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कोविड-19 में सबसे ज्यादा आहत होने के साथ लॉकडाउन और मंहगाई की मार से मजबूर हुआ मजदूर वर्ग

कोविड-19 में सबसे ज्यादा आहत होने के साथ लॉकडाउन और मंहगाई की मार से मजबूर हुआ मजदूर वर्ग 


लेखक के अपने विचार हैं
लेखक-डॉ. जीतेंद्र कुमार डेहरिया, अर्थशास्त्री
असिस्टेंट प्रोफेसर
डेनियलसन महाविद्यालय छिन्दवाड़ा
मो. 9770507023

यदि मजदूरों को दुनिया का निमार्ता कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योकि जितनी भी चमचमाती इमारतें, आलिशान बंगले, सड़कें, विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल, मंदिर, मस्जिद, किले और ताजमहल दिखाई देते हैं ये सब मजदूरों की ही देन है। जिनका श्रेय उनको कभी नहीं जाता फिर उनके स्वामित्व की तो दूर की बात है। इन सबके बावजूद भी मजदूर वर्ग खाली के खाली हाथ होता है, न तो उसकी कोई सुनता है और न समझता है। बस जीवन भर यहाँ-वहाँ ठोकरें खाकर जैसे-तैसे जीवन-यापन करता है। 

देश के विभिन्न शहरों में काम की तलाश में जाते हैं मजदूर


उनकी भावनाओं और समस्याओं को कभी नीति निर्माण कतार्ओं ने न ठीक से समझा है और न अनुभव किया है। इसीलिए उनके हित के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, सिर्फ छोटी-छोटी सरकारी योजनायें उनके निश्चित रोजगार, स्थायी आय और कौशल विकास का हल नहीं है। आज दिहाड़ी या दैनिक मजदूरी करने वाले मजदूरों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
        इन्हें गाँव, मुहल्लों, छोटे-छोटे कस्बों से लेकर बड़े-बड़े शहरों की होटलों में, ईंट के उद्योगों में, सड़क और बाँध निर्माण में, बड़े-बड़े किसानों के खेतों और छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी बहु-मंजिला इमारतों इत्यादि में काम करते देखा जा सकता है। इनकी तस्वीर तब और भी स्पष्ट होती है, जब वे काम की तलाश में हजारों की संख्या में ट्रेन के द्वितीय श्रेणी के डब्बे में क्षमता से कई गुना अधिक बिना बैठे, बिना सोये, रात-दिन सैंकड़ों किलोमीटर लटकते हुए देश के विभिन्न शहरों में काम की तलाश में जाते हैं।
        उदाहरण के लिए जैसे कोई उड़ीशा से हैदराबाद और सूरत जाता है, तो कोई छत्तीसगढ़ से हैदराबाद, कोई बिहार से हैदराबाद और पंजाब जाता है, तो कोई मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र, पुणे, कर्णाटक और बैंगलौर जाता है.और यह प्रक्रिया बारह महीने चलती रहती है चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या फिर बारिश का समय हो।

निरंतर मँहगाई बढ़ने से मजदूर वर्ग की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है

ये मजदूर सामान्यत: कम पढ़े लिखे, अकुशल, और भूमिहीन होते हैं या फिर इनके पास बहुत ही कम भूमि होती है, जिन्हें हम सीमान्त (ढाई एकड़ से कम भूमि वाले) किसान भी कहते हैं। इनकी आर्थिक स्िथति इतनी कमजोर होती है कि वे किसी भी आर्थिक और गैर आर्थिक समस्या से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं या किसी भी प्राकृतिक और आप्राकृतिक आपदाओं की मार सबसे पहले इन मजदूरों पर ही पड़ती है, चाहे सूखा हो, बाढ़ हो, कोई दुर्घटना हो या फिर कोई कोई बीमारी या महामारी हो जिसका जीता जागता उदहारण कोविड-19 पेंडेमिक है। जिसमें मजदूर वर्ग सबसे अधिक आहत हुआ है।
        बार-बार लॉकडाउन लगने और निरंतर मँहगाई बढ़ने से मजदूर वर्ग की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। जिसकी तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। खाद्य पदार्थों और सब्जियों के बढ़ती कीमतों ने उनका जीवन-यापन दूभर कर दिया है। एक साल के अन्दर खाद्य तेल की कीमत दुगुनी हो चुकी है सेनीटाईजर और मास्क खरीदने के लिए लोगों के पास पैसे नहीं हैं। एक और मजदूरों के पास न कोई स्थायी रोजगार है और न स्थायी आय और दूसरी तरफ सरकार लोगों को कोविड से बचाने के लिए बार-बार लॉकडाउन का सहारा ले रही है तो अब मजदूर वर्ग ऐंसी स्थिति में करे तो क्या ?

मजदूरों के प्रति शासन और प्रशासन भी उतना संवेदनशील नहीं है

सच्चाई तो यह है की एक मजदूर के पीछे सिर्फ वह एक अकेला व्यक्ति नहीं होता बल्कि उसके पीछे उसके बीबी-बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य भी होते हैं। जिनकी अपनी-अपनी आवश्यकताएं और जरूरतें होती हैं जैसे भोजन-कपड़े, शिक्षा-स्वास्थ्य और शादी-ब्याह इत्यादि।
        इन जरूरतों को पूरा करना इतनी मँहगाई और अनिश्चित आय में वही मजदूर और बेरोजगार व्यक्ति समझ सकता है जो इस समस्या को जूझ रहा है। उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति और संगठन के अभाव में न वे अपने हक के लिए लड़ सकते हैं और न किसी को कुछ कह सकते हैं और यदि हक के लिए लड़ते भी हैं तो उनकी कोई सुनता भी नहीं है. उनको लेकर हमारा शासन और प्रशासन भी उतना संवेदनशील नहीं है जितना की होना चाहिए और शायद ये हम सभी जानते हैं। 

अमीर और गरीब के बीच की जो खाई बढ़ी है

उनका शोषण कई रूपों में होता है और उनके हक और अधिकारों को भी कई रूपों में प्रभावशील लोगों द्वारा मारा जाता है। उनके विकास के लिए दिए गए फंड और उनके लिए चलाई जा रही विकासात्मक योजनाओं से मिलने वाले लाभ का बँटवारा कर्मचारियों, अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच इस प्रकार होता है कि वास्तविक लाभ गरीबों को बहुत कम मिल पाता है।
    इस प्रकार की नीति और नियत से मजदूर वर्ग को उठने नहीं दिया जाता है। आज अमीर और गरीब के बीच की जो खाई बढ़ी है या मुठ्ठी भर लोगों के पास जो देश की कुल संपत्ति का 90 प्रतिशत हिस्सा है, वह काफी हद तक भ्रष्टाचार का ही परिणाम है और वह सम्पत्ति गरीब वर्ग के लिए कोई काम की भी नहीं है। 

समावेशी विकास का सपना पूरा होगा

यदि हमको सबका साथ सबका विकास और विश्व गुरु बनने का सपना पूरा करना है तो हमें मजदूर वर्ग को गुणवत्तापूर्ण तकनीकि और व्यावसायिक शिक्षा, स्वस्थ्य और अन्य आधारभूत सुविधाएँ प्रदान कर निश्चित रोजगार और आय की दिशा में कार्य करना होगा तभी हम एक स्वस्थ्य, शिक्षित और सुदृढ़ प्रदेश और देश का निर्माण कर सकते हैं। हम मजदूरों को शोषण, बेरोजगारी, भुखमरी, अत्याचार, भ्रष्टाचार और कम मजदूरी से छुटकारा दिला सकते हैं तभी हमारी जीडीपी की विकास दर भी हमारी उम्मीदों से अधिक होगी और हमारा इस पर आधारित समावेशी विकास का सपना पूरा होगा। 



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