषित-पीड़ित समाज में जनजागरूकता लाने के लिए जीवन भर भूखे-प्यासे रहकर सुख सुविधाओं का त्याग करते हुये कार्य किए गये हैं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी
कार्यक्रम के दौरान उपस्थित वक्ताओं ने अपने वक्तव्यों में बताया कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करवाने का काम कांशीराम जी ने किया। सच्चाई यही है, लेकिन बात आरक्षण की है, इस लिए मीडिया सही बताएगा नहीं। सवाल उठता है कि क्या कांशीराम पिछड़ों के वास्तविक नेता थे ? यह बात विल्कुल ठीक है परन्तु पिछड़ा वर्ग नहीं मानता। कांशीराम ने पूरे देश में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए 31 मार्च 1990 से 14 अप्रैल 1990 तक दिल्ली के बोट क्लब पर लाखों लोगों के साथ लगातार धरना देने का काम किया। नारा लगाया था मंडल कमीशन लागू करो बरना कुर्सी खली करो। यहीं पर कांशीराम ने नारा दिया था जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।
52 की जगह 27 फीसदी (आधा) आरक्षण पहली बार मिला
इसके बाद 07 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट को प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने कटौती प्रस्ताव के साथ लागू किया। यह उनके आंदोलन के दबाव का परिणाम था। तत्कालीन पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का एक पिलर (खंभा) देवीलाल थे और देवीलाल कांशीराम के इस तरह के मित्र थे कि वह कूटनीतिक और राजनौतिक मामलों में उनकी पूरी बात मानते थे। ऐसे में कांशीराम के आंदोलन से पीएम वीपी सिंह डर गए और कटौती प्रस्ताव के साथ पिछड़ों को 52 की जगह 27 फीसदी (आधा) आरक्षण पहली बार मिला। यह राष्ट्रीय स्तर पर था।
पूरे देश के पिछड़े वर्ग में एक चेतना जागी
कांशीराम जी के उक्त आंदोलन से पूरे देश के पिछड़े वर्ग में एक चेतना जगी, राजनीति से लेकर सामाजिक, आर्थिक स्तर पर कई बदलाव देखने को मिले लेकिन दुर्भाग्य यह हुआ कि जो नेता पिछड़े वर्ग की सियासत करके सत्ता के उच्च शिखर तक पंहुचे, उन्होंने इस समाज के उत्थान में बहुत कम योगदान दिया। इसलिए कांशीराम जी के आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी मौजूद है।