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अब मैंने भी सीख लिया, बेबजाह कहीं न जाना ’’

अब मैंने भी सीख लिया, बेबजाह कहीं न जाना ’’



रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा


अब मैंने भी सीख लिया है, कम हवा में जीना
कल किसने देखा यारो, सीखा आज पे जीना
बाहर मचा है कोहराम, दर से झाँक देखा है
कदम बड़े जब चौखट से, बेड़ी लगते देखा है
लाचारीवश पड़े हुए है, चुप गमो को सहना  
अब मैंने भी सीख लिया है, गुमसुम घर में रहना’


कोरोना के तेवर देखो, दिन-दिन बढ़ता जाए
राजा-रंक सभी को कहरे, सकल दम लगाए
लम्बी भरी पड़ी सड़के, पलायन से पटी पड़ी
खडग पग न सर जामा है, न कर कोई छड़ी  
अम्मा-बापू संग चली, मुन्नी संग ले पलना  
अब मैंने भी सीख लिया, नंगे पैर चलना’’


वेवश की दुर्दशा पर सुध, क्या कोई लेने आता
अपना पेट भरा हो हरदम, पर दुख नहीं बांटता
काम नहीं है कर में देखो, घर की टेह नहीं होती
पानी संग रोटी खाने, अब तबियत नहीं होती
वेवस किया तालाबंदी ने, नून-तेल का साना
अब मैंने भी सीख लिया, चटनी दलिया खाना ’’


बाल बच्चे शिक्षा क्या, घर में सब हुए कैद
भोला सोचे दर बेचारा, बापू नहीं जा रहे खेत
घर में ताऊ दर पे भाऊ, सब कुटुंब परिवार
कोविड ने कर रखा, फीका हर हाट-त्यौहार
हाथ-मुंह-नाक बचाना, सामाजिक दूरी बनाना
अब मैंने भी सीख लिया, बेबजाह कहीं न जाना ’’

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