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कोरोना संक्रमण काल में गांव को मजबूत और सुरक्षित करना बहुत जरूरी

कोरोना संक्रमण काल में गांव को मजबूत और सुरक्षित करना बहुत जरूरी

हमें भी अभी सारे सामुहिक कार्यक्रम, सामूहिक भोज रोकने की जरूरत हैं। गांव की घेराबंदी करने की जरूरत हैं,


राजा रावेन राज तिलक धुर्वे
पारम्परिक ग्राम सभा - सारसडोली,
जिला - डिण्डोरी, मध्यप्रदेश

वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी समस्या कोरोना महामारी के रूप में हैं। कोरोना की दूसरी लहर से लगभग सभी वर्ग के लोग प्रभावित हैं। देश की अर्थव्यवस्था का हाल तो सरकार ही जानती हैं परन्तु देश का आम मजदूर वर्ग जो रोज कमाकर खाता हैं, उनकी बहुत ज्यादा दयनीय स्थिति हैं। आज की स्थिति ऐसी बन गई हैं कि ज्यादातर गरीब, मजदूर परिवार में धन की बहुत ज्यादा कमी हो गई हैं, शासन राशन बाटकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली समझ रही हैं जबकि जीवन यापन के लिए अन्य संसाधनों की आवश्यकता पड़ती हैं। 

कई बच्चे अनाथ हो गए, हमारे कोरोना योद्धाओं ने दम तोड़ दिया

भारत देश का ऐसा दौर शायद ही वर्तमान पीढ़ी ने अपने जीवन में कभी देखा होगा कि आज हम सभी अपने-अपने घरों में बंद हैं जो कि कोरोना महामारी की स्थिति देखते हुए जरूरी भी हैं। प्रतिदिन मीडिया, समाचार, टीवी न्यूज चैनलों में यह दिखाया जा रहा है कि कोरोना की वजह से कितने परिवार प्रभावित हैं। कई बच्चे अनाथ हो गए, हमारे कोरोना योद्धाओं ने दम तोड़ दिया, कई शासकीय कर्मचारियों ने अपना जीवन खो दिया, हम सभी ने अपने आसपास के, परिवार के, रिश्तेदार, मित्र, भाई-बन्धु किसी ना किसी को खोया हैं।

शहरों में लोगों को अपने पड़ोसी से ज्यादा कोई मेल मिलाप या मतलब नहीं होता 


लगभग पूरा देश वर्तमान में कोरोना महामारी की वजह से परेशान हैं, अधिकतर समाचार पत्रों में हम देश के बड़े-बड़े शहरों के बारे में ही पढ़ पाते हैं या न्यूज चैनल के माध्यम खबर प्राप्त कर पाते हैं परंतु भारत देश की लगभग 80 % जनसंख्या गांव में रहती हैं या गांव के सम्पर्क में हैं।
            लॉकडाउन के दौरान शहरों में सभी के पास आधारभूत सुविधाएं हैं, शहर में लाइट, बिजली, पानी, किराना के सामानों की ज्यादा समस्या नहीं होती और ज्यादातर लोग पहले से ही आधुनिक भौतिकवाद कि दुनिया में अकेले-अकेले रहने की आदी हो गए हैं। शहरों में लोगों को अपने पड़ोसी से ज्यादा कोई मेल मिलाप या मतलब नहीं होता परंतु यह स्थिति गांव में नहीं होती हैं। 

गांव एक छोटी सी सामाजिक व्यवस्था की इकाई होती हैं

आज भी हम देखते हैं की गांव में अधिकतर लोग हाथ से चलाकर हैंडपंप या कुंआ से पानी भरते हैं, गांव में मुश्किल से 4-5 या कहीं कहीं 1-2 हैंडपंप ही होते हैं। सभी घरों में पीने का पानी हैंडपंप या सार्वजनिक स्रोतों के माध्यम से जाता हैं। गांव एक छोटी सी सामाजिक व्यवस्था की इकाई होती हैं, जहां पर सभी लोग आपस में मिलकर रहते हैं।
        सुबह शाम एक दूसरे से मिलते हैं और सोशल डिस्टेंस या फिर एक दूसरे से आपस में दूरियां यह गांव में संभव नहीं हो पाता हैं। हमारे गांव के लोग ही शिक्षा, व्यवसाय, मजदूरी, नौकरी या अन्य कारणों से बड़े शहरों में जाते हैं और अपने ही गांव में संसाधनों का अभाव समझकर अपने गांव से दूरियां बनाकर रखते हैं लेकिन कोरोना जैसी परिस्थिति में जब हम इस महामारी से प्रभावित हैं तो हमें हमारे गांव की ही याद आती हैं। आज के दौर में देखा जाए तो बाहर काम करने वाले हमारे मजदूर भाई लोग देश के बड़े-बड़े शहरों में कार्य कर रहे थे। वह आज अपने गांव की ओर लौट रहे हैं या फिर लौट गए हैं। 

आज सबसे ज्यादा जरूरत अपने गांव को सुरक्षित रखने की हैं

आज सबसे ज्यादा जरूरत अपने गांव को सुरक्षित रखने की हैं। गांव में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच, तापमान, सर्दी-खांसी जैसे कोरोना के लक्षण देखकर ही गांव में प्रवेश कराना होगा, क्योंकि एक बार यदि कोरोना किसी गांव में घुस गया तो फिर गांव में कोरोना से लड़ पाना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। अब कोरोना गांवों की ओर बढ़ गया हैं, बहुत सारे गांव प्रभावित हो गए हैं।
            हमें भी अभी सारे सामुहिक कार्यक्रम, सामूहिक भोज रोकने की जरूरत हैं। गांव की घेराबंदी करने की जरूरत हैं, प्रत्येक गांव में घुसने वाले जानकारी रखने की आवश्यकता हैं, वेबजह किसी को भी गांव में नही घुसने देना चाहिए। आज समय आ गया हैं, कि हमारी जरूरत हमारे गाँव को हैं। अपने अपने गांव को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सबकी हैं।
            ज्यादातर लोग सोचते हैं कि गांव में संसाधन नही हैं, तो ये भी हमारी ही जिम्मेदारी हैं, कि अपने गाँव को संसाधन युक्त हम ही बनाये। शहरों पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा, अपने गांव को सम्पूर्ण तरह से विकसित करने की आवश्यकता हैं। कोरोना का संक्रमणकाल हम सभी को बहुत कुछ सीखा रहा हैं, और जब प्रकृति कुछ सिखाती हैं, तो जरूर सीखना चाहिए।

दादा हीरा सिंह मरकाम जी कह गए हैं गांव बचेगा तो देश बचेगा


शहरों में ऐसा क्या होता हैं जो हमें गांव में नहीं मिल सकता हैं बल्कि शहरों में प्रदूषण, मिलावटी वस्तु, नकली सामग्रियों का ज्यादा बाजार होता हैं, ऐसा नही हैं, असली सामग्री नही मिलती हैं, बिल्कुल मिलती हैं, पर उनकी कीमतों में अंतर होता हैं। बड़े शहरों में भोजन अच्छा नहीं होता हैं, ना ही रहने की अच्छी जगह होती हैं। आप सभी देखते होंगे जो गांवों के मजदूर होते हैं, वे शहरों में किस तरह से छोटे से घर में, झोपड़ी में रहते हैं।
        गांव में वही व्यक्ति अपने गांव में अपने घर में बहुत आराम से सुकून से रहता हैं, गांव में भी बहुत कुछ किया जा सकता हैं। कारखाना, व्यवसाय, कृषि, पढ़ाई के अच्छे केंद्र खोले जा सकते हैं। इस आलेख के माध्यम से मेरा मकसद यही हैं कि क्यों ना हम सभी अपने गांव को ही मजबूत, उन्नत, वैज्ञानिक कृषि, सर्व संसाधन युक्त बनाए। ताकि हमें शहरों पर निर्भर ना रहना पड़े। इस कोरोना के संक्रमणकाल में हमने बहुत अपनों को खोया हैं। इसलिए आप सभी स्वस्थ रहिए, सुरक्षित रहिए।
        खुद को मजबूत बनाइये, अपने गांव को मजबूत बनाइये, ताकि हमारी निर्भरता बड़े शहरों पर ना रहें, शहरों की ओर आना-जाना कम रहें और हम व हमारा गांव सुरक्षित रहें।गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन के जनक गोंडवाना रत्न आदरणीय दादा हीरा सिंह मरकाम जी कह गए हैं गांव बचेगा तो देश बचेगा। आप सभी आदरणीय पाठकगणों को सेवा जोहार।

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