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भूखे-प्यासे, जंगलों के बीच आंदोलन करने को क्यों है मजबूर छोटेबेठिया के बेचाघाट में आदिवासी

भूखे-प्यासे, जंगलों के बीच आंदोलन करने को क्यों है मजबूर छोटेबेठिया के बेचाघाट में आदिवासी 

छोटेबेठिया के बेचाघाट में आदिवासियों का आंदोलन लगातार दूसरे दिन भी रहा जारी

आजादी के 75 साल बाद भी सही मायने में मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं धरातल में आखिर कब तक पहुंचेगी

धरना, प्रदर्शन और आंदोलन की राह के सिवाय कुछ भी नही दिखता

कांकेर जिले के परलकोट पखांजूर क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासी शामिल


दुर्गाप्रसाद ठाकुर,प्रदेश संवाददाता।
जगदलपुर/छत्तीसगढ़,गोंडवाना समय।

देश के मूलमालिक आदिवासी समुदाय से सीखने की सीख महामहिम राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक देते है लेकिन वहीं आदिवासी आखिरकार क्यों बार-बार आंदोलन की राह पर नजर आते है। कोई 100 किलोमीटर पदयात्रा कर रहा है, तो कुछ आदिवासी कई माह से जंगलों के बीच में आंदोलन निरंतर कर रहे है उसके बाद भी सरकार द्वारा देश के मूलमालिकों की आवाज को नहीं सुनना या संज्ञान नहीं लेने के पीछे आखिर क्या कारण है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के विभिन्न जिले के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, कांकेर के जैसे विभिन्न हिस्सों में किसी न किसी समस्या को लेकर आंदोलन का राह अपनाते है, अपनी कई मांगों के संबंध में आदिवासियों ने आंदोलन शुरूवात करना और लगातार धरना, प्रदर्शन और आंदोलन करना कही न कही अपनी पीड़ा बयां कर रहे है, अगर सरकार संज्ञान में लेकर इनकी मांगों के प्रति ध्यान न देना शायद बीच का रास्ता जरूर निकल सकता है पर यहां शासन व प्रशासन का कोई भी सही मायने में प्रतिनिधित्व भी नही दिख रहा है जो इनकी समस्याओं को पहल किया जा सके।

आंदोलन स्थल पर ही भोजन पकाकर खाते और रात्रि विश्राम करते है


यह बताना लाजमी होगा कि केंद्र और राज्य सरकार की योजना धरातल पर आने के पहले ही कागजों में सिमट कर रह जाती है, जिससे अंदरूनी इलाके के ग्रामीणों को लाभ भी मिल पाता है इससे नाराज होकर क्षेत्र के आदिवासियों ग्रामीणों ने छोटेबेठिया के बेचाघाट में अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू कर दिया है।
             कांकेर जिले के परलकोट पखांजूर क्षेत्र के बेचाघाट में दर्जनों गांवों के हजारों की संख्या में महिला पुरुष पहुंचे है इधर ग्रामीणों का कहना है कि हमारी मांगों को सरकार कभी गंभीरता नही लेता और हमे आंदोलन के सिवाय कुछ नहीं दिखता यह आंदोलन कब तक चलेगा फिलहाल, बता पाना नामुमकिन है अपनी मांगों को ग्रामीण घर से ही राशन सामग्री लेकर आए है आंदोलन स्थल पर ही भोजन पकाकर खाते और रात्रि विश्राम करते है।

जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा को लूटने के लिए पुल का निर्माण कर रही है 

आदिवासियों का कहना है कि बेचाघाट में सरकार पुल बनाने और बीएसएफ कैम्प खोलने की तैयारी कर रही है, जिसका ये आदिवासी खुला विरोध कर रहे है। पूर्वजो से आदिवासी जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक खनिज संपदा की रक्षा करते आ रहे है और सरकार ये पुल हमारी सुविधा के लिए नहीं बना रही है बल्कि इलाके के जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा को लूटने के लिए पुल का निर्माण कर रही है बीएसएफ कैम्प खुलने से सुरक्षाबल के जवान अंदरूनी इलाके में जाकर ग्रामीणों के साथ मारपीट करते है न कि ग्रामीणों की सुरक्षा करते है आदिवासी ग्रामीण जवानों से अपने को असुरक्षित महसूस करते है।
            वनांचल में बसे ग्रामीण आदिवासियों का कहना है कि अंदरूनी गांवों में बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा जैसे मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में  असफल रही सरकार अब पुलिया बनाकर जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा लूटने के लिए पुलिया बना रही है। जिसका आदिवासी इसका विरोध करते है जब तक सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटती और बीएसएफ कैम्प खुलने और पुलिया बनाने का निर्णय वापस नही लेती तब तक यहां पर अनिश्चितकालीन आंदोलन में डंटे रहेंगे।

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