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सरकार को अत्यंत दु:ख व्यक्त करने का मौका दे रहा प्रशासन

सरकार को अत्यंत दु:ख व्यक्त करने का मौका दे रहा प्रशासन 
आंखो के सामने दुघर्टनाओं को आमंत्रण दे रही सरकार 
श्रमिकों की किस्मत में जानबूझकर लिखा जा रहा मौत का दुर्भाग्य
राष्ट्रीय राजमार्ग में जान जोखिम में डालकर मालवाहन में जा रहे श्रमिक 

सिवनी। गोंडवाना समय।
कोरोना वायरस संक्रमण बीमारी के बाद जैसे ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पूर्णतय: लॉकडाउन का घोषणा करते हुये सभी को घर पर रहने, सुरक्षित रहने को कहा था एवं राज्य सरकारों को लॉकडाउन का नियम कड़कता से पालन कराने एवं उल्लंघन करने वाले पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान किया गया था।
        प्रथम लॉकडाउन लगने के बाद से ही पेट की भूख को शांत करने के लिये रोटी की तलाश में श्रम करने वाले श्रमवीरों का ठांव-ठिकाना जो भारत में पहले आजादी से झाड़ों की नीचे, फुटपाथ पर, अस्थायी स्थानों पर रात भर काटते थे या कम किराये पर रहकर अपना व परिवार का पेट पालते थे। 
      उनकी बहुत बुरी स्थिति हुई जिसे सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा उजागर करने में भूमिका निभाया और आज भी श्रमवीरों की वास्तविक स्थिति के चलचित्रों को सोशल मीडिया में दर्द भरी दास्तनयुक्त तस्वीरों को दिखाया जा रहा है।
         
 भारत के श्रमवीर की स्थिति प्रथम लॉकडाउन के बाद से ही यह हो गई थी वे बेघर हो गये थे आसमान का सहारा भी उन्हें नसीब नहीं हो रहा है जिधर सहारा ढूढ़ने निकलते उधर डण्डों की बरसात होती थी। मजबूर मजदूरों को हलाकान होते देख केंद्र सरकार ने फैसला लिया कि जो प्रवासी मजदूर जहां है वह वहीं पर रूके वहां पर रूकने, खाने-पीने व अन्य सुविधायें वहां की राज्य सरकार को करना पड़ेगा इसमें केंद्र सरकार भी सहयोग करेगी। क्या सुविधा श्रमिकों को मिली यह श्रमिकों से अच्छा कोई नहीं बता सकता है।
           जैसे ही श्रमिकों को घर पहुंचाने का फरमान केंद्र सरकार ने भेजा तो अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर फंसे श्रमिकों ने अपने घर लौटने को तैयार हो गये क्योंकि वे वहां पर सुविधाओं को मोहताज थे यदि संपूर्ण सुविधा होती संभवतय: श्रमिक जहां पर है वहीं पर रहने को तैयार हो भी सकता था वहीं सरकार की खजाने पर श्रमिकों को सुविधा देने का बोझ भी आंकड़ों में शून्य जुड़कर बढ़ता जा रहा था।
        इसलिये संभवतय: श्रमिकों को अपने-अपने घर वापस भेजने का निर्णय लेकर राज्य सरकारों को जिम्मेदारी सौंपी गई और सभी राज्य सरकारों ने इसके लिये हेल्पलॉइन नंबर, पंजीयन नंबर, आॅन रजिस्ट्रेशन कराने के लिये असंख्य अशिक्षित श्रमिकों को लाने के लिये योजना बनाकर प्रचार प्रसार करना प्रारंभ कर दिया।
         
सरकारी प्रक्रिया अच्छे-अच्छे पढ़े लिखे लोगों को कई चक्कर कटवा देती है तो अशिक्षित श्रमिकों के लिये सरकारी प्रक्रिया से गुजरना मतलब घनचक्कर होना स्वाभाविक ही था। अभी भी लोग पंजीयन करवा करवा कर थक चुके है, आॅनलॉइन की तो ये स्थिति है लंबित ही बता रहे है। कुछ गुजरात से इटारसी में आकर फंस गये अब सिवनी आने के लिये अधर में लटके हुये है।
         सरकार कह रही है श्रमिक वापस आये तो स्वागत करो उनका लेकिन जिस तरह से श्रमिकों की वापसी मालवाहक वाहनों में जान को जोखिम में डालकर हो रही है। वह जानबूझकर किसी हादसे को आमंत्रण देना ही माना जा सकता है क्योंकि यह बिल्कुल सुरक्षित सफर कहीं से नजर नहीं आता है मजबूरी में घर पहुंचने का साधन समझ आता है।
       
          अपने घरों को लौटते हुये श्रमिकों के साथ अनेक स्थानों पर देश भर में दुघर्टनाआें के बाद मृत्यू होने के आंकड़े बढ़ते जा रहे है जिसे रोकने के लिये सुरक्षित साधनों की व्यवस्था सरकार को बनाना चाहिये। हम आपको बता दे कि सिवनी जबलपुर मार्ग, नागपूर से जबलपुर मार्गों पर भी ऐसा ही नजारा नजर आ रहा है आखिर क्यों ?
जान को जोखिम में डालकर मालवाहक वाहनों में क्षमता से ज्यादा श्रमिकों को बैठालकर, वाहन के ऊपरी क्षतों में बैठकर, वाहनों में लटकते हुये जाना वह किसी अंदरूनी सड़कों या जंगल क्षेत्र की सड़कों पर यह सफर तय नहीं हो रहा है वरन राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऐसा नजारा दिखाई दे रहा है।

बसों की सुविधा क्यों उपलब्ध नहीं करवा पा रही सरकार

जिस तरह से अपनी जान को जोखिम में डालकर श्रमिक मालवाहक वाहनों में बैठकर जा रहे है वह कहां तक उचित है। इसके स्थान पर सरकार बसों की सुविधाएं श्रमिकों को उपलब्ध करवा दे तो वह सुरक्षित सफर की श्रेणी में माना जा सकता है हालांकि अनेकों श्रमिकों को रेल व बसों के द्वारा सरकार ला भी रही है लेकिन उसके बावजूद भी पैदल चलने, साईकिल और मालवाहक वाहनों में जान को जोखिम में डालकर श्रमिकों को सफर मुख्य सड़कों पर निरंतर जारी है इसे मानवीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये रोककर यात्रि वाहनों में पहुंचाये जाने की व्यवस्था करवाया जाना आवश्यक है। इससे सरकार का खर्च तो बढ़ेगा पर मानव जीवन की सुरक्षा भी हो सकती है साथ में बस मालिक, चालक, परिचालक को भी काम मिल सकता है। 

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